शुक्लोत्तर युग के निबंधकार और उनके निबंध Shuklotar yug ke Nibandh Kaar
शुक्लोत्तर युग के निबंधकार
- शुक्ल परवर्ती निबंधकारों में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ. नगेन्द्र, आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी, जैनेंद्र, डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल, डॉ. सत्येंद्र, शांति प्रिय द्विवेदी, डॉ. विनय मोहन शर्मा, डॉ. रामरतन भटनागर, डॉ. राम विलास शर्मा, डॉ. विश्वंभर 'मानव', प्रभाकर माचवे, डॉ. पदम सिंह शर्मा कमलेश, इलाचन्द्र जोशी, डॉ. भगीरथ मिश्र, चन्द्रवली पांडेय, डॉ. भगवत शरण उपाध्याय, राम वक्ष बेनीपुरी, कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर, रामधारी सिंह दिनकर, शिवदान सिंह चौहान, प्रकाश चन्द्र गुप्त तथा देवेन्द्र सत्यार्थी आदि प्रमुख हैं।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
- शुक्ल परवर्ती निबंधकारों में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सर्वश्रेष्ठ निबंधकार हैं। इनके निबंध संग्रहों में अशोक के फूल, कल्पलता विचार और वितर्क, विचार प्रवाह तथा कुटज विशेष उल्लेखनीय संग्रह हैं। द्विवेदी का निबंध क्षेत्र अति व्यापक है। उन्होंने भारतीय साहित्य, भारतीय संस्कृति, प्रकृति, परंपरागत ज्ञान-विज्ञान, आधुनिक युगीन विभिन्न परिवेशों, प्रवतियों एवं समस्याओं का अपूर्व समन्वय किया है। उनके निबंध अध्ययन क्षेत्र की व्यापकता तथा चिंतन की गंभीरता से युक्त हैं किन्तु द्विवेदी की वैयक्तिक सरलता, सहजता, सरसता एवं विनोदी स्वभाव उसने नीसरता, शुष्कता या दुर्बोधता का प्रवेश नहीं होने देता है। व्यक्ति एवं विषय का पूर्ण तादात्म्य उनमें दष्टिगोचर होता है। उनके गंभीर से गंभीर निबंधों को पढ़ते समय पाठक ऊबता नहीं है अपितु उपन्यास या काव्यानंद की रस विभोरता का अनुभव करता है। जिन निबंधों के लेखन में द्विवेदी का मन रमा नहीं है वे सरसता के अपवाद स्वरूप हैं। जब लेखक का मन ही नहीं रमा है तो पाठक का मन उसमें किस प्रकार रमकर आनंदानुभूति कर सकता है किन्तु द्विवेदी के अधिकांश निबंध लालित्य एवं कलात्मकता से परिपूर्ण आदर्श की स्थापना करते हैं।
- द्विवेदी की भाषा शैली में त्वरित परिवर्तनशीलता दष्टिगोचर होती है। निबंध के मनोभाव एवं विषयानुसार उसमें परिवर्तन होता रहता है। कालिदास युगीन वातावरण का चित्रण करते समय उनकी शैली स्वाभाविक रूप से संस्कृत गर्भित हो जाती है जबकि ग्रामीण जीवन का चित्रण करते समय शैली में सारल्य एवं चलताऊपन आ जाता है जिसमें लोक भाषा के शब्दों का आधिक्य एवं सामान्य शब्दों की प्रचुरता देखी जा सकती है। आधुनिक जीवन व विसंगतियों तथा दूषित प्रवत्तियों का चित्रण करते समय उनकी शैली हास्य-विनोदी एवं व्यंग्यात्मक हो जाती है।
उदाहरणार्थ कुछ पंक्तियां द्रष्टव्य हैं-
