भारत का भूगर्भीय संरचना जानकारी
भारत की भू-गर्भिक संरचना (Physiographic Structure of India)
- भारत के वृहद अक्षांशीय तथा देशांतरीय विस्तार, संरचना की विविधता तथा "भू-आकृतिक प्रदेशों के कारण यहां पर्याप्त स्थालाकृतिक विविधता पाई जाती है।
- भारत के प्रायद्वीपीय भाग के पठार जटिल भू-गर्भिक संरचनाओं को प्रदर्शित करते हैं।
- भारत के उत्तर में जहां हिमालय जैसी नवीन पर्वत श्रृंखलाएं स्थित है, तो वहीं दक्षिण में केम्ब्रियन पूर्वकाल की प्राचीनतम चट्टानें मिलती हैं।
पृथ्वी के भू-गर्भिक इतिहास
- भारत की भू-गर्भिक संरचना के अध्ययन से पहले हमें उसकी उत्पत्ति को जानना जरूरी है।
- पृथ्वी के भू-गर्भिक इतिहास को पांच कल्पों एजोइक (अजैविक), पैल्योजोइक, मेसोजोइक, सेनोजोइक एवं निओजोइक में विभाजित किया जाता है।
- एजोइक (अजैविक) कल्प में जहां पैंजिया निर्माण हुआ, जिसका विभाजन आगे चल कर कार्बोनिफेरस युग में हुआ। इस विभाजन के कारण पैंजिया दो भागों में बंट गया। उत्तरी भाग अंगारालैण्ड तथा दक्षिणी भाग गौण्डवानालैण्ड कहलाया।
- जुरैसिककाल में गौण्डवानालैण्ड का विभाजन हुआ तथा प्रायद्वीपीय भारत के अतिरिक्त दक्षिणी अमेरिका, आफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया तथा अन्टार्कटिका निर्माण हुआ।
- यदि हम भारत की भू-गर्भिक संरचना के बारे में जानना चाहते हैं, तो इसकी जानकारी भारत के विभिन्न भागों में पाई जाने वाली चट्टानों के स्वरूप तथा प्रकृति से प्राप्त हो सकती है। भारत में प्राचीनतम तथा नवीनतम दोनों प्रकार की चट्टानें पाई जाती हैं।
भारत में चट्टानों का वर्गीकरण
1) आर्कियन क्रम की चट्टानें
- इन चट्टानों का निर्माण तप्त पृथ्वी के ठंडे होने के फलस्वरूप हुआ। ये प्राचीनतम तथा मूलभूत चट्टानें हैं। यद्यपि अत्यधिक रूपान्तरण के कारण इनका मूल स्वरूप नष्ट हो चुका है। इनमें जीवाश्म नहीं पाए जाते हैं।
- आग्नेय चट्टानों के रूपान्तरण से ही नीस का निर्माण हुआ है। बुन्देलखण्ड की नीस की चट्टानें सबसे प्राचीनतम नीस है। इन चट्टानों में धात्विक तथा अधात्विक खनिजों के साथ-साथ बहुमूल्य पत्थरों तथा भवन निर्माण पत्थरों की प्रचुरता है।
- आर्कियन की चट्टानें मुख्यत: कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, झारखण्ड के छोटा नागपुर के पठार तथा राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी भागों में पाई जाती हैं।
2 ) धारवाड़ क्रम की चट्टानें
- धारवाड़ क्रम की चट्टानों का निर्माण आर्कियन क्रम की चट्टानों के अपरदन तथा निक्षेपण से हुआ है। ये चट्टानें प्राचीनतम परतदार चट्टानें हैं, लेकिन इनमें भी जीवाश्म का अभाव पाया जाता है। इसका प्रमुख कारण इनके निर्माण के समय जीवों का उद्भव न होना है या फिर लम्बे समय के कारण इनके जीवाश्म नष्ट हो गए हैं।
- अरावली पर्वत का निर्माण इसी क्रम की चट्टानों से हुआ है। इस क्रम की चट्टानें आर्थिक दृष्टिकोण से सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती हैं। अधिकांश प्रमुख धात्विक खनिज जैसे लोहा, सोना, मैगनीज आदि इन्हीं चट्टानों में पाए जाते हैं।
