हिंदी साहित्य इतिहास की पृष्ठभूमि
इतिहास: अर्थ एवं स्वरूप
- ‘इतिहास’ शब्द का अर्थ है - 'ऐसा ही था' अथवा 'ऐसा ही हुआ' इस दृष्टि से देखा जाए तो कहा जा सकता है कि अतीत के किसी भी वास्तविक घटनाक्रम का लिपिबद्ध रूप 'इतिहास' कहा जा सकता है। प्रश्न यह है कि क्या अतीत का कोई भी विवरण इतिहास कहा जा सकता है। अथवा नहीं ? इस संदर्भ में यह कह देना श्रेयस्कर होगा कि “अतीत के गर्भ में इतना कुछ छिपा हुआ है कि उसे समग्र रूप में प्रस्तुत करना किसी भी इतिहासकार के वश की बात नहीं है।
- इसलिए विभिन्न इतिहासकार अपनी-अपनी रूचि एवं दृष्टि के अनुसार अतीत के कुछ पक्षों को अपने-अपने शब्दों में प्रस्तुत करते प्रत्येक व्यक्ति जो कुछ देखता है, उसमें उसकी वैयक्तिक रूचि के साथ-साथ उसके युग की सामूहिक चेतना, उसके बौद्धिक विकास एवं प्रवृत्तियों का प्रभाव भी मिश्रित होता है।
- इस प्रकार हम देखते हैं कि इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते है तथा इसी आधार पर इतिहास के वास्तविक, अर्थ को जानना दुश्क हो जाता है। इस समस्या के समाधान के लिए सर्वप्रथम हमें यह जानना आवश्यक है कि 'इतिहास क्या है ?
- इतिहास के वास्तविक अर्थ को जाने बिना
हम इतिहास की प्रक्रिया, उसके स्वरूप एवं उसकी विभिन्न लेखन
परम्पराओं को ठीक से नहीं समझ सकते। इसलिए आइए सर्वप्रथम हम इतिहास की कुछ मान्य
परिभाषाओं के विश्लेषण से यह जानने का प्रयत्न करें कि 'इतिहास' क्या है?
इतिहास : परिभाषा
ग्रीक विद्वान हीरोद्योत्तस (484-425 ई. र्पू0) को इतिहास का संबंध खोज एवं अनुसंधान
से माना है तथा इस संबंध में उसकी पांच विशेषताएं बताई हैं. -
1. ये वैज्ञानिक विद्या है क्योंकि इसकी पद्धति आलोचनात्मक होती है।
2. मानव जाति से संबंधित होने के कारण यह मानवीय विद्या है।
3. यह तर्क संगत विद्या है क्योंकि इसमें तथ्य एवं निष्कर्ष प्रमाण पर आधारित होते हैं।
4. यह अतीत के आलोक में भविष्य पर प्रकाश डालता है, अतः शिक्षाप्रद विद्या है।
5. इतिहास का लक्ष्य प्राकृतिक या भौतिक लक्ष्य की प्रक्रिया का परिवर्तन करना है।
' महाभारत में कहा गया है इतिहास अतीत का एक ऐसा वृत्त होता है जिस के माध्यम से धर्म अर्थ, काम एवं मोक्ष का उपदेश दिया जा सकता है
“धर्मार्थकाम मोक्षाणामुपदेशसमन्वितम्।
पूर्ववृत्तं कथायुक्तमिनतिहासं प्रचक्षते ॥” ।
हीरोद्योतस का मानना था कि “इतिहास परिवर्तन की प्रक्रिया है, उससे यह सिद्ध होता है कि प्रत्येक
सत्ता अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँच कर अन्त में अपकर्ष की ओर अग्रसर हो जाती है।”
हेनरी जॉनसन के अनुसार अतीत की प्रत्येक घटना
इतिहास की कोटी में आती है। उनके अनुसार “इतिहास
विस्तृत रूप में वह प्रत्येक घटना है जो कि कभी घटित हुई।” परन्तु क्योंकि अतीत की कुछ घटनाओं का
संबंध पशु जगत से होता है अतः जॉनसन की यह परिभाषा अतिवादी कोटी की परिभाषा कही
जाती है।
सर चार्ल्स फर्थ - “इतिहास मनुष्य के समाज में जीवन का, समाज में हुए परिवर्तनों का समाज के
कार्यों को निश्चित करने वाले विचारों का तथा उन भौतिक दशाओं का, जिन्होंने उसकी प्रगति में सहायता की, का लेखा जोखा है। "
इम्यूनल काण्ट (1724-1804) “प्रत्यक्ष जगत में वस्तुओं का विकास उसके प्राकृतिक इतिहास के समकक्ष रहता है। बाह्य प्रगति उन आंतरिक शक्तियों की कलेवर मात्र होती है, जो एक निश्चित नियम के अनुसार मानव जगत में कार्यशील रहती है।
" काण्ट की परिभाषा में गहन दार्शनिकता का भाव मिलता है। दरअसल काण्ट के अनुसार जिस प्रकार समस्त मानव जीवन का बाह्य विधान नियमों से बद्ध रहता है वैसे ही मनुष्य का ऐतिहासिक जीवन (इतिहास) भी आंतरिक प्रवृत्तियों द्वारा परिचालित होता है।
रैपसन घटनाओं अथवा विचारों का अति से सम्बद्ध विवरण ही इतिहास है।” रैपसन की यह परिभाषा इतिहास की आंतरिक बुनावट में घटित घटनाओं की पारस्परिक तारतम्यता को उद्घाटित करती है।
टॉमस कार्लाइल - “इतिहास असंख्य जीवन वृत्तों का सार
