समकालीन कविता
समकालीन कविता का नामकरण
- समकालीन कविता से पूर्व गद्य विद्या में कहानी के पश्चात् अकहानी तथा लघु कथा का रूप प्रचलित हो चुका था उसी को आधार बनाकर नवगीत के पश्चात् पद्य विधा में जिस नवीन विधा का आविर्भाव हुआ उसे अकविता, अतिकविता अस्वीकृत कविता, विद्रोही पीढ़ी, कबीर पीढ़ी क्रुद्ध पीढ़ी, भूखी पीढ़ी आदि अनेक नाम दिए गए।
- सन् 1960 ई. के आस-पास नई कविता और नवगीत की धारा अपने से कुछ अलग होती हुई परिलक्षित है जिसे अनेक नाम दिए गए हैं।
उपर्युक्त नामों में दो वर्ग दष्टिगोचर होते हैं-
- (i) अकविता, अति कविता, अस्वीकृत कविता
- (ii) विद्रोही पीढ़ी, कबीर पीढ़ी, क्रुद्ध पीढ़ी, भूखी पीढ़ी।
- प्रथम वर्ग के तीनों नामों के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि इन की निर्मिति नञ् समास के आधार पर हुई। दो मदों को समस्त पद रूप से समन्वित करके नामकरण किया गया है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ज्योमितीय शब्दावली में कहा जा सकता है कि 'कविता' शब्द और 'अ' उपसर्ग उभयनिष्ठ हैं। उभयनिष्ठ को अलग कर दिया जाए तो 'अ' एवं 'कविता' शब्द शेष रह जाते हैं ये दोनों ही बहुचर्चित पद हैं इनके विवेचन की आवश्यकता नहीं है। नकारात्मक 'अ' का अर्थ विहीनता एवं न होना है।
- कविता के तत्वों को नहीं नकारा गया है जो नहीं है वह क्या है? लगता यह है कि मात्र अकहानी के आधार अकविता कहां कैसे कविता एवं अकविता में कोई भेदक तत्व प्रस्तुत नहीं किया गया है। यह तथ्य अवश्य सामने आया है कि अकविता में नकारात्मक नहीं अपितु विशिष्टता अथवा चमत्कार का भाव भरा गया है।
- यथा 'खालिस' शुद्धता का द्योतक शब्द है उसमें नि नकारात्मक उपसर्ग इसी अर्थ में नहीं लिया जाता है अपितु विशिष्टता या चमत्कारी अर्थ देने के लिए 'खालिस' से 'नि' + 'खालिस' = निखालिस शब्द का निर्माण किया गया है जो विशेष शुद्धता का द्योतन करता है। उसी प्रकार 'कविता' से अलग उसमें विशिष्टता तथा चमत्कार का भाव भरने के लिए 'अकविता' शब्द का निर्माण किया।
- द्वितीय वर्ग के नामों के विश्लेषण से ज्ञात है यह नामकरण भी दो समस्त पदों से निर्मित है। ये पद विद्रोही, कबीर, क्रुद्ध तथा भूखी एवं पीढ़ी है। पीढ़ी पद उभयनिष्ठ है। पीढ़ी' का अर्थ वर्ग होता है। मानव सभ्यता का विकास पीढ़ी दर पीढ़ी अग्रसर है। इसी प्रकार नई कविता, नवगीत के पश्चात् आने वाले वर्ग को पीढ़ी का नाम दिया गया है। पीढ़ी विकास वंश परंपरा का विकास होता है। दादा के पश्चात् पिता, पिता के पश्चात् पुत्र अस्तित्व में आता है। दादा-पोते की धारणा, भाव, चिंतन एवं दर्शन में समयांतराल के परिणामस्वरूप परिवर्तन आ जाता है यह परिवर्तन ही संघर्ष का कारण है। कुछ समय पूर्व तक दादा-पोता से संघर्ष पीढ़ी संघर्ष का रूप धारण कर गया अर्थात- पिता-पुत्र में पीढ़ी संघर्ष आया। वर्तमान में यह पीढ़ी संघर्ष दशक संघर्ष का रूप धारण कर गया है अर्थात् दस वर्ष के अंतराल में वैचारिक भिन्नता आ जाती है जिसके परिणामस्वरूप पुरातन नवीन का संघर्ष चलता है। यह संघर्ष अनादि काल से चलता रहा है चल रहा है चलता रहेगा। पुरातन पीढ़ी नवीन पीढ़ी को जन्म देती है तथा उससे संघर्ष करती है।
