आधुनिक हिंदी साहित्येतिहास के अध्ययन की पूर्व पीठिकाः परिवेश
हिंदी साहित्य के आधुनिक काल की मुख्य घटना
➽ हिंदी साहित्य के आधुनिक काल की मुख्य
घटना साहित्य में गद्य का आविर्भाव है। वीरगाथा काल, भक्ति काल एवं रीति काल के काव्य की भाषा क्रमशः डिंगल- पिंगल, अवधि-ब्रज थी जो पद्यात्मक थी। साहित्य
की दो प्रमुख धाराएं पद्य एवं गद्य हैं। गद्य आधुनिक काल की देन है जो अपने साथ
खड़ी बोली गद्य को साहित्यिक, परिनिष्ठित, मानक एवं सर्वसुलभ हिंदी के रूप में
लेकर आया। आधुनिक काल में गद्य-पद्य का समानांतर विकास हुआ। यह काल उत्थान-पतन, विप्लव - क्रांति सजन, युद्ध- शांति, विनाश-निर्माण प्रधान रहा है जिसके
परिणामस्वरूप आधुनिक काल का साहित्य नव चेतना नवीन दष्टिकोण, संत्रास- कुंठा, शोषक - शोषित, पूंजीपति-श्रमहारा, ज्ञान-विज्ञान, आध्यात्मिकता- भौतिकता, धर्म राजनीति का प्रतिनिधित्व करता है।
साहित्यिक वैविध्य की उत्तरदायी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक या धार्मिक एवं साहित्यिक परिस्थितियां हैं। इन
परिस्थितियों की जन्मदात्री अंग्रेजों की तत्कालीन सत्ता थी जिसने स्वाभाविक रूप
से भारतीयों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष क्रांति एवं विद्रोह की भावना जागत करके
पुनर्जागरण की दिशा की ओर अग्रसर किया।
साहित्य परिवेश
➽ साहित्य परिवेश समाज का
दर्पण है। समाज की परिवेशजन्य परिस्थितियां साहित्य सजन में अपनी महत्वपूर्ण
भूमिका निभाती हैं जिनसे प्रभावित होकर ही साहित्यकार साहित्यिक क्षेत्र में
आधुनिक नवीन सोच एवं नव्य दष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। समाज का परिवेश
निर्माण करने में राजनीति,
समाज, अर्थ, संस्कृति या धर्म एवं साहित्य का विशेष
योगदान होता है जो साहित्य सजन में पूर्व पीठिका स्वरूप उपस्थित होता है
(i) राजनीतिक:-
➽ किसी काल के साहित्य में
नवीन प्रवत्तियों का जन्म चमत्कारिक घटना के परिणामस्वरूप अचानक नहीं होता है
अपितु कुछ समय पूर्व उसका बीजवपन हो जाता है जो अत्यधिक गहराई में पड़ा रहता है।
अनुकूल वातावरण एवं प्राकृतिक संरक्षण में पोषण प्राप्त कर अंकुरित एवं पल्लवित
होता है हिंदी साहित्य के आधुनिक काल में नवयुग की चेतना का विकास अति महत्वपूर्ण
घटना है। इसका बीज इसी काल के राजनीतिक परिवेश की देन है।
➽ प्रथम काल-
➽ प्लासी युद्ध ने अंग्रेजों
की नींव भारत में सुदढ़ कर दी। शनैः शनैः ईस्ट इंडिया कंपनी ने संपूर्ण भारत पर
अपनी सत्ता जमा ली। कंपनी का प्रभुत्व बढ़ने के साथ-साथ उसके अधिकारी अपना
अत्याचार उत्तरोत्तर बढ़ाने लगे। भारतीयों में असंतोष, क्षोभ, विद्रोह, संत्रास एवं कुंठा की लहर दौड़ गई।
कंपनी के अधिकारियों ने देशी राजाओं को अपने में मिलाने हेतु कुटिल लैप्स नीति को
अपनाया जो बड़ी घातक सिद्ध हुई। सन् 1858
में झांसी को लैप्स नीति के आधार पर कंपनी ने अपने शासन में मिला लिया जिसके
परिणामस्वरूप देश में प्रजा एवं देशी राजा दोनों ही कंपनी के अत्याचारी शासन से
घबरा गए। इंडियन नेशनल कांग्रेस ने भारतीयों के राजनीतिक परिवेश को और अधिक विकास
प्रदान किया। कांग्रेस ने जनता के समक्ष कुछ निश्चित राजनीतिक सिद्धान्त प्रस्तुत
किए जिनकी प्राप्ति के लिए भारतीयों में अपार उत्साह की भावना जग गई। इटली के