हैं। "
आर. जी. कांलिंगवुड “इतिहास समाजों में रहने वाले मनुष्यों
के कार्यों एवं उपलब्धियों की कहानी है।’’ साथ
ही कांलिंगवुड ने यह भी लिखा है “सम्पूर्ण
इतिहास विचारधारा का इतिहास होता है। "
ई. एच. कार इतिहास को तटस्थ क्रिया न मानकर
इतिहासकार एवं तथ्यों के मध्य व्याप्त जीवंत प्रक्रिया के रूप में देखते हैं। कार
का यह कहना कि तथ्य स्वयं नहीं बोलते अपि इतिहासकार उनसे (तथ्यों से) अभीष्ट
बुलवाता है- सही है। ई.एच0 कार ने लिखा है कि “वास्तव में इतिहास, इतिहासकार एवं तथ्यों के बीच
अर्न्तक्रिया की अविछिन्न प्रक्रिया तथा वर्तमान और अतीत के बीच अनवरत परिसंवाद
है।
‘‘भारतीय
साहित्य में ‘इतिहास' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 'अथर्ववेद' में प्राप्त होता हैं तदन्तर यह शब्द
शतपथ ब्राह्मण, जैमनीय, बृहदारण्यक तथा छान्दोगोपनिषद में प्रयुक्त हुआ है।
‘छान्दोग्योपनिषद' के अनुसार इतिहास का विषय निम्नलिखित
है
'आध्यादि बहुत्याख्यानं देवर्षिचरिताश्रयम्।
इतिहासमिति प्रोक्तंभविष्याद्युतधर्मयुक।।”
प्रस्तत परिभाषाओं के विश्लेषण से यह बात आसानी से जानी जा सकती है कि इतिहास को लेकर दुनिया भर के विद्वानों ने कितना विचार-विमर्श किया है। इकाई के आगे आने वाले भागों में आप इतिहास की परम्परा के दो धुरखों का परिचय प्राप्त कर सकेंगे।
इतिहास के आधुनिक स्वरूप का विकास पश्चिम में अवश्य हुआ परन्तु इसका यह अर्थ नहीं समझना चाहिए कि भारतीय विद्वानों के पास ऐतिहासिक दृष्टि का अभाव रहा है। इस संशय का शमन भी इकाई के अगले भागों में जाएगा। परिभाषाएँ किसी भी विषय को समझने के लिए आधार भूमि का काम करती है परन्तु समय के साथ-साथ बड़ी-बड़ी परिभाषाएँ भी अपूर्ण हो जाती है। इतिहास स्वयं में एक जीवन प्रक्रिया है अतः परिभाषाओं के आधार पर उसे बहुत मोटे तौर पर समझे जाने का प्रयास तो किया जा सकता है परन्तु समग्र तौर पर समझा नहीं जा सकता। अतः परिभाषाओं का मोह त्याग कर हम इतिहास की आंतरिक बुनावट पर अपनी दृष्टि केन्द्रित करने का प्रयत्न करते हैं।
इतिहास : विज्ञान अथवा कला
- किसी भी अन्य अनुशासन की तरह ही इतिहास के अध्ययन की भी अपनी कुछ समस्याएँ है। इन्हीं समस्याओं से जुझते हुए विभिन्न विद्वानों ने इतिहास एवं उसके दर्शन की व्याख्या की है।
- सर्वप्रथम यह सुनिश्ति करने का प्रयास किया गया है कि अपनी आंतरि के आधार पर इतिहास को विज्ञान माना जाए अथवा कला। इस प्रश्न का एक-रेखीय उत्तर देना कठिन एवं कई तरह से अव्यवहारिक माना गया है तथा इतिहास को कला एवं विज्ञान को गुणों से समन्वित अनुशासन बताया गया है।
- विभिन्न विद्वानों ने इतिहास को अलग-अलग कारणों के चले 'कला' एवं 'विज्ञान' की कोटी में रखा है। परन्तु बहुत स्पष्ट रूप से 'इतिहास' को मात्र 'कला' अथवा मात्र 'विज्ञान' कहना उचित नहीं कहा जा सकता। इतिहास के भीतर कलात्मकता की जिनती आवश्यता है उतनी ही आवश्यता वैज्ञानिक वस्तुनिष्ठता की भी है। इस संबंध में यह स्वीकार करते हुए भी कि इतिहास की आंतरिक प्रकृति में कलात्मकता का विशेष पुट होता है यह कहा जा सकता है इतिहास की प्रकृति विज्ञान के बहुत अधिक समीप है। ‘‘फिर भी एव वैज्ञानिक व इतिहासकार के मध्य यह कुछ अन्तर हैं- प्रथम के पास एक प्रयोगशाला होती है जबकि दूसरे के पास पुस्तकालय वैज्ञानिक निर्णय, संक्षिप्त ओर अपरिवर्तनीय होते हैं जबकि इतिहासकार के निर्णय लचीले और विषय परक होते हैं।
- वैज्ञानिक, प्रतीकों और ग्राफों का प्रयोग करता है जबकि इतिहासकार का कार्य वर्णन और व्याख्या पर निर्भर होता है। वैज्ञानिक, वस्तुनिष्ठ होता है किन्तु इतिहासकार विषयपरक है। वैज्ञानिक विश्व पर लागू होने वाले नियमों को बनाता है किन्तु ऐतिहासिक नियम सदैव त्रुटिपूर्ण होते हैं।
- इतिहास और विज्ञान का मिल इस दृष्टि से एक है कि दोनों आंकड़ों के संकलन के लिए एक ही पद्धति को अपनाते हैं और दोनों का अंतिम ध्येय सत्य की खोज करना है।"