- नई कविता एवं नवगीत ने समकालीन कविता को जन्म दिया। अब रह गया प्रश्न पीढ़ी से पूर्व लगे पूर्व पदों 'विद्रोही', 'कबीर', 'क्रुद्ध' तथा 'भूखी' इन शब्दों में रूप भेद हैं किन्तु आत्मा एक है इसलिए अर्थ भेद नहीं है। विद्रोह का अर्थ पुरानी मान्यता को अस्वीकारना तथा नवीन मान्यता की स्थापना करना है। इस कार्य में प्राचीन पुरातनवादी कवि नवीनतावादियों का विरोध करता है, नवीनतावादी कवि प्राचीनतावादी अथवा पुरातनवादियों का विरोध करता है। यह विरोध विद्रोह या संघर्ष कहलाता है।
- कबीर विद्रोही कवि थे इसलिए कबीर को विद्रोह का प्रतीक बना दिया गया। कबीर को बाह्याडंबर, अंधविश्वास तथा रूढ़ियों से अत्यधिक नफरत थी इनको देखते ही वे क्रुद्ध हो जाते थे उनमें ऽक्रोध भावना का उदय हो जाता था।
- 'क्रोध' विद्रोह का पर्यायवाची बन गया। अधिकांश समकालीन कविता के कवियों का संबंध निम्न मध्यवर्गीय परिवार से था जो भूख प्यास से आकुल-व्याकुल होकर क्षुधा मिटाने के लिए विद्रोही हो गया। भूखी-नंगी पीढ़ी विद्रोही होती है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि समकालीन कवि विद्रोही, कबीर जैसे विद्रोही क्रुद्ध एवं भूखी-नंगी पीढ़ी अर्थात् वर्ग था। इन सभी नामों का एक ही अर्थ अपनी पूर्व पीढ़ी के विद्रोह में नवीन मान्यता एवं धारणा की स्थापना करना था। अपने उद्देश्यानुसार उन्होंने अपनी कृतियों की प्रवृत्ति विशेष का नामकरण किया है। ये नामकरण अनुभूतिजन्य, संवेदनशील तथा यथार्थ पर आधारित हैं। इनके दर्शन एवं मूल्यों में परिवर्तन आ गया है।
- सन् 1960 ई. के बाद काव्य क्षेत्र में नवीन मोड़ परिलक्षित हुआ वह एकाएक दष्टिगोचर होने वाली कोई नवीन वस्तु नहीं है। अपितु नई कविता एवं नवगीत से ही विकसित प्रस्फुटित हुआ है। अकविता वालों ने अपनी कविता को अलग करने के लिए उसे अकविता नाम दिया। इस प्रकार समकालीन कविता अर्थात् अकविता नई कविता तथा नवगीत से बिलकुल अलग नहीं अपितु उसी का विकसित रूप है।
- यही कारण है कि अकविता वाले मौलिकता के आधार अकविता को कविता, नई कविता या नवगीत से अलग स्थापित नहीं कर सके। वास्तविकता यह है कि सन् 1960 ई. के बाद अकविता में जो स्वर उगे हैं बीजवपन नई कविता में हो चुका था। नवगीत में अंकुरित होकर इस कालावधि में प्रस्फुटित हुआ है। ये स्वर नई कविता के मौलिक स्वरूप या मूलाधार नहीं थे किंतु नई कविता तथा नवगीत से इनको सर्वथा भिन्न भी नहीं कहा जा सकता है जैसा अकविता वाले करते हैं।