स्वतन्त्रता युद्ध' आयरलैंड के 'होमरूल' आंदोलन तथा फ्रांस की राज्यक्रांति के इतिहास ने जनता की विरोधी
भावना को अत्यधिक भड़काया एवं अनेक उत्साही युवकों ने हिंसात्मक उपायों से
अंग्रेजी राज्य को समाप्त करने की प्रबल इच्छाएं व्यक्त की। हिंदी साहित्य के
आधुनिक काल में नवयुग की इस राजनीतिक चेतना का प्रभाव भारतेंदु-युग पर स्पष्ट
रूपेण परिलक्षित होता है।
➽ द्वितीय काल-
➽ यह काल सन् 1905 से आरम्भ होता है। कांग्रेस ने आवेदन एवं प्रार्थना की नरम नीति का परित्याग कर उसने "स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है की घोषणा कर दी। इसी समय कांग्रेस में गरम एवं नरम दो दल हो गए। कर्जन की बंगाल विभाजन की भारत विरोधी नीति से राष्ट्रीय भावनाओं से आपूरित भारतीयों की आंखें खुल गई थीं और वे अंग्रेजों को अति संदेह की दृष्टि से देखने लगे थे। इस युग में भारतीय राजनीति का आधार मानवतावाद कहा गया। देश के असंतोष को शांत करने के लिए अंग्रेजी शासकों ने समय-समय पर शासन प्रणाली में सुधार किए। सन् 1909 ई. में मार्ले-मिंटो सुधार कानून पास हुआ, इसने मुसलमानों को अलग प्रतिनिधित्व दिया जिससे हिंदु-मुस्लिम एकता को बड़ी ठेस पहुंची। अत्यधिक प्रयत्नोपरांत सन् 1926 में हिंदु-मुस्लिम समझौता हो सका और श्रीमती एनीबेसेंट के प्रयत्न से कांग्रेस के दोनों दलों में भी एकता स्थापित हो गई। किंतु इसी बीच यूरोप में प्रथम महायुद्ध छिड़ गया। भारतीयों ने तन-मन से अंग्रेजों की सहायता की किंतु युद्ध की समाप्ति के बाद अंग्रेज अपने वायदे से मुकर गए, उल्टे रौलट ऐक्ट (1919) के द्वारा भारतीय जनता से स्वतंत्रता के अधिकार छीन लिए। हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के इतिहास में राजनीतिक परिवेश के द्वितीय उत्थान का यह समय द्विवेदी युग या सुधार काल के नाम से अभिहित है।
➽ ततीय काल
➽ ततीय काल प्रथम महायुद्ध की
समाप्ति से आरंभ होता है। महायुद्ध के बाद भीषण जनसंहार के कारण मानवचित्त
उद्वेलित हो रहा था तथा भारतीयों पर अंग्रेजों ने "रौलट एक्ट" की दमन
नीति के द्वारा अति कठोर आघात किया। एक ओर सुधार का ढोंग था और दूसरी ओर घोर दमन
की अत्याचारपूर्ण नीति, जिसका भारत की सभी जातियों ने विरोध
किया। सन् 1920 ई. में तिलक के देहावसान से कांग्रेस
का नेतत्व पूर्णरूपेण गांधी जी के हाथों में आ गया था। राजनीतिक चेतना का ततीय
उत्थान ग्राम-उद्धार एवं मध्य वर्ग के विकास के रूप में देखा जा सकता है। गांधी जी
ने अहिंसा को स्वतन्त्रता प्राप्ति का लक्ष्य बनाया जिसका मुख्य आधार असहयोग एवं
ग्रामोद्धार था गांधी की संपूर्ण शक्ति रचनात्मक कार्यों में लग रही थी। अन्य
राजनीतिक अपने विचारों से बुद्धिजीवी वर्ग में देश भक्ति की भावना जागत करने में
लगे हुए थे। शनैः शनैः कांग्रेस पार्टी ने भारत के लिए औपनिवेशिक स्वराज्य के
स्थान पर पूर्ण स्वराज्य की मांग की। कांग्रेस पार्टी के राजनीतिक कार्यों से जनता
में राष्ट्रीयता की भावना का उत्तरोत्तर विकास हुआ। असहयोग के दो रूप थे, एक तो विदेशी शासकों के साथ असहयोग एवं
विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार मुख्य रूप से विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार हुआ। विदेशी
