आत्मकथा किसे कहते हैं , आत्म कथा का सामान्य अर्थ
आत्मकथा किसे कहते हैं
- आत्म कथा का सामान्य अर्थ अपनी कहानी लेखक की जुबानी होता है। अथवा अपने संबंध में स्वयं कही या लिखी बातें। साहित्य में ऐसी पुस्तक जिसमें किसी व्यक्ति ने अपने जीवन की सभी मुख्य मुख्य बातों का वर्णन किया हो। इसे आत्म चरित भी कहते हैं। इसका अंग्रेजी पर्याय आटोबायोग्राफी है।
- कोई भी व्यक्ति आत्म कथा अपने जीवन के उत्तरार्द्ध के अंतिम भाग में लिखता है। उस समय जीवन की संपूर्ण घटनाएं यथातथ्य उसके समक्ष नहीं होती हैं। उनको संस्मरणों के सहारे स्मति पटल पर अंकित करके आत्मकथा का सजन करता है। इसलिए आत्म कथा को हिंदी गद्य साहित्य की एक संस्मरणात्मक विधा कहा गया है। संस्मरणात्मक होने पर भी यह संस्मरण नहीं है उससे भिन्न विधा है। हिंदी साहित्य की आधुनिक नवीन विधाओं में आत्म कथा गद्य की प्रमुख विधा है। हिंदी में आत्मकथा लेखन की परंपरा अन्य भाषाओं की अपेक्षा अत्यल्प है। तात्विक विवेचन एवं यथार्थ की प्रधानता के अनुसार अन्य विधाओं से अधिक पुष्ट एवं प्रामाणिक विधा है। स्वयं अपने अतीत जीवन का व्यवस्थित क्रमिक वर्णन आत्मकथा को जन्म देता है।
आत्म कथा का शाब्दिक अर्थ
- आत्म कथा का शाब्दिक अर्थ अपनी कहानी होता है। आत्म कथा ऐसी जीवन कथा है जो उसी व्यक्ति द्वारा लिखी जाती है जिसके जीवन व्रत का वर्णन अभीष्ट होता है। इसे आत्मचरित या आत्मचरित्र भी कहा जा सकता है।
- इसमें लेखक अपने गुण दोषों तथा सुर्घटनाओं-दुघटनाओं का वर्णन निष्पक्ष भाव से करता है। वैयक्तिक जीवन की घटनाओं का सुखदुखात्मक कैसी भी हों यथार्थ रूप में वर्णन करता है।
हिंदी की प्रथम आत्मकथा
- हिंदी आत्म कथा का साहित्य लगभग 400 वर्ष पुराना है। प्राचीनतम आत्म कथा बनारसी दास जैन द्वारा लिखी गई। सन् 1641 ई. की रचना अर्द्धकथा है। इसके विषय में संपादक का कथन द्रष्टव्य है।
"कदाचित समस्त आधुनिक आर्य-भाषा साहित्य में इससे पूर्व कोई आत्म कथा नहीं है।" डॉ. राम चन्द्र तिवारी ने भी आत्म कथा लेखन का प्रारंभ यहीं से माना है। उनका कथन उल्लेखनीय है-
- 'आत्मकथा लिखने वालों में जिस निरपेक्ष एवं तटस्थ दष्टि की आवश्यकता होती है। वह निश्चय ही बनारसी दास में थी। उसने अपने सारे गुण दोषों को सच्चाई के साथ व्यक्त किया है। यह आत्म कथा पद्य में लिखी गई है। इसके अतिरिक्त पूरे मध्यकाल में किसी अन्य आत्मकथा का उल्लेख नहीं मिलता। इस आत्मकथा में अकबर के समय के परिवेशों का यथार्थ चित्रांकन हुआ है। पद्य बद्ध होने कारण इसे प्रथम आत्म कथा श्रेय नहीं दिया जा सकता है। उसके बाद कुछ दिनों तक आत्म कथा नहीं लिखी गई है।
- गद्य की अन्य विधाओं की भांति आत्म कथा भारतेंदु युग में ही मानना श्रेयस्कर है। भारतेंदु हरिश्चन्द्र प्रथम आत्म कथा लेखक तथा कुछ आप बीती कुछ जग बीती प्रथम आत्म कथा है।
हिन्दी के प्रमुख आत्मकथा कार
भारतेंदु युग की प्रमुख आत्मकथा
भारतेन्दु
