दक्षिण का पठार किसे कहते हैं | प्रायद्वीपीय भारत के पठार |Southern Plateau of India in Hindi

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दक्षिण का पठार किसे कहते हैं

दक्षिण का पठार किसे कहते हैं | प्रायद्वीपीय भारत के पठार |Southern Plateau of India in Hindi

दक्षिण का पठार (The Southern Plateau of India) 

  • दक्षिण का पठार भारत का ही नहीं, अपितु विश्व का प्राचीनतम पठार है। यह आर्कियन युग की चट्टानों से बना है तथा इसका कोई भी भाग समुद्र के नीचे नहीं डूबा है। विवर्तनिको दृष्टिकोण से शांत क्षेत्र होने के कारण यहां भूकम्प की संभावना काफी कम होती है, हालांकि कोयना और लातूर में आए भूकम्पों ने इस पर प्रश्न चिह्न लगाया है।
  • जहां दक्षिण के पठार की उत्तरी सीमा अरावली, कैमूर, राजमहल तथा शिलांग की पहाड़ियां बनाती हैं, वहीं खाड़ी दक्षिणी छोर कन्याकुमारी में स्थित है। 


प्रायद्वीपीय भारत के पर्वतों को निम्नलिखित भागों में बांटा गया है 

अरावली पर्वत (Aravali Mountain)

  • यह एक अवशिष्ट पर्वत है, जो विश्व के प्राचीनतम मोड़दार पर्वतों में से एक है। यह पर्वत गुजरात से दिल्ली तक फैला हुआ है। अरावली सर्वोच्च शिखर गुरू शिखर है, जो आबू पर्वत पर स्थित है। यहीं पर जैनियों प्रसिद्ध धर्म दिलवाड़ा जैन मंदिर स्थित है। 

 

पश्चिमी घाट (Western Ghat) - 

  • पश्चिमी घाट हिमालय के बाद भारत की दूसरी सबसे लम्बी पर्वत श्रेणी है, जिसका विस्तार ताप्ती नदी घाटी से नीलगिरी की पहाड़ियों तक है। इसे सहयाद्री के नाम से भी जाना जाता है। पश्चिमी घाट दक्षिण के पठार के पश्चिम में स्थित है, जो अवशिष्ट पर्वत के रूप में है तथा लगातार न होकर बीच-बीच में टूटा हुआ है।

 

  • अफ्रीका से भारत के अलग होने के क्रम में अरब सागर के रूप में भ्रंश घाटी का निर्माण हुआ और भ्रंश कगार के रूप में पश्चिमी घाट रह गया। इस कारण पश्चिमी घाट का पश्चिमी दाल अधिक तीव्र है। इसके दक्षिण में नीलगिरी की पहाड़ियां हैं, जिसे पूर्वी तथा पश्चिमी घाट का मिलन स्थल कहा जाता है। दक्षिण भारत का सर्वोच्च शिखर अन्नाईमुडी है, जो अन्नामलाई पर्वत की चोटी है।

 

  • पश्चिमी घाट पर्वत में कुछ दरों का विकास हुआ है, जिसमें थाल घाट तथा भोर घाट महाराष्ट्र में हैं। थाल घाट नासिक को मुम्बई से तथा भोर घाट पुणे को मुम्बई से जोड़ता है। एक अन्य दर्रा पाल घाट केरल राज्य में स्थित है, जो दक्षिण भारत के दो प्रमुख शहर कोच्चि व चेन्नई को जोड़ता है। 

 

पूर्वी घाट ( Eastern Ghat) 

  • इसका विस्तार उड़ीसा से प्रारंभ होकर तमिलनाडु तक है। यह प्राचीन मोड़दार पर्वत का अवशिष्ट रूप है। पश्चिमी घाट की तुलना में इसका अपरदन अधिक होने से यह पश्चिमी घाट से कम ऊँचा है। नदी अपरदन के कारण इसकी क्रमबद्धता भी लगभग समाप्त हो चुकी है। गोदावरी व कृष्णा जैसी नदियों ने इसे काट कर काफी चौड़ी घाटियों का विकास किया है। पूर्वी घाट का सर्वोच्च शिखर विशाखापटनम् चोटी है।

 

