कहानी शब्द का अर्थ एवं व्याख्या, कहानी : उद्भव एवं विकास
कहानी : उद्भव एवं विकास
- मानव के आदि काल से कहानी कहने, सुनने, सुनाने की प्रवृत्ति चली आ रही है। विश्व के प्राचीनतम ग्रंथों में कहानी का महत्व प्रायः देशों में है। भारतीय वांगमय में वैदिक संस्कृत, लौकिक संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश तथा पुरानी हिंदी में किसी न किसी स्वरूप में कहानी विद्यमान है, इसके अतिरिक्त पुराणों, उपनिषदों, ब्राह्मणों, रामायण, महाभारत, पालि जातक तथा पंचतंत्र आदि में कहानियों का भंडार भरा पड़ा है। इन सभी कहानियों में उपदेशात्मक अथवा धार्मिक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है। आधुनिक अर्थ में इन्हें कहानी नहीं कहा जा सकता है।
कहानी शब्द का अर्थ एवं व्याख्या
- 'कहानी' शब्द संस्कृत कथानिका प्राकृत कहाणिआ सिंहली-मराठी कहानी से विकसित हुआ है जिसका अर्थ मौखिक या लिखित कल्पित या वास्तविक, तथा गद्य या पद्य में लिखी हुई कोई भाव प्रधान या विषय प्रधान घटना, जिसका मुख्य उद्देश्य पाठकों का मनोरंजन करना, उन्हें कोई शिक्षा देना अथवा किसी वस्तु स्थिति से परिचित कराना होता है। इसका अंग्रेजी पर्याय 'स्टोरी' है।
- आधुनिक हिंदी कहानी का प्रारंभ उन्नीसवीं सदी में हुआ जिसे कहानी या कथा कहते हैं इसका शाब्दिक अर्थ 'कहना' है। इस अर्थ के अनुसार जो कुछ भी कहा जाये कहानी है। किंतु विशिष्ट अर्थ में किसी विशेष घटना के रोचक ढंग से वर्णन को 'कहानी' कहते हैं। 'कथा' एवं 'कहानी' पर्यायवाची होते हुए भी समानार्थी नहीं हैं। दोनों के अर्थों में सूक्ष्म अंतर आ गया है।
- कथानक व्यापक अर्थ की प्रतीति कराता है इसमें कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी आदि का समावेश हो जाता है। कथा साहित्य के अंतर्गत मुख्य रूप से कहानी एवं उपन्यास को ही माना जाता है जबकि कहानी के अंतर्गत कहानी और लघु कथाएं ही आती हैं। यूरोप में विकसित कहानी का स्वरूप अंग्रेजी और बंगला के माध्यम से बीसवीं शताब्दी के आरंभ में भारत आया।
- प्राचीन कहानी एवं आधुनिक कहानी के स्वरूप में पर्याप्त अंतर है। आधुनिक कहानी जनसाधारण मनुष्य जीवन से संबंधित लौकिक यथार्थवादी विचारात्मक धरती के सुख तक सीमित है।
हिंदी की प्रथम कहानी कौन सी है
- हिंदी की प्रथम कहानी किसे माना जाए इस विषय में पर्याप्त मतभेद है। लगभग दर्जन भर कहानियां प्रथम कहानी की होड़ में सम्मिलित हैं जिन्हें आलोचक मान्यता प्रदान करते हैं।
- सन् 1803 ई. में लिखी गई, हिंदी गद्य में कहानी शीर्षक से प्रकाशित होने वाली प्रथम रचना रानी केतकी की कहानी है। इस कहानी के लेखक इंशा अल्ला खां हैं।
- डॉ. राम रतन भटनागर ने रानी केतकी की कहानी को हिंदी प्रथम कहानी स्वीकारा है। किंतु इसकी संयोग बहुलता, अतिमानवीयता के कारण इसे प्रथम कहानी के रूप में नहीं स्वीकारा जा सकता है क्योंकि ये विशेषताएं आधुनिक कहानी में क्षम्य नहीं है।
- इसके विषय में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का कथन समीचीन प्रतीत है कि यह नई परंपरा की प्रारंभिक कहानी नहीं है, बल्कि मुस्लिम प्रभावापन्न परंपरा की अंतिम कहानी है।
- डॉ. बच्चन सिंह ने किशोरी लाल गोस्वामी कृत प्रणायिनी परिणय' (सन् 1887 ई.) को हिंदी की प्रथम कहानी माना है जबकि स्वयं इसके लेखक ने इसे उपन्यास कहा है। कारण यह बताया गया है कि सन् 1900 ई. तक कथा साहित्य को उपन्यास कहने की परिपाटी थी। इसलिए यह भी प्रथम कहानी नहीं है। क्योंकि इसका विभाजन सात निष्कों में किया गया है।
- प्रत्येक निष्क को अलग खंड मान लेने पर कहानी कई खंडों में विभक्त प्रतीत होती है। इस तरह खंडों में विभाजित कर कहानी लिखने की परिपाटी चलती रही है। प्रत्येक निष्क या खंड के प्रारंभ में श्लोक बद्ध नीति कथन हैं जो कहानी के रूप विन्यास में बाधक सिद्ध होते हैं। इस कहानी के रूप बंध पर आख्यान पद्धति का पूर्ण प्रभाव हैं। संस्कृतनिष्ठ शब्दावली में केन्द्रीय भाव प्रगाढ़ प्रेम की सुखद परिणति दिखलाई गई है।
- रैवरेंट जे. न्यूटन कृत जमींदार का दष्टांत' तथा अनाम 'छली अरबी की कथा' नामक दो कहानियां अलीगढ़ से प्रकाशित 'शिलापंख' मासिक के 'कल की कहानी' स्तंभ में प्रकाशित देखकर यह अनुमान लगाया किंचित ये ईसाई धर्म प्रचार हेतु लिखी गई है। 'शिलापंख' के संपादक राजेंद्र गढ़वालिया ने सन् 1871 ई. में प्रकाशित इस कहानी को अब तक प्राप्त कहानियों में प्राचीनतम माना है। प्राचीनतम होकर भी प्रथम कहानी नहीं क्यों धर्म प्रचार हेतु लिखी गई है।
- डॉ. सुरेख सिन्हा गोस्वामी कृत इन्दुमती' को प्रथम कहानी मानने पर बल देते हुए लिखा है, "प्रथम कहानी का निर्धारण समय क्रम से होना चाहिए न कि कथानक, शिल्प, विचार धारा, या अन्य किसी दष्टिकोण से।"
- 'रानी केतनी की कहानी के पश्चात् राजा शिव प्रसाद सितारे हिंद कृत 'राजा भोज का सपना; भारतेंहु हरिश्चन्द्र कृत 'अद्भुत अपूर्व स्वप्न का उल्लेख किया जा सकता है जिसमें कहानी की सी रोचकता विद्यमान है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आधुनिक ढंग की कहानियों का आरंभ 'सरस्वती पत्रिका के प्रकाशन काल से स्वीकारा है। '
सरस्वती' में प्रकाशित कहानियां इस प्रकार है
(i) इंदुमती किशोरी लाल गोस्वामी (1900 ई.)