- "आसमान में निरंतर मुक्का मारने में कम परिश्रम नहीं और मैं निश्चित जानता हूं कि रहस्यवादी आलोचना लिखना कुछ हंसी खेल नहीं है। पुस्तक को छुआ तक नहीं और आलोचना ऐसी लिखी कि त्रैलोक्य विकंपित ! यह क्या कम साधना है।"
आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी
- आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी मुख्य रूप से आलोचक हैं। आलोचनात्मक निबंध लिखे हैं। अनेक निबंध संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। हिंदी साहित्य, नया साहित्य तथा नए प्रश्न प्रमुख हैं। मुख्य रूप से ये आलोचनाएं हैं किन्तु काव्य रूप एवं शैली की दृष्टि से निबंध के अंतर्गत रखा जा सकता है। इनमें वैचारिक प्रधानता है। इसलिए विचार प्रधान निबंध हैं जिनमें वैयक्तिकता की प्रधानता है। इनका मुख्य आधार व्यक्तिगत चिंतन एवं मनन है। व्यक्तिकता से प्रभावित होते हुए भी उनकी प्रतिपादन शैली विषयानुसार तथा विचारों से प्रतिबद्ध है। उसमें व्यक्तित्व की स्वतन्त्र सत्ता का आभास प्रायः नहीं मिलता है। विचार-गंभीरता आ जाने से शैली भी गूढ़ एवं बोझिल हो जाती है। इस दष्टि से आचार्य वाजपेयी आचार्य शुक्ल की परंपरा के निबंधकार ठहरते हैं। उनकी शैली की बौद्धिकता एवं तार्किकता उच्च सतर के पाठकों को ही बौद्धिक आनंद प्रदान करती है।
डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल
- डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्व संबंधी विषयों पर निबंध लिखनेवाले निबंधकारों में सर्वश्रेष्ठ निबंधकार हैं। भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्व से संबंधित इनके अनेक निबंध संग्रह प्रकाशित हुए हैं जिनमें पथ्वी पुत्र', 'मात्र भूमि तथा कला और संस्कृति विशेष महत्वपूर्ण संग्रह हैं। डॉ. अग्रवाल के निबंधों में अध्ययन गांभीर्य तथा चिंतन- मौलिकता का प्राधान्य है। प्राचीन तत्वों एवं उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाने एवं स्पष्ट करने की अपेक्षा अपनी विशिष्ट व्याख्याओं के माध्यम से सर्वथा नवीन रूप प्रदान करते हुए उन्होंने अपने आधुनिक पाठकों के लिए उसे सुबोध बना दिया है। उनकी शैली में सरलता एवं स्पष्टता विद्यमान है जो उनके निबंधों की विशिष्टता है।
पं. शांति प्रिय द्विवेदी
- आत्मानुभूति परक वैयक्तिक निबंध लिखने वालों में द्विवेदी का नाम मूर्धन्य है। इनके निबंध संग्रहों में जीवन-यात्रा, साहित्यिकी, हमारे साहित्य निर्माता, कवि और काव्य संचारिणी, युग और साहित्य तथा सामयिकी आदि उल्लेखनीय हैं। इन्होंने कला एवं साहित्य विषयक निबंधों की रचना की है। जिसमें स्वानुभूति के आधार पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति प्रदान की है। किंतु पथ-चिन्ह तथा परिव्राजक की प्रजा आदि में वैयक्तिकता को उभारा है। शैली में सरसता एवं प्रभावोत्पादकता विद्यमान है। कहीं-कहीं यह शैली करुणा प्रधान होकर करुणोत्पादक हो गई है।
