हिन्दी कहानी के विकास का तृतीय चरण और कहानीकार (सन् 1936-1955 ई.)। Hindi Kahani Ke Vikas ka Tessra Charan

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 हिन्दी कहानी के विकास का तृतीय चरण (सन् 1936-1955 ई.)

हिन्दी कहानी के विकास का तृतीय चरण  और कहानीकार (सन् 1936-1955 ई.)। Hindi Kahani Ke Vikas ka Tessra Charan


 

हिन्दी कहानी के विकास का तृतीय चरण

हिंदी कहानी का तृतीय चरण जैनेंद्र के आगमन से आरंभ होता है। तृतीय चरण की कहानियों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

 

(i) व्यक्ति 

  • सत्य का उद्घाटनमनोवैज्ञानिक धारणाओं के संदर्भ में करने वाली कहानियाँ जिनका प्रतिनिधित्व जैनेन्द्रअज्ञेयइलाचन्द्र जोशीभगवती प्रसाद वाजपेयी और पहाड़ी आदि कहानीकार करते हैं।

 

(ii) समाज सापेक्ष 

  • इस वर्ग की कहानियों का समाज सापेक्ष प्रश्नों से संबंध है। इस वर्ग के प्रमुख कहानीकार यशपालरांगेय राघवभैरवप्रसाद गुप्तपांडेय बेचन शर्मा 'उग्रऔर अमत राय हैं।

(iii) व्यक्ति सत्य-

  • समष्टि सत्य इस वर्ग में वे कहानीकार आते हैं जो व्यक्ति सत्य तथा समष्टि सत्य दोनों को सुविधानुसार अपनी कहानियों का आधार बनाते हैं। अश्क और भगवती चरण वर्मा आदि इसी वर्ग में आते हैं।

 

जैनेन्द्र कुमार हिन्दी कहानीकार 

 

  • जैनेन्द्र कुमार ने स्थूल समस्याओं को कहानी का विषय न बनाकर सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विषयों को कहानी का विषय बनाया। उन्होंने हिन्दी कहानी को एक नवीन अंतर्दृष्टिसंवेदनशीलता एवं दार्शनिक गहनता प्रदान की। 
  • सामान्य मानव की सामान्य परिस्थितियों को न लेकर असामान्य मानव की असामान्य परिस्थितियों से प्रभावित मानसिक प्रक्रियाओं का व्यापक विश्लेषण किया है। उनका दृष्टिकोण समष्टिगत न होकर व्यष्टिगत थाभौतिकवाद की अपेक्षा आध्यात्मिक वाद था। उनके पास विषय सामग्री का अभाव दष्टिगोचर होता है। 
  • इसलिए प्रत्येक रचना में एक ही तथ्य का पिष्टपेषण करते हुए दिखलाई पड़ते हैं। घटनाओं की अपेक्षा उन्होंने चरित्र चित्रण तथा शैली को अधिक महत्व दिया है। इनकी कहानियों के संग्रह 'वातायन', 'स्पर्धा', 'पाजेंब', 'फांसी', 'एक रात', 'जयसंधितथा 'दो चिड़ियाआदि हैं।

 

जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज' 

  • जनार्दन प्रसाद झा द्विजने अपनी कहानियों में करुण रस की अभिव्यक्ति मौलिक ढंग से की है। उनके कहानी संग्रह किसलय, 'मदुलतथा 'मधुमयीआदि प्रकाशित हुए हैं। इनकी कहानियों में मार्मिकता का हृदय ग्राहय रूप मिलता है। इसलिए इनकी कहानियों का स्थान अत्यधिक ऊंचा है।

 
चंडीप्रसाद 'हृदयेश' 

  • चंडी प्रसाद हृदयेश का दष्टिकोण आदर्शवादी था। उनकी कहानियों में सेवात्यागबलिदान तथा आत्म शुद्धि आदि की उच्च भावनाओं का चित्रण किया गया है। उनमें भावुकता की प्रधानता है। उनकी कहानी के संग्रह नंदन निकुंजतथा 'वनमालाआदि नामों से प्रकाशित हुए हैं।

 

गोविंद वल्लभ पंत 

  • गोविंद वल्लभ पंत की कहानियों में यथार्थ की कटुता तथा कल्पना की रंगीनी का दिव्य समन्वय मिलता है। उनमें प्रणय - भावनाओं का चित्रण अति मधुर रूप में किया गया है।

