भारत के अपवाह तंत्र कौन कौन से हैं?
भारत का अपवाह तंत्र (Drainage System of India)
अपवाह तंत्र किसे कहते हैं ?
- एक निर्धारित जलमार्ग द्वारा जल के प्रवाह को अपवाह कहा जाता है तथा इस प्रकार के कई जल मार्गों के जाल को अपवाह तंत्र (Drainage System) कहते हैं।
- भारत में नदियों एवं उनकी सहायक नदियों द्वारा प्राकृतिक अपवाह तंत्र का निर्माण हुआ है। वह सम्पूर्ण क्षेत्र, जो एक अपवाह तंत्र के लिए जल का योगदान करता है, नदी बेसिन (River Basin) कहलाता है।
भारत के अपवाह तंत्र को विभिन्न नदियों के उद्गम के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1) हिमालयी अपवाह तंत्र।
2) प्रायद्वीपीय
भारत का अपवाह तंत्र।
हिमालयी अपवाह तंत्र (Himalayan Drainage System)
- हिमालयी अपवाह तंत्र के अन्तर्गत हिमालय से निकलने वाली नदियों को शामिल किया जाता है। ये नदियां हिमालय से निकलती हैं। इनमें न केवल हिमालय के दक्षिणी भाग का जल प्रवाहित होकर आता है, बल्कि हिमालय के उत्तरी भाग का जल भी शामिल होता है; क्योंकि अधिकतर लम्बी नदियां हिमालय पर्वत श्रेणी के उत्तर में स्थित तिब्बत प्रदेश से उद्गमित होकर आती हैं।
हिमालयी एवं प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र में अंतर
हिमालयी नदियां
- हिमालयी नदियां सदावाहिनी होती हैं। इनका स्रोत प्रायः ग्लेशियर से जुड़ा होता है। अत: बर्फ के पिघलने से वर्षभर जलापूर्ति होती रहती है। जैसे- गंगा, यमुना, कोसी आदि । हिमालयी नदियों की द्रोणियां विशाल होती हैं। जैसे- गंगा द्रोणी, सिन्धु द्रोणी आदि ।
- हिमालयी नदियां प्राय: अधिक लम्बी होती हैं, जिसका कारण इनके स्रोत क्षेत्र का समुद्र से दूर होना है।
- हिमालय की नदियां समुद्र में कम गिरती हैं। अधिकांश नदियां किसी न किसी बड़ी नदी में मिल जाती हैं । हिमालयी नदियां उद्गम क्षेत्र में गहरी घाटियों का निर्माण करती हैं ।
- हिमालयी नदियां सदावाहिनी होने के कारण मैदानी क्षेत्रों में नौकायन के लिए वर्षभर उपयुक्त हैं।
- हिमालयी नदियां मुहानों पर बड़े-बड़े डेल्टाओं का निर्माण करती हैं, जैसे - गंगा, ब्रह्मपुत्र तथा सिन्धु नदी का हिमालयी नदिया प्रायः निम्न मैदानों में विसर्प का निर्माण करती हैं तथा मार्ग परिवर्तित भी करती हैं ।
- हिमालय की नदियां पर्वतीय क्षेत्रों में अभी भी युवावस्था में हैं, जिनकी घाटियों में अभी भी विस्तार हो रहा है । हिमालयी नदियों में सिंचाई की ज्यादा संभावनाएं हैं। हिमालयी नदियों की संख्या अधिक हैं।
प्रायद्वीपीय नदियां
- प्रायद्वीपीय नदियां ऋतुनिष्ठ होती हैं । केवल वर्षा जल पर निर्भर होने के कारण इन नदियों में प्राय: जल की कमी हो जाती हैं। जैसे - नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा आदि । प्रायद्वीपीय नदियों की द्रोणियां छोटी होती हैं । जैसे नर्मदा, ताप्ती आदि ।
- प्रायद्वीपीय नदियां तुलनात्मक दृष्टि से छोटी होती हैं ।
- तीव्र प्रायद्वीपीय ढाल के कारण अधिकांश नदियां समुद्र तक जाती हैं । प्रायद्वीपीय नदियों की घाटियां प्रायः उथली होती हैं ।
- वर्षा पश्चात् जल की कमी होने के कारण ये वर्षभर नौकायन के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं। प्रायद्वीपीय नदियां सापेक्षत: मुहानों पर छोटे-छोटे डेल्टाओं का निर्माण करती है ।
- प्रायद्वीपीय नदियां प्राय: सीधा मार्ग अपनाती हैं। यहां तक की वे मार्ग भी नहीं बदलती हैं । प्रायद्वीपीय नदियां प्राय: प्रौढ़ावस्था को प्राप्त कर चुकी हैं ।
