हिंदी कहानी विकास के चरण (Hindi Kahani Vikas Ke Chran)
हिंदी कहानी विकास के चरण
- हिंदी कहानी विकास हिंदी कहानी के विकास में प्रेम चन्द केन्द्र बिन्दु हैं जिन्हें आधार बनाकर प्रेम चन्द पूर्वोत्तर, प्रेमचन्द, प्रेमचन्द परवर्ती युग के विभाग द्वारा संपूर्ण कहानी काल का विवेचन किया जाता रहा है। यह कहना कि प्रसाद का महत्व खो जाता है उनका युग नहीं बन पाता है।
- वे मूलतः कवि हैं उनका युग माना जा सकता है माना जाए। चरणों में अध्ययन वैज्ञानिक न होते भी आसान है किंतु सन् 1950 ई. से आज तक एक ही चरण नहीं माना जाना चाहिए।
हिंदी कहानी विकास के चरण
हिंदी कहानी विकास को लगभग पांच चरणों में कहानी के विकास को विभाजित किया जाना श्रेयस्कर प्रतीत होता है-
(i) प्रथम चरण (सन् 1870 1915 ई.)
(ii) द्वितीय चरण (सन् 1916 1935 ई.)
(iii) ततीय चरण (सन् 1936 1955 ई.)
(iv) चतुर्थ चरण (सन् 1956 1975 ई.)
(v) पंचम चरण (सन् 1976 से आज तक)
हिंदी कहानी विकास का प्रथम चरण (सन् 1870-1915 ई.)
- हिंदी का प्रारंभिक कहानियों के विषय में डॉ. रामदरश मिश्र का कथन सत्य है कि इनमें यथार्थ समर्थित आदर्श की व्यंजना लक्ष्य रूप में विद्यमान है। 'इंदुमति' 'दुलाई वाली', 'ग्यारह वर्ष का समय', 'जमींदार का दष्टांत', 'प्रणयिनी परिणय', 'छली अरब की कथा' तथा 'एक टोकरी भर मिट्टी आदि प्रमुख कहानियां हैं। जमींदार दष्टांत तथा प्रणयिनी परिणय में परोपकारी भावना का चित्रण किया गया है। एक टोकरी भर मिट्टी की परिणति परहित में हुई है।
- जमींदार का दष्टांत' में महाजन कृषकों की परेशानी से अवगत होकर सोचता है कि मेरे पास अपार धन दौलत है। इनके आर्थिक संकट का निवारण मैं कर सकता हूं। 'प्रणयिनी परिणय' में राजाराम शास्त्री की सहायता करता है।
- परोपकारी वृत्ति के आदर्श के साथ राज्य कर्मचारियों की धन लिप्सा के यथार्थ की ओर भी संकेत किया गया है ऐसी चपलता, क्या राज्य कर्मचारी ऐसे-ऐसे भयंकर लालच से बच सकते हैं? फिर तब क्या अनर्थ न्यून होने की संभावना हो सकता है? यदि इस समय मैं न होता तो इधर न्यायाधीश अवश्य ही घूस लेकर इसे छोड़ देते।" ग्यारह वर्ष का समय में प्रेम के आदर्श की अभिव्यक्ति हुई है इस अदष्ट प्रेम का कर्म और कर्तव्य से घनिष्ठ संबंध है। इसकी उत्पत्ति केवल सदाशय और निःस्वार्थ हृदय में ही हो सकती है।
- इस कालावधि की अधिकांश कहानियों में भावुकता और संयोग का बाहुल्य दष्टिगोचर होता है। ग्यारह वर्ष का समय में दीर्घ काल के उपरांत पति पत्नी का मेल एकाएक एक टूटे फूटे निर्जन भवन में हो जाता है। 'इंदुमती' में भी संयोग से ही चन्द्रशेखर इंदुमती का अतिथि बन जाता है। राधिका रमण सिंह कृत 'कानों में कंगना' में गहरी भावुकता के दर्शन होते हैं। अधिकांश कहानियां अंग्रेजी एवं बंगला कहानियों से प्रभावित हैं। कहानी शिल्प अति अव्यवस्थित है मात्र 'छली अरब की कथा और एक टोकरी भर मिट्टी शिल्प की दष्टि से कसी हुई कहानियां हैं।
- यद्यपि इन कहानियों का महत्व नहीं है। इतना अवश्य है कि अब तक कहानीकारों के एक मंडल का गठन हो चुका था तथा पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से कहानी एक लोकप्रिय विधा का रूप धारण करती जा रही थी। (देवेश ठाकुर)