हड़प्पा सभ्यता राजनीतिक धार्मिक, सामाजिक जीवन
हड़प्पा सभ्यता का स्वरूप
हड़प्पा सभ्यता राजनीतिक जीवन
- लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली हुई हड़प्पा सभ्यता 600 वर्षों तक निरंतर कायम रही। यह तथ्य किसी केन्द्रीय शासक वर्ग की ओर संकेत करते हैं। इस प्रकार यह तो स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता में कोई न कोई शासक वर्ग अवश्य था, किन्तु हड़प्पा सभ्यता में प्रशासन का स्वरूप क्या था? यह विद्वानों के बीच विवाद का विषय है।
- विद्वानों का एक वर्ग यह मानता है कि हड़प्पा सभ्यता के अलग-अलग नगरों में अलग-अलग राजनीतिक संगठन रहा होगा। किन्तु हमें हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नगरों की बसावट में उनकी इमारतों, सड़कों, मुहरों, मृदभांडों एवं लिपि में प्रायः एकरूपता दिखाई देती है। अत: ऐसा प्रतीत होता है कि हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नगरों में अलग-अलग शासक वर्ग नहीं, बल्कि कोई एक ही केन्द्रीय शासक वर्ग रहा होगा।
- विद्वानों का एक अन्य वर्ग यह मानता है कि हड़प्पा सभ्यता में मेसोपोटामिया व मिस्र के समान ही पुरोहितों का शासन था। ए. एल. बाशम ने इस मत के समर्थन में मोहनजोदड़ों से प्राप्त सभागार तथा बलूचिस्तान से प्राप्त टीलों की ओर संकेत किया है। यहां सभागार को पुरोहित आवास तथा टीलों को मंदिरों के रूप में बताने का प्रयास किया गया है। किन्तु आधुनिक अनुसंधानों से यह स्पष्ट हो गई है कि हड़प्पा सभ्यता से मंदिरों के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते। अतः वर्तमान में इस मत को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है।
- कुछ अन्य इतिहासकार जैसे हन्टर के अनुसार हड़प्पा सभ्यता में जनतांत्रिक पद्धति रही होगी। वहीं मैके के अनुसार हड़प्पा में जनप्रतिनिधि का शासन रहा होगा, किन्तु इन मतों के समर्थन में भी कोई पुरातात्विक साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं।
हड़प्पा सभ्यता
- डॉ. आर. एस. शर्मा के अनुसार हड़प्पा सभ्यता अपने नगरीकरण के लिए प्रसिद्ध थी। चूंकि यहां के नगरीकरण का प्रमुख आधार उन्नत वाणिज्य एवं व्यापार था। अतः हड़प्पा सभ्यता का शासन संभवतः वणिक वर्ग के हाथों में रहा होगा।
- उपर्युक्त सभी मतों में से यद्यपि डॉ. आर. एस. शर्मा का मत सर्वाधिक तार्किक प्रतीत होता है। तथापि इस सम्बन्ध में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने हेतु अभी और भी पुरातात्विक खोजों एवं अनुसंधानों की आवश्यकता है।
हड़प्पा सामाजिक जीवन
- हड़प्पाई समाज समतामूलक समाज था। समाज में छुआछूत एवं जाति प्रथा के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं। सम्पूर्ण समाज यद्यपि 4 वर्णों विद्वान योद्धा, व्यापारी एवं श्रमिक में विभाजित था, किन्तु वर्ण का निर्धारण संभवतः जन्म के आधार पर नहीं, बल्कि योग्यता के आधार पर किया जाता था।
- हड़प्पाई समाज एक बहुप्रजातीय समाज था, जिसमें प्रोटोआस्ट्रेलायड, भू-मध्यसागरीय, मंगोलायड एवं अलपाइन प्रजाति के लोग जनता पूर्व दिशा में स्थिति निचले शहर में निवास करती थी। लोथल से 13 कमरों का मकान प्राप्त हुआ है, जो कि संभवतः किसी धनी व्यापारी का रहा होगा। उसी प्रकार हड़प्पा से श्रमिक आवास के साक्ष्य प्राप्त होते हैं।
- हड़प्पा व मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्त्री मृणमूर्तियों की अत्यधिक संख्या के आधार पर माना जाता है कि हड़प्पाई समाज मातृसत्तात्मक समाज था। समाज में स्त्रियों की स्थिति बेहतर थी। इस काल में बाल विवाह प्रथा के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं।
- हड़प्पाई समाज उपयोगितावादी समाज था। प्रदर्शन व दिखावे की बजाय जरूरत व उपयोगिता को अधिक महत्व दिया जाता था। हड़प्पा सभ्यता के भवनों के दरवाजों व दीवारों में किसी प्रकार की कलाकारी दिखाई नहीं देती। यद्यपि कुछ स्थलों से सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तुएं, जैसे – चाहुन्दड़ो से लिपिस्टिक, इत्र व काजल प्राप्त हुए हैं, किन्तु यह तथ्य मेसोपोटामियाई प्रभाव को ही दर्शाता है।
- हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त लिपि एवं मानक मापतौल की इकाई के साक्ष्य इस बात की ओर संकेत करते हैं कि हड़प्पाई समाज सुशिक्षित समाज था। उसी प्रकार हड़प्पाई समाज को एक शांतिप्रिय समाज के रूप में भी स्वीकार किया जाता है, क्योंकि इस सभ्यता से संबंधित स्थलों की खुदाई से आक्रामक अस्त्र-शस्त्रों की प्राप्ति बहुत कम हुई है। साथ ही हड़प्पा सभ्यता में दुर्गों का अत्यधिक महत्व था। इससे भी यह प्रमाणित होता है कि इस सभ्यता के निवासी आक्रमण की बजाय सुरक्षा को अधिक महत्व देते थे।
- हड़प्पा सभ्यता के निवासी शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों ही थे। इस सभ्यता के लोगों के मनोरंजन के साधन शिकार करना, मछली पकड़ना, पशु-पक्षियों को लड़ाना, चौपड़ व पांसा खेलना, ढोल व वीणा बजाना आदि थे।
- इस प्रकार हम देखते हैं कि बहुवर्णीय, बहुवर्गीय एवं बहुप्रजातीय समाज होने के बावजूद भी हड़प्पाई समाज में वर्तमान समाज की कई बुराईयां एवं कुरूतियां, जैसे छुआछूत, जाति-भेद, लिंग-भेद आदि का अभाव था। इस रूप में हड़प्पाई समाज वर्तमान समाज के समक्ष एक समतामूलक समाज का आदर्श प्रस्तुत करता है।
हड़प्पा सभ्यता आर्थिक जीवन
- सिन्धु घाटी सभ्यता नदियों के आस-पास विकसित हुई थी। अतः यहां की कृषि विकसित अवस्था में थी। कृषि अधिशेष को अन्नागारों में सुरक्षित रखा जाता था, यह भी कृषि के विकसित होने का प्रमाण है। कृषि कार्य में पत्थर व कांसे के उपकरणों का प्रयोग होता था। खेतों की जुताई प्रायः हल से की जाती थी। कालीबंगा से जुते हुए खेत का साक्ष्य तथा बनावली से मिट्टी के हल का साक्ष्य प्राप्त हुआ है। कृषि भूमि की सिंचाई हेतु नदियों एवं कुओं के जल का प्रयोग किया जाता था।
- हड़प्पा सभ्यता में सामान्यतः फसलें नवम्बर में बोई व अप्रैल में काटी जाती थी। फसलों में गेहूं की 3, जौ की 2 व मटर की 1 प्रजाति के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। दाल के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं। चावल की खेती गुजरात तथा संभवत: राजस्थान में होती थी। लोथल व रंगपुर से मृणमूर्ति में धान की भूसी लिपटी मिली है। रागी की फसल उत्तर भारत के किसी भी स्थल से प्राप्त नहीं हुई है। हड़प्पाई स्थल मेहरगढ़ से कपास की कृषि के विश्व के प्राचीनतम् साक्ष्य प्राप्त होते हैं।
- इस सभ्यता में पशुपालन का भी महत्व था। पशुओं में मुख्यतः कुबड़ वाला सांड तथा इसके अलावा बिना कुबड़ वाले बैल, भैंस, गाय, भेड़, बकरी, कुत्ते, गधे, खच्चर तथा सुअर आदि पालतू पशु थे। गुजरात के लोग हाथी पालते थे, परन्तु हड़प्पा सभ्यता में घोड़ा, शेर, बाघ आदि को पालतु नहीं बनाया जाता था।
हड़प्पा सभ्यता की अर्थ व्यवस्था
- हड़प्पा सभ्यता की अर्थ व्यवस्था मुख्यतः वाणिज्य व्यापार पर आधारित थी। आंतरिक व्यापार हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नगरों एवं राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि के मध्य होता था, जबकि बाह्य व्यापार मुख्यतः मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान, फारस की खाड़ी आदि से होता था। पुरातात्विक साक्ष्यों से भी बाह्य व्यापार की पुष्टि होती है। उदाहरणार्थ हड़प्पाकालीन मुहरें मेसोपोटामिया तथा फारस की खाड़ी से प्राप्त हुई हैं। उसी प्रकार मेसोपोटामिया स्थित अक्काड़ के प्रसिद्ध सम्राट सारगौन (2350 ई. पू.) के अभिलेख से भी बाह्य व्यापार की पुष्टि होती है। इस अभिलेख में उल्लेखित है कि मेसोपोटामिया का व्यापार दिलमन (बहरीन), माकन (मकरान अर्थात् बलुचिस्तान) तथा मेलूहा (हड़प्पा यता) से होता था।
