हिन्दी कहानी के विकास का पंचम चरण (सन् 1976 से आज तक) नई कहानी
नई कहानी का अर्थ नामकरण एवं कहानीकार
- कमलेश्वर का कथन है कि जितेंद्र एवं ओम प्रकाश श्रीवास्तव ने कहानी को नवीन रूप देने का प्रयास किया। कहानी के नवीन रूपों को नई कहानी' नाम देने का श्रेय दुष्यंत कुमार को है।
- डॉ. बच्चन सिंह ने सन् 1950 ई. में शिवप्रसाद सिंह द्वारा प्रकाशित "दादी मां' में नयी कहानी के तत्वों का अवलोकन किया। उनके विचार से सन् 1956-57 में नई कविता के साम्य पर इसका नाम 'नई कहानी' रख दिया गया। सूर्य प्रकाश दीक्षित नई कहानी के शुभारंभ का श्रेय कमलेश्वर मोहन राकेश तथा राजेन्द्र यादव को संवेत रूप में देते हैं। वास्तव में किसी व्यक्ति विशेष या व्यक्तियों को किसी आंदोलन का श्रेय देना उचित प्रतीत नहीं होता है।
- सार्थक आंदोलन परिवेश की मांग तथा पूरी पीढ़ी के प्रयास की उपज होता है। हिंदी कहानी साहित्य में नएपन का प्रारंभ 'पूस की रात', 'नशा' तथा 'कथन' जैसी कहानियों से हो चुका था।
- सन् 1950 ई. तक आते आते कहानी के कथा शिल्प में पर्याप्त परिवर्तन हो चुका था। नएपन की यह प्रवत्ति सन् 1956-57 ई. में आंदोलन का रूप ग्रहण कर चुकी थी।
- डॉ. नामवर सिंह उन आलोचकों में से हैं जिन्होंने नई कहानी के प्रवक्ता की भूमिका निभाई है। कहानी के नववर्षाक सन् 1956-58 में प्रकाशित उन लेखों से इस आंदोलन को अति बल मिला।
- नई कहानी उस समय लिखी गई जब कहानीकारों में देश की स्वतंत्रता को लेकर संशय की भावना का उदय हो रहा था। मोह भंग की पष्ठ भूमि का निर्माण हो रहा था। हिन्दुस्तान पाकिस्तान के विभाजन के फलस्वरूप बड़े पैमाने पर मूल्य संक्रमण तथा मूल्य-विघटन का परिवेश तैयार हो गया था। राजनीतिक पृष्ठभूमि में भी सेवा, त्याग, करुणा, सत्य, प्रेम आदि गांधीवादी मूल्य कड़ी आजमाइश में पड़ गए थे। डॉ. भगवान दास वर्मा का कथन है, परंपरावादी जीवन-दर्शन की असारता, भारतीय संस्कृति की नए युग के संदर्भ में निरर्थकता, स्वतंत्रता प्राप्ति और भ्रम भंग की अवस्था जीवनादर्शों की अनिश्चितता, व्यक्ति जीवन, अकेलेपन एवं अजनबीपन एहसास आदि अनुभूत सत्यों के अनेक स्तरीय संदर्भों के परिपार्श्व पर नई कहानी विकसित हो रही है।
नई कहानी की विशेषताएं
नई कहानी की अनेक विशेषताएं उभरकर सामने आईं जिनमें प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
जटिल एवं व्यापक यथार्थ की अभिव्यक्ति
- नई कहानी की प्रमुख विशेषता जीवन के जटिल एवं व्यापक यथार्थ की अभिव्यक्ति है। परिवर्तित परिवेशानुसार, अपने नवीन दष्टिकोण के परिप्रेक्ष्य में कहानीकारों ने समाज को बहुरंगी कहानियां प्रदान कीं। कहानीकार व्यक्त सत्य की परिधि एवं सामाजिकता के बंद कठघरे में अपने को मुक्त करके नई कहानी कर रहे थे। जिसके परिणामस्वरूप उनकी कहानियों में एक ओर पारिवारिक विघटन दिखलाई पड़ता है।
- दूसरी ओर आर्थिक सामाजिक तीव्र गति के परिवर्तनों को नई कहानी का विषय बनाया गया है। मध्यवर्गीय, निराशा, हताशा एवं पीड़ाओं को नई कहानी में विस्तार से उभारा गया है। देश-विभाजन के परवर्ती परिवेश तथा समस्याओं को कुछ कहानीकारों ने अपनी नई कहानी का विषय बनाया है।