- प्रायद्वीपीय नदियों में सिंचाई की कम संभावनाएं हैं। प्रायद्वीपीय नदियों की संख्या कम हैं।
हिमालय से उद्गमित होने वाली नदियां
हिमालय से उद्गमित होकर प्रवाहित होने वाली नदियों को तीन तंत्रों में विभाजित किया जा सकता है -
सिन्धु नदी तंत्र (The Sindhu River System)
सिन्धु नदी तंत्र विश्व के विशालतम नदी तंत्रों में से एक है, जिसकी सबसे बड़ी नदी सिन्धु है। इसके अन्तर्गत सिन्धु तथा उसकी सहायक नदियां झेलम, चिनाब, रावी, व्यास, सतलज आदि आती हैं।
सिन्धु नदी का उद्गम तिब्बत में स्थित मानसरोवर झील के निकट चेमयांगडुंग ग्लेशियर से होता है। इसकी कुल लम्बाई 2,880 किमी है।
सिन्धु में दायीं ओर से मिलने वाली नदियों में श्योक, काबुल, कुर्रम आदि हैं। उल्लेखनीय है कि भारत तथा पाकिस्तान के बीच 1960 ई. में हुए सिन्धु जल समझौते के तहत सिन्धु, झेलम तथा चेनाब के जलाधिकार पाकिस्तान को और इसकी तीन पूर्वी सहायक नदियां रावी, व्यास तथा सतलज के जलाधिकार भारत को दिए गए।
सिन्धु नदी में बायीं ओर से मिलने वाली पांच नदियां झेलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलज हैं। इन पांचों की संयुक्त धारा सिन्धु नदी की मुख्य धारा से पाकिस्तान के मीठनकोट के पास मिलती हैं। सिन्धु कराची के पूर्व में अरब सागर में मिल जाती है।
झेलम नदी
- सिन्धु की सहायक नदी है, जिसका उद्गम कश्मीर के वेरीनाग के निकट शेषनाग झील से होता है। यह नदी श्रीनगर के निकट वूलर झील से प्रवाहित होते हुए तथा भारत-पाकिस्तान की सीमा बनाते हुए पाकिस्तान में चिनाब से मिल जाती है।
चिनाब नदी
- चिनाब नदी का उद्गम चन्द्र और भागा नाम की दो सरिताओं के रूप में हिमाचल प्रदेश के बड़ा लाचला दरें से होता है। चिनाब पाकिस्तान में सिन्धु से मिल जाती है।
रावी नदी
- रावी नदी का उद्गम हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित रोहतांग दर्रे से होता है। यह नदी धौलाधार और पीर पंजाल श्रेणियों का जल बहाकर ले जाती है तथा पाकिस्तान में चिनाब में मिल जाती है।
व्यास नदी
- व्यास नदी का उद्गम रोहतांग दर्र के निकट व्यासकुण्ड से होता है। यह नदी कपूरथला के निकट हरिके नामक स्थान पर वी नहर इंदिरा गांधी सतलज से मिल जाती है। इसी स्थान पर एक हरिके बैराज का निर्माण किया गया है, जिससे भारत की सबसे लम्बी नहर इंदिरा गांधी नहर निकाली गई है। इस नहर को राजस्थान की मरु गंगा भी कहा जाता है।
सतलज नदी
- सतलज नदी का उद्गम मानसरोवर के निकट राकसताल से होता है और यह शिपकीला दरें से होकर भारत में प्रवेश करती है। यह नदी पाकिस्तान में चिनाब में मिल जाती है। प्रसिद्ध भाखड़ा नांगल बाध इसी नदी पर बनाया गया है।
गंगा नदी तंत्र (The Ganga River System)
- गंगा नदी का उद्गम उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगोत्री हिमनद के गोमुख से होता है, जिसे यहां भागीरथी के नाम से जाना जाता है । आगे टेहरी के निकट भागीरथी में भीलांगना नदी मिलती है। इन दोनों के संगम पर ही टेहरी बांध स्थापित है। उत्तराखण्ड के देवप्रयाग में भागीरथी नदी व अलकनन्दा नदी का संगम होता है तथा इसे अब गंगा के नाम से जाना जाता है। अलकनन्दा का उद्गम सतोपंथ हिमानी से होता है (अलकनन्दा से दो धाराएं धौली गंगा एवं विष्णु गंगा विष्णु प्रयाग में, पिंडारी पानी से होता है करती है।
