भारतेन्दु युग के प्रमुख रचनाकार जीवन परिचय साहित्यिक विशेषताएं । भारतेन्दु युगीन रचनाकार- भाग 02। Bhartendu yug Pramukh Rachnakar

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 भारतेन्दु युग के  प्रमुख रचनाकार जीवन परिचय साहित्यिक विशेषताएं 

भारतेन्दु युग के प्रमुख रचनाकार जीवन परिचय साहित्यिक विशेषताएं । भारतेन्दु युगीन रचनाकार- भाग 02। Bhartendu yug Pramukh Rachnakar

 



 भारतेंदु मंडल के प्रमुख साहित्यकार के नाम 

➽  भारतेंदु मंडल के प्रमुख साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चन्द्र प्रतापनारायण मिश्रबालकृष्ण भट्ट तथा बदरीनारायण चौधरी थे। 

➽  अन्य साहित्यकारों में लाला श्री निवास दासराजकुमार ठाकुर जगमोहन सिंहबाबू तोता रामकेशवराम भट्टराधाचरण गोस्वामीअंबिका दत्त व्यासमोहन लाल विष्णु लाल पंड्याभीम सेन शर्माकार्तिक प्रसाद खत्रीदुर्गा प्रसाद मिश्रसदानंद मिश्रछोटे लाल मिश्रजगन्नाथ खन्नागोपी नाथराम पाले सिंहराम कृष्ण वर्माश्रीनिवास दासराधा कृष्ण दासगदाधर सिंहराधाकृष्ण दासप्रतापनारायण मिश्रराधाचरण गोस्वामीविश्वनाथ सिंहगोपाल चंदलक्ष्मी शंकर मिश्ररामदीन सिंहरविदत्त शुक्लगौरी दत्त आदि रचनाकारों ने आधुनिक हिंदी साहित्य के भारतेंदु युग का सहयोग करके हिंदी साहित्य के विकास में योगदान किया। इसी युग में काशी में नागरी प्रचारिनी सभा की स्थापना हुई जिसने पुस्तक प्रकाशन एवं पत्रिका प्रकाशन का कार्य किया।

 

➽  भारतेंदु मंडल के भारतेंदु हरिश्चन्द्रपंडित प्रतापनारायण मिश्रपंडित बालकृष्ण भट्ट एवं उपाध्याय पंडित बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमधनप्रमुख साहित्यकार हैं। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक रचनाकारों तथा संस्थाओं ने भारतेंदु युग के विभिन्न क्रियाकलापों में योगदान किया। 

 

पाध्याय पंडित बदरीनारायण चौधरी प्रेमधन

 

बदरीनारायण चौधरी व्यक्तित्व 

➽ बदरीनारायण चौधरी का उपनाम प्रेमधन था। नाम से पूर्व उपाध्याय भी लगाते थे। पंडित शब्द का प्रयोग नाम से पूर्व प्रायः सभी हिंदी रचनाकार करते थे। 

➽ इनका जन्म सन् 1855 ई. में हुआ था। 68 वर्ष की अवस्था में इनकी सन् 1823 ई. में मृत्यु हो गई। गद्य और पद्य दोनों विधाओं में रचना की।

 

बदरीनारायण चौधरी कृतित्व - 

➽  निबंधकविता तथा नाटक को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। 

➽  नाटक भारत सौभाग्य', 'वारांगना- रहस्य', 'प्रयाग रामागमन', 'वद्ध विलाप 

➽  समालोचना - बाबू गदाधर सिंह के अनुवाद 'वंग विजेतातथा लाला श्रीनिवास दास के 'संयोगिता स्वयंवरकी विशद एवं कठोर समालोचना लिखकर हिंदी साहित्य में हिंदी समालोचना का सूत्रपात किया। 

➽  संपादन नागरी नीरदसाप्ताहिक पत्र एवं आनंद कादंबिनी का संपादन किया।

 

बदरीनारायण चौधरी की साहित्यिक विशेषताएं -

 

➽  इनकी शैली विलक्षण थी। वे गद्य रचना को कला तथा कलम की कारीगरी स्वीकारने वाले लेखक थे। कभी-कभी ऐसे लंबे पेचीदे गद्य का सजन करते थे कि पाठक एक डेढ़ प्रघटक के लंबे वाक्यों में उलझ जाता था।

