प्रयोगवादी काव्य की भाषा शैली Pryogvaadi Kavya Ki Bhasha Shaili
प्रयोगवादी काव्य की भाषा शैली
प्रयोगवादी कवियों ने भावपक्ष में जिस प्रकार से वैविध्यपूर्ण प्रयोग किए हैं, वैसे ही वे शैल्पिक क्षेत्र में भी नवीनता के आग्रही रहे हैं।
(अ) काव्य भाषा
- प्रयोगवादी कवियों ने भाषा को भावाभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में अंगीकार किया है। शब्द चयन में वे अत्यंत उदार हैं। जीवन और समाज को बिम्बित करने में जो स्पष्ट हो वही भाषा और वे ही शब्द उन्हें ग्राह्य हैं। हरिनारायण व्यास भाषा के संदर्भ में लिखते हैं भाषा जीवन और समाज का एक प्रबल शास्त्र है, किन्तु उसे जीवन से अलग होकर नहीं जीवन में ही रहना है। यदि कविता की भाषा दुर्बोध रही तो उसका कर्म अर्थात् लड़ने में मनुष्य का सहायक होना अधूरा ही रह जाता है... पुरानी मान्यताओं, पुराने शब्दों, पुरानी कहावतों को नए अर्थ से विभूषित करके कविता में प्रयोग करने से पाठक की अनुभूतियों को छूने में सहायता मिलती है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि प्रयोगवादी कवि भाषा में सुस्पष्टता, सहजता और सुबोधता के पक्षधर रहे हैं। इसीलिए उन्होंने अंग्रेजी, उर्दू, हिन्दी के तत्सम तथा ग्रामीण बोलचाल के शब्दों का निस्संकोच व्यवहार किया है।
- प्रयोगवादी कवियों की भाषा भावानुकूल है। भावानुरूप शब्दों का व्यवहार करके उन्होंने अपनी अपूर्व क्षमता का परिचय किया है। उनके ऐसे शब्द बिम्बात्मकता तथा भाव सम्वर्धन में विशेष सहायक सिद्ध हुए हैं।
आ) व्यंग्यात्मकता-
- व्यंग्यात्मकता प्रयोगवादी काव्यभाषा की एक विशेष प्रवृत्ति है। इसके आविर्भाव के मूल पर प्रकाश डालते हुए मदन वात्स्यायन ने लिखा है कि जहां दारिद्रय की दवा दया नहीं, पंचवर्षीय योजना है, वहां कवि की प्रतिक्रिया व्यंग्यात्मक हो सकती है।' प्रयोगशील कवियों में अज्ञेय, भवानीप्रसाद मिश्र, प्रभाकर माचवे. भारतभूषण अग्रवाल आदि अच्छे व्यंग्यकार माने गए हैं। साँप के माध्यम से आज के जहरीले शहरीपन पर व्यंग्य करते हुए अज्ञेय लिखते हैं कि -
“सांप तुम सभ्य तो हुए नहीं, न होगे
नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया
एक बात पूहूँ! उत्तर दोगेद्य
फिर कैसे सीखा डसना विष कहाँ से पाया।"
इ) छंदयोजना
- प्रयोगवादी कवियों ने प्रगतिवादी कवियों की ही तरह छंद के रूढ़ बन्धनों को स्वीकार नहीं किया है। उन्होंने मुक्त छंद में काव्यरचना की है। गिरिजाकुमार माथुर इस संदर्भ में लिखते हैं कि कविता में मुक्त छंद ही पसन्द करता हूँ। मुक्त छंद में अधिकतर मैंने विरामान्त (एण्ड स्टाफ) पंक्तियाँ नहीं रखीं, धारावाहिक (रन ऑन) ही रखी हैं। आगत पंक्ति के आरम्भ में विगत पंक्ति की ध्वनि सम संगीत उत्पन्न करने के लिए वर्तमान रहने दी है। इसी कारण मैं मुक्त छंद में संगीत प्रधान गीत सम्भव कर सका हूँ जिन्हें गाते समय तुक की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है।
- प्रयोगवादी काव्यधारा के कवियों ने नवीन छंदों के व्यवहार के साथ अंग्रेजी के कवियों के प्रमुख छंदों (लिरिक, एलेजी, सोनेट, ओड आदि) और उर्दू के ग़ज़ल एवं रुबाई से भी प्रभाव ग्रहण करके काव्य रचनाएँ की हैं। प्रयोगवादी कवियों ने लोकधुनों में भी छंद रचनाएँ की हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि छंद और लय की दष्टि से भी प्रयोगशील कविता अत्यंत सम्पन्न है।
