आधुनिक हिंदी साहित्येतिहास के अध्ययन की: सामाजिक परिवेश
आधुनिक हिंदी साहित्य-सामाजिक परिवेश
➽ देश सामाजिक क्षेत्र में लगभग पुनर्नवा रूप धारण करने हेतु प्रयत्नशील था। समाज में व्याप्त पाखंड, आडंबर एवं अंधविश्वासों को सुधारवादी नेता समाप्त करने के प्रति सजग हो गए थे। पुरातनवादी इसका विरोध कर रहे थे। ब्रह्म समाज, आर्य समाज जैसी संस्थाओं का बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब, गुजरात आदि में विरोध किया गया। किंतु पुनर्जागरण की चेतना तीव्रता के सम्मुख छोटे छोटे विरोध धराशायी होते गए। देश ने सामाजिक क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति की। हरिजनोद्धार, स्त्री शिक्षा, विधवा-विवाह आदि अनेक सामाजिक सुधार हुए। स्त्री शोषण, दहेज प्रथा का विरोध हुआ। जाति-प्रथा की कट्टरता में ढिलाई, अंतर्जातीय विवाह आदि अनेक सामाजिक सुधार किए गए। शिक्षा का व्यापक प्रसार किया। निरक्षरता का साक्षरता में परिवर्तन हुआ। पश्चिमी सभ्यता, उच्च शिक्षा एवं भौतिकतावादी दष्टिकोण ने समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं।
➽ भारत में अंग्रेजी शासन एक महत्वपूर्ण घटना है। भारत के सामाजिक जीवन में आधुनिक काल में जो चेतना आई उसका मुख्य कारण भारतीय स्वतन्त्रता एवं आंग्ल- भारतीय संपर्क है। सामाजिक क्षेत्र की परंपराओं एवं रूढ़ियों पर आंग्ल संपर्क ने आघात किया और भारतीय दष्टिकोण में व्यापकता आई। अंग्रेजी-शिक्षा का प्रभाव भारतीय दष्टिकोण में परिवर्तन करने में सहायक हुआ है। नैतिकता का_ह्रास हुआ है। मध्यकालीन हिंदू धर्म की कट्टरता शनैः शनैः दूर होने लगी है। वैसे ही मुगलों के पतन के साथ ही हिंदू धर्म की स्थिति दढ़ एवं सुरक्षित हो रही थी। ऐसे समय में आर्य समाज की स्थापना करने वाले स्वामी दयानंद सरस्वती का आगमन हुआ उन्होंने हिन्दू धर्म की अनुदारता एवं कट्टरपन को दूर करने के लिए बहुत बड़ी क्रांति उपस्थित की आर्य समाज के आंदोलन ने हिंदू समाज को जागत किया। अन्यथा हिंदू समाज बहुत पिछड़ जाता और निश्चय ही दुर्बल हो जाता। पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण विदेशी सरकार की कृपा प्राप्त करने हेतु ईसाई धर्म को मानने से आर्य समाज ने भारतीयों को बचाया। आर्य समाज ईसाई धर्म आंदोलन के विरुद्ध प्रतिक्रिया स्वरूप आया। पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति का प्रभाव पश्चिमी बंगाल से होता हुआ संपूर्ण देश के जीवन को आच्छादित कर रहा था। अंग्रेजी शिक्षा इस विकास में विशेष सहयोगी सिद्ध हो रही थी। प्राचीन वैदिक प्रेरणा लेकर स्वामी दयानंद ने सामाजिक क्षेत्र में अपूर्व क्रांति की। सामाजिक रूढ़ियों का तिरस्कार करने के परिणामस्वरूप सामाजिक जीवन का मूल्य बदल गया। हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के प्रथम उत्थान अर्थात् भारतेन्तु युग या पुनर्जागरण काल में सामाजिक द्वन्द्व का स्वरूप व्यक्त हुआ। एक ओर विधवा विवाह के पक्षपाती थे तो दूसरी ओर इसे 'अनहोनी' कहने वाले भी वर्तमान थे। इसी प्रकार एक ओर जाति-पांति के विरोधी थे दूसरी ओर इसे जगत विदित फुलवारी को निर्मूल करने की प्रबल धारणा वाले पक्षपाती। इन दोनों धाराओं के मध्य एक धारा उन विचारकों की थी जो प्रत्येक कल्याणकारी सामाजिक आंदोलन की प्रशंसा करने से नहीं चूकते थे।
