छायावादी के कवि और उनकी रचनाएँ-भाग 03 Chaya Vaadki Kavi Aur Rachna -03
3. प्रणय
छायावादी के कवि और उनकी रचनाएँ-भाग 03
- इस वर्ग के कवियों का मुख्य विषय प्रणय था जो सूक्ष्म या आंतरिक सौंदर्य कम बाह्य सौंदर्य की के अधिक था। इन कवियों के काव्य को प्रेम और मस्ती का काव्य भी कहा जा सकता है।
- पूरी तरह से छायावाद के अंतर्गत न आने वाले कवियों की अपेक्षा हो जाती यदि प्रणय की कल्पना न की जाए। बालकृष्ण शर्मा 'नवीन, भगवती चरण वर्मा, हरिवंश राय बच्चन, नरेंद्र शर्मा आदि कवि इसी कोटि में आते हैं। इन्हीं के संदर्भ में प्रणय मूलक कविताओं का अध्ययन अपेक्षित है।
- प्रेम और यौवन की प्रखरता तथा आवेश को व्यक्त करने वाली इनकी रचनाओं का प्रकाशन छायावादोत्तर काल में हुआ है किन्तु इनका आरंभिक कृतित्व छायावाद युग में ही प्रकाश में आ चुका था। नवीन की राष्ट्रीय कविताओं के साथ-साथ प्रणय संबंधी रचनाएं भी महत्वपूर्ण हैं।
- आलोचकों का कहना है कि प्रणय एवं यौवन का वर्णन, 'आंसू', 'कामायनी', 'पंत के पल्लव' तथा निराला के तुलसी दास' में मांसल हो गया किन्तु उसका प्रारंभिक रूप ऐसा है कि शीघ्र उसका रूप आध्यात्मिक हो गया है या उसका उदात्तीकरण होकर जन कल्याणकारी हो गया है। इसलिए उसकी मांसलता समाप्त हो जाती है किन्तु इन कवियों की रचनाओं में अंत तक मांसलता विद्यमान रहती है। इसलिए इनकी अलग कोटि बनानी आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है।
- प्रणयवादी इन कवियों की साधना वैयक्तिक है इसका सामाजिक रूप नहीं बन पाया है। जबकि छायावादी व्यक्ति चेतना शरीर से उठकर मन और पुनः आत्मा का स्पर्श करने लगती है। प्रणयवादी कवियों की वैयक्तिक चेतना प्रधान रूप से शरीर और मन के धरातल पर ही व्यक्त होती रही है। इन्होंने प्रणय को ही अपना साध्य बना लिया है। प्रणय का यह काव्य या तो यथार्थ से विमुख होकर प्रणय में तल्लीन दष्टिगोचर होता है या फिर जीवन की व्यापकता को प्रणय की सीमाओं में ही खींच लाता है।
"हो जाने दे गर्क नशे में मत पड़ने दे फर्क नशे में
ज्ञान ध्यान पूजा पोथी के फट जाने दे वर्क नशे में
ऐसी पिला कि विश्व हो उठे एक बार तो मतवाला
साकी अब कैसा विलंब भर भर ला तंमयता लाक्ष्मा । "
- प्रणय काव्य में जीवन के विषय में किसी व्यापक परिकल्पना या सिद्धांत का अभाव है। मात्र प्रणय में तल्लीन होने की कामना है- "वह मादकता ही क्या जिसमें बाकी रह जाए जग का भय ।" प्रणय का यह रूप छायावादी उदात्त प्रेम भावना और अर्वाचीन नई कविता की यौन भावना के मध्य की कड़ी है। छायावादी कवियों ने भी नैतिकता के बोझ से आक्रांत प्रणय को मुक्त करने का प्रयास किया किंतु वे उसे पूरी तरह मुक्त न कर सके उनकी प्रणय भावना आध्यात्मिकता से संपक्त हो गई। प्रणय के साथ-साथ मादकता, शराब, साकी, मैखाना ही नहीं आए अपितु बच्चन की मधुशाला' सजकर आ गई।
बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ
बालकृष्ण शर्मा नवीन व्यक्तित्व
- बालकृष्ण शर्मा नवीन (सन् 1897-1960 ई.) का जन्म ग्राम भयाना जनपद ग्वालियर में हुआ था। इनकी पढ़ाई ग्यारह वर्ष की अवस्था में शुरू हुई। सन् 1917 ई. में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर कानपुर चले गए। जहां गणेश-शंकर ने इन्हें कॉलेज में प्रविष्ट करा दिया। किंतु सन् 1920 ई. में गांधी के आह्वान पर कॉलेज का अध्ययन त्याग कर राजनीति के सक्रिय कार्यकर्ता बन गए। अपने लंबे राजनीतिक जीवनकाल में अनेक बार जेल का सफर करना पड़ा। देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् पहले लोक सभा फिर राज्य सभा के सदस्य हो गए।
