संस्कृत आदि कवि बाल्मिकी परिचय
आदि कवि वाल्मीकि का जीवन और रामायण
- रामायण आदि काव्य महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित है।
- यह ग्रन्थ राम कथा के समस्त परवर्ती काव्यों एवं नाटकों का स्रोत है। इसको ‘उपजीव्य काव्य' कहा गया है। अन्य सभी को उपजीवी ।
- इस महाकाव्य में नायकत्व राम का है, नायिका चित्रण की केन्द्र बिन्दु सीता है।
- सम्पूर्ण महाकाव्य का अंगीरस करूण है। शेष अन्य रस सहायक रस के रूप में पदे – पदे दृष्टिगोचर है।
- राम और रावण के युद्ध का विस्तृत वर्णन इसी महाकाव्य में प्राप्त है। अत: इस इकाई के अध्ययन के पश्चात् आप वाल्मीकि का परिचय बताते हुये रामायण में वर्णित घटनाओं के सूक्ष्म अध्ययन से बता सकेंगे कि रामायण की महत्ता अन्य महाकाव्य की अपेक्षा अधिक क्यों है।
आदिकवि महर्षि वाल्मीकि का परिचय एवं समय
- महर्षि वाल्मीकि संस्कृत के आदिकवि के आदिकवि हैं तथा उनका रामायण आदिकाव्य है।
- उनकी कविता देश तथा काल की अवधि के द्वारा परिच्छिन्न नहीं की जा सकती ।
- वे उन विश्व-कवियों में अग्रणी है जिनकी वाणी एक देश विशेष के प्राणियों का ही मंगल साधन नहीं करती और न किसी काल-विशेष के जीवों का मनोरंजन करती है।
- काल-क्रम से संस्कृत साहित्य के विकास में आदिम होने पर भी वाल्मीकि की अमृतमयी वाणी में सौन्दर्य -सृष्टिका चरम उत्कर्ष है तथा महनीय काव्य-कला का परम औदात्य है ।
- वाल्मीकि का रामायण 'महनीय कला' के लिए जिस आदर्श को काव्य-गोष्ठी में प्रस्तुत किया है वह वाल्मीकि के इस काव्य में सुचारू रूप से अपनी अभिव्यक्ति पा रहा है।
- फ्लाउबेर की मान्यता में 'ग्रेट आर्ट (महान् कला ) इन वस्तुओं की साधना तथा प्रसारणसे मण्डित होती है
- मानव सोख्य की अभिवृद्धि, दीन-आर्त जनों का उद्धार, परस्पर में सहानुभुति का प्रसार, हमारे और संसार के बीच सम्बन्ध के विषय में नवीन या प्राचीन सत्यों का अनुसन्धान, जिससे इस भूतल पर हमारा जीवन उदात्त तथा ओजस्वी बन जाय या ईश्वर की महिमा झलके । ' यह लक्षण वाल्मीकि के रामायण के ऊपर अक्षरश: घटित होता है।
- जीवन को ओजस्वी तथा उदात्त बनाने के लिए रामायण में जिन आदेशों की वाल्मीकि ने अपनी अमर तुलिका से चितत्रत किया, वे भारतवर्ष के लिए ही मान्य और आदरणीय है, प्रत्युत् महर्षि वाल्मीकि अपनी मानव-मात्र के सामने उच्च नैतिक स्तर तथा सामाजिक उदात्तता की भावना को प्रस्तुत करते हैं।
- हमारी दृष्टि में वाल्मीकि का काव्य शाश्वतवाद का उज्ज्वल उदाहरण है। वर्ण्य विषयों की दृष्टि से काव्य को हम दो भागों में विभक्त कर सकते है।
रामायण का मूल्यांकन
(क) जीवन के अस्थायी तत्वों के संगठन द्वारा निर्मित काव्य
इस प्रकार की साहित्यिक रचना किसी काल-विशेष के लिए ही रोचक और उपादेय होती है, उस काल या युग का परिवर्तन होने पर नई आर्थिक स्थिति या सामाजिक ढाँचा आने पर वह केवल पुरानी ही नहीं पड. जाती; बल्कि वह अनावश्यक, अनुपादेय,निष्प्राण तथा निर्जीव बन जाती है। प्रत्येक युग में कतिपय समस्याएँ अपना विशिष्ट समाधान चाहती जैसे मध्ययुगीन यूरोप में 'फ्युडल सिस्टम' (सामन्तीय प्रथा), वर्तमान युग में वर्गो का परस्पर संघर्ष मालिक और मजदूर का परस्पर विद्रोह, जमीदार तथा किसान का मनोमालिन्य, जो किसी विशेष आर्थिक ढाँचे की उपज है। इन समस्याओं का समाधान अनेक मूल्यवान् कृतियों का प्रेरक रहा है, परन्तु उस युग-विशेष के परिवर्तन के साथ ही साथ ये कला-कृतियाँ भी विस्मृति के गर्त में विलीन हो जाती हैं।
(
ख ) जीवन के स्थायी मूल्यवान् तत्वों, तथ्यों तथा सिद्धान्तों पर आधारित काव्य- कृतियाँ
मानव-जीवन बालू की भीत के समान शीध्र ही ढहकर गिर जाने वाली वस्तु नहीं है। उसमें स्थायित्व है; पीछे आने वाली पीढियों को राह दिखाने की क्षमता है। और यह सम्भव होता है महनीय शोभन गुणों के कारण; जैसे उदात्तता, अर्थ और काम की धर्मानुकूलता, संकट के समय दीन का संरक्षण, विपत्ति के अघात से प्रताडित मानव को अपने बाहु-बल से बचाना, शरणागत का रक्षण आदि। इन्हीं गुणों की प्रतिष्ठा जीवन में स्थायिता तथा महनीयता की जननी होती है। ऐसे काव्यों को हम शाश्वत काव्य का अभिधान दे सकते हैं। वाल्मीकि का काव्य इस शाश्वत काव्य का समुज्जल निदर्शन है, क्योंकि वह मानव-जीवन के स्थायी मूल्यवान् तत्वों को लेकर निर्मित किया गया है। संस्कृत की आलोचना-परम्परा में रामायण सिद्धरस' प्रबन्ध कहा जाता है।
विषय सूची
महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास
महाभारत का विकास एवं इतिहास, महाभारत का रचना काल
हरिवंशपुराण- हरिवंश का स्वरूप, हरिवंश में तीन पर्व या खण्ड
वेद व्यास की समीक्षा महाभारत रचना के संबंध में
रामायण-महाभारत की तुलना, रामायण और महाभारत में किसकी रचना पहले हुई
संस्कृत साहित्य का इतिहास : महर्षि वाल्मीकि संस्कृत के आदिकवि
रामायण में राजा की महिमा-रामायण मूल्यांकन