➽ ये वाक्य नहीं वाक्यातीत महाकाव्य या प्रोक्तियां होती थीं। अनुप्रास एवं अनूठे पद-विन्यास की ओर इनका विशेष ध्यान होता था। किसी बात को साधारण ढंग से कह जाने को ही वे लिखना नहीं कहते थे। लेख लिखने के पश्चात् कई बार उसको पढ़कर उसका परिष्कार एवं परिमार्जन कर लेने के बाद ही प्रकाशन हेतु देते थे। 

➽  भारतेंदु के घनिष्ठ होकर भी उनके उतावलेपन की आलोचना करने से नहीं चूकते थे। उनका कहना था कि बाबू हरिश्चन्द्र अपनी उमंग में जो कुछ लिख जाते थे उसे यदि एक बार और देखकर परिमार्जित कर लिया करते तो वह और भी सुडौल एवं सुंदर हो जाता। एक बार उन्होंने रामचन्द्र शुक्ल से कांग्रेस के विभाजन पर नोट लिखने के लिए कहा। 

शुक्ल द्वारा लिखे गए वाक्य को देखकर कहा कि इसको यों कर दीजिए-

 

  • "दोनों दलों की दलादली में दलपति का विचार भी दलदल में फंसा रहा।" भाषा अनुप्रासमयी और चुह चुहाती हुई होने पर भी उनका पद विन्यास व्यर्थ के आडंबर के रूप में नहीं होता था। उनके लेखों में अर्थ गांभीर्य एवं वैचारित सूक्षमता विद्यमान रहती थी अनेक कविताएं तथा नाटक भी लिखे।

 

➽  'आनंद कादंबिनीका संपादन अपने वैचारिक भावों के अंकन हेतु ही किया उसमें अन्यों को छपने का अवसर यदा-कदा ही दष्टिगोचर होती थी। 'नागरीनीरदके संपादकीय की भाषा संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक होती थी। समालोचना का सूत्रपात हिंदी में बदरीनारायण चौधरी ने किया।


लाला श्रीनिवास दास- 

➽   इन्होंने नाटक और उपन्यास लिखे। संसार को ऊँचा नीचा समझने वाले पुरुष थे। इनका जन्म सन् 1851 एवं मत्यु 1886 में हुई।

 

कतित्व 

➽ नाटक '-तप्तासंवरण', 'संयोगिता स्वयंवरतथा 'रणधीर- प्रेम मोहिनी । 

➽ उपन्यास- 'परीक्षा गुरु । 


श्रीनिवास दास की साहित्यिक विशेषताएं -

 

➽ श्रीनिवास दास व्यावहारिक साहित्यकार थे। भाषा संयत तथा साफ सुथरी एवं रचना अति उद्देश्यपूर्ण है। अति भोजनअत्यधिक परोपकारअघर्मियों की सहायताकुपात्र में भक्तिन्यायपरता की अधिकताअत्यंत बुद्धि वत्तिआदि पर करारा व्यंग्य करते हुए अति की वर्जना की है। आनुषंगिकता का समर्थन किया है।

 

राजकुमार ठाकुर जगमोहन सिंह

➽ ठाकुर जगमोहन सिंह (सन् 1857-1899 ई0) मध्य प्रदेश की विजय राघवगढ़ रियासत के राजकुमार थे। शिक्षा प्राप्त करने काशी चले गये। जहां संस्कृत एवं अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की। 

➽ अध्ययन काल में भारतेंदु हरिश्चन्द्र से उनका संपर्क हो गया किंतु भारतेंदु की रचना शैली का प्रभाव उन पर वैसा नहीं पड़ा जैसा भारतेंदु मंडल के साहित्यकारों पर पड़ा। वे संस्कृत साहित्य और अंग्रेजी के अच्छे ज्ञाता तथा हिंदी के एक प्रेम पथिक कवि एवं माधुर्यपूर्ण गद्य लेखक थे। 

➽ प्राचीन संस्कृत साहित्य के अभ्यासी तथा विध्याटवी के रमणीय प्रदेश के निवासी होने के परिणामस्वरूप विविध भावमयी प्रकृति के रूप माधुर्य की जैसी सच्ची परखजैसी सच्ची अनुभूति इनमें थी वैसी उस काल के किसी अन्य हिन्दी कवि या लेखक में नहीं देखी जाती है।

 

ठाकुर जगमोहन सिंह कृतित्व 

➽ काव्य कृतियां 'प्रेम संपत्ति लता', 'श्याम लता', 'श्यामा सरोजिनीएवं 'देवयानी 

➽ उपन्यास- 'श्यामा स्वप्न 

➽ अनूदित -'ऋतु संहार एवं मेघदूत' (ब्रजभाषा)।

 

