छायावादी काव्य की विशेषताएँ प्रवत्तियाँ (Chyavaad ki Visheshta )
छायावादी काव्य की प्रमुख प्रवत्तियाँ Chyavaad ki Visheshta
- हिंदी साहित्य की आधुनिक धाराओं में छायावाद एक प्रमुख धारा है। इस काव्यधारा में अनेक महान कवियों का महत्वपूर्ण योगदान है। छायावाद साहित्य के कला और भाव क्षेत्र में एक अनूठे आन्दोलन के रूप में सामने आया है। इसमें आधुनिक औद्योगिकता से प्रेरित अनूठा व्यक्तिवाद दिखाई देता है। इस काव्यधारा में जीवन दर्शन और सामाजिक सांस्कृतिक परिस्थितियों का सुंदर आंकलन (विवेचन) किया गया है। यह काव्यधारा स्वच्छन्दतावादी काव्यधारा से कुछ न कुछ प्रभावित अवश्य है। इस पर अंग्रेजी साहित्य का भी कुछ न कुछ प्रभाव दिखाई देता है। छाया शब्द विशेष संदर्भ से लिया गया है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार बंगला साहित्य में छाया शब्द प्रयुक्त नहीं हुआ।
जयशंकर प्रसाद के मन्तव्य से छाया और छायावाद का अर्थ स्पष्ट होता है-
"मोती के भीतर छाया जैसी तरलता होती है वैसी ही कान्ति की तरलता अंग में लावण्य कही जाती है.......
छाया भारतीय दृष्टि से अनुभूति व अभिव्यक्ति की भंगिमा पर निर्भर करती है। ....... अपने भीतर से पानी की तरह अन्तः स्पर्श करके भाव समर्पण करने वाली अभिव्यक्ति छाया कान्तिमय होती है।"
छायावाद की परिभाषा-
विभिन्न विद्वानों ने इस प्रमुख काव्यधारा को विभिन्न दष्टिकोणों से परिभाषित किया है। जिसमें कुछ इस प्रकार हैं-
1- प्रसिद्ध समालोचक
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार- प्रस्तुत के स्थान पर उसकी व्यंजना करने वाली
छाया के रूप में अप्रस्तुत का कथन ।"
2. डॉ. रामकुमार वर्मा ने रहस्य के संदर्भ से कहा है "परमात्मा की छाया आत्मा पर पड़ने लगती है और आत्मा की छाया परमात्मा में, यही छायावाद है।
3- डॉ. नगेन्द्र के अनुसार- स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह बताते हुए कहा गया है "छायावाद एक विशेष प्रकार की भाव पद्धति है। जीवन के प्रति एक विशेष भाव दष्टिकोण है।"
4. महान कवयित्री महादेवी वर्मा ने "छायावाद को आत्माभिव्यक्ति के लिए मनुष्य के हृदय की अकुलाहट का परिणाम माना है।"
इन विभिन्न परिभाषाओं को दष्टिगत कर यह कह सकते हैं कि छायावाद द्विवेदी युग की इतिवत्तात्मक कविता की प्रतिक्रिया है। जिसमें मानवीकरण की प्रधानता के साथ प्रकृति में चेतना का आरोप किया गया है और परमात्मा के प्रति प्रकृति के माध्यम से प्रणय भाव प्रकट किया गया है।
क्या छायावाद हिन्दी साहित्य में विभिन्न वादों में सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक वाद है ?
