हिंदी में रिपोर्ताज लेखन प्रणाली
हिंदी में रिपोर्ताज लेखन प्रणाली
- हिंदी में रिपोर्ताज लेखन की प्रणाली अति नवीन है। इसलिए यह साहित्य अन्य साहित्य गद्य विधाओं की अपेक्षा सीमित है। हिंदी में उपलब्ध रिपोर्ताज, पत्र-पत्रिकाओं, उपन्यासों में प्रसांगानुकूल, ललित निबंधों तथा गोष्ठियों सभाओं, अधिवेशनों आदि के आधार लिखे गए रिपोर्ताज दष्टिगोचर होते हैं। किन्तु इन्हें वास्तविक रिपोर्ताज की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। मात्र ललित निबंधों में इनका वास्तविक स्वरूप उपलब्ध होता है।
प्रथम रिपोर्ताज कौन सा है ?
- रिपोर्ताज का प्रारंभ सन् 1940 ई. के आस पास माना जाता है। शिवदान सिंह चौहान द्वारा लिखित मौत के खिलाफ जिंदगी की लड़ाई प्रथम रिपोर्ताज है जो हंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ स्तंभ का नाम समाज और विचार था।
रिपोर्ताज का विकास एवं रिपोर्ताज लेखक
- स्वतन्त्रता से पूर्व राष्ट्रीय परिवेश में चित्रण से रिपोर्ताज का प्रारंभ हुआ।
रांगेय राघव का रिपोर्ताज
- रांगेय राघव ने प्रथम रिपोर्ताज अदम्य जीवन लिखा जो विशाल भारत में प्रकाशित हुआ था। सन् 1943 44 ई. में रांगेय राघव ने बंगाल के दुर्भिक्ष महामारी विषय अनेक मार्मिक रिपोर्ताज लिखे इनके रिपोर्ताज का संकलन तूफानों के बीच है। अन्य रिपोर्ताज यह है ग्वालियर में सांप्रदायिक दंगों, दमन नीति, अत्याचारों तथा हृदय हीनता का मार्मिक चित्रण किया गया है।
अमत लाल नागर
- अमत लाल नागर पर बंगाल के अकाल का अत्यधिक प्रभाव पड़ा जिसने उनसे महाकाल नामक उपन्यास की रचना रिपोर्ताज शैली में लिखवाया।
प्रकाशचन्द्र गुप्त का रिपोर्ताज
- प्रकाशचन्द्र गुप्त द्वारा लिखित रिपोर्ताज में घटना प्रधानता है। इनके रिपोर्ताजों में स्वराज्य भवन विशेष उल्लेखनीय है। अन्य रिपोर्ताज अल्मोढ़े का बाजार तथा बंगाल का अकाल आदि है। इनके सभी रिपोर्ताज हंस में प्रकाशित हुए।
स्वतंत्र्योत्तर रिपोर्ताज लेखन
- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं जिन्होंने रिपोर्ताज लेखकों को रिपोर्ताज लिखने के लिए बाध्य कर दिया। भारत-पाक विभाजन के पश्चात भीषण नरसंहार हुआ बंगाल में नोआखाली में हिंदुओं पर भयंकर अत्याचार किया गया। लूटपाट, मारकाट हिंसा प्रतिहिंसा का दौर चलता रहा। इनसे संबंधित अनेक रिपोर्ताज लिखे गए।
साठोत्तरी रिपोर्ताज लेखन
- सन् 1965 ई. सन् 1971 ई. में भारत पाकिस्तान युद्ध हुए। सन् 1962 ई. में भारत चीन युद्ध हुआ। इन युद्धों से संबंधित रिपोर्ताज लिखे गए। इसके अतिरिक्त भारत पर अनेक आपदाएं आई बाढ़, सूखा, अकाल, अग्नि कांड, भूकंप, आतंकवाद तथा विमान दुर्घटना आदि। इन सब पर रिपोर्ताज लिखे गए।
धर्म वीर भारती -
- सन् 1971 ई में बंगला देश स्वाधीनता संग्राम हुआ बंगला देश से धर्म भारती ने अनेक रिपोर्ताज भेजे थे जो धर्म युग में प्रकाशित हुए।
- डॉ. भगवत शरण उपाध्याय
- फणीश्वर नाथ रेणु
- जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी
- निर्मल वर्मा
- कमलेश्वर
- लक्ष्मी कांत वर्मा
- आदि अनेक रिपोर्ताज लेखकों ने रिपोर्ताज की रचना की जो तत्कालीन प्रकाशित होने वाली दिनमान, नया पथ, माध्यम, ज्ञानोदय, कल्पना, सारिका, अवकाश, सूर्या, हिंदी एक्सप्रेस, रविवार तथा साप्ताहिक हिंदुस्तान आदि पत्रिकाओं में समय समय पर विभिन्न स्तंभों में प्रकाशित होते रहे। इन पत्रिकाओं का रिपोर्ताज लेखन में विशेष योगदान रहा है।
डॉ. बालकृष्ण राव रिपोर्ताज लेखक
- डॉ. बालकृष्ण राव ने वर्षों तक कल्पना पत्रिका के कमलाकांत जी ने कहा नामक स्थायी स्तंभ में रिपोर्ताज लिखे।
ख़्वाजा अहमद अब्बास
