नई कविता के प्रमुख रचनाकार व्यक्तित्व कृतित्व साहित्यिक विशेषताएं
नई कविता के प्रमुख रचनाकार Nai Kavita Ke Rachna Kar
सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय
सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय व्यक्तित्व-
- अज्ञेय का जन्म ( 7 मार्च 1911-1987 ई.) ग्राम कसया जनपद देवरिया में हुआ था। पिता का नाम हीरानंद था। बी.एस.सी. परीक्षा उत्तीर्ण की। अंग्रेजी, हिंदी तथा संस्कृत का स्वाध्ययन किया। अज्ञेय का जीवन यायावरी एवं क्रांतिकारी था। इसलिये ये किसी व्यवस्था में बंधकर नहीं रह सके। सन् 1943-1946 ई. तक सेना में सेवा की। कई बार सांस्कृतिक कार्यों हेतु अमेरिका गए। कुछ दिनों तक जोधपुर विश्वविद्यालय में कार्य किया। कवि होने के साथ-साथ प्रख्यात कथाकार, समीक्षक एवं चिंतक-विचारक थे।
सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय कृतित्वः
- काव्य आंगन के पार द्वार', 'अरी ओ करुणा प्रभामय', 'हरी घास पर क्षण भर 'इन्द्र धनु रौंदे हुए ये कविताएं- 'भग्न दूत' एवं 'चिंता' नामक छायावादी कविताओं से काव्य यात्रा प्रारंभ की दुख सबको मांजता है, अच्छा 'खंडित सत्य सुघर नीरंध्र मषा से एवं सांप |
- संपादन- तारसप्तक', 'इत्यलम्'
सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय की साहित्यिक विशेषताएं
- छायावादी कविताओं से काव्य यात्रा प्रारंभ करने वाले अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता के विशिष्ट कवि हैं। इस धारा के कवियों में इनका काव्य सबसे अधिक वैविध्यपूर्ण है। उनका स्वर अहं समाज, प्रेम-दर्शन, आदिम गंध विज्ञान चेतना, यंत्र सभ्यता लोक परिवेश, यातना बोध विद्रोह की ललकार, प्रकृति सौंदर्य मानव सौंदर्य तक विस्तृत है। इस व्याप्ति में संवेदनशीलता या अनुभूति सर्वत्र साथ नहीं देती है। कहीं कहीं कोरा बुद्धिवाद या नीरसता उभर आती है।
- 'तारसप्तक' की कविताओं के साथ अज्ञेय की नई कविता यात्रा का आरंभ होता है। जो बाद में इत्यलम्' में संग्रहीत दष्टिगोचर होती है। अज्ञेय में संवेदना के साथ सजगता एवं बुद्धिवाद की प्रधानता है। बुद्धिवाद उनकी संवेदना को नियंत्रित करता साथ ही कभी सूक्तियों के रूप में कभी व्यंग्य के रूप में, कभी युग चिंतन और युग बोध के बिंब विधान के रूप में व्यक्त होता है जो संवेदना या अनुभूति से अंतरंग भाव से जुड़ा न होने के कारण बिंब रचना के होते हुए भी बहुत दूर तक प्रभावविहीन हो जाता है। अज्ञेय की कविताओं में स्वर वैविध्यता का कारण उनका बुद्धिवाद है।
- संवेदना एवं बुद्धिवाद की यह सहयात्रा जहां रोमानी परंपरा को तोड़कर नए सौंदर्यबोध से सम्पन्न स्वस्थ काव्य की सष्टि करती है वहीं बुद्धिवादिता का अतिरेक शुष्क, दुरूह और नव रहस्यवादी कविता को जन्म देता है। अज्ञेय की छोटी-छोटी कविताएं सौंदर्य और प्रभाव की सष्टि की दृष्टि से विशिष्ट एवं सक्षम हैं वे चाहे व्यंग्य करती हों, चाहे कोई सौंदर्य का अनुभव जगाती हों, चाहे रूप की अभिव्यक्ति करती हों।
गिरिजा कुमार माथुर व्यक्तित्व कृतित्व साहित्यिक विशेषताएं
गिरिजा कुमार माथुर व्यक्तित्व-