- इस क्रम की चट्टानों का जन्म यद्यपि कर्नाटक के धारवाड़ तथा शिमोगा जिले में हुआ, लेकिन फिर भी ये कर्नाटक से कावेरी घाटी तक, नागपुर व जबलपुर की सोंसर श्रेणी, गुजरात में चंपानेर श्रेणी आदि में भी पाई जाती हैं।
3- कुडप्पा क्रम की चट्टानें
- इनका निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों के अपरदन तथा निक्षेपण से हुआ है। ये भी परतदार - चट्टानें हैं। इनका नामकरण आन्ध्र प्रदेश के कुडप्पा जिले के नाम पर किया गया है।
- ये चट्टानें बलुआ पत्थर, चूना पत्थर, संगमरमर, एस्बेस्टस आदि के लिए प्रसिद्ध हैं। दक्षिण भारत के अलावा ये चट्टानें राजस्थान में भी पाई जाती हैं।
4 विन्ध्य क्रम चट्टानें
- इनका निर्माण कुडप्पा चट्टानों के निर्माण के बाद हुआ। छिछले सागर एवं नदी घाटियों के तलछट के निक्षेपण से इनका निर्माण हुआ । इस प्रकार ये चट्टानें भी परतदार चट्टानें हैं। इनमें सूक्ष्म जीवों के जीवाश्म के प्रमाण मिलते हैं।
- इनका विस्तार मालवा के पठार, सोन घाटी, बुन्देलखण्ड आदि में मिलता है। इन चट्टानों का उपयोग मुख्यत: भवन निर्माण के लिए किया जाता है, जैसे बलुआ पत्थर । इसके अतिरिक्त चूना पत्थर, चीनी मिट्टी, डोलोमाइट आदि भी विन्ध्य क्रम की चट्टोन है। पथ प्रदेश के पन्ना जिले एवं कर्नाटक के गोलकुण्डा की हीरे की खान इसी क्रम की चट्टानों में स्थित है।
(5) गोण्डवाना क्रम की चट्टानें
- इन चट्टानों का निर्माण कार्बोनिफेरस से जुरैसिक युग के मध्य हुआ है। कार्बोनिफेरस युग में प्रायद्वीपीय भारत में कई दरारों या भ्रंशों का निर्माण हुआ, जिससे तत्कालीन वनस्पतियों के दबने से कालान्तर में कोयले का निर्माण हुआ। भारत का 98 प्रतिशत कोयला इन्हीं प्रकार की चट्टनों में पाया जाता है। यह कोयला आज मुख्य रूप से दामोदर, सोन, महानदी, तवा, गोदावरी, वर्धा आदि नदियों की घाटी में पाया जाता है।
6 - दक्कन ट्रैप की चट्टानें
- मेसोजोइक युग के अंतिम काल में प्रायद्वीपीय भारत में ज्वालामुखी क्रिया प्रारंभ हुई तथा दरारों के माध्यम से लावा उद्गार के फलस्वरूप इन चट्टानों का निर्माण हुआ, जैसे बेसाल्ट की चट्टानें। ये चट्टानें काफी कठोर होती हैं तथा इनके विखण्डन से ही काली मिट्टी का निर्माण हुआ है। ये चट्टानें मुख्यतः महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा आन्ध्र प्रदेश के कुछ भागों में पाई जाती हैं।
7- टर्शियरी क्रम की चट्टानें
- इस क्रम की चट्टानों का निर्माण इयोसीन युग से लेकर प्लायोसीन युग के मध्य हुआ। इसी काल में हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ। असम, राजस्थान एवं गुजरात के खनिज तेल इसी क्रम की चट्टानों में पाए जाते हैं।
8 - क्टवार्टनरी क्रम की चट्टानें
- इस काल की चट्टानें सिन्धु एवं गंगा के मैदानी भागों में पाई जाती हैं। नदी घाटियों में - प्लास्टोसीन काल में जलोड़ मृदा का निर्माण हुआ, जिसे बांगर के नाम से जाना जाता है। प्लास्टोसीन के अंत में व होलोसीन काल में नवीन जलोड़ मृदा का निर्माण हुआ, जिसे खादर के नाम से जाना जाता है।