भारतेन्दु युग : नामकरण एवं काल सीमांकन
भारतेन्दु युग : नामकरण एवं काल सीमांकन
➽ आधुनिक
काल के हिंदी साहित्य का अंतर्विभाजन प्रायः सभी विद्वानों ने एक जैसा किया है
किन्तु नामकरण एवं सीमा निर्धारण के विषय में मतैक्य नहीं है। विशिष्ट काल में
विशेष साहित्यकार के प्रमुख योगदान को देखते हुए भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाम पर
उनके युग को भारतेन्दु कहा गया है।
भारतेन्दु युग का नामकरण
➽ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आधुनिक काल का अंतर्विभाजन साहित्यिक विधा गद्य-पद्य के आधार पर मुख्य रूप से गद्य और काव्य रचना (पद्य) दो भागों में विभक्त किया है। पुनः इन दोनों उप विभागों के चार-चार प्रकरण किए हैं। प्रकरणों का पुनर्विभाजन उत्थानों में किया गया है।
➽ भारतेन्दु युग से गद्य के प्रकरण 2 के प्रथम उत्थान तथा काव्य रचना के प्रकरण 2 के नई धारा (प्रथम उत्थान) को अभिहित
किया है। आचार्य शुक्ल ने भारतेन्दु के महत्व को गद्य-पद्य दोनों में बराबर रूप से
स्वीकारा है।
डॉ. नगेन्द्र को युग विशेष को व्यक्तिगत नाम देना रूचिकर नहीं लगा इसलिए उन्होंने लिखा है-
"शुक्ल जी के परवर्ती इतिहासकारों ने
प्रायः शुक्ल जी का अनुगमन किया। कुछ लोगों ने आधुनिक काल के विकास के प्रथम दो
चरणों को भारतेंदु युग और द्विवेदी युग कहना अधिक संगत समझा। किंतु, इन नामों की ग्राहयता को संदेह की दृष्टि
से देखा जाता है!"
अंतिम वाक्य को संदर्भित करते हुए पाद टिप्पणी में लिखा है -
➽ भारतेंदु-युग और द्विवेदी युग की परिकल्पना कर लेने पर युगों की बाढ़ आ गई। भारतीय हिंदी - परिषद्, प्रयाग से प्रकाशित 'हिंदी साहित्य' (ततीय खंड) में उपन्यासों के संदर्भ में प्रेमचन्द युग और नाटकों के संदर्भ में प्रसाद युग की कल्पना की गई है। पता नहीं, समीक्षा के संदर्भ में शुक्ल युग क्यों नहीं लिखा गया? जितने संदर्भ उतने युग!"
➽ डॉ. नगेंद्र भारतेंदु या द्विवेदी पर नाक-भौं चढ़ाते हैं तथा कहते हैं कि शुक्ल युग कहना औचित्यपूर्ण नहीं है। क्यों नहीं है क्या नई दिल्ली में दिवंगत प्रधानमंत्रियों के नाम पर स्थलों की क्या बाढ़ नहीं आ गई है? आधुनिक काल में विश्वविद्यालय का नाम स्थल के आधार न रखकर व्यक्ति विशेष के नाम पर नामकरण करने से कौन भी बाढ़ आ गई है? यथा, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय, राजर्षि टंडन मुक्त विद्यालय, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय आदि। नगरों, सड़कों के नाम भी व्यक्तिगत रखे जाते हैं और वर्तमान में भी वही स्थिति है।
➽ डॉ.
नगेन्द्र इस युग को पुनर्जागरण काल (भारतेंदु काल) कहना श्रेयस्कर समझते हैं। नाम
की कोई समस्या नहीं युग विशेष को कोई भी नाम दिया जा सकता है।
भारतेन्दु युग काल सीमांकन
नाम
से अधिक इतिहासकारों ने काल सीमा में मतभेद स्थापित किए हैं।
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1850-1885) के रचना काल को दृष्टिगत रखते संवत 1925-1950 विक्रमी की अवधि नई धारा अथवा प्रथम उत्थान की संज्ञा दी है तथा इस काल को हरिश्चन्द्र तथा उनके सहयोगी लेखकों के कृतित्व से समद्ध माना है। किंतु शुक्ल जी द्वारा निर्धारित कालावधि से कुछ अन्य इतिहासकारों का वैमत्य है।
- मिश्रबंधु संवत् 1926 1945 वि. तक।
- डॉ. राम कुमार वर्मा संवत 1927 1957 वि तक ।
- डॉ. केशरी नारायण शुक्ल संवत् 1922 1957 वि तक ।
- डॉ. नाम विलास शर्मा संवत 1925 1957 वि. तक ।
- डॉ. नगेन्द्र सन् 1868 ( 1925 वि.) - 1900 ई. तक ।
➽ इतिहासकारों ने भारतेन्द्र युग का प्रारंभ संवत 1922-1927 वि. तक माना है। समाप्ति संवत 1945-1957 वि तक माना है।