- बाह्य व्यापार में रोजनामचे की वस्तुओं की जगह मुख्यतः समृद्ध लोगों की विलासिता संबंधी वस्तुओं को शामिल किया जाता था। बाह्य व्यापार में आयात की प्रमुख मदें सोना, चांदी, टिन, सीसा, फिरोजा आदि थीं सोना कर्नाटक व मेसोपोटामिया से तथा तांबा राजस्थान से मंगाया जाता था। उसी प्रकार चांदी, टिन, सीसा आदि का आयात अफगानिस्तान व ईरान से किया जाता था। लाजवर्द मणि का आयात अफगानिस्तान स्थित बदक्शां नामक स्थान से होता था। हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नगरों से कुछ वस्तुओं का निर्यात भी किया जाता था, जैसे हाथी दांत व सीप की वस्तुएं, मोती, अनाज, कपास आदि।
- हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत हमें कई नगरों के साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जैसे- मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, धौलावीरा, राखीगढ़ी, लोथल, कालीबंगा आदि।
- यातायात व संचार के साधनों के रूप में आंतरिक व्यापार में मुख्यतः ठेलागाड़ी व बैलगाड़ी, जबकि बाह्य व्यापार में नावों आदि का प्रयोग किया जाता था। हड़प्पा न चान्हूदड़ो से कांसगाड़ी का साक्ष्य तथा लोथल से पक्की मिट्टी की नाव का साक्ष्य प्राप्त होता है। बाह्य व्यापार में बंद हो के प्रपात चान हो स था। सर्वाधिक महत्वपूर्ण बंदरगाह लोथल स्थित ज्वारीय बंदरगाह था।
- वाणिज्य व्यापार में मानक माप-तौल के पैमानों का उपयोग किया जाता था। मोहनजोदड़ो से सीप का बना बाट तथा लोथल से हाथी दांत का स्केल प्राप्त हुआ है। गणना में मुख्यत: 16 की संख्या तथा उसके गुणक का प्रयोग किया जाता था।
- हड़प्पा सभ्यता में शिल्प एवं उद्योग भी विकसित अवस्था थे। सर्वाधिक महत्वपूर्ण वस्त्र उद्योग था। मोहनजोदड़ो से सूती वस्त्र का साक्ष्य प्राप्त होता है। शिल्प उद्योग में शंख, सीप, हाथी दांत, गोमेद, फिरोजा, सेलखड़ी, मिट्टी, धातु व प्रस्तर की वस्तुएं बनाई जाती थीं। इनसे न केवल बर्तन, बल्कि मनके व मुहरें भी बनाई जाती थीं।
- हड़प्पा सभ्यता का वाणिज्य व्यापार मुख्यतः वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित था। हालांकि इस सभ्यता में हमें अत्यधिक संख्या में मुहरों के भी साक्ष्य प्राप्त होते हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि वस्तु विनिमय प्रणाली के अतिरिक्त छोटे स्तर पर मुहरों का प्रयोग मुद्राओं के रूप में भी किया जाता रहा होगा।
इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत की प्रथम नगरीकृत सभ्यता का प्रमुख आधार उसकी आर्थिक सम्पन्नता थी। जबकि इस आर्थिक सम्पन्नता का आधार उन्नत कृषि, पशु-पालन एवं विकसित वाणिज्य व्यापार था।
हड़प्पा सभ्यता धार्मिक जीवन
- हड़प्पा सभ्यता मुख्यतः लौकिक सभ्यता थी, जिसमें यद्यपि धार्मिक तत्व उपस्थित था, परन्तु वर्चस्वशाली नहीं। इस सभ्यता से मंदिर के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं। जल पूजा प्रचलित थी। मोहनजोदड़ो से वृहद स्नानागार तथा पुरोहित आवास के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। इससे स्नान के महत्व का पता चलता है।
- इस सभ्यता में मातृदेवी की पूजा भी प्रचलित थी। हड़प्पा से प्राप्त मुहर में एक स्त्री के गर्भ से पौधा प्रस्फुटित होता दिखाया गया हैं, जो संभवतः पृथ्वी पूजा (उर्वरता की देवी) का प्रमाण है। मोहनजोदड़ों से हमें पाशुपति शिव की पूजा का भी साक्ष्य प्राप्त होता हैं। उसी प्रकार हड़प्पा सभ्यता में लिंग पूजा, पशु पूजा, नाग पूजा, पीपल, नीम व बबूल की पूजा भी की जाती थी। साथ ही अग्नि पूजा भी प्रचलित थी।
- कालीबंगा तथा लोथल से अग्निवेदिका के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। इस सभ्यता के धर्म में प्रेतवाद का भाव भी दिखाई देता है। प्रेतवाद वह धार्मिक अवधारणा है, जिसमें प्रेतों की पूजा बुरी आत्मा के भय से की जाती थी। इस सभ्यता में हमें भक्ति तथा पूनर्जन्म के भी साक्ष्य प्राप्त होते हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हड़प्पा सभ्यता के धर्म की विशेषताएं वर्तमान के धर्म में भी दिखाई देती हैं। इस रूप में वर्तमानकालीन धर्म, हड़प्पाकालीन धर्म से प्रेरणा ले रहा है।