दक्खिनी हिंदी की काव्यगत विशेषताएं | Dakhani Hindi Ki Kavaygat Visheshtaayen

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 दक्खिनी हिंदी की काव्यगत विशेषताएं

दक्खिनी हिंदी की काव्यगत विशेषताएं | Dakhani Hindi Ki Kavaygat Visheshtaayen
 

दक्खिनी हिंदी की काव्यगत विशेषताएं


दक्खिनी हिंदी का काव्य समद्ध है। काव्य धारा लंबी है। गद्य-पद्य दोनों की रचनाएं हुई। अधिकांश कवि मुसलमान हैं। सूफी धर्म एवं दर्शन का प्रभाव है। 


दक्खिनी हिंदी की काव्यगत विशेषताएं निम्नलिखित हैं

 

दक्खिनी हिंदी की प्रशंसा 


  • दक्खिनी हिंदी के रेखतारेरन्टीहिंदीहिंदवीहिंदुई आदि अनेक नाम हैं। कवियों ने इनकी महत्ता का गुणगान किया है। संस्कृत फारसी के ज्ञान के बिना भी दक्खिनी आसानी से समझी जा सकती है ऐसा सनअली का कहना है। अशरफ तथा बुहानुद्दीन ने दक्खिनी हिंदी की शक्ति और सामर्थ्य की प्रशंसा की है।

 

सौंदर्योपासना

 

  • दक्खिनी हिंदी के कवि सौंदर्य के अनूठे कवि हैं उन्होंने सौंदर्य की व्यापक अवधारणा की है। नर-नारी दोनों के सौंदर्य का वर्णन किया है। सौंदर्य वर्णन की दृष्टि से मुहम्मद कुली का नाम उल्लेखनीय है। वह गोलकुंडा का रंगीलेशाह था। उसने अनेक छंदों में नखशिख वर्णन और नायिकाओं के विभिन्न प्रकारों का सौंदर्य निरूपण किया है। इस बादशाह कवि की अनेक प्रमिआए थीं इसलिए उनके सौंदर्य पर भी छंद रचना की है। उसकी प्रमिकाओं में भागमती का महत्वपूर्ण स्थान था। वह बड़ी कलावंत नारी थी। उसे रूप चित्रण की आड़ में कवि ने सौंदर्य के अनुपन विश्व का सजन किया है। नखशिख वर्णन में नयनकपोलबालभौंह आदि का अति उत्तेजक एवं मादक वर्णन किया है। प्रेम कथा को अपने काव्य का विषय बनाया। सैफुल्मलूक का वदी उज्जमाल ने पुरुष सौंदर्य का अंकन किया है। इनके सौंदर्य वर्णन में स्वाभाविकता है।

 

प्रेम व्यंजना 

  • इनका काव्य मूल प्रतिपाद्य प्रेम है। इन्होंने प्रेम के अनेक रूपों तथा अनेक चित्रों को पूर्ण सफलता से अंकित किया है। प्रेम प्रतीक्षाप्रेम उल्लासप्रेम पिपासाप्रेम मदिराप्रेम सुख प्रेम दुखप्रेम पातीप्रेम अग्नि तथा प्रेम प्रभाव आदि प्रेम निरूपण के अनेक विषयों के द्वारा इन कवियों ने प्रेम की व्यंजना की है। प्रेम में विरह की आकुलता-व्याकुलता की व्यंजना अति सहजता से की है। वली दकनी का प्रेम व्यंजना में महत्वपूर्ण स्थान है। मुहम्मद कुली ने भी प्रेम का वर्णन किया है।

 

संस्कृति निरूपण 

दक्खिनी कवियों में संस्कृति के प्रति अपार प्यार है। संस्कृति के बाह्यांतर दोनों प्रश्नों का वर्णन किया है। बंदा नेवाज की रचना से पारा में प्रश्नोत्तर शैली अपनाई गई है। जो नीतिगत चेतना की व्यंजना करते हैं। उदाहरणार्थ गद्यांश प्रस्तुत है - 


  • "सवाल ईमान के झाडां क्याऔर ईमान के डाल्यां क्याऔर ईमान के बाद और ईमान का वतन क्याऔर ईमान का बीज क्याऔर ईमान का पोस्त क्याऔर ईमान का का जीव क्या?

