हड़प्पा सभ्यता काल निर्धारण
- यद्यपि हड़प्पा सभ्यता के काल निर्धारण को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं, किन्तु सर्वाधिक मान्य मत है कि सम्पूर्ण हड़प्पा सभ्यता का काल 3300 ई. पू. से 1750 ई. पू. तथा परिपक्व हड़प्पा सभ्यता का काल 2500 ई. पू. से 1750 ई. पू. तक रहा होगा।
हड़प्पा सभ्यता का उद्भव (Origion of Harappa Civilization)
1921 ई. से लेकर आज तक हड़प्पा सभ्यता के लगभग 1500 स्थलों की खोज हो चुकी है, किन्तु इतिहासकारों के मध्य आज भी इस सभ्यता के उद्भव का प्रश्न विवादास्पद बना हुआ है।
हड़प्पा सभ्यता उद्भव विवाद के कारण
- साहित्यिक स्रोतों की अनुपलब्धता तथा पुरातात्विक स्रोतों की अपर्याप्तता।
- क्षैतिज खुदाई का अभाव
- अभी तक इस सभ्यता के जितने भी स्थलों की खोज हुई है, वे प्रायः अपनी विकसित अवस्था में थे। इस कारण इस सभ्यता के उद्भव के विषय में पर्याप्त साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं।
हड़प्पा सभ्यता उद्भव के संबंध में इतिहासकारों के मत
1) विदेशी/आकस्मिक/मेसोपोटामियाई /सुमेरियन उत्पत्ति का सिद्धांत ।
2 ) आर्य उत्पत्ति का सिद्धांत।
3) देशी/क्रमिक उत्पत्ति का सिद्धांत।
हड़प्पा सभ्यता के उद्भव में विदेशी प्रभाव
गार्डन चाइल्ड, मार्टिमर व्हीलर, क्रेमर, डी. डी. कौशाम्बी आदि इतिहासकार हड़प्पा सभ्यता के उद्भव में विदेशी प्रभाव को स्वीकार करते हैं। इस मत के समर्थकों के अनुसार मेसोपोटामिया सभ्यता, मिस्र सभ्यता तथा हड़प्पा सभ्यता के जनक एक ही मूल के लोग थे। चूंकि मेसोपोटामियाई सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता से प्राचीन है। अतः मेसोपोटामिया से ही एक जन समूह मिस्र होते हुए भारत आया तथा यहां की परिस्थितियों के अनुरूप एक नवीन नगरीकृत सभ्यता की नींव डाली।
इस सिद्धांत के समर्थकों ने अपने मत के पक्ष में कुछ तर्क भी दिए हैं
1) दोनों ही नगरीकृत सभ्यता थी।
2 ) दोनों ही सभ्यता के लोग ईंट, मुहर, चाकूक्निर्मित मृदभांड, अन्नागार व लिपि का प्रयोग करते थे।
3) दोनों ही सभ्यता से प्राप्त गढ़ी में समान संरचना की शहतीर का प्रयोग जाता था।
4) बलुचिस्तान से प्राप्त टीलों की संरचना मेसोपोटामिया से प्राप्त जिगुएट (मंदिर) के समान थी, किन्तु सूक्ष्म अवलोकन के पश्चात् उपर्युक्त तर्कों की सीमाएं स्पष्ट हो जाती हैं,
जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है -
- दोनों ही सभ्यता के नगरीकरण में पर्याप्त अंतर था। हड़प्पा सभ्यता के नगर अधिक विकसित व व्यवस्थित थे।
- हड़प्पा सभ्यता के भवनों में प्राय: पक्की ईंटों का, जबकि मेसोपोटामियाई सभ्यता के भवनों में प्रायः कच्ची ईंटों का प्रयोग किया गया था।
- हड़प्पा सभ्यता में मुख्यत: वर्गाकार या आयताकार मुहरों का, जबकि मेसोपोटामियाई सभ्यता में मुख्यतः बेलनाकार मुहरों प्रयोग किया जाता था।
- दोनों ही सभ्यता से प्राप्त मृदभांडों एवं अन्नागारों के आकार प्रकार एवं संरचना में पर्याप्त अंतर है।
- हड़प्पा सभ्यता में चित्राक्षर लिपि (Pictographic Script) का, जबकि मेसोपोटामियाई सभ्यता में कीलनुमा लिपि (Cuneiform Script) का प्रयोग किया जाता था।
- हड़प्पा सभ्यता से मंदिरों के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते, जबकि मेसोपोटामियाई सभ्यता से मंदिरों के साक्ष्य मिले हैं।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता के उद्भव में मेसोपोटामियाई उत्पत्ति का सिद्धांत तर्कतः स्वीकार नहीं किया जा सकता और न ही हड़प्पा सभ्यता को मेसोपोटामियाई सभ्यता के उपनिवेश के रूप में देखा जा सकता है।
हड़प्पा के संबंध में आर्य उत्पत्ति का सिद्धांत
बी. बी. लाल, एस. आर. राव, जगपति जोशी, टी. एन. रामचन्द्रन आदि इतिहासकार हड़प्पा सभ्यता के उद्भव में आर्य उत्पत्ति के सिद्धांत को स्वीकार करते हैं। इस मत के समर्थकों के अनुसार वैदिक आर्यों के द्वारा ही नगरीकृत हड़प्पा सभ्यता का विकास किया गया। इस सिद्धांत के समर्थकों ने अपने मत के पक्ष में कुछ तर्क भी दिए