- व्यापक यथार्थ बोध की कहानियों में ऊषा प्रियंवदा- 'वापसी', राजेंद्र यादव छूटना', कमलेश्वर 'राजा निरबसिया', राकेश एक और जिंदगी', मार्कंडेय - 'हंसाजाइ अकेला', शिव प्रसाद सिंह कर्मनाशा की हार, मोहन राकेश मलवे का मालिक, आदि उल्लेखनीय हैं।
- इनमें ग्राम, कस्बा, नगर एवं महानगर के व्यापक फलक पर जीवन की सच्चाइयों को उकेरा गया है।
सांकेतिकता
- मोहन राकेश के अनुसार नई कहानी की प्रमुख विशेषता सांकेतिकता है। सांकेतिकता पुराने कहानीकारों में भी है लेकिन उनका संकेत यदा-कदा था। उनकी सांकेतिकता वैचारिक स्तर तक सीमित थी। नई कहानी कथ्य-कथन दोनों स्तरों पर सांकेतिकता को प्रमाणित करती हैं।
- सुरेंद्र के अनुसार वह किसी स्तर पर संकेत का उपयोग न होकर स्वयं संकेत होती हैं सांकेतिकता की दष्टि से भीष्म साहनी'चीफ की दावत', अमरकांत जिंदगी और जोक' आदि अवलोकनीय हैं। नई कहानी ने स्थापित नैतिक बोध को चुनौती दी है। कमलेश्वर तलाश' तथा राजकमल चौधरी दांपत्य' जैसी कहानियों में परंपरागत नैतिक वर्जनाओं एवं मान्यताओं को झटका सा दिया गया। डॉ. भगवान दास वर्मा के अनुसार स्थापित नैतिक बोध का विघटन आधुनिक कहानी का तथ्य बनकर चित्रित हुआ है। कहीं वह चित्रण परंपरागत मूल्यों के साथ खंडन का है, कहीं उनकी आग्रहमूलकता के खंडन का है तो कहीं उनका मखौल उड़ाने वाले प्रसंगों का है।"
भाषिक संरचना एवं शिल्प
- नई कहानी की भाषिक संरचना एवं शिल्प भी नवीनतामय है। बिंबात्मक एवं सांकेतिक भाषा के साथ-साथ स्पष्ट बयानी की प्रवत्ति भी इसमें है। नई कहानी ने कहानी को नए मुहावरे, भाषायी सपाटन, एवं समसामयिक चेतना से संबद्ध कर दिया - डॉ. पवन कुमार मिश्र नई कहानी का शिल्प इसके कथ्य की आंतरिक मांग के परिणामस्वरूप स्वतः नया हो गया है। यह सचेष्ट सायास न होकर अयत्नज है। राजेन्द्र यादव जैसे इने-गिने कहानीकारों में शिल्प की अतिरिक्त सजगता दष्टिगोचर होती है, अन्यथा अधिकांश नई कहानियां सहज संप्रेषणीय हैं।
- नई कहानी में रेखाचित्र, रिपोर्ताज, ललित निबंध एवं यात्रावत का शिल्प भी समाहित हो गया है। इस प्रकार नई कहानी ने कहानी के परंपरागत पुराने ढांचे को चकनाचूर कर दिया है। निश्चित ढंग से कहानी गढ़ना और उसे समाप्त करना नई कहानी की प्रवृत्ति नहीं है। फॉर्मूला बद्ध शिल्प नई कहानी में समाविष्ट नहीं हुआ, इसलिए निश्चित आदि अंत चरम सीमा अथवा इन्हीं जैसे अन्य नुक्तों का प्रयोग, नए कहानीकारों ने अपने यहां नहीं किया है। जबकि इन नुक्तों ने पुरातन कहानी के शिल्प को दूर तक निर्देश दिए थे। युगीन विडंबना का तलख व्यंग्य का संप्रेषण नई कहानी में इतना सकल हुआ है कि उसके चलते व्यंग्य भाषा का रूप एक खास कोने से उभर सका है- सुरेंद्र ।
- व्यंग्य हेतु हरिशंकर परसाई की नयी कहानियां विशेष उल्लेखनीय हैं। अति यथार्थ की प्रवृत्ति के प्रस्फुटन एवं विकास ने नई कहानी के स्वरूप को निखारा। नई कहानी का नारा बुलंद करते हुए नवोदित कहानीकार नग्न यथार्थ का चित्रण स्वच्छंद रूप से अपनी कहानियों में कर रहे हैं आधुनिकता, समसामयिकता, न्यूनता आदि आकर्षक शब्दों की आड़ में अपनी भोगवादी प्रवत्तियों की अभिव्यक्ति को अवगुंठित करने के प्रयास में संलग्न है। इनके पास व्यक्तिगत दष्टिकोण एवं वैयक्तिक मान्यताओं का अभाव है, इसलिए स्वदेश-विदेश की प्रत्येक नवोदित प्रवत्तियों का अंधानुकरण करने के लिए वे सदा तत्पर रहते हैं। एक ही कहानीकार विभिन्न समयों में अनेक प्रवत्तियों से आक्रांत रहता है।