- गंगा नदी में दाहिनी ओर से यमुना प्रयाग के निकट मिलती है। इसके अतिरिक्त दक्षिण की ओर से आकर सीधे गंगा में मिलने वाली नदियां टोंस व सोन हैं। गंगा के बाएं तट से मिलने वाली नदियां क्रमश: पश्चिम से पूर्व रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी तथा महानन्दा है।
- गंगा नदी की कुल लम्बाई 2525 किमी है। जब गंगा नदी पश्चिम बंगाल में पहुंचती है, तो पश्चिम बंगाल की सीमा पर इसकी एक शाखा इससे अलग हो जाती है, जिसे हुगली के नाम से जाना जाता है। मुख्य नदी बंग्लादेश में प्रवेश करती है, जिसे बंग्लादेश में पद्मा नदी के नाम से जाना जाता है। पद्मा नदी में जमुना का संगम होता है और दोनों की संयुक्त धारा पद्मा के नाम से आगे बढ़ती है।
- चांदपुर के निकट इससे मेघना नदी आकर मिलती है। तत्पश्चात् गंगा मेघना के नाम से ही अनेक जल वितरिकाओं में बंटकर डेल्टा का निर्माण करते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। गंगा-ब्रह्मपुत्र का डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा माना जाता है।
गंगा नदी में दक्षिण की ओर से मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियां
गंगा नदी में दक्षिण की ओर से मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियां निम्नलिखित हैं-
यमुना नदी
- गंगा की सबसे लम्बी सहायक नदी है, जिसका उद्गम उत्तराखण्ड के यमुनोत्री के बंदरपूँछ से होता है। इसकी कुल लम्बाई 1385 किमी है। यह नदी गंगा के दक्षिण में बहती हुई इलाहाबाद के निकट गंगा में मिल जाती है। इसकी सहायक नदियों में चंबल, सिन्ध, बेतवा, केन, प्रमुख हैं।
चम्बल नदी
- चम्बल नदी का उद्गम इंदौर जिले की महू तहसील की जानापाव पहाड़ी से होता है। इसकी कुल लम्बाई 965 किमी है। मध्य प्रदेश तथा राजस्थान की सीमा बनाते हुए यह नदी उत्तर प्रदेश जिले के समीप यमुना नदी में मिल जाती है। चम्बल नदी की प्रमुख सहायक नदियों में काली सिंध, पार्वती, क्षिप्रा, बनास आदि हैं। चंबल नदी की धाराओं से ग्वालियर के निकटवर्ती भागों में बहुत बड़े और गहरे खढ्डों का निर्माण हुआ है। इसी नदी पर चंबल परियोजना स्थित है, जिसके अन्तर्गत गांधी सागर ( मंदसौर), जवाहर सागर (कोटा) एवं राणाप्रताप सागर (चित्तौड़गढ़) बांध बनाए गए हैं। चूलिया तथा पातालपानी जलप्रपात इसी नदी पर है।
बेतवा नदी
- बेतवा नदी का प्राचीन नाम बेत्रवती है। मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली इस नदी का उद्गम विन्ध्याचल पर्वत श्रेणी में स्थित मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के कुमरा गांव नामक स्थान से होता है। इसकी लम्बाई 380 किमी है। बेतवा नदी उत्तर प्रदेश में हमीरपुर के निकट यमुना नदी में मिल जाती है। उत्तर पूर्व दिशा में बहने वाली यह नदी मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश की सीमा बनाती है। बेतवा नदी की प्रमुख सहायक नदियां बीना, धसान तथा जामनी हैं। इस नदी पर माताटीला बनाया गया है तथा सिंचाई हेतु हलाली नहर का निर्माण किया गया है।
केन नदी
- केन नदी को शुक्तिमति के नाम से भी जाना जाता है। केन नदी का पर्वतमाला में स्थित कटनी के समीप कैमूर की पहाड़ियों से होता है। यह नदी उत्तर दिशा में बहती हुई यमुना नदी में मिल जाती है।
सोन नदी
