उपन्यास विकास - भारतेंदु युग प्रेमचंद के पूर्व का युग
- भारतेंदु ने सर्व प्रथम पूर्ण प्रकाश और चन्द्रप्रभा' नामक उपन्यास का अनुवाद किया। एक मौलिक उपन्यास की रचना भी प्रारंभ की थी दुर्भाग्य से पूर्ण न हो सका।
- भारतेंदु युग के अन्य कई लेखकों ने भी उपन्यासों की रचना की, जिनमें श्रद्धाराम फिल्लौरी का 'भाग्यवती', रत्न चंद प्लीडर का 'नूतन चरित्र' - 1883, बालकृष्ण भट्ट नूतन ब्रह्मचारी 1886 तथा सौ अजान एक सुजान' – 1892; राधा कृष्ण दास निस्सहाय हिंदू 1890; राधा चरण गोस्वामी विधवा विपत्ति' - 1888; कार्तिका प्रसाद खत्री जया' 1896 बालमुकुन्द गुप्त कामिनी' आदि उल्लेखनीय हैं।
- डॉ. विजय शंकर मल्ल ने फिल्लौरी के 'भाग्यवती' को हिंदी का प्रथम उपन्यास घोषित किया है किन्तु उन्होंने अपनी घोषणा की पष्टि अपेक्षित प्रमाणों या कारणों से नहीं की।
अनूदित उपन्यास
- इन लेखकों ने मौलिक उपन्यासों के अतिरिक्त बंगला के उपन्यासों का हिन्दी में अनुवाद भी किया। बाबू गदाधर सिंह - 'बंगविजेता', 'दुर्गेश नंदिनी: राधा कृष्ण दास 'स्वर्ण लता': प्रताप नारायण मिश्र 'राज सिंह', 'इंदिरा तथा राधारानी', राधाचरण गोस्वामी 'विरजा', 'जावित्री' तथा 'मण्मयी आदि का अनुवाद किया। बाबू रामकृष्ण वर्मा एवं कार्तिका प्रसाद खत्री ने उर्दू और अंग्रेजी के अनेक रोमांटिक एवं जासूसी उपन्यासों का अनुवाद हिंदी में किया। भारतेंदु युग में अनूदित उपन्यासों की प्रधानता रही है। मौलिक उपन्यासों का अनुवाद हिंदी में किया।
- भारतेंदु युग में अनूदित उपन्यासों की प्रधानता रही है। मौलिक उपन्यासों में भी कला विकास दष्टिगोचर नहीं होता है। उनमें इतिवत्त एवं घटनाओं की प्रधानता, चरित्र चित्रण का अभाव, उपदेशात्मकता का आधिक्य एवं शैली की अपरिपक्वता दिखलाई पड़ती है।
- हिंदी के मौलिक उपन्यासों की रचना का श्रेय भारतेंदु कालीन उपन्यासकार त्रयी-देवकी नंदन खत्री, गोपाल राम गहमरी तथा राधाचरण गोस्वामी को है।
- देवकी नंदन खत्री ने सन् 1891 ई. में चंद्रकांता' एवं चंद्रकांता संतति की रचना की जिनमें तिलस्मी एवं ऐय्यारी का वर्णन है। इन उपन्यासों को इतनी लोकप्रियता मिली कि अनेक लोगों ने इन्हें पढ़ने के लिए हिंदी सीखी।
- गहमरी ने 'जासूस' नामक पत्र का संपादन प्रारंभ किया जिसमें लगभग पांच दर्जन से अधिक स्वरचित उपन्यासों का प्रकाशन किया। अनेक उपन्यासों के आधार अंग्रेजी के जासूसी उपन्यास होते थे।
- गोस्वामी ने उपन्यास पत्रिका निकाली जिनमें उनके छोटे-बड़े लगभग 65 उपन्यास प्रकाशित हुए। गोस्वामी के उपन्यासों का विषय सामाजिक था। किन्तु उनमें कामुकता एवं विलासिता का चित्रण अत्यधिक था जिसके परिणामस्वरूप उपन्यास त्रयी की ये रचनाएं उपन्यास कला की दृष्टि से अति साधारण कोटि में आती है। इनमें अस्वाभाविक घटनाओं की भरमार है।
- खत्री, गहमरी और गोस्वामी की समन्वित त्रिवेणी तथा प्रेमचन्द की अजस्र प्रवाहिनी धारा को मिलाने का श्रेय अयोध्यासिंह उपाध्याय, लज्जाराम मेहता तथा कुछ अनुवादकों को है। हरिऔध ने 'ठेठ हिंदी का ठाठ' तथा 'अधखिला फूल' लिखकर आई. सी.एम. के विद्यार्थियों के लिए हिंदी मुहावरों की पाठ्य पुस्तक का अभाव पूरा किया। मेहता ने 'आदर्श हिंदू' तथा 'हिंदू गहस्थ' लिखकर सुधारवाद का झंडा ऊंचा किया।