आधुनिक हिंदी साहित्येतिहास: साहित्यिक पष्ठभूमि
➽ साहित्य पर युग को बनाने वाले सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक-सांस्कृतिक आदि सभी परिवेशों का प्रभाव पड़ता है। इन परिवेशों के अलावा साहित्यिक पष्ठभूमि तथा अन्य साहित्यों का प्रभाव भी महत्वपूर्ण होता है। आधुनिक काल की पष्ठभूमि में हिन्दी साहित्य का श्रंगार काल हैं। श्रंगार काल में साहित्य का विकास राजदरबारों में हुआ।
➽ रीतिकालीन कवि आश्रय दाता के आश्रय में रहते थे। क्योंकि उन्हें अपने भरण-पोषण के लिए उच्च वर्ग के लोगों का आश्रय खोजना पड़ता था। भंगार काल का साहित्य मध्यकालीन दरबारी संस्कृति का प्रतीक है। राज्याश्रय में पले श्रंगारी काव्य में रीति और अलंकार का प्राधान्य दष्टिगोचर होता है। जो कवि दरबारी संस्कृति से दूर रहे उनमें प्रेम की पुकार का स्वरूप रीति से मुक्त है। लेकिन बहुमत आचार्यों का ही है जो रीति निरूपण को लक्ष्य बनाकर चला।
श्रंगार कालीन काव्य की प्रमुख प्रवत्तियां निम्नलिखित थीं
- श्रगार रस की प्रधानता।
- अलंकार की प्रधानता।
- रीति की प्रधानता।
- मुक्तक शैली की प्रधानता ।
- ब्रजभाषा की प्रधानता।
- लक्षण ग्रन्थों की प्रधानता।
- नारी के प्रेम स्वरूप की प्रधानता।
- प्रकृति के उद्दीपक रूप की प्रधानता
- वीर रस काव्य ।
➽ नवीन परिवेश के परिणामस्वरूप साहित्य को भी संकट का सामना करना पड़ा क्योंकि आश्रयदाता केन्द्र अति शीघ्रता से छिन्न भिन्न होने लगे।
➽ सामान्यतः रीति कालीन साहित्य भाव, भाषा एवं शैली की दृष्टि से रूढिबद्ध था। बंधी-बंधाई रीति पर काव्य सजन होता था इसीलिए श्रंगार काल के आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने रीति काल नामकरण करना उचित समझा। काल का उपविभाजन भी इसी आधार पर रीतिबद्ध, रीतिमुक्त और रीतिसिद्ध रूपों में हुआ।
➽ रीतिबद्ध जो लक्षण लिखने के बाद उदाहरण स्वरूप काव्य सजन करते थे, रीति मुक्त- जो रीति का पालन न करके स्वच्छंद रूप से काव्य सजन करते थे। इन कवियों के काव्य में प्रेम की पीड़' का प्राधान्य है। कुछ वीर रस का काव्य भी लिखा गया। रीति सिद्ध – इन्हें लक्षण का पूरा ज्ञान था। लक्षण सामने रखकर काव्य करते थे किंतु लक्षण लिखकर रीतिबद्ध जैसे उदाहरण स्वरूप नहीं अपितु लक्षणों के आधार पर ही स्वतन्त्र रूप से काव्य रचना करना इनका उद्देश्य था।
➽ रीति कालीन काव्य परंपरा आधुनिक परिवेश के अनुकूल अपना समायोग स्थापित कर पाने में असमर्थ थी जिसके परिणामस्वरूप साहित्य ने स्वयं को युगीन परिवेश के अनुकूल नवीन प्रारूप में जन्म देकर महत्वपूर्ण क्रांति प्रस्तुत की। ऐसे कवियों में भारतेन्दु का नाम विशेष उल्लेखनीय है जिन्होंने रीति कालीन परंपराओं की रक्षा करते हुए भी साहित्य क्षेत्र में नवीन दिशाओं का आविष्कार किया।
➽ ब्रजभाषा गद्य के साथ-साथ काव्य में खड़ी बोली गद्य के प्रयोग का प्रारंभ हुआ। पद्य के साथ गद्य भी चल पड़ा जिसने चम्पू काव्य को जन्म दिया। इसके पश्चात् गद्य की अन्य विधाएं उपन्यास, कहानी, नाटक, एकांकी, निबंध एवं आलोचना प्रमुख गद्य-विधाओं के साथ-साथ आधुनिक अन्य अनेक विधाओं में साहित्य सजन होने लगा। पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होने लगीं। छापे खाने खुलने लगे। पत्र-पत्रिकाएं इसी युग की देन हैं।
➽ भारतेंदु युग में हिंदी का प्रचार-प्रसार हुआ। द्विवेदी युग में भाषा का संस्कार एवं परिमार्जन हुआ जिसके परिणामस्वरूप 'छायावाद' हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल का स्वर्ण युग' कहलाया। इस युग में विशुद्ध खड़ी बोली अर्थात् हिन्दी को साहित्य भाषा का माध्यम बनाया गया। छायावादोत्तर युग में पाश्चात्य साहित्य का प्रभाव बढ़ने के परिणामस्वरूप साहित्य जगत में काव्यांदोलन चल पड़े जो प्रयोगवाद, प्रगतिवाद, नई कविता के रूप में निखर कर सामने आए। नवलेखन, गद्य गीत, अकविता, क्षणिकाएं, लघु कथा, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, यात्रा वत्तांत, आत्मकथा, रेडियो रूपक, डायरी, पत्रात्मक शैली आदि अनेक रूपों में साहित्याभिव्यक्ति होने लगी। साहित्य धारा गद्य-पद्य दोनों रूपों में समानांतर रूप से प्रवाहित होने लगी।
➽ वर्तमान समय तक आते-आते आधुनिक हिंदी साहित्य ने विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय, आंचलिक, अंतर्राष्ट्रीय तथा अनेक प्रकार की वाद ग्रस्त प्रवत्तियों से प्रभावित हो, विकास की ओर बढ़ता हुआ पल्लवित, पुष्पित एवं फलित होकर विशाल साहित्य - कानन भंडार खड़ा कर दिया है। विभिन्न प्रवत्तियों एवं परिवेशों में आकर उनसे प्रभावित होकर साहित्य ने अपनी गति, दिशा में ही परिवर्तन नहीं किया है अपितु स्वरूप परिवर्तन के साथ-साथ मूल्यों में भी परिवर्तन किया है। आयाम बदल रहा है। यह स्वस्थ परंपरा का परिचायक होते हुए नवीनता का प्रतीक है।