आलोचना समालोचना समीक्षा किसे कहते हैं अर्थ एवं परिभाषा
आलोचना का पर्याय, शब्दार्थ एवं परिभाषा
- आलोचना को समालोचना तथा समीक्षा आदि अनेक नामों से अभिहित किया जाता है। इसका अंग्रेजी पर्याय क्रिटिसिज्म है। इन सभी शब्दों का सामान्य अर्थ सम्यक निरीक्षण होता है।
आलोचना शब्द का अर्थ
- [सं. आ लोच् (देखना) + गिच् + युच् + ल्युट् अन्] से व्युत्पन्न है। लोच धातु से पूर्व 'आ' उपसर्ग (विशेष अर्थ में) लोच् देखने के अर्थ में है लोच् से लोचन व्युत्पन्न है जिसका अर्थ देखने वाला अंग अर्थ आंख है। णिच्, ल्युट् तथा अन् प्रत्यय हैं। जिसका अर्थ किसी कृति या रचना के गुण दोषों का निरुपण या विवेचन करना होता है। किसी कृति या कृतिकार के गुण-दोषों का भली भांति सम्यक् विवेचन या उनको देखना आलोचना कहलाता है।
समालोचना किसे कहते हैं का अर्थ एवं परिभाषा
- सं. समालोचन + टाप् से व्युत्पन्न है जिसमें आलोचना से पूर्व सम' उपसर्ग बराबर अर्थ में टाप् प्रत्यय लगा है जिसका अर्थ अच्छी तरह अर्थात् बराबर समान दष्टि से देखना है। किसी कृति या कृतिकार के गुण-दोषों का किया जाने वाला विवेचन। साहित्य में वह लेख जिसमें किसी कृति या कृतिकार के गुण दोषों के संबंध में समान रूप से अपने विचार प्रकट किए हों। इसे अंग्रेजी में रिव्यू कहते हैं। गुण दोष विवेचन की कला या विद्या होती है।
समीक्षा किसे कहते हैं अर्थ एवं परिभाषा
- सं. सम ईक्ष् (देखना) + अ-टाप् से व्युत्पन्न है। ईक्ष से पूर्व सम उपसर्ग तथा टाप् प्रत्यय है। ईक्ष् से चक्षु अर्थात् आंख बना है। लोच से लोचन तथा ईक्ष से चक्षु दोनों का अर्थ आंख अर्थात् देखना है। गुण दोषों की समान दष्टि से कृति या कृतिकार को देखना या उसकी विवेचना करना समीक्षा कहलाता है।
- क्रिटिसिज्म का अर्थ मूल्यांकन करना या निर्णय करना होता है। साहित्यिक क्षेत्र में आलोचना, समालोचना तथा समीक्षा भिन्नार्थक हैं। जबकि सामान्य रूप से एक जैसे प्रतीत होते हैं। साहित्य में किसी भी साहित्यिक रचना या साहित्यकार के विवेचन विश्लेषण, गुण-दोष दिग्दर्शन, मूल्यांकन, सिद्धांत या नियम- प्रतिपादन तथा व्याख्या को आलोचना के अंतर्गत रखा जाता है। इस प्रकार आलोचना का अर्थ सम्यक निरीक्षण हुआ।
डॉ. श्याम सुंदर दास ने आलोचना के विषय में विचार
करते हुए साहित्यालोचन में लिखा है-
"साहित्य क्षेत्र में ग्रंथ को पढ़कर उसके गुणों और दोषों का विवेचन करना और उसके संबंध में अपना मत प्रकट करना आलोचना कहलाता है। ...यदि हम साहित्य को जीवन की व्याख्या मानें तो आलोचना को उस व्याख्या की व्याख्या मानना पड़ेगा।"
आलोचना का उद्देश्य प्रकट करते हुए डॉ. गुलाब राय ने लिखा है -
"आलोचना का मूल उद्देश्य कवि की कृति का सभी दष्टिकोणों से आस्वाद कर पाठकों को उस प्रकार के आस्वाद में सहायता देना तथा उनकी रूचि को परिमार्जित करना एवं साहित्य की गति निर्धारित करने में योग देना है।"
- आलोचना के साहित्यिक वैज्ञानिक या व्यक्तिगत तथा वस्तुगत प्रमुख दो रूप होते हैं। वैसे विषयानुसार ऐतिहासिक, सैद्धान्तिक, व्यावहारिक निर्णयात्मक, तुलनात्मक व्याख्यात्मक, मनोवैज्ञानिक, साम्यवादी नयी आदि अनेक रूप होते हैं।