जैसे अपने संबंधित संस्मरण का उल्लेख करते हुए उन्होंने लिखा है -
- "छुटपन में वह विधवा हो गई थी उस अबोध वय में उसने जाना ही नहीं कि उसके भाग्य - क्षितिज में क्या पट परिवर्तन हो में गया। जन्म काल से मां का जो आंचल उसके मस्तक पर फैला हुआ था। सयानी होने पर वही अंचल अपने मस्तक पर ज्यों-का-त्यों पाया, मानो शैशव ही उसके जीवन में अक्षुण हो गया। अचानक एक दिन जब वह अंचल भी मस्तक पद से छाया की तरह तिरोहित हो गया, तब उसके जीवन में मध्याहन की प्रखर ज्वाला के सिवा और क्या शेष रह गया था।"
डॉ. नगेन्द्र
- डॉ. नगेन्द्र का साहित्यिक आलोचनात्मक निबंधों की अभिवद्धि में असाधारण योगदान है। इनके निबंध संग्रहों में विचार और विवेचन, विचार और अनुभूति विचार और विश्लेषण तथा कामायनी के अध्ययन की समस्याएं आदि विशेष महत्व के हैं। इन निबंधों का मूल स्वर विषय विवेचन है। अनेक निबंधों में वैयक्तिकता भी दष्टिगोचर होती है फिर भी विवेच्य विषय या मूल समस्या के विवेचना की प्रधानता है। नगेन्द्र कुशल व्याख्याता हैं। वे किसी भी विषय पर अपना समाधान प्रस्तुत करने से पहले उसे पाठकों के हृदय में प्रतिष्ठापित कर देते हैं जिसके कारण पाठक गूढातिमूढ़ निबंध को पढ़ते समय उबासी न लेकर अति दत्त-चित्तता से उद्योपांत पढ़ जाता है। इसका उदाहरण उनका साधारणीकरण एवं व्यक्ति वैचित्र्यवाद" है। इस शैली का यह सर्वश्रेष्ठ निबंध है। डॉ. नगेन्द्र ने अधिकांश निबंधों में व्याख्यात्मक एवं विश्लेषणात्मक शैली अपनाई है किन्तु कुछ निबंधों में रूपकात्मक या अप्रस्तुतात्मक शैली का प्रयोग भी किया है। जैसा कि वीणा पाणि के कंपाउंड में या हिंदी उपन्यास में किया गया है। वास्तव में विचारों की गंभीरता, चिंतन की मौलिकता एवं शैली की रोचकता इन तीनों का डॉ. नगेन्द्र ने सामंजस्य स्थापित किया है।
- साहित्य एवं कला संबंधी विषयों पर उत्कृष्ट निबंध लिखे हैं जिनमें कला, कल्पना और साहित्य तथा साहित्य की झांकी आदि संग्रहीत हैं। तथ्यों को तर्क एवं प्रमाण से परिपुष्ट करके प्रतिपादन करते हैं।
डॉ. विनय मोहन शर्मा
- डॉ. शर्मा के निबंध संग्रह 'साहित्यावलोकन तथा दष्टिकोण' आदि हैं। इन्होंने मुख्यतः सौंदर्य शास्त्रीय तथा साहित्यिक विषयों पर निबंध लिखे हैं। इनके व्यक्तित्व की सरलता एवं उदारता के परिणामस्वरूप निबंध शैली में सरलता, स्पष्टता तथा ऋजुता के गुण विद्यमान हैं। विषय प्रतिपादन से पूर्व पाठक मनोभूमि को विषयानुसार ढाल लेते हैं जिससे वह प्रतिपाद्य निबंध को सुनने, समझने या अध्ययन में तल्लीनतापूर्वक प्रवत्त हो जाता है।
- उदाहरण के लिए कलाकार एवं सौंदर्य बोध निबंध का अंश अवलोकनीय है - "सौंदर्य क्या है? उसका बोध कैसे होता है, और कवि या कलाकार पर उसकी किस प्रकार प्रतिक्रिया होती है? ये प्रश्न वर्षों से साहित्य और दर्शन में विवाद बने हुए हैं।" अलोचना या निबंध में ऐसे प्रश्न पाठक की उत्सुकता को बढ़ाने में सहायक होते हैं।
