महाकाव्य के तत्व
महाकाव्य का नायक
किरातार्जुनीय महाकाव्य का नायक
➠ किरातार्जुनीय महाकाव्य महाकाव्य का नायक निःसन्देह अर्जुन ही है, क्योंकि इस ग्रन्थ का नाम किरातार्जुनीयम् है । जिसका विग्रह इस प्रकार हैं- किराताश्च अर्जुनश्च किरातार्जुनौ तौ अधिकृत्य कृतम् काव्यम् किरातार्जुनीयम् ।
➠ इस ग्रन्थ के नामकरण से ज्ञात होता है के किराता और अर्जुन इस महाकाव्य के प्रमुख पात्र लेकिन काव्य प्रयोजन पर दृष्टिपात , करें तो ज्ञात होता है कि दिव्यास्त्र प्राप्ति रुपी फल अर्जुन को ही प्राप्त होता है। अतः अन्तिम फल प्राप्ति अर्जुन को होने से अर्जुन ही इसका मुख्य नायक है।
➠ किरातार्जुनीयम् ग्रन्थ के टीकाकार श्री चित्रभानु इस महाकाव्य का नायक युधिष्ठिर को मानते हैं और अपना मत पुष्ट करने हेतु तर्क देते हैं कि युधिष्ठिर ही प्रथम सर्ग में उपस्थित रहते हैं। मध्य मे भी कवि ने अर्जुन द्वारा युधिष्ठिर की ही प्रतिष्ठा कराई है और अन्त में भी अर्जुन दिव्यास्त्र की प्राप्ति कर उन्हीं के चरणों में नतमस्तक होते हैं । विजय भी युधिष्ठिर को ही प्राप्त होती है ।
➠ अर्जुन की दिव्यास्त्र प्राप्ति युधिष्ठिर की फलप्राप्ति रुप विजय का साधन है। अतः काव्य का नायक युधिष्ठिर को ही मानना चाहिए । लेकिन इसका मत समीचीन प्रतीत नहीं होता। महाकाव्यकार भारवि का मन्तव्य भी यही सूचित करता है कि काव्य का नायक अर्जुन ही है, क्योंकि टीकाकार मल्लिनाथ जी ने स्पष्ट कहा है कि इस काव्य का नायक मध्यम पाण्डव अर्थात् अर्जुन ही है। उसी के उत्कर्ष का इसमें वर्णन है और दिव्यास्त्र प्राप्तिरुप फल भी अर्जुन को प्राप्त होता है। निष्कर्षतः अर्जुन ही इस महाकाव्य का नायक है।
किरातार्जुनीय महाकाव्य प्रथम सर्ग
नेता मध्यमपाण्डवो भगवतो नारायणस्यांशज
स्तस्योत्कर्षकृतेऽनुवर्ण्यचरितो दिव्यः किरातः पुनः।
श्रृंगारादिरसोऽयमत्र विजयी वीरप्रधानो रसः शैलाद्यानि च वर्णितानि बहुशो दिव्यास्त्रलाभः फलम् ।।