हिन्दी का प्रथम उपन्यास कौन सा व्याख्या
हिन्दी का प्रथम उपन्यास कौन सा ?
- आधुनिक उपन्यास साहित्य रूप विधान का विकास यूरोप माना जाता है किन्तु उससे पूर्व प्राचीन भारत में इस विधि का प्रचार प्रसार था, पंचतंत्र, हितोपदेश, वैताल पंचविंशति, वहत् कथा मंजरी, वासवदत्ता, कादंबरी और दशकुमार चरित आदि के रूप में औपन्यासिकता का विकास मिलता है। मराठी साहित्य में 'उपन्यास' का पर्यायवाची ही कादंबरी है। किन्तु यह उचित प्रतीत नहीं होता है।
हिंदी में सर्वप्रथम मौलिक उपन्यास परीक्षा गुरु'
- यथार्थवादी दष्टिकोण एवं शैली की स्वाभाविकता की दृष्टि से लाला श्रीनिवास दास कृत परीक्षा गुरु' को हिंदी का प्रथम मौलिक उपन्यास कहा जा सकता है।
- हिंदी में उपन्यास का आविर्भाव उन्नीसवीं सदी के अंतिम काल में हुआ। बंगला में इस विधा का उद्भव हिंदी से पूर्व हो चुका था क्योंकि अंग्रेजी का प्रभाव पहले बंगला भाषा पर पड़ा।
- हिंदी में सर्वप्रथम मौलिक उपन्यास परीक्षा गुरु' भारतेन्दु के जीवन काल में ही सन् 1882 ई. में प्रकाशित हो गया था जिसकी रचना का श्रेय लाला श्रीनिवास दास को है।
- यद्यपि लाला जी ने इसकी भूमिका में स्पष्ट लिख दिया है कि इसके लेखन में "महाभारतादि संस्कृत, गुलिस्तां वगैरह फारसी, स्पेकटेटर, लार्ड बेकन, गोल्ड स्मिथ, विलियम कपूर आदि पुराने लेखों और स्त्री बोध आदि के वर्तमान रिसालों से बड़ी सहायता मिली है। इससे तथा इसके ढांचे से ज्ञात होता है कि इसकी रचना बंगला उपन्यासों के आधार नहीं की गई है अपितु लेखक ने सीधे अंग्रेजी के उपन्यासों से प्रेरणा ग्रहण की है।
हिन्दी का प्रथम उपन्यास परीक्षा गुरु की कहानी
- परीक्षा गुरु में दिल्ली के एक सेठ पुत्र की कहानी है, जो कुसंगति में पड़ गया था जिसका उद्धार अंत में एक सज्जन मित्र ने किया। लेखक इसमें अत्यधिक उपदेशात्मक हो गया है जिसके परिणामस्वरूप यह रचना सफल उपन्यास का रूप ग्रहण नहीं कर सकी। डॉ. विजय शंकर मल्ल ने फिल्लौरी कृत 'भाग्यवती को प्रथम उपन्यास कहा।