 

सियाराम शरण गुप्त 

  • सियाराम शरण गुप्त ने कविता की तरह कहानी क्षेत्र में भी अच्छी सफलता प्राप्त की है। उनकी सर्वश्रेष्ठ कहानी 'झूठ-सचहै जिसमें आधुनिक युगीन यथार्थ वादी लेखकों पर तीखा व्यंग्य किया है। कहानी कला की दृष्टि से भी यह कहानी अद्वितीय है। उनकी कहानियों का संग्रह मानुषीहै।

 

वृदावन लाल वर्मा 

  • वृंदावन लाल वर्मा ने कहानी की अपेक्षा उपन्यास के क्षेत्र में अधिक प्रसिद्धि प्राप्त की है। उनकी कहानियों में भी कल्पना एवं इतिहास का समन्वय मिलता है। इनकी कहानियों का संग्रह कलाकार का दंड है। वर्मा की शैली में सरलता एवं स्वाभाविकता होती है।

 

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'

 

  • अज्ञेय की कहानियां अभिजात्य बौद्धिकता द्वारा लिखी गई मनोवैज्ञानिक कहानियां हैं। कथ्यगत विविधता के होते हुए भी इन कहानियों का अनुभव सांसारिक व्यक्तिगत तथा अत्यधिक सीमित है। 
  • मनोविज्ञान के सिद्धांतों का स्मरण और सचेत रूप से केन्द्रित करने का आग्रह भी 'कड़ियां', 'पुलिस की सीटी', 'लेटर बॉक्स', 'हीलोबीन बतखें आदि कुछ कहानियों में अत्यधिक मुखर हो उठा है।
  • डॉ. रामदरश मिश्र का कथन हैअज्ञेय का घनिष्ठ व्यक्तित्व उनकी कहानियों को एक निजता प्रदान करता है। इस निजता की बनावट बड़ी जटिल है। इसीलिए इनकी कहानियों में लेखक की वैचारिकताअनुभवअध्ययनतटस्थतामानवीय प्रतिबद्धता आदि का बड़ा ही जटिल सहअस्तित्व दिखाई पड़ता है। 
  • इस जटिल सहअस्तित्व का परिणाम शुभ-अशुभ दोनों है। एक ओर वे इसके चलते रोजजैसी अच्छी कहानी लिखने में समर्थ एवं सफल सिद्ध हुए हैंवहीं दूसरी ओर घोर बौद्धिकता से परिपूर्ण रचनाएं भी उन्होंने की हैं। रोजमें एक रस और यांत्रिक ढंग से जीवन जीने का संदर्भ अति सहजता किंतु तीखेपन के साथ चित्रित हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि अज्ञेय मनोविज्ञान के किसी सिद्धांत के प्रतिपादन हेतु कहानी लिख रहे हैं।

 

यशपालरांगेय राघवअमत लाल नागर एवं बेचन शर्मा 'उग्र' 

  • सामाजिक समस्याओं का समाधान प्राप्त करना तथा उसी में जूझते रहने का क्रियाकलाप करने का श्रीगणेश मुंशी प्रेमचंद ने किया था। सामाजिक समस्याओं का समाधान प्राप्त करने में यशपालरांगेय राघवअमतलाल नागर एवं बेचन शर्मा उग्र उनके अनुगामी रहे हैं। 

 

यशपाल 

  • यशपाल सामाजिक प्रश्नों एवं समस्याओं को मार्क्सवादी जीवन दृष्टि के माध्यम से देखते हैं क्योंकि वे मार्क्सवादी कामरेड था। साम्यवाद को प्रधानता देते थे। सन् 1936 ई. में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई। जिसने तत्कालीन रचनाकारों पर अपना प्रभाव डालना प्रारंभ कर दिया तथा प्रगतिशील रचनाएं सामने आने लगीं।

 