डॉ. राम विलास शर्मा
- अत्यंत तीखी, व्यंग्यपूर्ण एवं सशक्त शैली में निडरता से विषय का प्रतिपादन करने वाले निबंधकारों में डॉ. राम विलास शर्मा का विशेष स्थान है। इन्होंने साहित्य, कला, संस्कृति तथा राजनीति आदि विषयों पर सौ से अधिक निबंध लिखे हैं जो संस्कृति और साहित्य प्रगति और परंपरा, प्रगतिशील साहित्य की समस्याएं तथा स्वाधीनता और राष्ट्रीय साहित्य आदि संग्रहों में संग्रहीत हैं। डॉ. शर्मा मार्क्सवादी या प्रगतिवादी विचारधारा के निबंधकार हैं। इनके निबंधों में यही दष्टिकोण प्रधान है।
प्रकाश चन्द्र गुप्त
- प्रकाश चन्द्र गुप्त के निबंधों का संग्रह नया हिंदी साहित्य एक भूमिका तथा साहित्य धारा' हैं जिनमें इनके निबंध संगहीत हैं। शैली सरल, स्पष्ट तथा रोचक है।
शिवदान सिंह चौहान
- शिवदान सिंह चौहान के निबंध संग्रह 'साहित्यानुशीलन तथा आलोचना के मान हैं जिनमें इनके निबंधों का संग्रह किया गया है। इनकी शैली में सरलता, स्पष्टता तथा रोचकता विद्यमान है।
डॉ. भगवतशरण उपाध्याय
- डॉ. भगवतशरण उपाध्याय के निबंधों के विषय ऐतिहासिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक हैं जिनमें उन्होंने उत्कृष्ट निबंधों का प्रस्तुतीकरण किया है। निबंधों में अध्ययन, मनन एवं चिंतन की गंभीरता दष्टिगोचर होती है। इनके निबंध संग्रह भारत की संस्कृति का सामाजिक विश्लेषण', 'इतिहास के पष्ठों पर खून के धब्बे' तथा 'सांस्कृतिक निबंध' आदि उल्लेखनीय हैं।
डॉ. भगीरथी मिश्र
- डॉ. भगीरथी मिश्र के निबंधों का संग्रह कला और साहित्य है।
डॉ. रामरतन भटनागर
- डॉ. रामरतन भटनागर का निबंध संग्रह अध्ययन और आलोचना' है।
डॉ. रामधारी सिंह दिनकर
- डॉ. दिनकर के निबंधों के संग्रह मिट्टी की ओर, अर्द्धनारीश्वर तथा रेती के फूल हैं।
महादेवी वर्मा
- संस्मरणात्मक निबंध लिखने वालों में महादेवी का नाम सर्वश्रेष्ठ है। इनके संस्मरणों के संग्रह अतीत के चलचित्र, स्मति की रेखाएं तथा श्रंखला की कड़ियां हैं। जिनमें सामाजिक विषमता तथा दीन-हीन मानव, पशु-पक्षियों की वेदना का चित्रण अनुभूति की भाव भूमि पर किया गया है।
- शब्द चयन एवं पद-विन्यास के भावों की मार्मिकता को स्पष्ट करने की सामर्थ्य एवं क्षमता विद्यमान है। उदात्त विषयों के प्रतिपादन में शैली में सशक्तता एवं प्रौढ़ता विद्यमान है। महादेवी के संस्मरणों एवं निबंधों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें दार्शनिक की अंतर्दृष्टि कवि की अभिव्यक्ति चित्रकार की प्याली तूलिका, तथा साहित्यकार की उजस्र लेखनी का अपूर्व समन्वय विद्यमान है।
रामवक्ष बेनीपुरी
