राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा छायावादी कवि
राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा
- परिवेशानुसार राष्ट्रीय' शब्द में अर्थ परिवर्तन होता रहता है। राष्ट्रीय शब्द में आधुनिकता के समावेश से जाति, धर्म, संप्रदाय, निश्चित भू-भाग आदि की संकीर्णता के स्थान पर आधुनिक काल में समग्र देश उसके अंदर निवास करने वाली सभी जातियां, विभिन्न भूखंडों, संप्रदायों एवं रीति-रिवाजों के लोगों का संश्लिष्ट, सामूहिक रूप उभर कर सामने आया है क्योंकि भूमि, भूमिवासी जन और उनकी संस्कृति को राष्ट्र की संज्ञा दी जाती है।
- राष्ट्र में संस्कृति समाहित होती है। संपूर्ण भारतवर्ष की अखंडता एवं एकता के रूप में राष्ट्रीयता का अर्थ विकसित हुआ। अंग्रेजों के आने से पूर्व भारत अनेक छोटे छोटे राज्यों में विभक्त था। उस समय राष्ट्रीयता में अखंडता के स्थान पर हिंदुत्व आदि को प्रधानता दी जाती थी रीति कालीन भूषण की राष्ट्रीयता ऐसी ही थी। आजादी से पूर्व सभी धर्म एवं जाति के लोग एकत्रित हो अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के लिए स्वतन्त्रता संग्राम में एकजुटता राष्ट्रीयता बन गई। स्वधीनता आंदोलन और उसका देशव्यापी प्रसार राष्ट्रीय क्रिया कलाप में समाहित हो गया। पाश्चात्य राष्ट्रीयता भारतीय राष्ट्रीयता से भिन्न है क्योंकि वहां परतंत्रता नहीं थी।
- भारतीय राष्ट्रीयता में स्वरक्षा एवं स्वविकास दोनों हैं जबकि पश्चिम में स्वविकास ही प्रधान है। भारत में संस्कृति, भाषा की भिन्नता होते हुए भी राष्ट्रीय एकता मुख्य है। प्राचीन संस्कृति एवं प्राचीन आध्यात्मिकता राष्ट्रीय एकता का वह मूल स्रोत है जो सबको सूत्रबद्ध करता है।
इस कालावधि की राष्ट्रीयता में-
- (i) पराधीनता की यातना का अनुभव तथा उससे मुक्ति पाने हेतु किये गए प्रयत्न ।
- (ii) पश्चिमी सभ्यता और अलगाव की भावना से आक्रांत होती हुई भारतीय चेतना का उद्धार करने हेतु उसमें एकता एवं स्वाभिमान का बल फूंकने के लिए अपनी प्राचीन संस्कृति के समुज्जवल रूप का प्रस्तुतिकरण तथा
- (iii) उपयोगी आधुनिक मूल्यों के संदर्भ में राजनीतिक, धार्मिक तथा सामाजिकता का पुनर्विचार तथा पुनर्गठन ।
- स्वतंत्रता के पश्चात् प्रथम दो उद्देश्य पूरे हो गए हैं। मात्र तीसरे तत्व की सार्थकता अवशिष्ट है। नवीन विशेषताएं देश का विकास, राजनीतिक व्यवस्था की प्रतिष्ठा एवं नवीन राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय परिवेशों के कारण उत्पन्न समस्याएं तथा उनके समाधान खोजने की चेष्टा आधुनिक राष्ट्रीयता का प्रारंभ भारतेंदु युग से हुआ।
- वर्तमान राष्ट्रीयता मानवीय एवं सार्वभौम प्रश्नों तथा संवेदनाओं से संपक्त होती चली जा रही है। इस काल में राष्ट्रीयता कहीं खंडित रूप में कहीं संश्लिष्ट रूप में दष्टिगोचर होती है। इस काल में राष्ट्रीयता का मूल रूप विदेशी शासन के अत्याचारों, उनके कारण जन्मी अनेक जन-यातनाएं तथा जनता के मन में उठती हुई क्रोध तथा असंतोष की ललकारों का चित्रण है। दिनकर, सोहन लाल द्विवेदी, नवीन, माखन लाल चतुर्वेदी आदि की कृतियों में दिखलाई पड़ती है।
- सन् 1938 ई. के आस-पास राष्ट्रीय जीवन की यातना और आक्रोश के स्वर में एक नया उभार परिलक्षित होता है। परिवेश जन्य कारणों से राष्ट्रीय साहित्य का स्वर उग्रतर यथार्थोन्मुख तथा लोकोन्मुख होता चला गया। प्रगतिवाद से पूर्व भी शोषक-शोषित की समस्या उठ खड़ी हुई थी। राष्ट्रीयता दिनकर काव्य में उभर कर आयी।
- संस्कृति का संबंध इसी आत्मा अथवा चेतना से होता है। संस्कृति इतिहास के रूप में मानव के लिए पष्ठभूमि एवं प्रेरणा बनती है तथा वर्तमान चेतना से स्पंदित होकर मानव जीवन का स्वरूप धारण कर लेती है। प्रतिभा संपन्न कवियों ने संस्कृति के उदात्त अतीत रूप को वर्तमान जीवन के परिप्रेक्ष्य में पुनर्परीक्षित करके ही स्वीकारा है। यह प्रयास छायावादी कृतियों में परिलक्षित होता है।
- इस कालावधि में प्रकाशित 'कुरुक्षेत्र', 'जय भारत', 'नकुल', उन्मुक्त', 'रश्मिरथी' तथा विक्रमादित्य' आदि काव्यों में भी राष्ट्रीय सांस्कृतिक भावना का चित्रण किया गया है। इन ग्रंथों के अतिरिक्त इतिहास के आंसू की फुटकल कविताओं में भी इस संदर्भ का अवलोकन किया जा सकता है।