वस्त्रों की होली जली। खादी राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बन गई। गांधी जी ने
स्वतंत्रता संग्राम में मानवतावाद को प्रमुख स्थान दिया। गांधी जी की मानवतावादी
भावना के अहिंसा, सत्याग्रह, राजनीतिक समानता, अछूतोद्धार, हिंदू-मुस्लिम एकता, धार्मिक समन्वय, ग्रामोद्धार, जमींदारी उन्मूलन आदि अनेक रूप हैं।
गांधी जी के उपर्युक्त कार्यों में निश्चित रूप से रचनात्मक आंदोलन का अति सुष्ठु
स्वरूप दष्टिगोचर होता है। इनमें से हरिजन आंदोलन, जमींदारी प्रथा का विरोध एवं अत्याचारों के विरुद्ध सत्याग्रह आदि
राष्ट्रीय एकता एवं देशव्यापी राजनीतिक चेतना में विशेष सहायक सिद्ध हुए। इसी युग
में रवींद्रनाथ टैगोर ने मानवतावाद का प्रचार अपने साहित्य द्वारा किया। उन्होंने
अंतर्राष्ट्रीयता, विश्व संस्कृति, आध्यात्मिकता आदि का प्रचार किया। इस
काल में गांधी एवं रवींद्रनाथ टैगोर का विशेष योगदान रहा, जिन्होंने युगीन विचारधारा को अति
व्यापक रूप से प्रभावित किया ।
➽ चतुर्थ काल-
➽ चतुर्थ काल का आरंभ
द्वितीय महायुद्ध से होता है। स्वतन्त्रता संग्राम अपने चरम रूप में था विश्व के
अन्य राष्ट्रों का भी समर्थन मिल रहा था। द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति पर पूर्ण
स्वतन्त्रता मिलने की आशा बलवती होती जा रही थी। पूंजीवाद में वृद्धि हो रही थी
जिससे जनता अत्यधिक असंतुष्ट हो रही थी। स्वतन्त्रता आंदोलन के स्वरूप में
पर्याप्त बदलाव आ गया था। राजनीतिक परिस्थितियां भी बदल गई थीं। स्वतन्त्रता
प्राप्ति हेतु हिंदु-मुसलमानों में समझौता होना था। सन् 1945 में ब्रिटेन में उदार दल की सरकार बनी
जिसको भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन के साथ पूर्ण सहानुभूति थी। शनैः शनैः भौतिकता के
विकास के साथ ही देश के जीवन में अति शुष्कता आ गई थी। इस काल की राजनीतिक चेतना
का एक अति महत्वपूर्ण तथ्य समाजवादी विचारधारा का विकास है। पूंजीवाद वर्ग संघर्ष
को बढ़ावा दे रहा था। भारतवर्ष में आर्थिक परिस्थितियों से उत्पन्न वर्ग-संघर्ष
में मार्क्सवादी विचारधारा को विशेष बढ़ावा मिला। इसका मुख्य कारण स्वतन्त्रता
आंदोलन के लिए विशेषकर राजनीतिक अन्यायों का विरोध करने के लिए अपनाए गए सत्याग्रह
और हड़तालों द्वारा जागत मजदूरों एवं कृषक वर्ग की चैतन्यता थी। उस काल की
विचारधारा पर इन सबका अत्यधिक प्रभाव पड़ा। शनैः शनैः भारत स्वतन्त्र होकर गणतंत्र
बन गया।
➽ पंचम काल-
➽ गणतंत्रता प्राप्ति के साथ ही हमारे देश में राजनीतिक परिवेश का पंचम काल आ जाता है। राजनीतिक विद्रोही भावना समाप्त हो गई। राष्ट्रीय एकता का अंतर्राष्ट्रीयता में विकास हो गया। स्वतन्त्रता प्राप्ति ने भारतीयों के दष्टिकोण को व्यापकता प्रदान की और उन्होंने विश्व के अन्य दासता में जकड़े हुए लोगों के प्रति सहानुभूति का दष्टिकोण अपनाया। आंतरिक संघर्ष से अवकाश प्राप्त कर भारतीय राजनीतिज्ञों ने विश्व के अन्य राष्ट्रों से संपर्क बढ़ाया तथा सह अस्तित्व के सिद्धांत को विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया। इसलिए भारत का स्थान विश्व के अन्य राष्ट्रों में विशिष्टता में आ गया। विश्व शांति एवं पंचशील नीति के लिए प्रशंसा का पात्र बन गया। इससे स्पष्ट हो जाता है कि आधुनिक काल के राजनीतिक परिवेश में कितना परिवर्तन आया है।