➽ तत्कालीन सामाजिक दोषों जैसे धार्मिक विवाद, बाल-विवाह, विधवा-विवाह, जाति-पांति, अंधविश्वास, समुद्रयात्रा निषेध, स्त्री शिक्षा - निषेध, जाति बहिष्कार आदि के प्रति इनकी आंखे खुली रहती थी और वे इन समस्याओं का समाधान प्राप्त करने हेतु प्रयत्नशील रहते थे। आर्य समाज के पक्षपाती विचारकों ने कुछ अति भी की और सभी प्राचीन परंपराओं एवं रूढ़ियों को 'पोप लीला' के अंतर्गत स्वीकारते हुए उनकी कटु आलोचना की जिसके शब्दाडंबर में उनकी सामाजिक व्यवस्था का स्वरूप अति धूमिल हो गया। किंतु जब ये विचारक निष्फल वाद-विवाद को त्यागकर समाज-सुधार एवं देशोद्धार की सक्रिय योजना प्रस्तुत करते हैं तब इनके सदुद्देश्य की प्रशंसा करनी ही पड़ती है। भारतेंदु युग में सामाजिक क्षेत्र में अत्यधिक परिवर्तन उपस्थित हुआ। जिससे सामाजिक परिस्थिति में अत्यधिक अशांति आई।
➽ सन् 1900-1918 तक हिंदी साहित्य आधुनिक काल के द्वितीय उत्थान अर्थात् द्विवेदी युग या जागरण-सुधार - काल में सामाजिक क्षेत्र की अशांति दूर हो गई और नवीन व्यापक दष्टिकोण जीवन के नवीन मूल्य के रूप में स्थापित हो गया। यही कारण है कि इस युग में पूर्व युग के वाद-विवाद, आलोचना-प्रत्यालोचना का प्रायः अभाव है। इस युग के विचारकों ने समाज सुधार की आवश्यकता को बहुत महत्व दिया और बड़े शांत चित्त से सामाजिक कुरीतियों के निराकरण के सुझाव प्रस्तुत किए। स्त्री शिक्षा सामान्य हो गई। बालविधवाओं के प्रति व्यापक सहानुभूति दष्टिगोचर होती है। बालविधवाओं के शाप में सामाजिक अद्यःपतन का कारण खोजना इस सहानुभूति पूर्ण दष्टिकोण का परिचायक है। अछूतोद्धार के प्रति सद्व्यवहार हृदय की विशालता, दहेज की कुप्रथा को दूर करने का प्रयत्न इस युग के समाज सुधारकों में विशेष रूप से दष्टिगोचर होता है। पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण का विरोध इस युग में भी स्पष्ट परिलक्षित होता है। इसके साथ ही इस युग में नवीन प्रवृत्ति के दर्शन होते हैं। यह प्रवत्ति मानवतावाद की है। पूंजीवाद की बढ़ोत्तरी से उत्पन्न वर्ग-संघर्ष तथा स्त्री- दुर्दशा, दहेज प्रथा से उत्पन्न क्षोभ की परिस्थितियों के प्रति प्रतिक्रिया स्वरूप लोगों को जनवादी विचारों का महत्व ज्ञात हुआ। वास्तव में सामन्तशाही के विनाश एवं देशी राजाओं के पतन के कारण सामाजिक व्यवस्था बदल गई थी। इसके अतिरिक्त राजनीतिक क्षेत्र में भी मध्यवर्ग का सहयोग अति महत्वपूर्ण प्रतीत होता रहा था। इस कारण इस युग के विचारकों में मानवता के प्रति विस्तत दष्टिकोण का प्रादुर्भाव हुआ। देश के महान विचारकों ने निर्धन और शोषित समाज के प्रति संवेदना और नारी स्थिति के प्रति करुणा व्यक्त की, उसके आंचल में दूध और आंखों में पानी वाली स्थिति का चित्रण करके सहानुभूति एवं उच्च भावना की अभिव्यक्ति हुई है।