- रामवक्ष बेनीपुरी के निबंध संस्मरणात्मक हैं। जिनमें उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों से संबंधित व्यक्तियों का सहृदयापूर्ण शैली में चित्रांकन किया है। इनके निबंध संग्रह माटी की मूरतें तथा गेहूं और गुलाब हैं। इनकी शैली काव्यात्मक तथा विवरणात्मक है। कही इनकी शैली आकुल-व्याकुल सामुद्रिक लहर-तरंगों के कंपायमान अधरों का चुंबन प्रति चुंबन लेकर अट्टहास कर उठती है।
हरिवंश राय बच्चन'
- हरिवंश राय बच्चन ने संस्मरणात्मक निबंध लिखे। जिनका संग्रह क्या भूलूं क्या याद करूं है। जिसमें इनके जीवन के मर्मस्पर्शी संस्मरण संग्रहीत हैं।
देवी लाल चतुर्वेदी 'मस्त'
- देवी लाल चतुर्वेदी के निबंधों का संकलन झरोखे' है।
आचार्य चंद्रबली पांडेय
- चन्द्रबली पांडेय ने समीक्षात्मक एवं गवेष्णात्मक निबंधों की रचना की। इनके निबंधों के संग्रह एकता तथा विचार विमर्श हैं। इनके निबंधों में अध्ययन गांभीर्य एवं तर्कपूर्ण शैली का समन्वय दष्टिगोचर होता हैं।
नलिन विलोचन शर्मा
- साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विषयों पर निबंध लिखे।
रांगेय राघव
- साहित्यिक एवं सांस्कृतिक निबंध लेखकों में इनका विशेष स्थान है।
डॉ. देवराज
- अनेक निबंधकारों ने अपने निबंध का विषय साहित्य एवं संस्कृति को बनाया जिनमें डॉ. देवराज का नाम भी उल्लेखनीय है।
इलाचन्द्र जोशी
- इलाचन्द्र जोशी का निबंध क्षेत्र व्यापक है। इन्होंने अनेक विषयों को निबंध के लिए चुना। इनके निबंधों के संग्रह साहित्य सर्जना', 'विवेचन', 'विश्लेषण', 'देखा-परखा' तथा 'महापुरुषों की प्रेम कथाएं हैं। जोशी ने साहित्य, मनोविज्ञान एवं मनोविश्लेषण से संबंधित विविध विषयों पर विवेचनात्मक एवं प्रभावोत्पादक शैली में निबंध लिखे।
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
- "अज्ञेय' ने निबंध हेतु साहित्यिक विषयों का चयन किया इनके निर्णयों का संग्रह त्रिशंकु है।
यशपाल
- यशपाल ने कथा साहित्य की भांति निबंध साहित्य की अभिवद्धि में भी असाधारण योगदान किया। इनके निबंधों के संग्रह देखा, सोचा, समझा', 'मार्क्सवाद', 'चक्कर क्लब', 'न्याय का संघर्घ' गांधीवाद की शव परीक्षा तथा राज्य की कथा' आदि प्रमुख हैं। शैली में सरलता तथा विचारोत्तेजकता विद्यमान है। कहीं-कहीं इनकी शैली व्यंग्यात्मक हो गई है। व्यंग्य सामाजिक एवं तीखे हैं, उदाहरण द्रष्टव्य है -
- "कारतूसों की एक दुकान खोलो, जिसमें कलमाइड कारतूस' मुसलमानों के लिए और झटकाइड कारतूस सिक्खों के लिए रहें। अच्छा मुनाफा रहेगा।"
गोपाल प्रसास व्यास
- व्यास के निबंधों में हास्य-विनोद तथा व्यंग्य की प्रधानता है। उनके निबंध संग्रह 'कुछ सच कुछ झूठ तथा मैंने कहा प्रमुख हैं। व्यास छोटी से छोटी बात को भी अत्यंत रोचक एवं साहित्यिक ढंग से प्रतिपादन करने में सिद्धस्त थे। उदाहरण के लिए स्नान घर में भैंस वास्तव में घुस गई या पत्नी के मोटपे पर व्यंग्य करने के लिए कल्पना कर लिया और कल्पित भैंस को स्नान घर में घुसा ही नहीं दिया बल्कि अनूठा निबंध लिख डाला तथा यत्र-तत्र वे विभिन्न वर्गों के साहित्यकारों को भी भैंस के बहाने याद कर लेते हैं -