- सोन नदी का उद्गम अनूपपुर के अमरकंटक में स्थित नर्मदा नदी के उद्गम स्थल के निकट से होता है। सोन नदी की कुल लम्बाई 780 किमी है। उत्तर पूर्व दिशा में बहती हुई यह नदी मध्य प्रदेश को पार कर बिहार में पटना के निकट गंगा नदी में मिल जाती है। रिहन्द तथा जोहिला सोन की प्रमुख सहायक नदियां हैं। वर्षा ऋतु में इस नदी में आकस्मिक तथा विनाशकारी बाढ़ आती है। बाण सागर परियोजना इसी नदी पर स्थित है, जो मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा बिहार की संयुक्त परियोजना है।
टोंस नदी
- टोंस नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के सतना जिले की कैमूर पहाड़ी से होती है। यह उत्तर दिशा में बहती हुई गंगा नदी में मिल जाती है।
दामोदर नदी
- दामोदर नदी का उद्गम झारखण्ड के छोटा नागपुर से होता है तथा यह पश्चिम बंगाल में हुगली नदी में मिल जाती है। बराकर इसकी प्रमुख सहायक नदी है। इसी नदी पर स्वतंत्र भारत की पहली परियोजना दामोदर घाटी परियोजना (1948 ई.) स्थित है। गंगा नदी में उत्तर की ओर से मिलने वाली नदियां निम्नलिखित हैं
रामगंगा नदी
- रामगंगा नदी का उद्गम उत्तराखण्ड के नैनीताल के निकट से होता है तथा यह कन्नौज के पास गंगा से मिल जाती है। गोमती नदी का उद्गम उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले से होता है तथा यह गाजीपुर के निकट गंगा में मिल जाती है। लखनऊ तथा जौनपुर इसी नदी के किनारे बसे हैं।
घाघरा नदी
- घाघरा नदी का उद्गम तिब्बत के पठार में स्थित मापचा चुंग हिमनद से होता है तथा यह बिहार के छपरा के निकट गंगा में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियां शारदा, राप्ती एवं छोटी गंडक हैं। इस नदी को नेपाल में करनाली के नाम से जाना जाता है।
गंडक नदी
- गंडक नदी का उद्गम नेपाल हिमालय से होता है तथा यह पटना के पूर्व में स्थित सोनपुर में गंगा नदी में मिल जाती है।
कोसी नदी
- कोसी नदी का उद्गम भी नेपाल के तिब्बत में स्थित गोसाईथान चोटी से होता है तथा यह बिहार में गंगा में मिल जाती है। जल की अधिकता के कारण कभी-कभी यह नदी अपने मार्ग को बदल देती है, जिस कारण व्यापक क्षेत्र बाढ़ग्रस्त हो जाता है। इसी बाढ़ की विभीषिका के कारण इसे बिहार का शोक कहा जाता है।
महानन्दा नदी
- महानन्दा नदी का उद्गम पश्चिम बंगाल की दार्जलिंग की पहाड़ियों से होता है तथा यह दक्षिण की ओर बहते हुए गंगा में मिल जाती है।
ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र (The Brahmaputra River System)
- ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम हिमालय के उत्तर में स्थित मानसरोवर झील के निकट चेमयांगडुंग ग्लेशियर से होता है। तिब्बत में ब्रह्मपुत्र को सांगपो (Tsangpo) के नाम से जाना जाता है।
- नामचा बरवा के निकट हिमालय को काटकर तथा 'ए' टर्न बनाते हुए गहरे गार्ज का निर्माण करती है और दिहांग के नाम से भारत में प्रवेश करती है। कुछ दूर तक दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहने के बाद इसकी दो प्रमुख सहायक नदियां दिवांग और लोहित इसके बाएं किनारे पर आकर मिलती है। इसके बाद इस नदी को ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है। इसकी अन्य सहायक नदियां धनश्री, सुबनसिरी, मानस, पगलादिया आदि हैं। ब्रह्मपुत्र नदी की कुल लम्बाई 2900 किमी है, जिसमें 916 किमी भारत में बहती है।