बालकृष्ण शर्मा नवीन कृतित्वः
- पत्रिकाएं- प्रभा प्रताप का संपादन।
- कविता संग्रह 'कुंकुम
- काव्य- 'उर्मिला', 'अपलक', 'रश्मिरेखा', 'क्वासि', 'विनोबा स्तवन' तथा 'हम विषपायी जनम के
बालकृष्ण शर्मा नवीन साहित्यिक विशेषताएं-
- उर्मिला' में नवीन ने उर्मिला के चरित्र के माध्यम से भारतवर्ष की प्राचीन आर्य संस्कृति के उज्जवल रूप को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। कथानक को अपने परिवेश के यथार्थ से भारतीय संस्कृति और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के संघर्ष से संबद्ध करने के लिए नवीन ने कुछ प्रसंगों की अत्यंत कौशल पूर्वक संयोजना की है। नवीन की रचनाओं में प्रणय और राष्ट्रप्रेम दोनों भावों की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है। प्रणय संबंधी रचनाओं में छायावादी प्रणय के समान स्वच्छंदता तथा प्रेम और मस्ती के काव्य जैसी मार्मिकता दष्टिगोचर होती है। इस रूप में नवीन को परवर्ती प्रेम और मस्ती के काव्य के अग्रदूत के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
- इनकी राष्ट्रीय सांस्कृतिक कविताओं में अनुभूतियों का सीधा संबंध इनके जीवन के साथ है। देश की स्वतंत्रता तथा समाज की नवीन संरचना हेतु इन्होंने जो प्रबल साधना की थी वही साधना निश्छल और सहज शक्ति के साथ इनकी राष्ट्रीय रचनाओं में भी दष्टिगोचर होती है। कविता का विषय अतीत की महिमा का गौरवगान, तत्कालीन भारतीय समाज की रुग्णावस्था के प्रति व्यथा एवं आक्रोश, भविष्य को अवतरित करने की कामना आदि है। कहीं तो नवीन अपना फक्कडपन दिखाते और मस्ती की अभिव्यक्ति करते हैं, कहीं नशे में गर्क हो जाना चाहते हैं।
यथा
"हम अनिकेतन, हम अनिकेतन,
हम तो रमते राम हमारा क्या घर
क्या दर, कैसा वेतन?"
"हो जाने दो ग़र्क नशे में मत पड़ने दो फ़र्क नशे में।"
- जिस ललक और उत्साह के साथ कर्म और साधना की ओर अग्रसर होते हैं उसी आवेश और आसक्ति के साथ प्रणय में डूब जाना चाहते हैं। फलस्वरूप पहली अवस्था का संघर्ष और तनाव और दूसरी स्थिति की मदहोशी दोनों कार्य कारण भाव से संबद्ध होकर परस्पर पूरक से प्रतीत होते हैं।
भगवती चरण वर्मा का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ
भगवती चरण वर्मा का व्यक्तित्व
- भगवती चरण वर्मा का जन्म सन् 1903 ई. में हुआ। इनकी कविताएं सन् 1917 से प्रताप' में प्रकाशित होने लगीं थी। स्पष्ट हो जाता है कि चौदह वर्ष की आयु से ही काव्य सजन प्रारंभ कर दिया था।
साहित्यिक विशेषताएं- इनकी अनुभूति दो रूपों में अभिव्यक्त हुई है-
(i) जहां ये अपनी मस्ती एवं फक्कड़पने में अपने विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं
"हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहां कल कहां चले।"
ऐसी अनुभूतियां इन्हें नवीन के साथ खड़ा कर देती हैं। किन्तु ऐसी रचनाएं परिमाण में बहुत कम हैं।
(ii) मुख्य रूप से इन्होंने समाज की विषमताओं से पराजित और संघर्ष से विरत एकाकी व्यक्ति की अनुभूतियों को ही अभिव्यक्ति प्रदान की है।