ठाकुर जगमोहन सिंह साहित्यिक विशेषताएं -

➽  श्रंगार वर्णन एवं प्रकृति सौंदर्य की अवधारणा उनकी मुख्य काव्य प्रवत्तियां हैं जो उनकी काव्य कृतियों में विद्यमान है। उपन्यास में प्रसंगवसात कुछ कविताओं का समावेश सुंदर बन पड़ा है। जगमोहन सिंह में काव्य रचना की स्वाभाविक प्रतिभा थी। 

➽  वे भावुक मनोवत्ति के कवि थे। कल्पना लालित्यभावुकताचित्र शैली और ब्रजभाषा की सरसता एवं मधुरता उनकी रचनाओं की अन्यतम विशेषताएं हैं। 

➽  अलंकारों का अयत्नज सुंदर समावेश है जो काव्य को मनोरंजकता प्रदान करने में सहयोगी है। अपने हृदय पर अंकित भारतीय ग्राम्य जीवन के माधुर्य का जो संस्कार ठाकुर साहब ने 'श्यामा स्वप्नमें व्यक्त किया है उसकी सरसता निराली है।

➽   ठाकुर जगमोहन सिंह ने नरक्षेत्र के सौंदर्य को प्रकृति के अन्य क्षेत्रों के सौंदर्य के मेल में देखा है। प्राचीन संस्कृत के साथ भारतभूमि की प्यारी रूपरेखा को मन में बसाने वाले ये पहले हिंदी रचनाकार हैं।

 

➽  कवियों के पुराने प्यार की बोली में देश की दश्यावली को समक्ष रखने का मूक समर्थन तो इन्होंने किया ही है साथ ही भावप्रबलता से प्रेरित कल्पना के विप्लव एवं विशेषण को अंकित करने वाली एक प्रकार की प्रलापशैली भी इन्होंने निकाली है जिसमें रूप विधान की विलक्षणता विद्यमान थी न कि शब्द विधान।


बाबू तोता राम

➽ बाबू तोता राम ये हरिश्चन्द्र चंद्रिका के लेखकों में से हैं। आजीवन हिंदी के प्रचार एवं प्रसार में तत्पर रहे। साहित्य सजन कर सभा के लिए अर्पित कर दिया। 

➽ सभा की स्थापना भाषा संवर्धिनी सभा की स्थापना की।

 

बाबू तोता राम कृतित्व

 

  • पत्र- 'भारत बंधुसाप्ताहिक पत्र । 
  • अनूदित केटो कृतांत नाटक', 'स्त्री सुबोधिनी'


बाबू तोता राम साहित्यिक विशेषताएं: 

भाषा साधारण अर्थात् विशेषता रहित है। 


पंडित केशव राम भट्ट- 

➽  इन्होंने बिहार प्रांत में हिन्दी प्रचार-प्रसार हेतु अनेक यत्न किए। 

➽  कृतित्व-नाटक शमशाद सौसन तथा सज्जाद संबुल । 

➽  पत्र -'बिहार बंधु' साप्ताहिक पत्र 

➽  पंडित केशव राम भट्ट साहित्यिक विशेषताएं- भाषा उर्दू में लेखन।

 

पंडित राधाचरण गोस्वामी

➽  'हरिश्चन्द्र चंद्रिका' के प्रभाव से समाज सुधार एवं देशभक्ति का भाव जागत हुआ।➽  कृतित्व - 'विदेश यात्रा विचार' तथा 'विधवा विवाह विवरण' नामक दो पुस्तकें लिखीं। 

➽ पत्र संपादन भारतेंदु नामक पत्र निकाला।

 

अंबिका दत्त व्यास

➽  कविवर दुर्गा दत्त व्यास के पुत्र अंबिका दत्त व्यास (सन् 1858-1900 ई) काशी निवासी सुकवि थे। वे 

➽ संस्कृत और हिन्दी के अच्छे विद्वान थे तथा दोनों भाषाओं में साहित्य सजन का कार्य करते थे। 

  कृतित्व -काव्य 'पावस पचासा', 'सुकवि सतसई' तथा 'हो हो होरी' काव्य कृतियां हैं। 

➽  प्रबंध काव्य 'कंस वध' (अपूर्ण) खड़ी बोली 'ललिता नाटिका', पावस पचासा', 'गद्य मीमांसा' नाटक भारत सौभाग्य', 'गो संकट नाटक', 'मरहेट्टा नाटक'