 

  • जवाब- ईमान की जीव कुरान। ईमान की जड़ तोबा ईमान की डाल्यां सो बंदगी ईमान की बात परहेजगारी ईमान का तुख्म से इल्म ईमान का पोस्त शर्म ईमान का वतन सो मोमिन का दिल है।"

 

  • सवाल-जवाब में मानव के आचार-विचारप्रेम-घणाआस्था- निष्ठा के विवेचन के द्वारा अच्छा मनुष्य बनने के लिए मानो आचार संहिता प्रस्तुत कर दी है। इसके अतिरिक्त उत्सव-त्यौहारमंगलाचरणजन्मोत्सव वर्षगांठविवाह संस्कारविवाह - भोजसोहागरातबारात विदाई नव वर्ष (नीरोज) आदि विभिन्न सांस्कृतिक आयामों का विशद वर्णन है।

 

प्रकृति चित्रण 

  • दक्खिनी काव्य में प्रकृति के अनेक रूपों का सजीवउद्दीपकप्रेरणार्थक रूपों का वर्णन किया गया है। गर्मीसर्दीशरदबसंतवर्षा एवं हेमंत आदि ऋतुओं का मनोहारी रूप वर्णित है। प्रातः मध्याह्नसंध्या का सजीवमोहक चित्रांकन किया गया है। मुहम्मद कुली ने ऋतुराज वसंत का अति मादक एवं उत्तेजक रूप वर्णित किया है। वसंत की संपूर्ण सुषमा जीवंत हो उठी है। 

  • वन शोभाउद्यान शोभानिशा सौंदर्यआदि सुंदर वर्णन गौवासी में दष्टिगोचर होता है। रात का स्वाभाविक चित्र उकेरने में गोस्वामी को अपूर्ण सफलता मिली है।

 

आश्रयदाता की प्रशंसा 

  • अधिकांश कवि राज्याश्रित थे जिन्होंने रीतिकालीन कवियों की भांति अपने आश्रयदाता राजा की प्रशंसा मुक्त कंठ से की है। वजही तत्कालीन गोलकुंडा के दशाह कुतुबशाह का राज कवि था। गौवासी का आश्रयदाता सुल्तान अब्दुल्ला कुतुबशाह था। मसनवी शैली के अनुसार कवियों में समसामयिक राजाओं की वंदना तथा प्रशंसा की है। प्रशंसा की शब्दावली द्रष्टव्य है । 


तबई ने अपने आश्रयदाता सुल्तान अबुल हसन कुतुबशाह की प्रशंसा में लिखी है -

 

शह अबुलहसन सच तूं शाहेदखिन । तुजे शाहराज् मदद बुल्हसन ।। 

दिया है खुदा वादशाही तुझे सोहाता है जल्ले इलाही तुझे ।। 

शहंश तू आज दिन सूर है। तेरे परते शाहा बला दूर है। 

मलाहत में ज्यों सूर चंदर है तूं। सलावत मने ज्यों सिकंदर है तू।।

 

खुदा बंदगी

 

  • प्राय: अधिकांश दक्खिनी कवि इस्लाम धर्मानुयायी हैं। खुदा में उनको विश्वास हैआस्था है। इसलिए उनकी बंदगी में कहीं चूक नहीं की है। अल्ला का हक कहीं नहीं मारा है। अल्ला बंदगी में अपनी खैर मानते हैं। अशरफ ने अपनी रचना में अल्ला को दुनिया की सारी चीजों को बनाने वाला मानकर मंगलाचरण में ईश्वर का गुणगान किया है। 

  • शाह बुरहानगौवासीख्वाजा बंदानेवाजखुशनूद बाकर आमाह आदि सभी ने अल्लाह की बंदगी की है। वाकर आगाह ने पैगंबर मुहम्मद के अनेक चित्रों को अपनी रचना में उकेरा है जिसमें मुहम्मद की आकृति प्रकृति तथा वेशभूषा आदि की छटा वर्णित है।