➽ हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के ततीय उत्थान अर्थात् छायावाद काल सन् 1918-1938 ई. तक सामाजिक क्षेत्र में और अधिक विकास हुआ और मानवतावादी दष्टिकोण का महत्व बढ़ा। वस्तुतः राजनीति में मानवतावाद को आधार बनाया गया इसलिए इसकी मान्यता अधिक बढ़ गई। राजनीतिक स्वतन्त्रता आंदोलन सामान्य जन समुदाय को साथ लेकर चला। इस समय तक अंग्रेजी - शिक्षा का प्रचार-प्रसार बहुत विस्तत एवं व्यापक हो चुका था। इसलिए महान विचारक व्यापक दृष्टिकोण से सामाजिक अवस्था पर चिंतन मनन करने लगे थे। गांधी जी की संपूर्ण क्रियात्मक योजनाएं सामाजिक उत्थान के लिए अत्यधिक शक्तिशाली सिद्ध हुई। गांधी जी की मानवतावादी भावना ने निम्न स्तर के लोगों की सामाजिक स्थिति में अत्यधिक परिवर्तन किया। उनकी मानवतावादी भावना के कई रूप मिलते हैं। शनैः शनैः पश्चिमी संस्कृति के विरोध में और भारतीय संस्कृति के प्रतीक स्वरूप खादी भी उच्च सामाजिक भावनाओं का प्रतीक बन गई। आर्य समाज के आधार पर वैदिक युग का पुनरुत्थान भी इस युग में दष्टिगोचर होता है। वैदिक उत्थान काल में इसीलिए आध्यात्मिक भावना का भी विकास हुआ और मानवता की सेवा और उसके द्वारा ईश्वर प्राप्ति की भावना पर जोर दिया गया। इसीलिए औद्योगिकता का विरोध किया। यंत्र में वे मानव शोषण की झलक पाते हैं, किसानों की दीनता का उनके जीवन पर अति व्यापक प्रभाव पड़ा था तथा इस महान शाप का निराकरण करने हेतु वे कृषक वर्ग की जागति के महान समर्थक थे। जाति-पांति तथा अछूतों के प्रति अत्याचार से उनका हृदय चूर-चूर हो रहा था तथा इन सब में अछूतों को भगवान के मंदिरों से दूर करने की प्रवृत्ति उन्हें घोर नास्तिकता एवं मूढ़ता की प्रतीति कराती थी इसलिए उन्होंने आध्यात्मिकता के महत्व का प्रतिपादन किया है।
➽ इस युग के दूसरे महान विचारक, समाज सुधारक एवं मानवतावाद के समर्थक विश्व कवि रवींद्रनाथ टैगोर हुए। इनकी कविता में मानवतावाद अति व्यापक रूप में व्यक्त हुआ है जिसने उन्हें विश्व कवि का स्थान दिलाया। उनकी मानवतावाद के प्रमुख रूप विश्व संस्कृति, आध्यात्मिकता, अंतर्राष्ट्रीयता, मानव दुख निवारण तथा जाति-पांति का भेद मिटाने की तत्परता आदि हैं। ब्रह्म समाज को स्थिरता प्रदान करने में उन्होंने अत्यधिक सहयोग दिया। उन पर पश्चिम के मानवतावाद के आदर्श का व्यापक प्रभाव था और उन्होंने मानव को समग्र मानव समाज के रूप में देखा। ब्रह्म समाज के द्वारा उन्होंने बंगाल के रूढ़िग्रस्त सामाजिक संगठन में स्वच्छता का संचार किया और सामाजिक व्यवस्था को नवयुग की चेतना से उचित रूप से आत्मसात करने योग्य बनाया। रवींद्रनाथ टैगोर पर विवेकानंद का गहरा प्रभाव था। उनकी मानवता की उपासना में विवेकानंद के दर्शन का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। उन्होंने दुख को मानवता की एकसूत्रता के मूलमंत्र के रूप में स्वीकारते हुए उसे साधनात्मक रूप दिया है। उनके हृदय की करुण भावनाएं सामाजिक जागति को दष्टिगत रखते हुए व्यक्त हुई हैं। मानवता का विकास इन सबका एकमात्र लक्ष्य है, आधार विश्व शांति है जिसे अंतर्राष्ट्रीयता की भावना के विकसित होने पर ही प्राप्त किया जा सकता है।
➽ योगिराज अरविंद इस युग की विचारधारा को प्रभावित करने वाले तीसरे महान व्यक्ति हैं। श्री अरविंद मानव जाति के विकास के लिए ही योग साधना या विचार साधना करने में तत्पर थे। उनका जीवन मानव सेवा में समर्पित था। उनके मानवतावाद में अध्यात्मवाद की उच्च अनुभूति का सम्मिश्रण था और उनका साधनात्मक जीवन और इच्छा शक्ति की दढ़ता मानव को पूर्ण मानव बनाने में संलग्न थी।