ई) बिम्ब योजना
- काव्य की सम्प्रेषणीयता और सजीवता के लिए आचार्यों ने बिम्ब योजना को आवश्यक माना है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने तो यहां तक कह डाला कि बिना बिम्ब ग्रहण के अर्थ ग्रहण हो ही नहीं सकता है। वस्तुतः आचार्य शुक्ल का यह कथन बहुत कुछ सही है। प्रयोगवादी कवियों ने सर्वथा नवीन और विविध बिम्बों का प्रयोग किया है। प्रयोगवादी कवियों की रचनाओं में प्राकृतिक बिम्ब, पौराणिक बिम्ब, कलात्मक बिम्ब, दश्यात्मक बिम्ब, सान्द्र बिम्ब आदि दिखाई पड़ते हैं। कतिपय बिम्ब योजना द्रष्टव्य है। अज्ञेय दश्य बिम्ब प्रस्तुत करते हुए लिखते हैं कि-
"उठी एक किरण,
धायी,
क्षितिज को नाम गयी,
सुख की स्मित,
कसक भरी,
निर्धन की नैन कोरों में काँप गयी,
बच्चे ने किलक भरी,
माँ की नस-नस में वह व्याप गयी"
प्रयोगवादी कवि बिम्बों के विधान में बड़े निष्णात हैं। वे बड़ी सफलता से साथ स्पर्श, रंग, स्वाद, श्रवण, स्मति आदि गुणों के आधार पर भी अत्यंत सारगर्भित और सान्द्र बिम्ब की रचना कर देते हैं।
उ) प्रतीक योजना
- प्रतीक का शाब्दिक अर्थ है 'चिह्न'। जो वस्तु हमारे सामने नहीं है उसको प्रत्यक्ष करना। काव्य के अंतर्गत सम्प्रेषणीयता के लिए प्रतीकों का बहुत बड़ा महत्व है। प्रयोगवादी कवियों ने व्यापक धरातल पर प्रतीकों की नियोजना अपने साहित्य के अंतर्गत की है। मुख्य रूप से प्रयोगवादी रचना कलात्मक, प्राकृतिक, पौराणिक, वैज्ञानिक और यौन प्रतीकों का व्यवहार किया गया है। प्रतीकों के कुछ उदाहरण देखें-
कलात्मक प्रतीक
"हम सबके दामन पर दाग
हम सबकी आत्मा में झूठ
हम सबके माथे पर शर्म
हम सबके हाथों में
टूटी तलवारों की मूठ ।"
- युग की राजनीतिक और वैज्ञानिक प्रगति ने प्रयोगवादी कवियों को बहुत प्रभावित किया है। इसीलिए उनकी कविता में वैज्ञानिक प्रतीकों का प्रयोग मिलता है। गिरिजाकुमार माथुर की रेडियम की छाया भारतभूषण अग्रवाल की 'विलायती स्पंज' आदि कविताएँ इस दृष्टि से विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
अज्ञेय की सोन मछली जीवन की जिजीविषा का प्रतीक बनकर आई है
“वह उजली मछली है
बहुत बहुत पहचानी
भेद गयी जो मेरी बहुत पुरानी छाप ।
बहुत बहुत अपनी
- प्रयोगवादी कविता के विषय में डॉ. नगेन्द्र का कथन उद्धरणीय है। एक गहन बौद्धिकता इन कवियों पर शीशे की पर्त की तरह जमती जाती है। छायावाद के रंगीन कल्पना वैभव और सूक्ष्म सरल भावना चिन्तन के स्थान पर यहाँ ठोस बौद्धिक तत्व का बाझीलापन है। ये कविताएँ अनिवार्य रूप से ही नहीं, सिद्धान्त रूप से भी दुरूह ।
- प्रयोगवादी कविता जीवनानुभूत कविता है, सीधे मिट्टी और आदमी की गहरी संवेदना से संलिप्त है। वह आदमी की सम्पूर्ण चेतना को प्रकृत रूप में शब्दायित करती है। डॉ. रमेशचन्द्र शर्मा ने प्रयोगवादी कविता के अस्तित्व और प्रदेय के संदर्भ में बिलकुल उचित ही लिखा है कि यह कहना सर्वथा असंगत है कि प्रयोगवाद ने हिन्दी साहित्य को कुछ दिया ही नहीं। उसने और कुछ भले ही न दिया हो, परन्तु सड़ी-गली परम्पराओं और जीवन मूल्यों के विरुद्ध विद्रोह की भावना अवश्य दी। साथ ही भाषा और शैली के नए-नए प्रयोग करने की प्रेरणा प्रदान कर भाषा को और अधिक सशक्त और प्रांजल बनाया।