➽  संपादन पीयूष प्रवाह' ।  

➽  कुंडलिया समस्यापूर्ति 'बिहारी विहार', 'अवतार मीमांसा । 


अंबिका दत्त व्यास साहित्यिक विशेषताएं 

➽  अधिकांश रचनाएं ललित ब्रज भाषा में की गई। खड़ी बोली में कंस वध प्रबंध काव्य की रचना प्रारंभ की थी किंतु इसके मात्र तीन सर्ग ही लिखे गए हैं। 

➽  प्रसिद्ध रचना बिहारी विहार है जिसमें महाकवि बिहारी के दोहों का कुडलिया छंद में भाव विस्तार किया गया है। उनके द्वारा लिखित समस्या पूर्तियां भी उपलब्ध होती हैं। नाटकों में कुछ गेय पदों को सम्मिलित किया गया है। 

➽  व्यास की प्राचीन भारतीय संस्कृति में विशेष आस्था थी जिसे प्रत्यक्ष रूप में व्यक्त करने की अपेक्षा उन्होंने पाश्चात्य सभ्यता के दोषों को अपने व्यंग्य का निशाना बनाया है। 

➽  उन्होंने सरल एवं कोमल कात पदावली को वरीयता दी है। इन्होंने इनने, उन्होंने उनने का प्रयोग किया है।

 

पंडित मोहन लाल विष्णु लाल पंड्या

➽  पंडित मोहन लाल विष्णुलाल पंड्या (सन् 1850-1912 ई) ने गिरती दशा में 'हरिश्चन्द्र चंद्रिका' को सहारा दिया था तथा उसमें अपना नाम भी जोड़ा था। लोग इनकी वेशभूषा, बोल चाल से इन्हें इतिहासवेत्ता समझते थे। 

➽  कविराज श्यामल दान जी ने जब अपने पथ्वीराज चरित्र ग्रंथ के द्वारा चंदवरदायी कृत 'पथ्वीराज रासो' को जाली ग्रंथ प्रमाणित किया था उस समय इन्होंने रासो संरक्षा की रचना कर उसे प्रामाणित महाकाव्य सिद्ध करने का प्रयत्न किया था। 

➽ कृतित्व रासो सरक्षा ।

 

पंडित भीमसेन शर्मा 

➽  पंडित भीमसेन शर्मा पहले ये स्वामी दयानंद सरस्वती के दायें हाथ थे।

➽  संवत् 1940 1942 वि. के मध्य इन्होंने धर्म संबंधी अनेक पुस्तकें हिंदी में लिखी एवं संस्कृत ग्रंथों के हिंदी भाष्य भी प्रकाशित किए। 

➽ कृतित्व आर्य सिद्धान्त नामक मासिक पत्र । 

➽ संस्कृत भाषा की अद्भुत शक्ति निबन्ध |

 

पंडित भीमसेन शर्मा साहित्यिक विशेषताएं

➽  आर्य भाषा के संबंध में इनका मत विलक्षण था। निबंध को आधार मानकर इन्होंने अरबी-फारसी के शब्दों को संस्कृत का बना दिया जिसके लिए अनेक तर्क उपस्थित किए दुशमन दुःशमन सिफारिश क्षिप्राशिष चश्मा - चक्ष्मा, शिकायत शिक्षायत्न आदि। 

➽  भारतेंदु के आविर्भाव के साथ-साथ साहित्यकारों का एक मंडल भारतेंदु मंडल' के नाम से खड़ा हो गया था। जिसके अतिरिक्त अन्य साहित्यकार भी हिंदी की सेवा में उतर पड़े थे उसी प्रकार पत्र-पत्रिकाएं भी देश के कोने-कोने में प्रकाशित होकर हिंदी सेवा में संलग्न हो गई थीं।

 

बाबू कार्तिका प्रसाद खत्री

 

➽  कोलकाता से हिंदी का एक अच्छा पत्र और पत्रिका निकालने का सर्वप्रथम प्रयत्न करने वाले बाबू कार्तिका प्रसाद खत्री थे। उन्होंने हिन्दी में पाठक पैदा करने हेतु दौड़ धूप की घर जा जाकर पत्र सुनाकर आते थे। कृतित्व सन् 1928 ई. में 'हिन्दी दीप्ति प्रकाश' नाम का संवाद पत्र तथा प्रेम विलासिनी' नामक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया।

 

पंडित दुर्गा प्रसाद मिश्र, पंडित छोटू लाल मिश्र, पंडित सदानंद मिश्र, बाबू जगन्नाथ खन्ना