हरिशचंद्र बहुमुखी प्रमिभा के साहित्यकार थे। अधिकांश विद्वानों ने प्रथम कथा लेखन
का श्रेय भारतेंदु हरिशचन्द्र को दिया गया है।
भारतेंदु हरिश्चन्द्र -
- भारतेंदु हरिश्चन्द्र द्वारा लिखित आत्म कथा कुछ आप बीती कुछ जग बीती में उनकी युवावस्था की रोचक काव्यात्मक घटनाएं प्रस्तुत की गई हैं किन्तु यह आत्म कथा पूर्ण नहीं अपूर्ण है।
- पं. अंबिका दत्त व्यास व्यास हरिश्चन्द्र के समकालीन आत्मकथा लेखक थे। इन्होंने निज वत्तांत नामक आत्म कथा लिखी है। इसके पश्चात् आत्मकथा लेखक निम्नलिखित हैं-
- सत्यानंद अग्निहोत्री – मुझमें देव जीवन का विकास।
स्वामी श्रद्धानंद
- कल्याण पथ का पथिक आदि इस युग की आत्म कथाओं की भाषा शिथि ल है किंतु तथ्य परक स्पष्टता अति उत्कृष्ट है।
द्विवेदी युग -आत्मकथा
- द्विवेदी युग के प्रथम एवं प्रमुख साहित्यकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं। इन्होंने सरस्वती में अपनी "अधूरी कहानी प्रकाशित करवाई।
- महावीर प्रसाद द्विवेदी - अधूरी कहानी
श्याम सुंदर दास- इनकी आत्म कथा मेरी आत्म कहानी सन् 1941 ई. में प्रकाशित हुई। इसके विषय में हरदयाल का कथन अवलोकनीय है -
- " श्याम सुंदर दास की मेरी आत्म कहानी' सन् 1941 ई. में प्रकाशित हुई। यह बड़ी सुगठित और समद्ध आत्म कथा है इसमें साहित्यिक शैली में बाबू श्यान सुंदर दास ने अपने जीवन के साथ-साथ उस समय के साहित्यिक इतिहास को प्रस्तुत किया है।"
- जयशंकर प्रसाद -पद्यमय आत्म कथा लिखी।
- मुंशी प्रेम चंद मेरी कहानी।
- श्री वियोगी हरि- मेरा जीवन प्रवाह भावात्मक शैली।
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद -आत्म कथा राजनीतिक ।
- भाई परमानंद - आप बीती।
- रामविलास शुक्ल- मैं क्रांतिकारी कैसे बना।
- वास्तव में सभी आत्मकथाएं मात्र लेखकों के जीवन वत का ही द्योतन नहीं करती हैं अपितु इनमें समसामयिक परिवेश सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक आदि का चित्रण किया गया है।
स्वातंत्र्योत्तर युग की आत्मकथा
- इस युग तक आते आते आत्म कथा बहुमुखी हो गई। स्वाधीन भारत की चिंतन प्रणाली में परिवर्तन आ गया। इस युग की प्रथम आत्म कथा यशपाल ने लिखी।
- यशपाल सिंहावलोकन इसमें क्रांतिकारियों की आत्मकथा की मार्मिकता उल्लेखनीय है। पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र'- उग्र ने अपने बीस वर्षों की कथा को निष्पक्ष किंतु कलात्मक ढंग से प्रतिपादित किया।
- सेठ गोविंद दास - आत्म निरीक्षण (तीन भाग) |
- आचार्य चतुरसेन शास्त्री - मेरी आत्म कहानी।
- वृदावन लाल शर्मा- अपनी कहानी।
- डॉ. हरिवंश राय बच्चन - इधर एक दशक में सबसे महत्वपूर्ण आत्म कथा डॉ. हरिवंश राय बच्चन ने चार खंडों में प्रकाशित की है।
- 1. क्या भूलूं क्या याद करूं।
- 2. नीड़ का निर्माण फिर
- 3. बसेरे से दूर और
- 4. दश द्वार से सोपान तक।