- असम के धुबरी के निकट ब्रह्मपुत्र दक्षिण दिशा में बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती हैं। बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र को जमुना नाम से जाना जाता है। जमुना में दाहिनी ओर से तीस्ता नदी आकर मिलती है। जमुना आगे जाकर पद्मा में मिल जाती है तथा पद्मा मेघना से मिलने के बाद, मेघना नाम से बंगाल की खाड़ी में गिरती है। असम घाटी में ब्रह्मपुत्र नदी गुंफित जल मार्ग बनाती है, जिसमें माजुली जैसे कुछ बड़े नदी द्वीप भी मिलते हैं।
प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र (The Peninsular sular Prainage System)
- हिमालयी नदी तंत्र की तुलना में प्रायद्वीपीय नदी तंत्र प्राचीन है। प्रायद्वीपीय भारत का सामान्य ढाल पश्चिम से पूर्व व दक्षिण-पूर्व की ओर है। यहां को अधिकांश नदियां पश्चिमी घाट से निकलकर पूर्व की ओर बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है, जैसे- महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि। यहां उल्लेखनीय है कि नर्मदा और ताप्ती प्रायद्वीपीय भारत की 2 ऐसी महत्वपूर्ण नदियां हैं, जो अपवाद स्वरूप पश्चिम की ओर बहते हुए अरब सागर में गिरती है। इसका महत्वपूर्ण कारण इन दोनों नदियों का भ्रंश घाटियों (Rift Valley) से होकर बहना है।
- पश्चिमी घाट की अरब सागर में गिरने वाली नदियां प्राय: एश्चुरी का निर्माण करती हैं, जैसे नर्मदा, ताप्ती; जबकि बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां डेल्टा का निर्माण करती है।
- प्रायद्वीपीय भारत की नदियां प्रौढ़ावस्था प्राप्त कर चुकी हैं, जिस कारण प्रायद्वीपीय नदियों में विसर्पों का अभाव होता है एवं इनके मार्ग लगभग निश्चित होते हैं। ये नदियां वर्षा के जल पर निर्भर करती हैं तथा ग्रीष्म ऋतु में सूख जाती है। प्रायद्वीपीय नदियों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां एवं अरब सागर में गिरने वाली नदियां ।
बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां
1) गोदावरी -
- गोदावरी प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लम्बी नदी है। इसे वृद्ध गंगा कहा जाता है। गोदावरी का उद्गम पश्चिमी घाट के नासिक जिले की त्र्यम्बक पहाड़ी से होता है। इसकी कुल लम्बाई 1465 किमी है। इसकी सहायक नदियों में उत्तर से मिलने वाली नदियों में वेनगंगा, पेनगंगा, वर्धा तथा दक्षिण से मिलने वाली नदियों में मंजरा प्रमुख है। गोदावरी का निचला डेल्टाई क्षेत्र नाव्य योग्य है।
2) कृष्णा
- यह प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी बड़ी नदी है, जो महाराष्ट्र के महाबलेश्वर से निकलकर दक्षिण-पूर्व दिशा में बहते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसकी कुल लम्बाई 1400 किमी है। इसकी प्रमुख सहायक नदियां कोयना, भीमा, तुंगभद्रा आदि हैं। कृष्णा नदी भी गोदावरी के समान •डेल्टा का निर्माण करती है, जिसका डेल्टा गोदावरी से मिल गया है।
3 ) कावेरी
- कावेरी नदी का उद्गम कर्नाटक के कुर्ग जिले की ब्रह्मगिरी की पहाड़ियों से होता है तथा पूर्व की ओर बहते हुए यह नदी बंगाल की खाड़ी में डेल्टा का निर्माण करते हुए गिरती है। इसकी कुल लम्बाई 805 किमी है। इसे दक्षिणी गंगा भी कहा जाता है, जबकि इसके प्रवाह क्षेत्र को राइस बाउल ऑफ साउथ इंडिया कहा जाता है। यह शिवसमुद्रम नामक जलप्रपात का निर्माण भी करती है। यहां उल्लेखनीय है कि कावेरी नदी के जल को लेकर केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा पाण्डिचेरी के मध्य विवाद है। प्रायद्वीपीय नदियों में कावेरी एक ऐसी नदी है, जिसमें वर्षभर जल प्रवाह बना रहता है। इसका कारण ऊपरी क्षेत्र में दक्षिण-पश्चिम मानसून द्वारा तथा निचले क्षेत्र में उत्तर-पूर्वी मानसून द्वारा जल की आपूर्ति होना है।