- "एक दिन बाबू जी की पत्नी गुसलखाने में स्नान कर रही थी, तो भैंस भी अपना अधिकार समझकर उसमें घुस पड़ी। संकरा दरवाजा, छोटी जगह भैंस घुस तो गई, मगर अब निकले कैसे? एकदम नई अलझन थी। प्रगतिशील भैंस के बढ़े हुए कदम प्रतिक्रियावादी होने को कतई तैयार न थे।"
प्रभाकर माचवे
- प्रभाकर माचवे ने मुंह, गला, गाली, बिल्ली, मकान आदि साधारण विषयों का निबंध हेतु चयन करके अति रोचक निबंधों की रचना की है। उनके निबंध संग्रह नाम जो होता नहीं है, है 'खरगोश की सींग ।। शैली सरल, मुहावरेदार प्रवाहपूर्ण तथा प्रभावोत्पादक है।
देवेन्द्र सत्यार्थी
- देवेन्द्र सत्यार्थी ने लोक संस्कृति एवं लोक गीतों की पष्ठभूमि पर विभिन्न विषयों पर अनुभूति पूर्ण निबंधों की रचना की है। इनके निबंधों के अनेक संग्रह एक युग: एक प्रतीक, रेखाएं बोल उठीं, क्या गोरी क्या सावरी कला के हस्ताक्षर आदि हैं। इनके निबंध अति मनोहारी हैं जिनमें मन को आकर्षित करने की क्षमता विद्यमान है।
जयनाथ नलिन
- जयनाथ नलिन के निबंधों का संग्रह कला और चिंतन है जिसमें मौलिक निबंधों का संग्रह किया गया है।
डॉ. पद्मसिंह शर्मा 'कमलेश'
- इंटरव्यू का हिंदीकरण अंतव्यू किया गया है। यदि इस शब्द में अंत्याक्षरागम के अनुसार अंतव्यू- अंतर्व्यूह कर लिया जाए तो चक्रव्यूह के आधर इस शब्द की सार्थकता में वृद्धि हो जाए।
- हिंदी साहित्य की निबंध परंपरा में अनेक शैलियों का प्रयोग किया गया है। एक नवीन शैली अंतर्व्यू शैली है इसके प्रवर्तन का श्रेय डॉ. पद्मसिंह शर्मा कमलेश' को है। इनके निबंध का संकलन मै इनसे मिला (दो भाग) हैं। इन्होंने विभिन्न साहित्यकारों के लिए गए अंतर्व्यूह (साक्षात्कार) के आधार पर उनके व्यक्तित्व, दर्शन, साहित्य- सजन के भिन्न पक्षों को अति कलात्मक शैली में प्रतिपादित किया है। अंतर्व्यूह के अतिरिक्त डॉ. कमलेश के अन्य अनेक निबंधों की रचना करके हिंदी निबंध साहित्य की अभिवृद्धि की है। इनके निबंधों में वैचारिक सरलता एवं स्पष्टता तथा शैलीगत सरसता विद्यमान है।
कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर
- प्रभाकर ने जीवन एवं समाज को प्रेरित करने के लिए रोचक एवं प्रभावोत्पादक निबंधों की रचना की प्रभाकर के निबंध संग्रह जिंदगी मुस्कराई, बाजे पायलिया के घुंघरू, दीप जले शंख बजे तथा क्षण बोले कण मुस्काए आदि उल्लेखनीय हैं।
राम नाथ सुमन
- राम नाथ सुमन ने सैकड़ों निबंध लिखे हैं।
जैनेन्द्र कुमार
- जैनेन्द्र कुमार ने सांस्कृतिक, नैतिक, राजनीतिक चिंतन को अपनी विशिष्ट शैली में विश्लेषणात्मक निबंधों के प्रस्तुत किया है। उनके निबंधों का संग्रह समय और हम है।
डॉ. संपूर्णानंद
- डॉ. संपूर्णानंद के निबंधों में दार्शनिक विवेचन है किन्तु उसमें जटिलता नहीं है।