1) दोनों ही सभ्यता का केन्द्रीय क्षेत्र एक समान (सप्तसैंधव प्रदेश) था।
2 ) दोनों ही सभ्यता में प्रकृति पूजा प्रचलित थी।
3 ) दोनों ही सभ्यता में घोड़ों एवं अग्निवेदिकाओं के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
4) ऋग्वेद में प्रयुक्त हरियूपिया शब्द की साम्यता हड़प्पा से मानी गई है।
5 ) आर्यों के देवता इन्द्र दुर्गों के देवता थे, हड़प्पा में भी दुर्गों का महत्व था।
यद्यपि हड़प्पा सभ्यता एवं वैदिक संस्कृति के बीच कुछ समानताएं दिखाई देती हैं, परन्तु दोनों के मध्य अनेक भिन्नताएं भी थीं -
1) नवीन शोधों से यह स्पष्ट हो गया है कि हड़प्पा सभ्यता का केन्द्रीय क्षेत्र सप्तसैंधव प्रदेश नहीं बल्कि सरस्वती नदी घाटी था।
2 ) हड़प्पा सभ्यता एक नगरीकृत सभ्यता थी, जबकि वैदिक सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी।
3 ) हड़प्पाई समाज मातृसत्तात्मक, जबकि वैदिक समाज पितृसत्तात्मक था।
4) वेदों में इन्द्र को पुरन्दर, अर्थात् दुर्गों को तोड़ने वाला कहा गया है न कि दुर्गों का निर्माता।
(5) वैदिक काल में लोहे के साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जबकि हड़प्पा सभ्यता में लोहे के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते।
6 ) आर्यों को लिपि का ज्ञान नहीं था, जबकि हड़प्पा सभ्यता में लिपि प्रचलित थी। उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि वैदिक आर्यों को हड़प्पा सभ्यता का निर्माता नहीं माना जा सकता है।
हड़प्पा के संबंध देशी/ क्रमिक उत्पत्ति का सिद्धांत
- फेयर सर्विस रोमिला थापर, अमलानन्द घोष, डी. पी. अग्रवाल आदि इतिहासकारों ने यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि हड़प्पा सभ्यता एक स्वदेशी सभ्यता ही थी तथा इसका विकास 3000 वर्षों से भी अधिक समय तक चली एक क्रमिक प्रक्रिया के फलस्वरूप हुआ था।
- इन इतिहासकारों के अनुसार बलूचिस्तान स्थित मेहरगढ़, सिन्ध स्थित आमरी व कोटदीची तथा राजस्थान स्थित सोथी जैसी प्राक् हड़प्पाई संस्कृतियों के कृमिक विकास से ही हड़प्पा सभ्यता का नगरीय स्वरूप अस्तित्व में आया है।
- वास्तव में हड़प्पा सभ्यता के उद्भव में देशी उत्पत्ति का सिद्धांत ही अधिक तार्किक प्रतीत होता है। पुरातात्विक खोजों से यह स्पष्ट हो गया है कि हड़प्पा सभ्यता से पूर्व अफगानिस्तान, बलूचिस्तान व सिन्ध में कई ग्रामीण संस्कृतियां अस्तित्व में थी।
- चूंकि ये संस्कृतियां सिन्धु नदी घाटी के मैदानों में स्थित थीं, अतः यहां कृषि का निरंतर विकास होता गया। आगे चलकर यहां के निवासियों ने प्रस्तर व तांबे के उपकरणों के साथ-साथ कांसे के उपकरणों का भी उपयोग कृषि क्षेत्र में प्रारंभ कर दिया होगा, जिससे कृषि अधिशेष प्राप्त हुआ होगा। अब चूंकि इस क्षेत्र में कई खानाबदोश जातियां भी निवास करती थीं, जिनका सम्पर्क पश्चिमी एशिया के लोगों के साथ रहा होगा।
- अतः इन खानाबदोश जातियों के द्वारा कृषि अधिशेष का बाह्य व्यापार किया गया होगा, जिससे आर्थिक लाभ प्राप्त हुआ होगा। इस आर्थिक लाभ ने ही इन ग्रामीण संस्कृतियों के नगरीय विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया होगा।
- यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जब ये प्राक् हड़प्पाई ग्रामीण संस्कृतियां हड़प्पाई संस्कृतियों में विकसित हो रही होंगी तो संभव है कि मेसोपोटामियाई तत्वों ने भी इसके स्वरूप में अपनी भूमिका निभाई हो, परन्तु मेसोपोटामियाई तत्वों का प्रभाव व्यापारिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान के द्वारा ही संभव हुआ होगा।
इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता के उद्भव से संबंधित विभिन्न विचारों में सर्वाधिक तार्किक विचार देशी उत्पत्ति का सिद्धांत प्रतीत होता है। हालांकि इस संबंध में किसी निश्चित निष्कर्ष तक पहुंचने हेतु अभी और भी पुरातात्विक खोजों एवं अनुसंधानों की आवश्यकता है।