  • इसके अतिरिक्त प्रायद्वीपीय भारत की आन्तरिक पहाड़ियों में सतपुड़ा पर्वतमाला प्रमुख है, जो राजपीपला, महादेव तथा मैकाल पर्वत श्रेणियों का समूह है। सतपुड़ा एक ब्लॉक पर्वत है, जो नर्मदा व ताप्ती घाटियों के मध्य स्थित है। महादेव पहाड़ी का सर्वोच्च शिखर धूपगढ़ ( 1350 मी.) ही सतपुड़ा का सर्वोच्च शिखर है। आन्तरिक पहाड़ियों में दूसरी पर्वतमाला विन्ध्याचल पर्वत श्रेणी है, जो विन्ध्यामल, भांडेर, कैमूर तथा पारसनाथ पहाड़ियों का समूह है।

 

प्रायद्वीपीय भारत के पठार

प्रायद्वीपीय भारत कई छोटे-छोटे पठारों में भी विभक्त हैं, जिसमें दक्कन का पठार, मालवा का पठार, बुन्देलखण्ड का पठार, बघेलखण्ड का पठार, छोटा नागपुर का पठार, तेलांगना का पठार, मेघालय का पठार, कर्नाटक का पठार तथा दण्डकारण्य का पठार प्रमुख हैं।

 

1) दक्कन का पठार 

  • सतपुड़ा श्रेणी के दक्षिण में स्थित प्रायद्वीप को दक्कन का पठार कहते हैं। इसको महाराष्ट्र पठार भी कहते हैं। यह पठार पूर्वी तथा पश्चिमी घाट, सतपुड़ा, मैकाल तथा राजमहल की पहाड़ियों के मध्य लगभग 7 लाख वर्गकिमी में फैला हुआ है। क्रिटेशियस तथा पूर्व-टर्शियरी काल में होने वाले ज्वालामुखी विस्फोट से निकल बेसिक लावा से इसका निर्माण हुआ है। इसके अन्तर्गत मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक एवं आन्ध्र प्रदेश राज्यों के भाग आते हैं। यह बेसाल्ट चट्टानों से बना है।

 

2) छोटा नागपुर का पठार 


  • यह पठार झारखण्ड राज्य के पलामू, धनबाद, हजारीबाग व रांची जिलों में विस्तृत है। महानदी, सोन, स्वर्ण रेखा, दामोदर इस पठार की प्रमुख नदियां है। राजमहल पहाड़ियां इस पठार की उत्तरी सीमा बनाती है। यह पठार कई भागों में बंटा हुआ है। इसमें हजारीबाग का पठार, कोडरमा का पठार एवं रांची का पठार शामिल हैं। यहां पर ग्रेनाइट व नीस की चट्टानें पाई जाती हैं। यह पठार खनिज पदार्थों में धनी है। यहां भारत के प्रमुख खनिज बॉक्साइट, अभ्रक व कोयला भारी मात्रा में पाए जाते हैं। वन सम्पदा की दृष्टि से भी इसका महत्व है।

 

3) मेघालय का पठार

  • यहां की चट्टानें छोटा नागपुर के पठार की चट्टानों जैसी हैं। इस पठार के पश्चिम में गारो की पहाड़ियां तथा पूर्वी सिरे पर खासी, जयन्तिया एवं मिकिर की पहाड़ियां फैली हुई हैं। इस पठार का निर्माण कैम्ब्रियन पूर्व की ग्रेनाइट, नीस आदि चट्टानों से हुआ है। कालान्तर में इनके ऊपर टर्शियरी क्रम की चट्टानों के निक्षेप फैल गए हैं। यहीं पर भारत का सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान चेरापूंजी स्थित है।

 

4) तेलंगाना का पठार 

  • यह पठार प्रायद्वीपीय भारत का लगभग समतल भाग है, जिसे गोदावरी नदी ने 2 भागों में बांट दिया है- तेलंगाना का पठार तथा रायलसीमा का पठार इस क्षेत्र में कैम्ब्रियन काल की ग्रेनाइट व नीस की चट्टानें पाई जाती हैं। उत्तरी भाग पहाड़ी विशेषता वाला है तथा वनों से ढंका हुआ है, जबकि दक्षिण में स्थित रायलसीमा वाला भाग एक समतल भूमि है।

 

5) कर्नाटक का पठार 

  • यह पठार कर्नाटक तथा केरल के कुछ भागों में विस्तृत है, जो अत्यधिक विच्छेदित है। इसका उत्तरी भाग एक उच्च भूमि का चौड़ा पठार है, जहां कृष्णा व तुंगभद्रा नदियां प्रवाहित होती हैं। जबकि इसके दक्षिणी भाग को मैसूर का पठार कहते हैं। इस पठार की दक्षिणी सीमा नीलगिरि की पहाड़ियाँ बनाती हैं। भारत का प्रसिद्ध लौह अयस्क क्षेत्र बाबा बूदन की पहाड़ियां इसी पठार में स्थित हैं। 