- प्रगतिशीलता का गुणगान करने वाले कहानीकार नग्न यौनवाद के पंक में सूकर जैसे लोट रहे हैं। उपेंद्रनाथ अश्क ने इस प्रवत्ति को फैशन का नाम दिया है तथा कहा है हिंदी कहानी में किसी प्रकार एक के बाद एक नए नए फैशन प्रचलित होते जा रहे हैं कभी अश्लील कहानियों का फैशन चलता है, कभी आंचलिक कहानियों का, अभी सेक्स तथा प्रतीकवाद का वास्तव में नए कहानीकारों में सुदढ़ आस्था, स्वस्थ जीवन दर्शन तथा व्यापक जीवन दृष्टि का नितांत अभाव है।
- वे वासना की संकीर्ण घाटियों और विलासिता की खंदक में फंसकर प्रगति की राह से विमुख होते हुए दष्टिगोचर होते हैं। यह स्थिति न केवल साहित्यकारों या साहित्य जगत के लिए घातक है अपितु मानव समाज के लिए विनाशक है।
नई कहानी के प्रकार
उपर्युक्त नई कहानी की विशेषताओं की सम्यक विवेचना तथा कहानीकारों की सामान्य विवेचना करके इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि नई कहानी को प्रवत्तियों की दृष्टि से छः वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
(i) शहरी मध्यवर्गीय जीवन चित्रण
- इस वर्ग में आने वाले कहानीकारों ने मुख्यतः नगरीय मध्यवर्गीय जीवन की आंतरिक परिस्थितियों का चित्रण किया है। इनके दष्टिकोण का अति यथार्थवादी लक्ष्य यौन विकृतियों, कुंठाओं, अभावों आदि के चित्रण का रहा है। शिल्प-शैली के क्षेत्र में भी इन्होंने नूतन पर जोर दिया है। इस वर्ग में आने वाले मुख्य कहानीकार एवं उनकी कृतियां इस प्रकार हैं।
- राजेन्द्र यादव कहानी संग्रह जहां लक्ष्मी कैद है', 'छोटे छोटे ताजमहल', 'एक पुरुष एक नारी आदि मोहन राकेश - संग्रह 'नए बादल', 'जानवर और जानवर', 'एक और जिंदगी, अमर कांत- 'जिंदगी और जोक' तथा धर्मवीर भारती, निर्मल वर्मा, मार्कंडेय, कमलेश्वर, डॉ. लक्ष्मी नारायण लाल, रमेश वक्षी, शैलेश भटियानी, नरेश मेहता, मन्नू भंडारी, आदि कहानीकार इस वर्ग में आते हैं।
(ii) ग्रामीण जीवन-
- इन्होंने आंचलिक पष्ठभूमि पर ग्रामीण जीवन को अंकित करने का प्रयास किया है। जिनमें फणीश्वर नाथ रेणु संग्रह 'ठुमरी': राजेन्द्र अवस्थी तषित संग्रह गंगा की लहरें मार्कंडेय महुआ आम के जंगल; शिव प्रसाद सिंह – इन्हें भी इंतजार है तथा शेखर जोशी आदि के नाम इस वर्ग में लिए जा सकते है।
(iii) हास्य व्यंग्यमयी
- इस वर्ग में हास्य व्यंग्यमयी कहानियों के लेखकों को लिया जा सकता है जिनमें केशवचन्द्र वर्मा, श्री लाल शुक्ल, हरिशंकर परसाई. शरद जोशी, रवीन्द्र त्यागी, शांति मेहरोत्रा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
(iv) व्यापक प्रगतिशील-
- यह वर्ग ऐसे कहानीकारों का है जिसमें व्यापक प्रगतिशील दष्टि से जीवन के विभिन्न पक्षों का चित्रण किया गया है। इस वर्ग में कृष्ण चन्द्र संग्रह गरजन की शाम', 'काला सूरज' 'घूंघट में गोरी जले' अमत राय संग्रह 'भोर से पहले', 'तिरंगे कफन', 'नूतन आलोक', भैरव प्रसाद आदि को स्थान दिया गया है।