(ii) गुलबहार किशोरी लाल गोस्वामी (1902 ई.)
(iii) प्लेग की चुडैल मास्टर भगवान दास (1902 ई.)
(iv) ग्यारह वर्ष का समय राम चन्द्र शुक्ल (1903 ई.)
(v) पंडित और पंडितानी गिरजादत्त बाजपेयी (1903 ई.)
(vi) दुलाई वाली बंग महिला (1907 ई.)
- ये सभी कहानियां सरस्वती' में प्रकाशित हुई थीं। इस प्रकार प्रथम कहानीकार किशोरी लाल गोस्वामी तथा प्रथम कहानी 'इंदुमती' प्रमाणित होती है। 'इंदुमती' की चर्चा प्रायः प्रत्येक समीक्षक ने की है। इस पर टेम्पेस्ट की छाया मानकर इस की मौलिकता पर भी प्रश्न चिह्न लगा दिया। रामचन्द्र शुक्ल इंदुमती' को ही प्रथम कहानी मानते हैं।
- रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है, 'यदि 'इंदुमती' किसी बंगला कहानी की छाया नहीं है तो हिंदी की यही पहली मौलिक कहानी ठहरती है इसके उपरांत "ग्यारह वर्ष का समय' और 'दुलाईवाली' का नंबर आता है।"
- सुरेश सिन्हा को शुक्ल के कथन में चालाकी की गंध आती है। उन्हें लगता है कि इंदुमती को अनूदित करार देकर अपनी कहानी 'ग्यारह वर्ष का समय' को प्रतिष्ठित करना चाहते थे। किंतु यह प्रमाणित हो चुका है कि 'इंदुमती' मौलिक रचना नहीं है।
- डॉ. लक्ष्मी नारायण लाल शिल्प की दृष्टि से रामचन्द्र शुक्ल कृत 'ग्यारह वर्ष का समय (सन् 1903) हिंदी की प्रथम कहानी है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी इसे आधुनिकता के लक्षण से युक्त माना है।
- देवी प्रसाद वर्मा, ओंकार शरद और देवेश ठाकुर आदि समीक्षकों ने छत्तीसगढ़ मित्र' में प्रकाशित माधव राव सप्रे कृत 'एक टोकरी भर मिट्टी (सन् 1901 ) को हिंदी की प्रथम कहानी का श्रेय दिया है। देवेश ठाकुर के अनुसार काल क्रमानुसार अपने समय के यथार्थ परिवेश से जुड़ी है। शिल्प की दृष्टि से सहजता, सरलता तथा भाषा की शुद्धता इसमें है।
- अतः जब तक इस दिशा में और अधिक शोध न हो जाए मान लेना चाहिए कि माधव राव सप्रे कृत 'एक टोकरी भर मिट्टी हिंदी की प्रथम कहानी है। आर्थिक चेतना की कहानी होने के कारण यह आधुनिक अर्थमूला कहानियों की पहचान की पहली हिंदी कहानी है।
- (डॉ. रामदरश मिश्र) 'दुलाईवाली' (सन् 1907 ई.) को यथार्थवादी चित्रण की सर्वप्रथम रचना माना है। किंतु वंग महिला का नाम नहीं ज्ञात है। प्रो. वासुदेव 'इंदु' में प्रकाशित ग्राम (1911 ई.) को हिंदी की पहली कहानी का गौरव प्रदान करते हैं। प्रसाद की यह पहली कहानी है। शिवदान सिंह चौहान के विचार में हिंदी कहानी का श्रीगणेश प्रसाद और प्रेमचन्द से माना जाना चाहिए।
- राजेन्द्र यादव चन्द्रधर शर्मा गुलेरी कृत उसने कहा था ( 1916) को हिंदी की पहली मौलिक कहानी मानना चाहिए मानते हुए इसी से आधुनिक हिंदी कहानी का श्रीगणेश मानना चाहिए ।
- अब तक 'दुलाई वाली' को ही प्रथम कहानी माना जाता है। जमींदार का दष्टांत' (1871 ई.) को अंग्रेजों की लिखी कहानी को प्रथम श्रेय नहीं मिलना चाहिए।
- 'दुलाईवाली' या ग्यारह वर्ष का समय को हिंदी की प्रथम कहानी का श्रेय मिलना श्रेयस्कर है।