➽  संवत् 1934 वि. में इन सभी के प्रयास से कोलकाता में भारत मित्र कमेटी की स्थापना हुई तथा भारत मित्र पत्र निकला। इसका बहुत दिनों तक हिंदी संवाद पत्रों में उच्च स्थान रहा। इसका प्रसार-प्रचार वर्तमान काल में भी धूमधाम से चल रहा है। 


पंडित गोपी नाथ-

➽ 'कवि वचन सुधा' की मनोहर लेखन शैली से प्रभावित, भाषा पर मुग्ध होकर गोपीनाथ ने पत्रिका संचालन किया। 

➽ कृतित्य पत्रिका संवत 1934 मित्र विलास । साहित्यिक विशेषताएं- भाषा अति सुष्ठु एवं ओजस्विनी

 

पंडित दुर्गा प्रसाद मिश्र 

➽ कृतित्व पत्र संवत् 135 'उचित वक्ता' कोलकाता।

 

सदानंद मिश्र 

➽ कृतित्व पत्र संवत् 1935 सार सुधा निधि कोलकाता।

 

राजा रामपाल सिंह काला कांकर निवासी मनस्वी एवं देशभक्त 

➽ कृतित्व पत्र- संवत् 1940- 'हिंदोस्थान'- इंग्लैंड भारतेंदु के स्वर्गवासी हो जाने पर संवत् 1942 में इस पत्र ने हिंदी दैनिक का रूप धारण कर लिया और इसके संपादक पं. मदन मोहन मालवीय, पंडित प्रताप नारायण मिश्र एवं बाल मुकुंद गुप्त रहे।

 

बाबू रामकृष्ण वर्मा

 ➽ कृतित्व पत्र सन् 1884 भारत जीवन काशी। 

➽ अनूदित नाटक वीर नारी, पद्मावती, कृष्ण कुमारी।

 

श्रीनिवास दास 

➽ कृतित्व उपन्यास परीक्षा गुरू। 

बाबू गदाधर सिंह 

➽ कृतित्व अनूदित उपन्यास 'बंगविजेता', 'दुर्गेशनंदिनी' बंगला से हिंदी।

 

राधाकृष्ण दास- 

➽  भारतेंदु हरिश्चन्द्र के फुफेरे भाई राधाकृष्ण दास (सन् 1865 1907 ई.) बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। कविता के अलावा नाटक, उपन्यास एवं आलोचना के क्षेत्रों में सराहनीय साहित्य रचना की।


कृतित्व 

➽ कविताएं- 'भारत बारह मासा', 'देश दशा' 

➽ नाटक- 'दुःखिनी बाला', 'महाराणा प्रताप'

 

राधाकृष्ण दास  साहित्यिक विशेषताएं- 

➽ उनकी कविताओं में भक्ति, भंगार एवं समकालीन सामाजिक-राजनीतिक चेतना को विशेष महत्व दिया गया है। समसामयिकता की प्रधानता है। 

➽ प्रकृति के सुंदर चित्र भी दर्शनीय हैं। राधा कृष्ण के प्रेम निरूपण में भक्ति एवं रीति कालीन वर्णन परंपरा का उन पर समान रूप से प्रभाव दष्टिगोचर होता है। 

अंबिका दत्त व्यास की परंपरा का अनुगमन करते हुए उन्होंने रहीम के दोहों को विस्तार देते हुए कुंडलिया की रचना की ब्रजभाषा की कविताओं में मधुरता एवं खड़ी बोली की रचनाओं में प्रसाद गुण पर महत्व दिया गया है। 

➽ सन् 1884 ई. में हिंदी एवं नागरी के प्रचार प्रसार हेतु प्रयाग में हिंदी-उद्घारिणी प्रतिनिधि मध्य सभा की स्थापना हुई।

 

बाबू श्याम सुंदर दास, पंडित राम नारायण मिश्र, ठाकुर शिव कुमार सिंह

➽ जैसे उत्साही छात्रों ने संवत् 1950 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की। आदि से अंत तक बाबू श्याम सुंदर दास प्राण स्वरूप स्थित होकर तत्पर रहे। इसके प्रथम सभापति बाबू राधा कृष्ण दास हुए।

➽ इसके सहायकों में रायबहादुर पंडित लक्ष्मी शंकर मिश्र, स्वामी बाबू राम दीन सिंह, बाबू राम कृष्ण वर्मा, बाबू गदाधर सिंह तथा बाबू कार्तिका प्रसाद के नाम प्रमुख हैं। इस सभा का मूल उद्देश्य नागरी अक्षरों का प्रचार तथा हिंदी साहित्य की समद्धि रहा है। 