(v)अन्य
- इसके अतिरिक्त अनेक ऐसे कहानीकार हैं जिन्हें किसी एक वर्ग में स्थान नहीं दिया जा सकता क्योंकि किसी विशिष्ट वर्ग से उनका संबंध नहीं है। जैसे विष्णु प्रभाकर, सत्यपाल आनंद, कृष्ण बलदेव वैद्य आदि।
(vi) नए कहानीकारों के विरुद्ध मोर्चा
- इस वर्ग को सचेतन भी कहा गया। नए कहानीकारों की अति सूक्ष्मता, अति वैयक्तिकता, संकीर्णता, एवं निष्प्राणता की प्रवत्तियों के विरुद्ध संगठित मोर्चा स्थापित करने एवं जीवन के व्यापक एवं स्वस्थ रूप को कहानी में स्थापित करने के लक्ष्य से अनेक कहानीकारों ने सचेतन कहानी के नाम से एक वर्ग की स्थापना की है।
- इस वर्ग में डॉ. महीष सिंह, मनहर चौहान, कुलभूषण, रमेश गौड़, हिमाशु जोशी, सुदर्शन चोपड़ा, सुरेन्द्र मल्होत्रा, जगदीश चतुर्वेदी, वेद राही, धर्मेंद्र गुप्त, योगेन्द्र कुमार लल्ला, राजीव सक्सेना, देवेन्द्र सत्यार्थी जैसे अनेक प्रतिभाशाली कहानीकार सम्मिलित हैं।
- यदि इन लेखकों ने मात्र वर्ग विशेष के विरोध को अपना लक्ष्य न बनाकर युग की व्यापक समस्याओं एवं जीवन की गंभीर अनुभूतियों के आधार पर जीवन के स्वस्थ व्यापक एवं उदात्त मूल्यों की प्रतिष्ठा का प्रयास किया होता तो वे निश्चित ही कहानी साहित्य को सही दिशा देने में सफल हो जाएंगे अन्यथा सचेतन कहानी' भी नई कहानी की तरह मात्र एक फैशन बन कर रह जाएगी।
हिंदी कहानी क्षेत्र में अवत्तीर्ण होने वाली अन्य नई प्रतिभाओं में
- कृष्णा सोबती, रजनी पनिकर, पुष्पा जायसवाल, उषा प्रियंवदा, विजय चौहान, सलमा सिद्दकी, डॉ. वीरेंद्र मेहंदीरत्ता संग्रह 'शिमले की क्रीम, पुरानी मिट्टी' तथा पुराने सांचे, सोमवीरा, प्रयाग शुक्ल, मेहरून्निसा परवेज, रघुवीर सहाय, शांति मेहरोत्रा, दूधनाथ सिंह, इंदु बाली, सुरेन्द्र पाल, गिरिराज, धर्मेंद्र, रवीन्द्र • कालिया, मत्युंजय उपाध्याय, अवध नारायण सिंह, बलवंत सिंह, गंगा प्रसाद विमल, परेश आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
नई कहानी विषय वस्तु
- वास्तव में विषय वस्तु की दृष्टि से तथाकथित नई कहानी एक ऐसे वर्ग के कहानीकारों के व्यक्तित्व, चरित्र एवं जीवन दर्शन का प्रतिनिधित्व करती है जिनका जीवन घर के बंद दरवाजों कॉलेज की दीवारों, शहर की गलियों और नगर के मंदिरालयों में बीता है, जिनकी जीवन-यात्रा काफी हाउसों से लेकर पत्र संपादकों के कार्यालयों तक सीमित है, जिनकी सबसे बड़ी समस्या दमित वासना सेक्स की भूख, सुंदर प्रेयसियों की चाह, और भोगी हुई पत्नियों का तलाक है, जिनका आदर्श फ्रायड, सार्त्र और कामू हैं जो रहते हैं भारत में किन्तु स्वप्न लंदन की रात या पेरिस के मध्याह्न का लेते हैं तथा काफी का प्याला, सिगरेट का धुंआ और संपादक का मनीऑर्डर ही जिनकी रचनाओं का सबसे बड़ा प्रेरणा स्रोत है। ऐसी स्थिति में उनसे किसी गंभीर अनुभूति, व्यापक अनुभव एवं बड़े सत्य की आशा करना व्यर्थ है।
- कहानी के नई कहानी' स्वरूप के आगमन से अन्य नामों से कहानी के अनेक रूप प्रचलन में आ गए।