- बच्चन ने इन्हें स्मति यात्रा - यज्ञ नाम दिया है। इनके विषय में डॉ. रामचन्द्र तिवारी का कथन उल्लेखनीय है "इसमें उनका प्रारंभिक जीवन संघर्ष, इलाहाबाद विश्व विद्यालय के अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर के अनेक संदर्भ, केंब्रिज विश्वविद्यालय के उनके अनुभव केंब्रिज से डाक्टरेट करके लौटने पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उनकी उपेक्षा, उनकी अनुपस्थिति में उनके परिवार का असुरक्षित अनुभव करना, इलाहाबाद रेडियो स्टेशन पर हिंदी प्रोड्यूसर का उनका अनुभव, विदेश मंत्रालय में ऑफिसर आन स्पेशल ड्यूटी (हिंदी) के रूप में राजनयिक कार्यों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए किए गए उनके प्रयत्न, सचिवालय के सचिवों की मानसिकता तथा वहां से अवकाश लेने के बाद उनका जीवन अनुभव एक वहद् उपन्यास की रोचक शैली में जीवंत और साकार हो उठा है। इस स्मति यात्रा यज्ञ में प्रकारांतर से स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद का हिंदी भाषा और साहित्य का पूरा संघर्ष ही मूर्त हो गया है। इस आत्मकथा में संस्मरण, यात्रावत, कविता, साक्षात्कार, नैरेशन आदि अनेक विधाएं और शैलियां गुंफित हैं। सबसे बड़ी बात है लेखक के आत्म स्वीकार का साहस ।
" डॉ. बच्चन की आत्मकथा के विषय में धर्मवीर भारती ने लिखा है-
- "हिंदी में अपने बारे में सब कुछ इतनी बेबाकी, साहस और सद्भावना से कह देना यह पहली बार हुआ है।"
- डॉ. देवराज उपाध्याय- यौवन के द्वार पर
- राजकमल चौधरी- भैरवी तंत्र ।
साठोत्तरी युग की आत्मकथा
डॉ. रामविलास शर्मा
- घर की बात राम विलास शर्मा की विस्तृत आत्म कथा है जिसके विषय में स्वयं डॉ. राम विलास शर्मा ने लिखा है घर की बात में वैज्ञानिक विवेचन कम, मानवीय संबंधों का चित्रण अधिक है। ..इसमें कई पीढ़ियों के लेखक और वार्ताकार सम्मिलित हैं।
शिव पूजन सहाय-
- मेरा जीवन आत्म कथा में शिव पूजन सहाय के वैयक्तिक जीवन उभर कर सामने आया है साथ साथ अनेक साहित्यकारों, साहित्यिक घटनाओं तथा विभिन्न संदर्भों का प्रामाणिक दस्तावेज भी पाठक के समक्ष उपस्थित हो गया है।
कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर-
- तपती पगडंडियों पर पद यात्रा में कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर के तेजस्वी, सैद्धांतिक तथा कर्तव्यपरायण व्यक्तित्व के अनेक पक्षों का उद्घाटन हुआ है।
फणीश्वर नाथ रेणु
- फणीश्वर नाथ रेणु की आत्मकथा आत्म परिचय है जिसमें उन्होंने अपने जीवन तथा रचना संघर्ष को अति स्वाभाविक ढंग से वर्णित किया है।
डॉ. नगेन्द्र -
डॉ. नगेंद्र की आत्म कथा अर्धकथा है जिसमें उनके जीवन का अर्ध सत्य अभिव्यक्ति पर पा सका है। डॉ. नगेंद्र ने स्वयं लिखा है-
- "यह मेरे जीवन का केवल अर्ध सत्य है अर्थात् उपर्युक्त तीन खंडों में मैने केवल अपने बहिरंग जीवन का ही विवरण दिया है। जहां तक अंतरंग जीवन का प्रश्न है, वह नितांत मेरा अपना है आपको उसका सहभागी बनाने की उदारता मुझमें नहीं है।"
