मध्य पाषाणकाल सामान्य ज्ञान
- मध्य पाषाणकाल की जानकारी सर्वप्रथम 1867 ई. में सी. एन. कार्लाइल द्वारा विन्ध्य क्षेत्र में लघु पाषाण उपकरणों की खोज से प्राप्त होती है।
- मध्य पाषाणकाल काल में भी मानव मुख्यतः शिकारी एवं खाद्यसंग्राहक ही था, परन्तु शिकार करने की तकनीक में परिवर्तन आ गया था।
- मध्य पाषाणकाल के उपकरण छोटे पत्थरों से बने हुए थे, जिन्हें माइक्रोलिथिक (सूक्ष्म पाषाण) कहा गया है।
- लघुपाषाण उपकरणों के अलावा इस काल के प्रमुख उपकरण स्क्रेपर, ब्लेड, क्रोड, बेधनी, त्रिकोण, नवचंद्राकार, समलम्ब त्रिभुज आदि हैं।
- मध्य पाषाणकाल में मानव न केवल बड़े, बल्कि छोटे जानवरों (पक्षी, मछली आदि) का भी शिकार करने लगा था।
- मध्य पाषाणकाल में सर्वप्रथम तीर कमान (प्रक्षेपास्त्र तकनीक) का विकास हुआ।
- मध्य पाषाणकाल में आदमगढ़ (होशंगाबाद, मध्य प्रदेश) व बागौर (भीलवाड़ा, राजस्थान) से 5000 ई. पू. के पशुपालन के प्राचीनतम् साक्ष्य प्राप्त होते हैं मानव द्वारा पालतू बनाया गया पहला पशु कुत्ता था।
- मध्य पाषाणकाल में शैलचित्रों के महत्वपूर्ण स्थल थे- मुरहना पहाड़ (उत्तर प्रदेश), भीमबेटका, आदमगढ़ व लाखाजुआर (मध्य प्रदेश), कुपागल्लू (कर्नाटक) आदि। इनमें से सर्वाधिक चित्र भीमबेटका के शैलाश्रयों से प्राप्त हुए हैं।
- गंगा घाटी में स्थित सरायनाहरराय, महादहा, दमदमा ( प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश) नामक स्थल भारत में सबसे प्राचीनतम् मध्य पाषाणकालीन स्थल हैं। इन तीनों स्थलों से स्तम्भगर्त व गर्तचूल्हों के प्रारंभिक साक्ष्य मिले हैं।
- गर्तचूल्हों में पशुओं की हड्डियां जली हुई हैं। इस प्रकार मानव कच्चे मांस को पकाने की प्रक्रिया को अपनाने लगा था। इन तीनों स्थलों से पशुओं की हड्डियों के उपकरण तथा हिरण के सींगों के छल्ले प्राप्त हुए हैं।
- सरायनाहरराय से 8 गर्तचूल्हों की प्राप्ति हुई है।
- महादहा से हड्डियों के आभूषण तथा युग्मित शवाधान प्राप्त हुए हैं।
- इस काल में राजस्थान स्थित सांभर झील के निक्षेपों से विश्व के प्राचीनतम् वृक्षारोपण के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- मध्य पाषाणकालीन कुछ अन्य महत्वपूर्ण स्थल लंघनाज (गुजरात), टेरी समूह (तमिलनाडु), बीरभानपुर (पश्चिम बंगाल) आदि हैं।