➽ इस युग में सामाजिक व्यवस्था हेतु अति ठोस परिवर्तन हो रहे थे तथा उनका प्रभाव समाज के साथ-साथ साहित्य पर भी पड़ रहा था। उपर्युक्त सामाजिक अवस्था में और भारतेन्दु युग या द्विवेदी की सामाजिक अवस्था में पर्याप्त अंतर है। भारतेंदु युग में नवयुग की चेतना का विकास हुआ और सामाजिक अवस्था में परिवर्तन की पुकार से अत्यधिक अशांति का वातावरण उपस्थित हो गया. द्विवेदी युग में यह अशांति शांति में बदल गई। समाज सुधारक सामाजिक कुरीतियों और रूढ़ियों का खंडन करने के साथ-साथ सामाजिक समस्याओं का समाधान प्राप्त करने हेतु ठोस विचार एवं सुझाव प्रस्तुत करने लगे। शनैः शनैः मानवतावादी भावनाओं का विकास हो रहा था। किंतु हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के ततीय उत्थान अर्थात् छायावाद में सामाजिक अवस्था का मुख्य रूप मानवतावादी भावनाओं में केन्द्रित हो गया था और सामाजिक कुरीतियों के निवारण हेतु कुछ ठोस रूप दष्टिगोचर हुए एजैसे सन् 1929 में "शारदा ऐक्ट" द्वारा बाल विवाह का निषेध हुआ सन् 1935 में "गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट" द्वारा अछूतों को मताधिकार प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त विधवा-विवाह आदि के संबंध में भी कानून पारित किए गए। नर-नारी की समानता एक विवाह विधवा विवाह आदि की भावना का विकास पश्चिमी विचारधारा का प्रभाव है। जनसंख्या निरोध के लिए 'हम दो हमारे दो' से 'हम दो हमारे एक' 'लड़का-लड़की एक समान' गर्भपात अवैध एवं लिंग पता लगाना दंडनीय अपराध घोषित हुए।
➽ बेकारी की समस्या दिन प्रतिदिन गहन होती गई। आंतरिक परिस्थितियों के अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का प्रभाव स्वाभाविक रूप से समाज पर पड़ने लगा था। द्वितीय महायुद्ध की भयंकरता ने जीवन को अति कटु बना दिया। गहरी निराशा की भावना ने सामाजिक जनजीवन को आच्छादित कर लिया। सन् 1938-1946 तक का काल भयानक हलचल का समय था ।
➽ सन् 1946 से आज तक का समय स्वतंत्र्योत्तर काल है। इसमें सामाजिक सुधार हुआ। इस काल की सामाजिक अवस्था के विषय में संक्षेप में कह सकते हैं कि जाति-पांति के भेदभाव की भावना का कानून द्वारा निवारण किया गया। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में सुधार किया गया। भारतीय शासन में उन्हें स्थान दिया गया। पंचायत चुनावों में आरक्षण प्राप्त हुआ। जमींदारी प्रथा का उन्मूलन कर कृषक वर्ग को शोषण से मुक्ति दिलाई गई। श्रमिक की अवस्था में सुधार तथा उनके जीवन की सुरक्षा को महत्व प्रदान किया गया। उद्योग में भागीदारी तथा सामूहिक बीमा की सुविधा प्रदान की गई।
➽ अंतर्राष्ट्रीयता की भावना को प्रमुखता तथा विश्वबंधुत्व की स्थापना विश्व शांति का प्रयास हुआ। नागरिक अधिकारों में सुधार किया। दोहरी नागरिकता की सुविधा मिली। समाजवादी शासन की स्थापना का प्रयत्न किया। पंच-वर्षीय योजनाओं के द्वारा देश निर्माण आदि की सामाजिक अवस्थाएं अस्तित्व में आई।