हिन्दी भाषा का उद्भव एवं विकास
हिन्दी
भाषा के उद्भव एवं विकास की रूपरेखा की समझ के लिए भाषा की समझ होना अनिवार्य है।
हिन्दी भाषा की सम्प्रेषणीयता और उसके सामाजिक सरोकार की समझ के लिए भी भाषा की
समझ आवश्यक है।
भाषा: अर्थ एवं परिभाषा
➧ भाषा क्या है? हम भाषा का व्यवहार क्यों करते हैं? यदि हमारे पास भाषा न होती तो हमारा जीवन कैसा होता? भाषा का मूल उद्देश्य क्या है? जेसे ढेरों प्रश्न गहरे विचार की माँग करते हैं।
➧ 'भाषा' धातु से उत्पन्न भाषा का शाब्दिक अर्थ है- बोलना । शायद यह व्याख्या तब प्रचलित हुई होगी जब मनुष्य केवल बोलता था, यानी उस समय तक लिपि का आविष्कार नहीं हुआ था। प्रश्न यह है कि बिना बोले क्या मनुष्य रह सकता है?
➧ वस्तुतः भाषा सामाजिकता का आधार है..... मनुष्य के समस्त चिंतन व उपलब्धियों का आधार है। इसका अर्थ यह नहीं है कि पशु पक्षियों के पास कोई भाषा नहीं होती, उनके पास भी भाषा होती है किन्तु वे उस भाषा का लियान्तरण नहीं कर सके हैं।
➧ भौतिक आवश्यकताओं से ऊपर का चिंतन व विकास बिना भाषा के संभव ही नहीं है। हम भाषा में सीचते हैं..... भाषा में ही चिंतन करते हैं यदि मनुष्य से उसकी भाषा छीन ली जाये तो वह पशु तुल्य हो जायेगा। आज अनके भाषाएँ संकट के मुहाने पर खड़ी है, दरअसल यह संकट सभ्यता व संस्कृति का भी है तो भाषा का मूल कार्य है सम्प्रेषण।
➧ जिस व्यक्ति के पास सम्प्रेषण के जितने कारण हो व उतनी ही विधियाँ व पद्धतियाँ खोज लेता है। कथन के इतने प्रकार व ढंग मनुष्य के सम्प्रेषण के ही प्रकार है।
➧ सम्प्रेषण की प्रक्रिया में कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है। यानी इस प्रक्रिया में एक वक्ता और एक श्रोता का होना आवश्यक है। इस प्रक्रिया में एक तीसरा तत्व और होता है और वह है सम्प्रेषण का कथ्य।
➧ सम्प्रेषण के कथ्य का तात्पर्य वक्ता के संदेश से है। और इस सारी प्रक्रिया का अंतिम लक्ष्य एक खास प्रयोजन की प्राप्ति है। इन सारी प्रक्रिया को हम इस आरेख के माध्यम से समझने का प्रयास करें-
➧ भाषा सम्प्रेषण की यह प्रक्रिया प्राथमिक और आधारभूत है। मनुष्य के भाषा सम्प्रेषण की विशेषता है कि यह ध्वनि एवं उच्चरित ध्वनियों की प्रतीक व्यवस्था से संचालित होती है।
➧ जब भाषा को परिभाषित करते हुए कहा गया है- “भाषा उच्चरित ध्वनि प्रतीकों की यादृच्छिक श्रृंखला है” स्पष्ट है कि मुख द्वारा उच्चरित ध्वनियों को ही भाषा के अंतर्गत समाविष्ट किया जाता है। सम्प्रेषण के और भी कई रूप हैं जैसे- आँख द्वारा, स्पर्श द्वारा, गंध द्वारा, इशारे द्वारा...... इत्यादि.... हम सामान्य रूप से सारे माध्यमों का प्रयोग करते हैं लेकिन भाषा के मूल रूप में उच्चरित का ही प्रयोग करते हैं मनुष्य की भाषा प्रतीकबद्ध ढंग से संचालित होती है। हर शब्द अपने लिए एक प्रतीक रचते हैं, चुनते हैं। और वह प्रतीक एक दूसरे शब्द से भिन्न आ लिये हुए होता है। भाषा के इस प्रतीकबद्ध व्यवस्था को हम एक आरेख के माध्यम से समझ सकते हैं-