 
6 ) दण्डकारण्य का पठार -

  • इसका विस्तार उड़ीसा, छतीसगढ़ तथा आन्ध्र प्रदेश में है। यह एक विषम पठार है, जिसके उत्तरी भाग को दण्डकारण्य उच्च भूमि तथा दक्षिणी भाग को दण्डकारण्य घाट कहा जाता है। 

नोट- प्रायद्वीपीय भारत के अन्य प्रमुख पठारों, जैसे- मालवा का पठार, मध्य भारत का पठार, बुन्देलखण्ड का पठार, बघेलखण्ड का पठार आदि का वर्णन मध्य प्रदेश के भौतिक भूगोल में किया गया है।


 दक्षिण के पठार का महत्व (The Significance of The Southern Plateau of India)

 

खनिज सम्पदाओं से परिपूर्ण प्रायद्वीपीय भारत की देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अपनी अवस्थिति और चट्टानों के संघटन के कारण प्रायद्वीपीय भारत को निम्नलिखित महत्ता प्राप्त हैं

 

  • भारत का प्रायद्वीपीय प्रदेश धात्विक एवं अधात्विक दोनों ही प्रकार के खनिजों से परिपूर्ण है। यहां लोहा, मैंगनीज, तांबा, बॉक्साइट, क्रोमियम, सोना, चांदी, जस्ता, शीशा, पारा आदि के साथ-साथ कोयले, हीरे, अभ्रक, बहुमूल्य पत्थर, संगमरमर, इमारती और सजावटी पत्थर की भी प्रचुरता है। भारत का 98 प्रतिशत कोयला भण्डार प्रायद्वीपीय प्रदेश में ही पाया जाता है।

 

  • प्रायद्वीपीय भारत का एक बहुत बड़ा भाग काली मृदा (रेगर मृदा) से ढका है। इस मृदा के विशेष गुण इस पर कपास, मिलेट, मक्के, दलहनों, नारंगी और नींबूजात फलों की खेती को प्रोत्साहित करते हैं। वैसे इस प्रदेश के कुछ हिस्सों में चाय, कॉफी, रबस, काजू, मसालों तम्बाकू, मूंगफली और तिलहनों की खेती की जाती है।


  • प्रायद्वीपीय भारत के दक्षिणी तथा पूर्वी भाग आर्कियन, धारवाड़, कुडप्पा और विन्ध्य शैलों में निर्मित विस्तृत क्षेत्र विद्यमान हैं, जिन पर समयान्तराल में लाल, भूरी एवं लेटेराइट मृदाओं का विकास हुआ है। ये मृदाएं ग्रामीण अर्थव्यवस्था की आधार हैं। 


  • पश्चिमी घाट, नीलगिरि और पूर्वी घाट घने ऊष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती और आर्द्र-चीर हरित वनों से ढके हैं। इन वनों में सागवान, सखुआ, चंदन, एबोनी, महोगानी, बांस, बेंत, रोजवुड, आयरन वुड और विभिन्न वन सम्पदाओं की प्राप्ति होती है।

 

  • पूर्व दिशा की ओर बहने और बंगाल की खाड़ी में प्रवाहित होने वाली नदियां इस प्रदेश में अन्यान्य महाखड्डों, जलप्रतापों, क्षिप्तिकाओं का निर्माण करती हैं, जिन्हें जगह-जगह पनबिजली उत्पादन के लिए उपयोग में लाया जाता है। पश्चिमी घाट से उद्गमित नदियां पनबिजली उत्पादन के लिए विशेषकर उपयोगी हैं तथा इनसे कृषिगत फसलों एवं फलोद्यानों को सिंचाई सुविधा भी उपलब्ध होती है।

 

  • इस प्रदेश में अनेक पहाड़ी पर्यटन स्थल एवं शरणस्थलियां विद्यमान हैं, जिनमें उद्गममण्डलम् (ऊंटकमंड), ऊटी, कोडइकैनाल, महाबालेश्वर, खण्डाला, मेथेरॉन, पंचमढ़ी और माऊंट आबू सबसे महत्वपूर्ण हैं। 


  • पश्चिमी एवं पूर्वी घाटों में उच्च कोटि के औषधीय गुण वाले पौधो पाए जाते हैं।

 