- इससे स्पष्ट हो जाता है कि डॉ. नरेंद्र ने अपनी आत्म कथा 'अर्ध कथा' में वास्तव में आधे अधूरे सत्य को ही उद्घाटित किया। है जीवन की गोपनीयता या रहस्य का उद्घाटन नहीं किया है उसके विषय में चुप्पी साध ली है।
अमृत लाल नागर -
- अमृत लाल नागर की आत्मकथा टुकड़े-टुकड़े दास्तान है। आत्मकथा की भूमिका में उन्होंने कहा है मैं पत्थर पर अकेरी गई ऐसी मूर्ति हूं जो कहीं कहीं छूट गई हो।" वास्तव में इसमें कथा रस लबालब भरा है। इस आत्मकथा को आधुनिक जागरण का जीवंत इतिहास कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी।
राम दरश मिश्र आत्म कथाकार
- राम दरश मिश्र की आत्म कथा सहचर है समय के नाम से प्रकाशित हुई है यह चार भागों 1. जहां मैं खड़ा हूं. 2. रोशनी की पगडंडियां, 3. टूटते बनते दिन तथा 4. उत्तर पथ में लिखी गई है। इसमें स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् ग्रामीण परिस्थितियों से बाहर निकलकर, संघर्षरत अपने मार्ग का अनुसंधान करता हुआ, लक्ष्य की खोज में मग्न साहित्यकार सांसारिक अनुभव को अपनी व्यापकता में समेटे हुए ऐसा प्रतीत होता है मानो आधा भारत ही उसमें सिमट कर सजीव हो उठा है।
डॉ. रामदरश मिश्र
- डॉ. रामदरश मिश्र की आत्मकथा सहचर है समय के विषय में डॉ. रामचंद्र तिवारी ने लिखा है इसमें रामदरश मिश्र ही नहीं आज की पूरी साहित्यिक पीढ़ी है, बनते-बिगड़ते गांव हैं जिनका जीवन रस सूख रहा है, उभरते हुए नगर हैं जिनमें मनुष्यता मर रही है और सैकड़ों सामान्य लोग हैं जिनके रोजी रोटी के लिए किए जाने वाले ऊपरी खुरदुरे संघर्ष के भीतर संवेदना और सहानुभूति की तरल धारा आज भी प्रवाहित हो रही है। सचमुच यह आत्म कथा आज के भारत के सामान्य आदमी के जीवन का दस्तावेज है । "
- उपर्युक्त आत्मकथाओं के अतिरिक्त अनेक आत्मकथाकारों की आत्म-कथाएं जिनमें स्वतन्त्र रूप से छपाने की सामर्थ या क्षमता नहीं है अथवा छपास नहीं है वे आत्म कथाएं सारिका' नामक पत्रिका के गर्दिश के दिन नामक स्तंभ में प्रकाशित होती रही है। ऐसे आत्म कथा लेखकों में भीष्म साहनी, राजेन्द्र यादव, कामता नाथ दूध नाथ सिंह के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं जिनकी संघर्षपूर्ण आत्मकथाएं प्रकाशित हुई हैं। इनको आत्म कथ्यपूर्ण आत्मकथा की संज्ञा नहीं दी जा सकती है क्योंकि इसमें आत्मकथा लेखकों का विभिन्न व्यक्तित्व अपना भिन्न भिन्न मिजाज व्यक्त करता है।
- हिंदी आत्म कथा साहित्य अभी अपने को समद्ध नहीं बना सका है। भविष्य में क्या करेगा कुछ कहा नहीं जा सकता है। कुछ आलोचकों का यह मात्र भ्रम है कि हिंदी माध्यम को अपना कर लिखने-पढ़ने वाले पंडित, मनीषी महान विद्वान या गौरवशाली नहीं हो सकते। किंचित उन्होंने कबीर, तुलसी प्रसाद, निराला, महादेवी, हजारी प्रसाद या नगेंद्र के व्यक्तित्व को भली भांति जांचा परखा नहीं है क्या ये हिंदी माध्यम नहीं थे या हिंदी लिखने पढ़ने वाले नहीं थे।