माघ का संस्कृत साहित्य
प्रस्तावना
- संस्कृत साहित्य के इतिहास वर्णन क्रम इस आर्टिकल में परवर्ती कवियों की गणना श्रृंखला में उपमा तथा गौरव एवं पदलालित्य जैसे तीनों गुणों को एक साथ धारण करने वाले कवि माघ के व्यक्तित्व एवं उनके कृतित्व पर प्रकाश डाला गया है।
- महाकवि माघ संस्कृत साहित्य के प्रतिष्ठित कवि हैं। जिस प्रकार कालिदास उपमा के लिये प्रसिद्ध है, भारवि अपने अर्थगौरव वर्णन के लिये प्रसिद्ध है, दण्डी अपने रचनाओं में लालित्य प्रयोग के लिये प्रसिद्ध है। उसी प्रकार माघ उपर्युक्त तीनों गुणों के लिये समन्वित रूप से प्रसिद्ध है । इनके विषय में कहा जाता है कि नवसर्ग गतेमाघे नव शब्दो न विद्यते । शिशुपाल वध महाकाव्य इनकी रचना है जो वृहत्त्रयी में परिगणित है।
माघ का परिचय एवं समय
- शिशुपालवध के कर्ता का नाम 'माघ' है। डॉक्टर याकोवी का मत है कि जिस प्रकार ‘भारवि' ने अपनी प्रतिभा की प्रखरता सूचित करने के लिए 'भा-रवि' (सूर्य का तेज ) नाम रखा, उसी भाँति शिशुपालवध के अज्ञातनामा रचयिता ने अपनी कविता से भारवि को ध्वस्त करने के लिए 'माघ' का नाम धारण किया, क्योंकि माघमास में सूर्य की किरणे ठंडी पड़ जाती हैं। परन्तु यह कल्पना बिल्कुल निराधार जान पड़ती है शिशुपालवध कर्ता का व्यक्तिगत नाम ही 'माघ' है, उपाधि नहीं । माघ की जीवन घटनाओं का पता ‘भोजप्रबन्ध’ तथा ‘प्रबन्ध-चिन्तामणि' से लगता है। दोनों पुस्तकों में प्रायः एक सी कहानी दी गयी है। माघ के जीवन की रूपरेखा को हम जान सकते हैं।
माघ की जीवनी
- माघ के दादा सुप्रभदेव वर्मलात नामक राजा के, जो गुजरात के किसी प्रदेश का शासक था, प्रधान मन्त्री थे। अतः माघ कवि का जन्म एक प्रतिष्ठित धनाढय ब्राह्मणकुल में हुआ था। इनके पिता 'दत्तक' बड़े. विद्वान् तथा दानी थे । गरीबों की सहायता में इन्होंने अपने धन का अधिकांश भाग लगा दिया ।
- माघ का जन्म भीन-माल में हुआ था । यह गुजरात का एक प्रधान नगर था, जो बहुत दिनों तक राजधानी तथा विद्या का मुख्य केन्द्र था। प्रसिद्ध ज्योतिषी ब्रह्मगुप्त ने 625 ई0 के आस-पास ‘ब्रह्मगुप्तसिद्धान्त’ को यही बनाया । इन्होंने अपने को भीनमल्लाचार्य लिखा है। हुवेनसांग ने भी इसकी समृद्धि का वर्णन किया है। पिता की दानशीलता का प्रभाव पुत्र पर भी पड़ा । ये भी खूब दानी निकले राजा भोज से इनकी बड़ी मित्रता थी । राजा भोज का इन्होने अपने घर पर बड़े आवभगत से सत्कार किया। धीरे-धीरे अधिक दान देने से निर्धन हो गये यह धारा का प्रसिद्ध राजा भोज नहीं हो सकता। इतिहास इसे असंभव सिद्ध कर रहा है।
- अतएव कुछ लोग 'भोजप्रबन्ध' की कथा पर विश्वास नहीं करते, परन्तु इतिहास में कम से कम दो भोज अवश्य थे। एक तो प्रसिद्ध धारानरेश भोज (1010-50 ई0) थे और दूसरे भोज सातवीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुए । सम्भवतः इसी दूसरे राजा के समय में माघ हुए थे। ‘भोजप्रबन्ध' ने दोनों भोजों की कथाओं में हड़बड़ी मचा डाली हैं।
- माघ अपने मित्र भोज के पास आश्रय के लिए आये, 'भोज प्रबन्ध' में लिखा है कि इनकी पत्नी राजा के पास 'कुमुदवनमपश्रिश्रीमदम्भोजखण्डमद्' आदि पद्यको, जो माघ काव्यके प्रभात-वर्णन (11सर्ग) में मिलता है, ले गयी इस पद्य को सुनकर राजाने प्रभूत धन दिया। उसे लेकर माघ-पत्नी ने रास्ते में दरिद्रों को बांट दिया। माघ के पास पहुँचने पर उसकी पत्नी के पास एक कोड़ी भी न बची रही, परन्तु याचकों का ताँता बँधा ही रहा । कोई उपाय न देखकर दानी माघ ने अपने प्राणछोड़ दिये । प्रातः काल भोज ने माघ का यथोचित अग्नि संस्कार दिया और बहुत दुःख मनाया । माघ की पत्नी भी सती हो गयी।