➽ पंडित रविदत्त शुक्ल 'देवाक्षर चरित्र प्रहसन। 


पंडित गौरी दत्त

 मेरठ निवासी सारस्वत ब्राह्मण अध्यापक थे 40 वर्ष की अवस्था में अपनी संपूर्ण सम्पत्ति नागरी प्रचारिणी  सभा काशी के नाम लिख दी। सन्यासी हो, नागरी प्रचार का झंडा उठा लिया। इनके व्याख्यानों के प्रभाव स्वरूप मेरठ में अनेक देवनागरी स्कूल खुल गए। इनका अविवादन "जय नागरी की" था । 

  कृतित्व- गौरी नागरी कोश'

 

पंडित मदन मोहन मालवीय 

  'अदालती लिपि और प्राइमरी शिक्षा पुस्तक 

  काशी नागरी प्रचारिणी सभा 

  कृतित्व -'सभा की ग्रंथ माला' में कई पुराने कवियों के अच्छे-अच्छे अप्रकाशित ग्रंथों की सूची छपी। 

  कोश- वैज्ञानिक कोश', 'हिंदी शब्दसागर' 

 पत्रिका नागरी प्रचारिणी पत्रिका 

संपादन

  ऐतिहासिक काव्य- 'छत्र प्रकाश सुजान चरित्र, जंगनामा', 'पथ्वीराज रासो', परमाल रासो' आदि।

  ग्रंथावली 'तुलसी' जायसी', 'भूषण', 'देव

  मनोरंजन पुस्तक माला विभिन्न विषयों पर सैकड़ों उपयोगी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

 

भारतेंदु युग के अन्य कवि-

भारतेंदु युग में तत्कालीन विभिन्न परिवेश के प्रति जैसी जागरूकता का आविर्भाव हुआ उसका निर्वाह उस युग के गौण कवियों से नहीं हो सका। उन्होंने भक्ति-भावना एवं भंगार वर्णन को ही अपनी रचना का विषय बनाया- 

 

➽ नवनीत चतुर्वेदी कुब्जा पचीसी' (रीति पद्धति की सरस रचना)

➽ गोविंद गिल्ला भाई अंगार-सरोजिनी', 'पावस पयोनिधि', 'राधा मुख षोडसी' तथा 'षड्ऋतु' (भक्ति एवं प्रेम वर्णन विषयक रचनाएं): 

दिवाकर भट्ट 'नखशिख' एवं 'नवोदारत्न( रीति - पद्धति की रचनाएं)

राम कृष्ण वर्मा 'बलबीर' बलबीर पचासा सूर्यपुराधीश 

➽ राजेश्वरी प्रसाद सिंह 'प्यारे' - 'प्यारे प्रमोद 

➽ गुलाब सिंह प्रेम सतसई' एवं 

➽ राव कृष्ण देव शरण सिंह 'गोप' प्रेम-संदेशा (भंगार रस की कृति) - आदि ।

 

➽ इनके अनेक छंदों में नायक-नायिका की मनोदशाओं का सरस प्रस्तुतीकरण किया गया है। श्रंगार परंपरा के कवियों में बेनी द्विज, हनुमान, ब्रजचन्द्र, वल्लभीय एवं नकछेदी त्रिपाठी आदि भी ऐसे ही कवि हैं। श्रंगार से इतर विषयों पर स्फुट छंद रचना इन सभी कवियों ने की है।

 

➽ भारतेंदु युग पुरातन और नवीन के संधि स्थल पर अवस्थित है जिसके परिणामस्वरूप कवियों में मध्यकालीन वैयक्तिकता के साथ-साथ समाज और राष्ट्र उद्बोधनकारी, लोकमंगलकारी दष्टि अर्थात् समष्टि या सामाजिकता की ओर आकर्षण पैदा हुआ है। विचार-दर्शन में या तो एक प्रकार की उलझन है अथवा समकालीन परिवेश में उन्हें परस्पर विरोधी दष्टिकोण अपनाने हेतु बाध्य कर दिया है। इस युग में (i) प्रवत्ति मूलक प्रेम काव्य, (ii) दास्य भक्ति या माधुर्य भक्ति की रचनाएं, एवं (iii) सुधारवादी जीवन दष्टि वाली रचनाएं तीन काव्य प्रवत्तियां दष्टिगोचर होती हैं।


भारतेन्दु युगीन रचनाकार- भाग 01

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