 

स्वदेश प्रेम 

इनकी कोई व्यापक राष्ट्रीयत नहीं थी किन्तु दक्खिनी क्षेत्र के प्रति उनमें अपार प्यार है। उसी को देश प्रेम के रूप में वर्णित किया है। कवि वजही का देश प्रेम वर्णन प्रशंसनीय है -

 

"दखिन सा नहीं ठार संसार में, 

निपज फाजिला का है इस ठार में,

 दखिन है नगीना अंगूठी है जग, 

अंगूठी कुं तुर्मत नगीना है लग 

दखन मुल्क कूं धन अजब साज है

कि सब मुल्क सिर हो दखिन ताज है। 

दखिन मुल्क मौते च खामा अहै,

 तिलंगाना उसका खुलासा अहै। 

कुतुब मुश्तरी


युद्ध वर्णन 

दक्खिनी काव्य धारा के कवियों में युद्धों का सजीव एवं जीवंत वर्णन किया गया है। ऐसे कवियों में नस्रतीइश्रुतीवली वेल्लोरी आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। नसती का शिवाजी और अली आदिल का पनाला में सन् 1661 ई. का युद्ध वर्णन दर्शनीय है -

 

खडगां खनाखन सूर धर सूरां के यों बजने लगे। 

जोहए का जोहरा गुल रह्या आवाज सुन झलकार का।। 

खडगां खडगां लग अधिक चौधरते यों चिंगियां उड़ियं । 

ज्यों आगकियां बिजलियां चमक वरस्यों बदल अंगार का।।"

 

कला शिल्प 

  • दक्खिनी हिंदी के कलापक्ष का विवेचन करते हुए डॉ. श्रीराम शर्मा ने लिखा है "दक्खिनी के आरंभिक उच्चारण का विश्लेषण नव आर्यभाषाओं के ध्वनि संबंधी विवेचन के लिए महत्वपूर्ण है। यह विवेचन उस समन्वय प्रणाली से अवगत कराता है। जिसके कारण हिंदी भाषा क्षेत्र की विविध बोलियोंअरबीफारसीतुर्की तथा पश्तो आदि मराठी तेलुगुकन्नड क्षेत्र की अनेक उपभाषाओं और बोलियों की ध्वनि संबंधी विविधताओं के बीच साहित्यिक दक्खिनी की ध्वनियां सुनिश्चित एक रूपता प्राप्त कर सकीं।" 
  • दक्खिनी हिंदी में उपमारूपकयमकअनुप्रासउत्प्रेक्षा तथा अतिशयोक्ति आदि अलंकारों की सुंदर समायोजना की गई है। दक्खिनी कवियों ने अविधालक्षण एवं व्यंजना शब्द शक्तियों का सुंदर प्रयोग किया है। प्रसाद एवं माधुर्य गुज की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। इसके अतिरिक्त रीतियों का भी प्रयोग किया गया है। विंब विधान एवं प्रतीक योजना का सफल निर्वाह किया गया है। मुहावरों एवं लोकोक्तियों का समावेश किया गया है। भाषा सहजसरलशक्तिशाली प्रभावोत्पादक एवं संप्रेषकीय है। भाषा भावनुसारिणी है। शिल्पविधान एवं भावविधान विचारनुसार हैं। 
  • भाषा में संस्कृतअरबीफारसीतुर्कीअवधीब्रजतमिलतेलुगु तथा कन्नड़ आदि के आधार भाषा गद्य एवं पद्य दोनों की खड़ी बोली है जिसे इन्होंने दक्खिनी नाम दिया है। इनकी भाषा को गंगा यमुनी कहा जा सकता है। आलोचकों ने मिश्रित भाषा भी कहा है। भाषा का समन्वित विधान सांस्कृतिक सूत्रबद्धता तथा राष्ट्रीयता को दढ़ता प्रदान करने वाला है।

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