- इस प्रकार की रचनाओं में जो बेबसी और कर्म की विमुखता लक्षित होती है वह स्पष्ट ही महान काव्य की रचना में सहायक नहीं हो सकती छायावादी कवियों में भी इस प्रकार के उद्गार मिलते हैं जहां कवि यथार्थ के विषम संघर्ष से विमुख होकर कहीं दूर चला जाना चाहता है। वर्मा की भाषा शैली सरल और स्पष्ट है। छायावादी शैली की तरह तत्सम शब्दों की प्रधानता, सूक्ष्मता या वक्रता के दर्शन नहीं होते हैं। खड़ी बोली कविता के एक नए मोड़ की सूचना देती है।
हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ
हरिवंश राय बच्चन व्यक्तित्व-
- हरिवंश राय बच्चन (सन् 1907-2003 ई.) का आरंभिक जीवन कष्टों एवं अभावों में बीता। एम.ए. तक की शिक्षा इलाहाबाद से प्राप्त करके पी.एच.डी. हेतु लंदन चले गए। उससे पूर्व पहली पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। दूसरी पत्नी तेजी से विवाह किया। लंदन से वापस आकर विदेश मंत्रालय में सेवारत हो गए।
- दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर महाविद्यालयों की हिंदी की सभाओं, गोष्ठियों एवं कवि सम्मेलनों में खूब जाते थे। जहां मधुशाला' सुनाए बिना छुट्टी नहीं पाते थे। सेवा मुक्त होकर पुत्र अमिताभ बच्चन के साथ मुंबई में रहने लगे वहीं देहावसान हो गया।
- असहयोग आंदोलन में सम्मिलित होने के कारण कई बार जेल गए। जिसके परिणामस्वरूप इनकी कविता पूर्णरूपेण जीवन से मुंह नहीं मोड़ सकी। जहां ये 'मधुशाला' में पूरी तरह गर्क दष्टिगोचर होते हैं वहां भी इन्हें यह भान रहा है कि मधुशाला धार्मिक – साम्प्रदायिक अंतराल का निवारण कर अनुभूति के धरातल चाहे वह अनुभूति कर्महीन मस्ती की की क्यों न हो - एकता की स्थापना करती है -
"भेद कराते मन्दिर मस्जिद,
मेल कराती मधुशाला।"
- कृतित्व- 'मधुशाला', 'मधुबाला', 'मधु कलश' ।
हरिवंश राय बच्चन साहित्यिक विशेषताएं-
- इनके काव्य संग्रहों में उमर खैयाम की रुबाइयों का प्रभाव परिलक्षित होता है। किंतु मधुशाला में डूबा हुआ कवि सामाजिक विषमता से अनजान नहीं है। इसमें एक ओर तो उद्दाम यौवन की लालसा को स्वीकारा है दूसरी ओर उसी स्तर पर सामाजिक संवेदना को भी मुखर करने का सफल प्रयास किया है।
- परिणामस्वरूप कवि ठोस यथार्थ को पूर्ण रूपेण ग्रहण करने में सफल नहीं हो सका। जीवन की विषमताओं को सामान्य अनुभूति के स्तर पर समाधानित करने का यत्न उसके द्वारा अवश्य किया गया। भाषा की दृष्टि से बच्चन का महत्वपूर्ण योगदान है। उनके काव्य में सीधी और स्पष्ट अभिव्यक्ति का स्वरूप मिलता है। कह सकते हैं सरलता एवं स्पष्टता का जो रूप भगवती चरण वर्मा की भाषा का है उसी का विकसित रूप बच्चन की भाषा का है।
नरेंद्र नाथ शर्मा जीवन एवं रचनाएँ
- नरेंद्र नाथ शर्मा का जन्म सन् 1913 ई. में हुआ।
- कृतित्व- 'प्रभात फेरी', 'प्रवासी गीत' तथा 'पलाशवन
नरेंद्र नाथ शर्मा साहित्यिक विशेषताएं-
- प्रणयी शर्मा को प्रेम और मस्ती ने प्रभावित तो किया किंतु संयम और निष्ठा ने उन्हें प्रणय के उच्छवास में लड़खड़ाने नहीं दिया क्योंकि उन्होंने देश के राजनीतिक जीवन में अत्यंत दढ़ता एवं सक्रियता से भाग लिया तथा वे प्रणय को अधिक सहजता के साथ खुलकर व्यक्त कर सके। इनके कविता संकलन भाव प्रधान हैं जिनमें प्रणय के संयोग-वियोग मूलक प्रसंगों का सरल एवं प्रवाहमयी भाषा में चित्रांकन हुआ है।