- गिरिजा कुमार माथुर का जन्म सन् 1918 ई. को मध्य प्रदेश के एक कस्बे में हुआ था। अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. तथा एल.एल.बी. परीक्षा उत्तीर्ण कर वकालत प्रारंभ की। कुछ समय पश्चात् दिल्ली सेक्रेटियेट में सेवा की। अंत में आल इंडिया रेडियो में कार्य करने लगे।
कृतित्व-
- 'नाश और निर्माण, धूप के धान' तथा 'शिलापंख चमकीले ।
गिरिजा कुमार माथुर साहित्यिक विशेषताएं-
- माथुर में प्रयोग एवं संवेदना का सुंदर सामंजस्य है। अर्थात् बुद्धिवाद या फैशन के कारण कहीं प्रयोग नहीं किया गया है। उनका प्रयोग उनकी अनुभूतियों और संवेदनाओं के सूक्ष्म कोणों, रंगों एवं प्रभावों को व्यक्त करने की आकुलता से संबद्ध है। छंद, भाषा, बिंब विधान सभी दष्टियों से प्रयोग किए गए हैं।
- इनके छंदों में लयात्मकता सर्वत्र देखी जा सकती है। कहीं कहीं कवि ने सवैया छंद को तोड़कर उसे नए छंद में परिवर्तित कर दिया है। उनके काव्य के दो स्वरूप हैं-
(i) व्यक्तिगत अनुभूतियां- मजीर' एवं 'तारसप्तक में उनकी वैयक्तिक अनुभूतियां दष्टिगोचर होती हैं।
(ii) सामाजिक
अनुभूतियां- 'नाश और निर्माण
तथा 'शिलापंख चमकीले' में सामाजिक जीवन
की अनुभूतियां एवं यथार्थ का स्वर मुखरित हुआ है।
- 'तारसप्तक' में जीवन यथार्थ के नए आयाम का प्रयोग नहीं किया गया है। वे अपने परिवेश में जीवन सत्यों से अलग दष्टिगोचर होते हैं उनसे जुड़ाव की प्रतीति नहीं होती है। संवेदना रोमानी है। प्रकृति की रंगमयता, उसकी उदासी, सौंदर्य-प्यास, प्रेम-प्रसंगों की स्मतियों का दंश, सुंदर वातावरण, साथी विहीनता तथा अकेलेपन का बोध आदि इनके अनुभव एवं संवेदना के अंग हैं। इनके रचना लोक में विभिन्न रूप-रंगों, ध्वनियों, गंधों एवं स्पर्शों में इन्हीं का रूप दिखलाई पड़ता है। सीमित जीवन अनुभवों में भी माथुर एक विशिष्ट कवि हैं क्योंकि वे इन अनुभवों, अति गहन एवं सूक्ष्म छायाओं के सच्चे पारखी हैं।
- 'नाश और निर्माण में 'तारसप्तक' की कविताएं भी संकलित हैं इसके अतिरिक्त कुछ ऐसी कविताएं भी हैं जो सामाजिक चेतना से अनुप्राणित हैं। इनकी कविताओं में शक्ति, उल्लास एवं सामाजिक जीवन का स्पंदन है। पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के रूप में विषम परिणामों का तीव्र अनुभव तथा उनके विरुद्ध समाजवादी चेतना का प्रसार है।
गजानन माधव मुक्तिबोध' व्यक्तित्व कृतित्व साहित्यिक विशेषताएं
गजानन माधव मुक्तिबोध व्यक्तित्व-
- इनका जन्म (सन् 1917-1964 ई.) ग्वालियर के एक कस्बे में हुआ। बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण कर अध्यापन कार्य करने लगे। पत्रकारिता का कार्य प्रारंभ कर दिया पुनः अध्यापन कार्य करने लगे। ये विशिष्ट विचारक, समीक्षक तथा कथाकार थे। अपनी पूरी पीढ़ी में मुक्तिबोध का व्यक्तित्व विशेष महत्व रखता है।
कृतित्व-
- 'ब्रह्म राक्षस' तथा 'अंधेरे में इनकी प्रमुख कविताएं हैं।
गजानन माधव मुक्तिबोध साहित्यिक विशेषताएं-
- इस पीढ़ी और इससे लगी हुई परवर्ती पीढ़ी के लगभग सारे महत्वपूर्ण जिनमें अज्ञेय, गिरिजा कुमार माथुर, शमशेर बहादुर सिंह तथा धर्मवीर भारत आदि प्रमुख हैं कवियों ने रूमानी कविता का त्याग कर नया प्रयोग करने का प्रयास किया किंतु रूमानी संवेदना और तत्कालीन भाषा से उनको मुक्ति नहीं मिल पाई।
