ललित निबंध व्यंग्य निबंध क्या होते हैं
ललित निबंध किसे कहते हैं ?
- ललित निबंधों में लालित्य पर अधिक बल दिया जाता है। यह निबंध की नई विधा नहीं है। लालित्य निबंध की विशिष्ट विशेषता है। वर्तमान में इसे प्रवृत्ति के आधार अलग विधा मान लिया गया है। निबंधकार अपने भावों, विचारों को सरस, अनुभूतिजन्य, आत्मीय एवं रोचकरूप में प्रस्तुतीकरण करता है। ललित निबंधों को गंभीर विश्लेषण, ऊबाऊ वर्णन, जटिलता से बचाया जाता है।
- ललित निबंधकारों में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का प्रमुख स्थान है। उनके निबंधों में मानवतावादी जीवन दर्शन एवं संवेदनशीलता दोनों दष्टिगोचर होते हैं। निबंधों में पांडित्य के साथ नवीन चिंतन-दर्शन भी दिखलाई पड़ता है। विचार और वितर्क "अशोक के फूल" तथा कल्पलता आदि उनके प्रमुख निबंध संग्रह हैं। इसके अतिरिक्त ललित निबंधकारों में विद्यानिवास मिश्र, कुबेर नाथ राय तथा विवेकी राय आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
- विद्यानिवास मिश्र संस्कृत भाषा एवं साहित्य के उद्भट विद्वान हैं। लोक साहित्य, साहित्य और लोक संस्कृति में उनकी गहरी पैठ है। शैली भावपूर्ण एवं काव्यमय है। प्रमुख निबंध संग्रह मेरे राम का मुकुट भीग रहा है, तुम चन्दन हम पानी, संचारिणी, लागौ रंग हरी तथा तमाल के झरोखे से आदि हैं।
व्यंग्य निबंध किसे कहते हैं
- हिंदी साहित्य में भारतेंदु युग में ही व्यंग्य का प्रारम्भ हो चुका था किन्तु स्वातंत्र्योत्तर युग में व्यंग्य निबंध के नए युग का सूत्रपात हुआ। इसका श्रेय हरिशंकर परसाई को है। उन्होंने व्यंग्य को एक स्वतन्त्र विधा बनाने का यत्न किया। वास्तव में व्यंग्य स्वतन्त्र विधा नहीं है।
- व्यंग्य निबंधों में निबंधकार समाज की समस्या विशेष पर निबंध लिखता है। व्यंग्य से पाठक में नवीन दष्टि और सामाजिक जागरुकता पैदा करता है।
- हिंदी व्यंग्य लेखकों में हरिशंकर परसाई. शरद जोशी, रवीन्द्र नाथ त्यागी, गोपाल प्रसाद व्यास, बरसाने लाल चतुर्वेदी, प्रभाकर माचवे बेढब बनारसी तथा हरिश्चन्द्र वर्मा आदि प्रमुख हैं।
- हिंदी निबंध साहित्य ने थोड़े से समय में ही पर्याप्त उन्नति कर ली है। भारतेन्दु युग से आज तक निबंध साहित्य प्रौढ़तर होता जा रहा है। कुछ निबंधकार पाश्चात्य निबंधकारों से प्रभावित होकर हिंदी साहित्य में भाषा एवं सौंदर्य की विहीनता का प्रतिपादन करते हैं। निबंध में अनुभूति मुख्य तत्व है।
- वर्तमानकाल में निबंध में अनुभूति शून्यता आती जा रही है। निबंधकार साहित्यिक समस्याओं तक अपने को संकुचित करता जा रहा है। अन्य परिवेशों को अपने निबंध का विषय बनाने में अपने को असफल पाता जा रहा है। प्रफुल्लता, ताजगी, रोचकात तथा व्यंग्यात्मकता से वर्तमान निबंध दूर होता रहा है। ये प्रवत्तियां हिंदी निबंध के हास का द्योतन करती है। हिन्दी निबंध लेखकों का इस ओर विशेष ध्यान देना वर्तमान अनिवार्यता है।