छायावादी काव्य की विशेषता
छायावादी काव्य अपनी विशेषताओं के कारण साहित्य में विशिष्ट महत्वपूर्ण स्थान बना चुका है। कुछ महत्वपूर्ण रेखांकन योग्य विशेषताएं इस प्रकार हैं
1. प्रकृति चित्रण
छायावादी काव्य में प्रकृति के सर्वाधिक आकर्षक लौकिक तथा
अलौकिक रूपों का चित्रण किया गया है। इस धारा के समस्त कवि प्रकृति के पुजारी हैं।
पंत, प्रसाद, निराला, दिनकर आदि ने
प्रकृति को परम रूपसी नारी के रूप में चित्रित किया है।
"पगली हाँ सम्भाल ले कैसे छूट पड़ा तेरा आँचल
देख बिखरती है मणिराणी अरी उठा बेसुध चंचल।"
प्रातः और सान्ध्यकालीन दश्यों का चित्रण इन कवियों की लेखनी से अत्यन्त अनूठे रूप में हुआ है। संध्या सुंदरी का अनूठा चित्रण निराला के शब्दों में-
"दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है
वह सन्ध्या सुन्दरी परी सी
- इस काव्यधारा के कवियों के प्रकृति चित्रण में कहीं भी वासनात्मक और ऐन्द्रिक चित्रण नहीं है। विषाद और दुख में भी आदर्श चित्रण दष्टिगोचर होता है। छायावादी काव्य का प्रत्येक चित्र विस्मय कार्य है। प्रकृति का रहस्यात्मक रूप मन को बांध लेने वाला होता है।
2. व्यक्तिवाद की प्रधानता
- द्विवेदी युगीन इतिवत्तात्मक विचारधारा के कारण छायावाद में व्यक्तिवादी भाव उभर आया है। इस काव्यधारा में जहाँ आध्यात्मिक पक्ष सामने आया है वहीं व्यक्तिवादी भाव भी उभरा है। हिन्दी कविता जाति विशेष के सुख दुख तक ही सीमित न रहकर समस्त मानव के सुख दुख की कहानी बन गई है। इस काव्यधारा का कवि विभिन्न समस्याओं और बाधाओं के समाधान को बाह्य जगत में न खोजकर मानव मन में खोजता है। यही कारण है कि छायावाद में वैयक्तिक सुख दुख की अभिव्यक्ति खुलकर हुई है।
- जयशंकर प्रसाद की 'आँसू और पंत की 'उच्छवास कविता में व्यक्तिवादी अभिव्यक्ति को अत्यंत आकर्षक रूप मिला है। छायावादी काव्य में यह व्यक्तिवाद 'मैं' के रूप में उभरकर सामने आया है। यह 'मैं' प्रतीकात्मक रूप है जिसमें लाक्षणिक भाषा और अप्रस्तुत योजना अपनायी गयी है। भावात्मक केन्द्र होने के बाद भी इसमें प्रेषणीयता और अभिव्यक्ति प्रबल होती है।
"मैंने 'मैं' शैली अपनायी देखा एक दुखी निज भाई
दुख की छाया पड़ी हृदय में, झट उमड़ वेदना आयी ।।"
- इस प्रकार कह सकते हैं कि छायावादी काव्य में व्यक्तिगत सुख-दुख की अपेक्षा मानव सुख-दुख की अनुभूति और अभिव्यक्ति को महत्व दिया गया है।
3. रहस्यानुभूति और देश प्रेम
- छायावादी काव्य में रहस्यात्मक भावना का प्रबल रूप है। इसमें राष्ट्रीय जागरण के साथ रहस्यात्मक भाव का विलक्षण योग दिखाई देता है। इसी राष्ट्रीय जागरण भाव ने छायावाद को असामाजिक पदों पर भटकने से बचा लिया है। छायावादी कवि अलौकिक आन्तरिक भावों की अभिव्यक्ति में युगीन सन्दर्भों को देखता चलता है। यह छायावादी काव्य की आदर्श प्रवत्ति है। प्रसाद देश और युग पर दष्टि रखकर ही कहते हैं-
"अरुण यह मधुमय
देश हमारा।"
माखनलाल चतुर्वेदी पुष्प की अभिलाषा' के संदर्भ से राष्ट्रीय भाव दर्शाते हुए अनूठी भावना सामने रखते हैं -
"मुझे तोड़ लेना वन माली,
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक।"
- इस प्रकार छायावादी काव्य में देशकाल को ध्यान में रखकर प्रबल राष्ट्रीय भाव को अभिव्यक्ति दी गई है।
4. नारी भावना
छायावादी कवियों ने युग-युग से कारा में बन्द नारी को मुक्त करने और समाज में महत्व दिलाने के लिए उद्घोष किया है। उनकी लेखनी से नारी को श्रद्धा पात्र कहा गया है। नारी को सर्वाधिक आदर छायावादी काव्य में मिला है। प्रसाद ने 'कामायनी' में नारी को महत्व देते हुए लिखा है।
“नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पगतल में
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।"
- उक्त काव्य में नारी चित्रण अपेक्षाकृत अधिक सूक्ष्म और शील है। इसमें नग्नता और अश्लीलता को स्थान नहीं मिला।
प्रसाद ने श्रद्धा के सौन्दर्य का अनूठा रूप प्रस्तुत किया है
“नील परिधान बीच सुकुमार
खुल रहा मदुल अधखुला अंग
खिला हो ज्यों बिजली का फूल
मेघवन बीच गुलाबी रंग।"
- नारी सौंदर्य के चित्रण में उसकी अनूठी लेखनी बहुरंगी रंग भरती हुई सामने आती है। नारी जीवन प्रणय गाथा आशा, निराशा से आप्लावित दिखाई देता है। मिलन और विरह की अनुभूतियाँ अत्यन्त प्रभावशाली बन पड़ी हैं। नारी स्वयं को ही नहीं पुरुष को भी समरसता के मार्ग तक पहुँचाती है।
"तुम भूल गये पुरुषत्व मोह में कुछ सत्ता है नारी की
समरसता है सम्बन्ध बनी, अधिकार और
अधिकारी की। "
5. मानवतावाद
- छायावाद भारतीय सर्वात्मवाद और अद्वैतवाद से प्रभावित हुआ है। इतना ही नहीं भारतीय दार्शनिकों के दर्शन से भी प्रभावित हुआ है। इसमें भावनाओं की संकीर्णता नहीं वरन् विस्तृत रूप पाकर विश्व मानवतावाद स्थापित हुआ है। उक्त काव्य में नारी के अंग प्रत्यंगों का वर्णन न होकर उसके मानसिक सौन्दर्य का अनूठा रूप प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार छायावादी काव्य में का आदर्श रसात्मक रूप है। जिसमें विलासिता नहीं सात्वि छायावादी युगीन अबला को मुक्त कर मानवतावाद लाना चाहता है।
"खोलो हे मेखला युगों की, कटि प्रदेश से तन से
अमर प्रेम हो उसका बन्धन, वह पवित्र हो मन से।"
या
"शक्ति के विद्युतकण जो व्यस्त, विकल बिखरे हैं निरूपाय ।
समन्वय उनका करे समस्त विजयिनी मानवता हो जाये ।।"
{ मानव तुम सबसे
सुन्दरतम्)
इस धारा की कविता में जाति, धर्म प्रदेश और देश की सीमाएं नहीं हैं। वरन् विश्व के समस्त मानव की उन्नति का स्वर है।
प्रसाद ने 'कामायनी' में वह मानवतावाद
स्थापित करने के लिए कहा है-
"औरों को हँसते देखे मनु हंसो और सुख पाओ
अपने सुख को विस्तत कर दो, जीवन सुखी बनाओ।”
6. आदर्शवाद
- छायावाद में बाह्य सौन्दर्य के साथ आन्तरिक सौन्दर्य का प्रबल रूप मिलता है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि छायावादी कवियों की आदर्शवादी शैली अन्तर्मुखी प्रवृत्ति के आधार पर विकसित हुई है। यथार्थ के साथ आदर्श तथ्यों के चित्रण में कल्पनात्मक दृष्टिकोण अत्यंत अनूठा बन पड़ा है। आदर्श विचार अथवा कल्पना के कारण छायावादी कविता भाव और कला दोनों ही पक्षों में अनुकरणात्मक विशेषता प्राप्त कर सकती है।
"नरवत की आशा किरण समान, हृदय के कोमल कवि की कान्त
कल्पना की लघु लहरी दिव्य कर रही मानस हलचल शान्त "
7. वेदना का चरित्र
छायावादी काव्य में वेदना का प्रभावी चित्रण मिलता है।
“वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान।
उमड़कर आँखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान ।। "
इस प्रकार आदर्श तथ्यों के समावेश से छायावाद के लौकिक
धरातल पर अनुकरणीय और प्रेरक भाव पक्ष का अनुपमेय उदय हुआ है।
छायावाद में उपर्युक्त विशेषताओं के अतिरिक्त गेयता, चित्रात्मकता, बिम्ब विधान और
प्रतीक योजना और वेदना चित्रण आदि के सन्दर्भों से अपने अनूठे भावात्मक और कलात्मक
पक्षों को महत्वपूर्ण रूप में सामने प्रस्तुत करता है। निश्चय ही छायावाद हिन्दी
साहित्य में विभिन्न वादों में सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक वाद है।