- माघ के जीवन की यही घटना ज्ञात है। यह सच्ची है या नहीं, परन्तु इतना तो हम निःसन्देह कह सकते है कि माघ परम्परानुसार एक प्रतिष्ठित धनाढ्य ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए थे । जीवन के सुख की समग्र सामग्री इनके पास थी। पिता ने इन्हे शिक्षा दी थी। पिता के समान ही ये दानी तथा उपकारी थे। सम्भवतः भोज के यहाँ इनका बडा मान था ।
माघ का समय
- माघ के समय निरूपण के लिए एक संदेह हीन प्रमाण उपलब्ध हुआ है।
- आनन्दवर्धन ने शिशुपालवध के दो पद्यों को ध्वन्यालोक में उदाहरण के लिए उद्धृत किया है रम्या इति प्राप्तवती: पताका: ( 3/53) तथा त्रासाकुल: परिपतन् ( 5/26) | फलतः माघ आनन्दवर्धन (नवम शती का पूर्वार्ध ) से प्राचीन हैं।
- एक शिलालेख से इसका यथार्थ ज्ञान होता है। डॉ0 कीलहार्न को राजपुताने के 'वसन्तगढ' नामक किसी स्थान से 'वर्मलात' राजा का एक शिलालेख मिला है। शिलालेख का समय संवत् 682, अर्थात् 625 ई0 है शिशुपालवध की हस्तलिखित प्रतियों में सुप्रभदेव के आश्रयदाता का नाम भिन्न-भिन्न मिलता है।
- धर्ममान, वर्मनाम, धर्मलात, वर्मलात आदि अनेक पाठ भेद पाये जाते हैं । भीनमाल के आसपास के प्रदेश में इस शिलालेख की उपलब्धि से डॉक्टर किलहार्न 'वर्मलात' को असली पाठ मानकर इस राजा तथा सुप्रभदेव के आश्रयदाता को यथार्थतः अभिन्न मानते हैं।
- अत: सुप्रभा समय 625 ई0 से लेकर 700 ई0 के पास है। अत एव इनके पौत्र माघ का समय भी लगभग 650 ई0 से लेकर 700 ई0 तक होगा, अर्थात् माघ का आविर्भाव काल सातवीं सदी का उत्तरार्द्ध मानना उचित है ।
माघ का महाकाव्य 'शिशुपालवध
- माघ का केवल एक ही महाकाव्य 'शिशुपालवध' है। श्रीकृष्ण के द्वारा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में चेदिनरेश शिशुपाल के वध का सांगोपांग वर्णन है ।
- यही 'शिशुपालवध' महाकाव्य का वर्ण्य विषय है। इसका प्रेरणास्रोतमुख्यतया श्रीमद्भागवत है, गौण रूप से महाभारत | वैष्णव माघ के ऊपर भागवत अपना प्रभाव जमाये था । फलतः उसी के आधार पर कथा का विन्यास है।
- सर्गो की संख्या 20 तथा श्लोको की 1650 (एक हजार छ: सौ पचास) द्वारका में श्रीकृष्ण के पास नारद पधारकर दुष्टों के वध के लिए प्रेरणा देते हैं
- (1सर्ग) युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञमें जाने के लिए बलराम तथा उद्धव द्वारा मन्त्रणा द्वारा निश्चय किया जाता है
- (2सं0) श्रीकृष्ण दलबल के साथ इन्द्रप्रस्थ की यात्रा करते है
- (3सं0) तदनन्तर महाकाव्य पूरक विषयों का वर्णन आरम्भ होता है । रैवतक का
- (4 सं0 ), कृष्ण के रैवतक-निवास का
- (5 सं0), ऋतुओं का
- (6स0) वनविहार का
- (7स0), जलक्रीड़ा का
- (8स0) सूर्यास्त तथा चन्द्रोदयका
- (9), मधुपान और सुरतका
- (10सं0), पाण्डवों से मिलन तथा सभा प्रवेश का
- (13 स0), राजसूययाग तथा दान का
- (14सं0), शिशुपाल द्वारा विद्रोहका
- (15 स0), दूतों की उक्त प्रत्युक्ति का
- (16 सं0), सभासदों के क्षोभ तथा युद्धार्थ कवचधारण का
- (17 स०), युद्धका
- (18 तथा 19 स0) तथा श्रीकृष्ण और शिशुपाल के साथ द्वन्द्व युद्ध का वर्णन
- 20 सर्ग में निष्पन्न होता है।
इस विषयसूची पर आपाततः दृष्टि डालने से स्पष्ट है कि लघुकाय वृत्त को परिवृंहित कर महाकाव्यत्व के निर्वाह के लिए माघ ने आठ सर्गो की योजना (4 सर्ग-11 सर्ग) अपनी प्रतिभा के बल पर की है ।
अलंकृत महाकाव्य की यह आदर्श कल्पना महाकवि माघ का संस्कृत साहित्य को अविस्मरणीय योगदान है, जिसका अनुसरण तथा परिबृंहण कर हमारा काव्यसाहित्य समृद्ध, सम्पन्न तथा सुसंस्कृत हुआ है।