- किंतु मुक्तिबोध मात्र ही ऐसे कवि हैं जिनका अनुभव जगत अति व्यापक है। उनकी प्रगतिवादी दष्टि परिवेश बोध, सामाजिक चिंतन तथा अनुभव वैविध्य को और बलवान बनाती है। जिसके फलस्वरूप कहा जा सकता है कि बाद में जीवन की बहुविध छवि को लेकर विकसित होने वाली नई कविता के अग्रज एवं श्रेष्ठ कवि सच्चे अर्थों में मुक्तिबोध ही हैं। लोक परिवेश गहन संपक्ति तथा लोक जीवन के प्रति अटूट विश्वास एवं आस्था उनकी सबसे बड़ी शक्तियां हैं।
- शिल के प्रति असावधानी उनके अनुभव खंडों को एक सूत्र में बांध नहीं पाती और समग्रतः बिंबों की रचना में संश्लिष्टता एवं सघनता नहीं भर पाती है। मुक्तिबोध में फैंटेसी है अर्थात् एक जादुई कथा में आधुनिक जीवन अनुभव की अभिव्यक्ति है। 'अंधेरे में' एवं 'ब्रह्मराक्षस इस दष्टि से विशेष महत्व की कविताएं हैं। उनकी अनुभूति वैयक्तिक ही नहीं है अपितु अपने परिवेश से गहनता से संबद्ध है तथा अनेक आवतों से लिपटी है। कवि आलोच्च दष्टि रचनात्मक संदर्भ में लक्षित होने वाली सार्थकता निरर्थकता को परखती चलती है।
भवानी प्रसाद मिश्र व्यक्तित्व कृतित्व साहित्यिक विशेषताएं
भवानी प्रसाद मिश्र व्यक्तित्व
- भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म सन् 1914 ई. में मध्य प्रदेश में हुआ। बी. ए. तक शिक्षा प्राप्त की। कल्पना' पत्रिका के संपादक बन गए। वहां से आल इंडिया रेडियो की सेवा में लग गए। अवकाश प्राप्त करने तक संपूर्ण गांधी वाङ्मय के संपादक मंडल में रहे।
भवानी प्रसाद मिश्र कृतित्वः
- कविताएं- 'कमल के फूल', 'वाणी की दीनता', 'टूटने का सुख', 'सतपुड़ा के जंगल', 'सन्नाटा', 'गीत फरोश', 'असाधारण' एवं स्नेह शपथ आदि प्रमुख कविताएं हैं जिनमें गीत फरोश को विशेष ख्याति मिली।
भवानी प्रसाद मिश्र साहित्यिक विशेषताएं-
- ये सहज संवेदना के कवि हैं। इनकी संवेदना कहीं अति सूक्ष्म एवं आत्मसात हैं, जैसे 'कमल के फूल', 'वाणी की दीनता' तथा 'टूटने का सुख' आदि में कहीं अति प्रत्यक्ष और परिवेश संपक्त है, जैसे- सतपुड़ा के जंगल, 'सन्नाटा' तथा गीत फरोश' आदि कविताओं में कवि की सहजता, सघन अनुभूति तथा संयत अभिव्यक्ति के क्षणों में जहां अति रम्य काव्य का सजन करती है वहीं फॉर्मूलाबद्ध आदर्शवादिता, अनुभूति के सतहीपन तथा अभिव्यक्ति के तुकांतवादी विस्तार की अव्यवस्था में सामान्य काव्य की 'असाधारण' एवं 'स्नेह शपथ' जैसी उनकी अनेक कविताएं सामान्य हैं। उनकी भाषा और अभिव्यक्ति में लोक जीवन का पूर्ण प्रभाव परिलक्षित होता है।
शमशेर बहादुर सिंह व्यक्तित्व कृतित्व साहित्यिक विशेषताएं
शमशेर बहादुर सिंह व्यक्तित्व
- शमशेर बहादुर सिंह का जन्म 3 जनवरी सन् 1911 ई. में देहरादून में हुआ। बी.ए. की शिक्षा प्राप्त कर लेखन कार्य में रत गए। 'कहानी' एवं 'नया साहित्य के संपादक मंडल में कार्य करने लगे। काफी दिनों तक बेकार भी रहे। दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के उर्दू विभाग में कोश संबंधित कार्य भी किया।
शमशेर बहादुर सिंह साहित्यिक विशेषताएं-
- शमशेर बहादुर सिंह के संस्कार व्यक्तिवादी हैं, अनुभव रूमानी हैं, तथा विचार मार्क्सवादी हैं। इस प्रकार उनका व्यक्तित्व विभिन्नता में एकता स्थापित करने वाला है। उनकी अधिकांश कविताओं की विषयवस्तु कुंठित प्रेम है।