हिन्दी भाषा: परिचय
➧ जब हम हिन्दी भाषा शब्द का व्यवहार करते हैं तब हमारे सामने तीन अर्थ तीन है। एक- ऐसी भाषा, जिसका उत्तर भारत के लोग सामान्य बोलचाल में इसका प्रयोग करते है। दो मानक हिन्दी, जो साहित्य व संस्कृति का प्रतीक है। तीन-जो भारत की राजभाषा है और जिसका प्रयोग सरकारी काम-काज के लिए किया जाता है।
➧ यहाँ हम प्रमुख रूप से हिन्दी भाषा की बात कर रहे हैं। हिन्दी भाषा के विकास क्रम को 1000 ई. से मान गया है। हिमालय से विन्ध्याचल व राजस्थान से लेकर बंगाल तक इसका क्षेत्र माना गया है। 18 बोलियों के संयुक्त दाय को लेकर इस भाषा का गठन हुआ है।
भाषा के रूप में इसका विस्तार पूर्व के प्रेदश (बंगार, उड़िया) तक हैं, जहाँ की हिन्दी ब्रजबुलि है, वहीं पश्चिम के प्रदेश गुजराती, राजस्थानी एवं इक्षिण-पश्चिमी भाषा
मराठी तक इसका प्रसार है। इसी प्रकार उत्तरी क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश व जम्मू तक
तथा दक्षिण के प्रदेश में हैदराबाद (दकनी हिन्दी) तक इसका प्रसार है।
हिन्दी भाषा का उद्भव एवं विकास
हिन्दी भाषा के विकास का सम्बन्ध अपभ्रंश से जुड़ा हुआ है। संस्कृत भाषा से कई से प्राकृतों विकसित हुई और उन प्राकृतों से अपभ्रंश । इन अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं का जन्म हुआ।
डॉ० धीरेन्द्र वर्मा ने आधुनिक आर्य भाषाओं का वर्गीकरण इस प्रकार किया है-
प्रकार | भेद |
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उत्तरी | सिंधी, लहंदा, पंजाबी |
पश्चिमी | गुजराती |
मध्यदेशी | राजस्थानी, पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी, बिहारी, पहाड़ी, |
दक्षिणी | ओड़िया, बंगला, असमिया |
जबकि
डॉ0 ग्रियर्सन का हिन्दी भाषा वर्गीकरण इस प्रकार है
(क) बाहरी उपशाखा |
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प्रथम - उत्तरी-पश्चिमी समुदाय |
1. लहंदा अथवा पश्चिमी पंजाबी 2. सिन्धी |
द्वितीय- दक्षिणी समुदाय |
3. मराठी |
तृतीय - पूर्वी समुदाय |
4- ओड़िया 5- बिहारी 6- बांगला 7 असमिया |
(ख) मध्य उपशाखा चतुर्थ- 8 पूर्वी हिन्दी |
(ग) भीतरी उपशाखा पंचम केंद्रीय अथवा भीतरी समुदाय 9 पश्चिमी हिन्दी 10 पंजाबी 11 गुजराती 12 भीली 13 खानदेशी 14 राजस्थानी |
T1
पष्ठ - पहाड़ी समुदाय |
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15 पूर्वी पहाड़ी (नेपाली) 16 मध्य या केंद्रीय पहाड़ी 17 पश्चिमी पहाड़ी |
- स्थूल रूप में हम आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं को 1000ई0 के आस-पास से मान सकते हैं।
- भारतीय भाषा के विकास क्रम को प्रमुखतः तीन चरणों में विभक्त किया गया है 1. हिन्दी भाषा का आदिकाल (1000-1500 ई0 तक)
- हिन्दी भाषा का मध्यकाल (1500 से 1800 ई0 तक)
- हिन्दी भाषा का आधुनिक काल (1800 ई. के बाद से आज तक)