राष्ट्रीय सांस्कृतिक कवि
मैथिलीशरण गुप्त
- मैथिलीशरण गुप्त इस धारा के श्रेष्ठ कवि हैं। गुप्त ने तत्कालीन राष्ट्र चेतना को अपने काव्यों में मुखरित किया है। जिसमें वैविध्य की स्थिति देखी जा सकती है। आधुनिक काल के राष्ट्रीय इकलौते कवि स्वर्गीय मैथिलीशरण गुप्त हैं।
माखन लाल चतुर्वेदी -
- राष्ट्रीय सांस्कृतिक कविताएं माखन लाल ने लिखीं। इनका संबंध तत्कालीन राष्ट्रीय व्यवस्था से है। पराधीन राष्ट्र की व्यथा, अंग्रेजों के अत्याचारों आदि का चित्रण किया है।
बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
- नवीन सौंदर्य एवं प्रेम लिखने के कारण छायावादी कवियों का सान्निध्य प्राप्त कर लेते हैं। राष्ट्रीय सांस्कृतिक भावना का चित्रण किया जिसमें राष्ट्रीयता प्रमुख है। संस्कृति के प्रति विशेष रूचि नहीं थी।
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय
व्यक्तित्व-
- रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 30 सितम्बर, सन् 1908 सिमरिया जिला मुंगेर में हुआ था। बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त में कर हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक बन गए। बिहार सरकार के अधीन सब रजिस्ट्रार, बिहार सरकार के प्रचार विभाग के उपनिदेशक, मुजफ्फरपुर कॉलेज में हिंदी विभागाध्यक्ष तथा भारत सरकार के सलाहकार रह चुके हैं। ये राज्य सभा सदस्य भी रहे हैं।
रामधारी सिंह दिनकर की साहित्यिक विशेषताएं-
- इस काल में सबसे अधिक सशक्त कवि रामधारी सिंह दिनकर थे। संवेदना एवं विचार का अति सुंदर समन्वय इनमें दष्टिगोचर होता है। प्रेम सौन्दर्य मूलक एवं राष्ट्रीय कविताएं कवि की संवेदना से स्पंदित है। परिवेश संपक्त करने की इनमें प्रबल आकांक्षा थी। लोकोन्मुखता, सहजता इनकी विशेषता है। इनकी कविता में वैयक्तिक कुंठा, अवसाद तथा निराशा का स्थान प्रसन्नता तथा सर्वत्र सौंदर्य के प्रति स्वस्थ मानवीय प्रतिक्रिया ने लिया है।
- इनकी सबसे बड़ी विशेषता देश एवं युग सत्य के प्रति जागरूकता है। जिसे ग्रहण करने में अनुभूति और चिंतन दोनों स्तरों पर पूर्ण सफलता मिली है। कवि ने राष्ट्र को उसकी सामयिक घटनाओं, यातनाओं, विषमताओं तथा समताओं आदि के रूप में नहीं, उसकी संश्लिष्ट सांस्कृतिक परंपराओं के रूप में पहचाना है और उसके प्राचीन मूल्यों का नए जीवन संदर्भों के परिप्रेक्ष्य में आकलन कर एक और उन्हें जीवंतता प्रदान की है, दूसरी ओर वर्तमान की समस्याओं और आकांक्षाओं को महत्व देते हुए उन्हें अपने प्राचीन किंतु जीवंत मूल्यों से जोड़ने का प्रयत्न किया है। कुरुक्षेत्र में भीष्म के माध्यम से बुद्धि से वस्तु स्थिति की तीखी पहचान और हृदय में सार्वभौम सुख-साम्राज्य की स्थापना की सुंदर कामना का अनुपम समन्वय किया है।
कर पाता यदि मुक्त हृदय को
मस्तक के शासन से
उतर पकड़ता बांह दलित की
मंत्री के आसन से
स्यात् सुयोधन भीत उठाता
भरत भूमि पड़ती न स्यात्
पग कुछ और संभल के
संगर में आगे चल के।
-कुरुक्षेत्र ।
सियाराम शरण गुप्त
- सियाराम शरण गुप्त इस धारा के विशिष्ट कवि हैं। इनकी कृतियां गांधीवाद की अभिव्यक्ति से भरपूर हैं। देश की ज्वलंत घटनाओं एवं समस्याओं का चित्रण बड़ी सफलता से इनके काव्य में हुआ है। घटनाओं, अवस्थाओं तथा समस्याओं को तत्कालीन मानकर उनको मानवीय मूल्यों, संवेदनाओं से संदर्भित कर देते हैं।
- आधुनिक अतीत की पष्ठभूमि को आधुनिक मानव की करुणा, यातना, द्वंद्व से समन्वित करके चित्रित किया है। किसी भी भारतीय घटना का उदात्तीकरण कर उसे वहत्तर मानवीय मूल्यों का स्तर प्रदान किया है। राष्ट्रीयता के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीयता को महत्व दिया है। 'उन्मुक्त' आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय संदर्भों का द्योतन करने वाली प्रमुख कृति है। जिसमें कवि ने अपने तरीके से युद्ध की अनिवार्यता बलिदान, त्याग, यातना, विभीषिका तथा मानवीय करुणा का अद्भुत समन्वय किया है।