4 ) महानदी -
- महानदी का उद्गम छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले की सिहावा नामक पहाड़ियों से होता है तथा यह पूर्व दिशा में बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसकी कुल लम्बाई 858 किमी है। भारत की प्रसिद्ध हीराकुण्ड परियोजना इसी नदी पर स्थित है।
(5) स्वर्ण रेखा
- स्वर्ण रेखा का उद्गम झारखण्ड के छोटा नागपुर के पठार से होता है तथा यह मैदिनीपुर के निकट बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसकी कुल लम्बाई 395 किमी है।
6 पेन्नार
- पेन्नार यह कर्नाटक के कोलार जिले की नन्दीदुर्ग पहाड़ी से निकलती है तथा पश्चिम की ओर बहते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
7) वैगई -
- यह नदी तमिलनाडु राज्य के मदुरई जिले से निकलती है तथा पाक की खाड़ी में गिरती है।
अरब सागर में गिरने वाली नदिया
नर्मदा नदी
- नर्मदा का उद्गम मध्य प्रदेश के अनूपपुर में स्थित मैकाल पर्वत की अमरकंटक चोटी से होता है। नर्मदा पश्चिम की ओर भ्रंश घाटी में बहते हुए तथा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात होते हुए खम्भात की खाड़ी में गिरती है। नर्मदा की कुल लम्बाई 1312 किमी है। अरब सागर में गिरने वाली प्रायद्वीपीय नदियों में यह सबसे बड़ी नदी है। अपने प्रवाह के क्रम में यह नदी दुग्धधारा, कपिलधारा, सहस्त्रधारा, धुआंधार जैसे जलप्रपातों का निर्माण भी करती है। नर्मदा घाटी में जबलपुर के निकट भेड़ाघाट में संगमरमर की विशाल चट्टानें प्राप्त होती हैं। यहां उल्लेखनीय है कि नर्मदा भारत की अन्य नदियों के समान डेल्टा का निर्माण न कर मुहाने पर एश्चुरी का निर्माण करती है। नर्मदा की सहायक नदियों में तवा, दूधी, शक्कर, हिरन, हथनी, शेर तथा बंजर प्रमुख हैं।
ताप्ती नदी-
- ताप्ती नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई नामक स्थान से होता है । यह नदी भी नर्मदा के समानान्तर भ्रंश घाटी में बहते हुए खम्भात की खाड़ी में गिरती है । यह सतपुड़ा एवं अजन्ता पर्वत के मध्य भ्रंश घाटी में बहती है। इसकी कुल लम्बाई 724 किमी है। इसकी की प्रमुख सहायक नदी पूर्णा है ।
साबरमती -
- साबरमती नदी का उद्गम राजस्थान की मेवाड़ पहाड़ियों से होता है तथा यह राजस्थान और गुजरात होते हुए खम्भात की खाड़ी में गिरती है। अहमदाबाद इसी नदी के तट पर स्थित है।
4) माही -
- माही नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के धार जिले की विन्ध्य पहाड़ियों से होता है तथा यह नदी पश्चिम की ओर बहते हुए खम्भात की खाड़ी में गिरती है ।
5 ) लूनी -
- लूनी नदी का उद्गम राजस्थान के अजमेर में स्थित अरावली की पहाड़ियों से होता है तथा यह पश्चिम की ओर बहते हुए कच्छ के रन में विलुप्त हो जाती है।
6 ) शरावती नदी
- शरावती नदी का उद्गम कर्नाटक के शिमोगा जिले से होता है तथा यह पश्चिम की ओर बहते हुए अरब सागर में गिरती है। प्रसिद्ध गरसोप्पा (जोग) जलप्रपात इसी नदी पर स्थित है।
7 ) पेरियार नदी
- पेरियार नदी का उद्गम केरल की अन्नामलाई की पहाड़ियों से होता है तथा यह नदी बेम्बानाद झील के उत्तर में अरब सागर में गिरती है ।