  • प्रायद्वीप के पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्र अनेक अनुसूचित जनजातियों का निवास स्थान है। विन्ध्य के दक्षिण में द्रविड़ संस्कृति की प्रमुखता है।

 

  • दक्षिण के पठार के पश्चिमी घाट पर वर्षा अधिक होने के कारण यह जैव विविधता के दृष्टिकोण से सम्पन्न है, जिसे विश्व के हॉट स्पॉट में शामिल किया गया है।


भारत के तटवर्ती मैदान व द्वीपीय भाग (The Coastal Plains & Islands of India)

 

तटीय मैदान का विस्तार भारत के प्रायद्वीपीय पर्वत श्रेणी तथा समुद्री तटों के मध्य हुआ है। इन मैदानों के निर्माण में समुद्री निक्षेप तथा नदियों के निक्षेप दोनों का योगदान है।

तटीय मैदान को दो भागों में बांटा जा सकता है -

1) पश्चिमी तटीय मैदान (Western Coastal Plains) 

  • इस मैदान का विस्तार गुजरात के सूरत से कन्याकुमारी तक है। गुजरात के तटवर्ती क्षेत्र को गुजरात तट, दमन से गोवा तक के क्षेत्र को कोंकण तट, गोवा से मंगलोर तक के क्षेत्र को कन्नड़ तट तथा मंगलोर से कन्याकुमारी तक के क्षेत्र को मालाबार तट कहते हैं। 
  • पश्चिमी तटीय मैदान में बहने वाली अधिकांश नदियां पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल से निकलती हैं। ये नदियां छोटी तथा तीव्रगामी होती है और जो मुहाने पर डेल्टा का निर्माण न कर एश्चुयरी का निर्माण करती हैं। 
  • पश्चिमी तट पर कुछ पश्चजल (Backwaters) पाए जाते हैं, जिन्हें केरल में कयाल कहते हैं। उदाहरण बेम्बानाड तथा अष्टमुडी ।


2) पूर्वी तटीय मैदान (Eastern Coastal Plains) - 

  • यह मैदान पूर्वी घाट एवं समूद्री तट के मध्य स्वर्ण रेखा नदी से कन्याकुमारी तक विस्तृत है। यह पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में अधिक चौड़ा है, जिसका प्रमुख कारण इस क्षेत्र में वरी, कृष्णा तथा कार्केरी जैसी क गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी जैसी नदियों द्वारा डेल्टा का निर्माण करना है। 
  • पूर्वी तटीय मैदान में डेल्टा क्षेत्रों के विस्तृत होने के कारण यह क्षेत्र पश्चिमी घाट की अपेक्षा अधिक उपजाऊ है। भारत के पूर्वी तट पर ही पूर्वी भारत की दो महत्वपूर्ण लैगून झीलें चिल्का एवं पुलीकट झील स्थित है। 
  • पूर्वी घाट में स्थित तमिलनाडु का पूर्वी तट कोरोमण्डल तट तथा गोदावरी से महानदी का पूर्वी तटीय मैदान उत्तरी सरकार तट के नाम से जाना जाता है।

 

भारत के द्वीप समूह (The Islands of India)

  • भारत में कुल 247 द्वीप हैं, जिनमें से 204 बंगाली खाड़ी में तथा शेष 43 अरब सागर में स्थित है। 
  • अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह बंगाली खाड़ी में स्थित एक ऐसा द्वीप समूह है, जो मूलतः विवर्तनिक एवं ज्वालामुखी क्रियाओं से निर्मित हुए हैं। 
  • अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह की सर्वोच्च चोटी सैंडल पीक है तथा इस द्वीप का बैरन द्वीप भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है। 
  • भारत का दक्षिणतम बिन्दु इंदिरा प्वाइन्ट अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह के ग्रेट निकोबार में स्थित है। 
  • भारत के पश्चिम में अरब सागर में स्थित द्वीप समूहों को लक्षद्वीप के नाम से जाना जाता है, जिनका निर्माण मूलत: प्रवालों (Coral) से हुआ है। 
  • भारत के समुद्री भाग में स्थित लक्षद्वीप में मिलने वाले इन प्रवाल द्वीपों को एटॉल कहा जाता है। यह उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्र होते हैं। कवरत्ती लक्षद्वीप की राजधानी है। यह द्वीप चैनल के द्वारा मालद्वीप से अलग है।

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