जीवनी विकास- प्रमुख, जीवनी लेखक और उनकी जीवनी
जीवनी विकास
- आधुनिक काल में जीवनी साहित्य का प्रारंभ हुआ।
भारतेंदु युग में जीवनी
- गद्य की अन्य विधाओं की भाँति जीवनी साहित्य का श्रीगणेश भी भारतेंदु युग में हुआ। इस युग में आते ही जीवनी ने प्राचीन रूप का परित्याग करके नवीन रूप धारण किया तथा जीवनी गद्य साहित्य को विधा के रूप में प्रतिष्ठित किया। राष्ट्रीय पष्ठभूमि में जीवनी लेखन का अवसर प्रदान किया। अनेक जीवनियाँ प्रकाश में आई। जिनमें संत, महात्मा, राजा, विदेशी शासक, नेता, देशभक्त, क्रांतिकारी युवा तथा साहित्यकार का जीवन चरित प्रमुख रूप से उकेरा गया।
प्रथम जीवनी साहित्य
- सर्वप्रथम जीवनी साहित्य भारतेंदु कृत चरितावली' है। उसके पश्चात् भारद्वाज कृर्त हिंदी जीवनी साहित्य सिद्धांत और अध्ययन है तथा प्रथम जीवन लेखक डॉ. भगवान शरण भारद्वाज हैं। इस ग्रंथ में भारतेंदु से स्वतन्त्रता प्रापित से पूर्व तक लिखित सैकड़ों जीवनियों की सूची प्रस्तुत की गई है। साहित्यिक जीवनी कार्तिक प्रसाद खत्री द्वारा लिखित मीराबाई का जीवन चरित्र सन् 1893 ई. है।
- भारतेंदु हरिश्चन्द्र भारतेंदु हरिश्चन्द्र साहित्य की अन्य विधाओं के साथ जीवनी लेखन में अग्रगण्य रहे हैं उनके द्वारा लिखी जीवनी 'चरितावली' है। जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के महत्वपूर्ण व्यक्तियों के संक्षिप्त जीवन चरित लिखे हैं। उसके पश्चात् पंच पवित्रात्मा सन् 1884 ई. उल्लेखनीय हैं। इसमें मुस्लिम धर्माचार्यो महात्मा मुहम्मद, मुहम्मद अली, बीवी फातिमा तथा इमाम हसन इमाम हुसैन की संक्षिप्त जीवनियां लिखी हैं।
छायावाद युग में जीवनी लेखन
छायावाद युग में जीवनी साहित्य का विकास होने लगा। धार्मिक, सामजिक तथा राजनीतिक क्षेत्र के कर्मठ कार्यकर्ताओं की जीवनियाँ लिखी जाने लगी जो प्रेरणा तथा उत्साहवर्धक प्रमाणित हुई। ऐसी जीवनियों में प्रमुख जीवनियाँ निम्नलिखित है-
स्वामी सत्यानंद – श्रीमद् दयानंद प्रकाश सन् 1918 ई.
शिवनारायण टंडन पंडित जवाहर लाल नेहरू सन 1937 ई.
जगतपति चतुर्वेदी लाला लाजपत राय सन् 1933 ई.
श्री ब्रजेंद्र शंकर – श्री सुभाषा बोस सन् 1938 ई.
मंमथ नाथ गुप्त चन्द्र शेखर आजाद सन् 1938 ई.
रामनाथ लाल 'सुमन' मोती लाल नेहरू सन् 1939 ई.
घनश्याम दास बिड़ला बापू सन् 1940 ई.
कार्तिक प्रसाद खत्री –
- जैसा कि पहले लिखा जा चुका है कि साहित्यिक जीवनी लेखकों में कार्तिक प्रसाद खत्री प्रथम जीवनी लेखक तथा इनके द्वारा लिखित मीराबाई का जीवन चरित्र सन् 1893 ई प्रथम जीवनी है। ये सफल जीवनी लेखक थे। जीवनी लेखन में इनका पदार्पण जीवनी साहित्य के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
शिवनंदन सहाय –
- शिव नंदन सहाय ने भारतेंदु हरिश्चन्द्र लिखा। इस जीवनी में भारतेंदु के जीवन की पूर्णता दष्टिगोचर होती है। इसकी भाषा की सरसता एवं रोचकता ने इसे सफल जीवनी साहित्य का रूप प्रदान किया। शिवनंदन सहाय द्वारा लिखित दूसरी जीवनी गोस्वामी तुलसीदास सन् 1916 ई. है। यह जीवनी दो खंडों में विभक्त है।
बनारसी दास चुतर्वेदी -
- बनारसी दास चतुर्वेदी ने कविरत्न सत्यनारायण की जीवनी सन् 1926 ई. लिखी है। यह जीवनी उल्लेखनीय है। इसका महत्व इसलिए और अधिक है क्योंकि इसमें एक साधारण व्यक्ति का जीवन चरित मानवीय रूप में प्रस्तुत किया गया है।
छायावादोत्तर युग की जीवनी और लेखक
श्रीमती शिव रानी देवी –
- प्रेमचंद का स्वर्गवास छायावाद युग में ही हो गया था। शिवरानी देवी छायावादोत्तर युग की लेखिका हैं। इन्होंने प्रेमचन्द घर में सन् 1944 ई. में प्रकाशित कराया जिसमें प्रेमचंद का जीवन चरित वर्णित है। यह महत्वपूर्ण जीवनी है। इसकी शैली संस्मरणात्मक, भाषा सरल, सहज एवं मनोरम है।
स्वातंत्र्योत्तर युग जीवनी
- स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् हिंदी जीवनी लेखन अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। इसलिए इसे हिंदी जीवनी लेखन का चरमोत्कर्ष काल कहा जाता है। इस समय विश्वव्यापी वैज्ञानिक प्रगति हुई। मानव भौतिकवादी दष्टिकोण के कारण नैतिक मूल्यों का हास होने लगा।
- राष्ट्र के प्रति मानव का मोहभंग यातनापूर्ण प्रतिक्रियाओं को जन्म देने लगा। मानव जीवन का कठोर यथार्थता से परिचय होने लगा जिसके परिणामस्वरूप युग के परिवेश में मानव-जीवन पढ़ा जाने लगा तथा वस्तुपरक कलात्मक अभिव्यक्ति का जन्म हुआ। फलस्वरूप जीवनी लेखन कला का महत्व बढ़ने लगा तथा कला की दृष्टि से इस युग की जीवनियां अद्वितीय रूप ग्रहण कर गई।
- इस युग में धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक नेताओं, राष्ट्रीय क्रांतिकारियों तथा सुप्रसिद्ध साहित्यकारों की अनेक जीवनियां लिखी गई हैं।
आध्यात्मिक जीवनियां
पंडित ललिता प्रसाद-
- इन्होंने धार्मिक सामाजिक संत-महात्माओं की जीवनियां लिखी हैं जिनमें सन् 1947 ई. में श्री हरिबाबा की जीवनी प्रमुख है।
रंगनाथ रामचन्द्र दिवाकर-
- रंगनाथ राम चंद्र ने श्री अरविंद की जीवनी महायोगी लिखी।