- संवेदना एवं अभिव्यक्ति की दृष्टि से ये प्रयोगवाद की अतिशय व्यक्तिवादिता के प्रतीक हैं। इनकी अतिशय व्यक्तिवादिता मात्र अपने प्रति प्रतिबद्ध है जिसके फलस्वरूप वह पाठकों के संज्ञानक की उपेक्षा कर जाती है तथा ऐसे-ऐसे बारीक जाल बुनती है, खंडित बिंबों की योजना करती है कि संपूर्ण कविता अपने इच्छित मंतव्य के साथ व्यक्त नहीं हो पाती है। शमशेर का सौंदर्य बोध अति सूक्ष्म है किंतु कठिनाई यह है कि सौंदर्य यत्र-तत्र की पंक्तियों में येनकेन प्रकारेण उभार का अवसर प्राप्त करता है।
- मुक्त आसंग, चेतना प्रवाह, अमूर्त चित्रात्मकता तथा शब्द-संगीत आदि शमशेर बहादुर सिंह के शिल्प को सर्वथा एक नवीन रूप अवश्य प्रदान करते हैं किन्तु वे अनु लोक मूर्तता प्रदान करने की अपेक्षा उलझाव प्रदान करते हैं। अभिप्राय यह कि उनकी कविता पाठकों के लिए सहज ग्राह्य न होकर कष्ट साध्य एवं श्रम साध्य है।
धर्मवीर भारती व्यक्तित्व कृतित्व साहित्यिक विशेषताएं
- कृतित्व 'अंधा युग', 'कनुप्रिया' तथा 'सात गीत वर्ष ।
धर्मवीर भारती साहित्यिक विशेषताएं-
- वास्तविकता यह है कि धर्मवीर भारती की उपलब्धियां उनकी अंतिम कृतियों में दष्टिगोचर होती हैं। आरंभिक कविताएं उनकी किशोरावस्था की भावुकता से विशेष रूप से आक्रांत दष्टिगोचर होती हैं। भारत में आदिम गंध की तड़पन और जनजीवन की रूमानी छवि की पकड़ है। इसलिए इनकी कविताएं विशेष रूप से गीत परक हो गई हैं जिनमें लोक-परिवेश की मस्ती एवं उल्लास की स्थानापन्न उदासी एवं सूनापन ही अधिक उभरकर सामने आया है।
"घाट के रस्ते उस बंसवट से
इक पीली सी चिड़िया
उसका कुछ अच्छा नाम है उन्मन यह फागुन की शाम है। "
मुझे पुकारे ताना मारे
-ठंडा लोहा
- भारती के काव्य की बहुत बड़ी विशेषता यह है कि उसका मूर्तविधान एवं पारदर्शिता जो उनके परवर्ती गंभीर एवं चिंतन से संवरे काव्यों में लक्षित होती है। 'सात गीत वर्ष की कविताओं में कवि की रूमानी भाव प्रधानता ने यथार्थ की गहनता को प्राप्त कर लिया है। यहां भी अनेक कविताएं प्रेम प्रधान हो गई हैं किन्तु प्रेम के अति सूक्ष्म संक्रांत अनुभवों को उभार प्रदान की गई हैं। इनमें कुछ कविताएं व्यंग्य की प्रधानता लिए हुए हैं जो किसी सांस्कृतिक, सामाजिक या राजनीतिक विसंगतियों पर हल्की-हल्की चोट पहुंचाती हैं। मूल्य से संबंधित प्रश्न भी उभारे गए हैं किन्तु मान संवेदना की सेंक से तप्त हैं।
नई कविता काल के प्रबंध काव्य
- नई कविता काल में कुछ प्रबंध काव्यों का भी सजन हुआ है जिनमें मैथिलीशण गुप्त - 'जय भारत' एवं 'विष्णु प्रिया', गुरुभक्त सिंह 'भक्त' – 'विक्रमादित्य', मोहन लाल महतो वियोगी - 'आर्यावर्त, रामधारी सिंह दिनकर – 'उर्वशी', 'कुरुक्षेत्र', - 'रश्मिरथी', सियाराम शरण गुप्त 'उन्मुक्त', सुमित्रानंदन पंत 'लोकायतन', केदार नाथ मिश्र प्रभात 'ऋतंवरा', धर्मवीर - - - भारती – 'कनुप्रिया', ठाकुर प्रसाद सिंह - 'महामानव', नरेन्द्र शर्मा – 'द्रौपदी' तथा उत्तर जय एवं कुंवर नारायण - 'आत्मजयी' आदि उल्लेखनीय हैं।
युद्ध काव्य
- कुछ युद्ध से संबंधित काव्य भी इस काल में लिखे गए जिसमें प्रमुख - 'कुरुक्षेत्र', 'आर्यावर्त' तथा 'उन्मुक्त' हैं।