  • यशपाल इन प्रतिबद्ध रचनाकारों में अग्रगण्य थे। यशपाल का अनुभव संसार अति व्यापक तथा वैविध्यपूर्ण है। एक और • मध्यवर्गीय जीवन की विसंगतिअसहायता और यातना को व्यक्त करने वाली 'परदा', 'फूलों का कुरता', 'प्रतिष्ठा का बोझआदि कहानियां है। दूसरी ओर श्रमशील विश्व के संघर्ष और शोषण तंत्र की विरोधी कहानियां हैंजिनमें 'राग', 'कर्मफल', वर्दीतथा 'आदमी का बच्चामहत्वपूर्ण कहानियां हैं। पुरातन मूल्योंअप्रासंगिक रूढ़ियों और नैतिक निषेधों को तिरस्कृत करने का उनका ढंग वैयक्तिक है। धारदार व्यंग्य उनकी अभिव्यंजना का सर्वाधिक सबल अस्त्र है। यशपाल में जहां कथ्यगत समद्धि है वहीं शिल्पगत प्रभाव भी है। कुछ प्रगतिवादी कहानीकारों की तरह उनकी कहानियों में शिल्प का अवमूल्यन नहीं दिखलाई पड़ता है।

 

रांगेय राघव

 

  • रांगेय राघव की कहानियां मार्क्सवादी बोध से सम्पन्न होकर भी कहीं-कहीं उससे बाहर जाती हुई दष्टिगोचर होती है। अनुभव की वास्तविकता उनकी प्रथम विशेषता है। रांगेय राघव की सर्वश्रेष्ठ कहानी मदल है।

 

बेचन शर्मा उग्र

 

  • बेचन शर्मा 'उग्रको प्रेमचंद युगीन कहानीकारों में गिना जाता है। वास्तव में उनकी कहानी कला का उमभांश प्रेम चंदोत्तर युग में ही अस्तित्व में आया। वे घोषित मार्क्सवादी न थे लेकिन सामाजिक विसंगतियों को उधेड़ने में वे प्रगतिशीलता का परिचय देते हैं। कला का पुरस्कार', 'ऐसी होली खेलो लाल', 'उसकी मां आदि उनकी श्रेष्ठ कहानियां हैं।

 

उपेन्द्र नाथ 'अश्क'

 

  • अश्क को न तो प्रगतिवादी कहानीकार कहा जा सकता है न व्यक्तिवादी। डॉ. रामदरश मिश्र ने अश्क के मार्क्सवादी दष्टिकोण को लेकर कहानी लिखने वालों को प्रगतिशील कोटि में रखा है। वस्तुतः अपनी संवेदना के दष्टिकोण से वे प्रगतिशील कथा चेतना से स्पष्ट अलगाव रखते हैं। उनके भाषा शिल्प पर प्रेम चन्द का गहन प्रभाव दिखलाई पड़ता है। एक ओर अश्क ने 'डाचीऔर कांड़ा का तेलीजैसी अति चुस्त प्रभावशाली कहानियां लिखी हैं वहीं दूसरी ओर एंबेसडरतथा 'बेबसीजैसी यौन समस्याओं वाली कहानियों में उनको सफलता नहीं मिली है। उनकी कहानियों पर टिप्पणी करते हुए हृषिकेश ने लिखा है-

 

  • "वह इतनी सपाट और आत्मीय हैं कि पढ़कर चिंता नहीं होतीन खेद होता हैन आश्चर्य न जिज्ञासा और न ही व्यामोहकेवल तरल अनुभूति देने वाली अश्क की कहानियां अन्वेषण तो करती है अन्वेषक नहीं बनाती और पाठक के समक्ष आत्म निर्णय का संचार नहीं करती।" अश्क की बहुत सी कहानियों पर यह टिप्पणी सटीक बैठती है।

 

भगवती चरण वर्मा

 

  • भगवती बाबू अपनी व्यंग्यात्मक कहानियों के लिए चर्चा का विषय बने रहे। उनको प्रतिष्ठित करने में प्रायश्चित', 'दो बांके', और 'मुगलों ने सल्तनत बख्श दीआदि कहानियों का विशेष योगदान रहा है। किन्तु मोर्चा बंदीसंग्रह की कहानियां उनको चुकाने में सहयोगी सिद्ध हुई है।

 

  • इन कहानीकारों के अतिरिक्त मनोवैज्ञानिक कहानीकारों में भगवती प्रसाद वाजपेयी तथा पहाड़ी का नाम भी उल्लेखनीय है ।

 

  • प्रगतिवादी कहानीकारों में भैरव प्रसाद गुप्त तथा अमत राय का भी कहानी साहित्य को प्रमुख योगदान है।

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