- सन् 1968 ई. के सारिका के कई अंकों में ख्वाजा अहमद अब्बास ने बिहार की डायरी नाम से बिहार के सूखे पर, बिहार के अकाल पर अनेक रिपोर्ताज प्रकाशित कराए।
निर्मल वर्मा का रिपोर्ताज
- निर्मल वर्मा का रिपोर्ताज प्रातः एक स्वप्न धर्म युग में प्रकाशित हुआ था जिसमें उन्होंने चेकोस्लोवाकिया में प्रविष्ट रूसी सेनाओं पर भावनात्मक एवं संवेदनात्मक रिपोर्ताज की रचना प्रस्तुत की थी।
वर्तमान काल में में रिपोर्ताज लेखन
- वर्तमान काल में साहित्यिक गोष्ठियों सभाओं, सम्मेलनों अधिवेशनों आदि के आधार पर लिखे गए रिपोर्ताज प्रायः सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे हैं। माध्यम पत्रिका के अनेक वर्षों तक विवेचक तथा गोष्ठी प्रसंग से संबंधित रिपोर्ताज प्रकाशित होते रहे हैं। वर्तमान काल में समसामयिक घटनाओं महत्वपूर्ण प्रकाशनों, साहित्यकारों के जन्म दिवस, उपाधि पत्र दिये जाने तथा सम्मानित किये जाने के अवसरों पर गोष्ठियां एवं सम्मेलनों का आयोजन किया जाता रहा है। उस समय रिपोर्ताज लिखे जाते रहे हैं तथा प्रकाशित होते रहे हैं। स्मरिकाएं प्रकाशित होती हैं।
- रिपोर्ताज की विशिष्ट शैली का उपन्यासों में पर्याप्त प्रयोग होने लगा है। रिपोर्ताज शैली के माध्यम से लिखी गई आधुनिक साहित्यकारों की अनेक उत्कृष्ट औपन्यासिक कृतियां दष्टिगोचर होती हैं। साहित्यकार की संवेदनशीलता बढ़ जाने पर उसकी रिपोर्ताज लेखन शैली सशक्त एवं प्रभावोत्पादक हो जाती है, युद्ध की विभीषिका, दुर्भिक्ष की भयंकरता या मानव समाज को प्रभावित करने वाली हृदय विदारक घटना के घटित होने पर रिपोर्ताज लेखक घटना के वैविध्य को रिपोर्ताज शैली का रूप देकर पाठक के समक्ष ऐसे प्रस्तुत करता है कि उसका दिल दहल जाता है।
- वर्तमान काल के प्रौढ़, सशक्त, उत्कृष्ट एवं सरस साहित्यिक शैली में रिपोर्ताज लिखने वालों में उपेंद्र नाथ अश्क- पहाड़ों में प्रेम मय गीत; रामनारायण उपाध्याय गरीब और अमीर पुस्तकें (रिपोर्ताज संग्रह); शिव सागर मिश्र वे लड़ेंगे हजार साल भदंत कौसल्यायन – देश की मिट्टी बुलाती है; डॉ. धर्मवीर भारती युद्ध यात्रा, कामता प्रसाद काम एवं मैं छौटा नागपुर से बोल रहा हूं, जगदीश चंद्र जैन पीकिंग की डायरी, यशपाल चक्कर क्लब, विवेकी राय जुलूस रुका है, कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर - क्षण बोले कण मुस्काए, फणीश्वर नाथ रेणु ऋण जल धन जल, नेपाली क्रांति कथा, लाल भारती, एक लव्य के नोट्स एवं श्रुत-अश्रुत पर्व, प्रभाकर माचवे; गोरी नजारों में, शमशेर बहादुर सिंह- प्लाट का मोर्चा, वाचस्पति उपाध्याय-हरा भरा जनतंत्र है सूख गया स्वातंत्र्य चंद्रभाल मधुव्रत मान न मान यही है विज्ञान कुबेर नाथ रायगंधमादन तथा राम आसरे – माओ के देश में आदि महत्वपूर्ण रिपोर्ताज लेखक तथा उनके रिपोर्ताज हैं।
- विवेकी राय स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् परिवर्तित गांव, जीवन एक मृत्यु के मध्य विभीषिका की आहें भरते हुए गांव के दर्शक एवं दुख तथा वेदना भोगने वाले हैं। जुलूस रूका में ग्रामीणों की जीती जागती तस्वीर दष्टिगोचर होती है। फणीश्वर नाथ रेणु की तरह ही विवेकी राय ने अपनी औपन्यासिक कृतियों में रिपोर्ताज शैली का सुंदर एवं सफल प्रयोग किया है। फणीश्वर नाथ रेणु में परिवेश का चित्रांकन करने की अपूर्व क्षमता है जिसके परिणामस्वरूप परिवेशगत संपूर्ण अनुभव उद्घाटित हो जाता है।
- वर्तमान काल में रिपोर्ताज ने स्वतंत्र गद्य विधा के रूप में अपने को प्रतिष्ठछापित कर लिया है। विकास यात्र की लगभग अर्ध शताब्दी पार कर ली है किन्तु परिणाम एवं गुणवत्ता की दृष्टि से इस को पूर्णता की प्राप्ति नहीं हुई। वर्तमान युग मीडिया एवं संचार संपर्क का है। इस दृष्टि से इसका भविष्य उज्जवल है।