रामायण में राजा की महिमा
रामायण में राजा की महिमा-रामायण मूल्यांकन
- वाल्मीकि आर्यधर्म के रहस्य का उद्घाटन करते हैं, जब वे कहते है कि आर्यजीवन धर्मबन्ध से बंधा हुआ है। मानव भारतीय संस्कृति के अनुसार स्वतन्त्र प्राणी तो अवश्य है, परन्तु समग्र मानव एक दूसरे से धर्मसम्बन्ध में बँधकर एक दूसरे के हित चिन्तन तथा हिताचरण में संलग्न है तथा अपने निर्दिष्ट नैतिक मार्ग से एक पग भी नहीं डिगता भरत अपने शुद्ध भावों की सफाई देते हुए कह रहे हैं कि धर्मबन्धन के कारण ही मैं वध करने योग्य भी पापाचारिणी माता को मार नहीं डालता (अयोध्या0 106 / 8 ) ।
- वाल्मीकि राष्ट्र के हित चिन्तक कवि हैं। राष्ट्र का केन्द्र है राजा । भारतीय राजा पाश्चात्य राजाओं के समान प्रजाओं की इच्छाओं का दलन करने वाला स्वेच्छाचारी नरपति नहीं होता, प्रत्युत वह प्रजाओं का रंजक, प्रकृतिरंजक, उनका हितचिन्तक तथा राष्ट्र का उन्नायक होता है। इस प्रसंग में 'अराजक जनपद की दुरवस्था का वर्णन पढकर वाल्मीकि की मनोवृत्ति का हम अनुमान लगा सकते हैं।
- अयोध्याकाण्ड के 67 वें सर्ग का 'नाराज के जनपदे' वाला लोकगायन भारतीय राजनीति के सिद्धान्तों का प्रकाशक एक महनीय वस्तु है। राजा राष्ट्र के धर्म तथा सत्य का उद्भव स्थल है (अयोध्या0 67/33/34)। इसीलिए उसके अभाव में राष्ट्र का कोई भी मंगल न सम्पन्न हो सकता है, न कोई कल्याण कल्पित हो सकता है।
- वाल्मीकि ने राम के राज्य का जो सुखद तथा शुभग चित्रण किया है वह राजनीति शास्त्र को एक अनुपम देन है। राम राजनीति के महनीय उपासक थे। उनके समान नीतिमान् राजा दूसरा नहीं हुआ।'
- रामसदृशो राजा पृथिव्यां नीतिमानभूत' (शुक्रनीति 4/6/1346) | इसलिए उनके द्वारा व्याख्यात तथा आचरित नीति ही राजाओं के लिए मान्य नीति है। अराजक जनपद में कृषि और गोरक्षा से जीने वाले सुरक्षित तथा धनी प्राणी द्वारा खोल कर कभी नहीं सोते दस्यु दानवों के भय से इसीलिए राजा की नितान्त आवश्यकता होती है (अयोध्या0 67119)
नाराज के जनपदे धनवन्तः सुरक्षिताः ।
शेरते विवृतद्वारा: कृषिगोरक्ष- जीविनः ॥
इस प्रकार वाल्मीकि भारतीय साहित्य के हृदय के ही प्रकाशक आदिकवि नहीं है, बल्कि वे भारतीय संस्कृति के संस्कारक मनीषी भी हैं। कमनीय काव्यलता उनके रामायण के पद्यों में स्वत: नाचती है और भारत की भव्य संस्कृति उनके पात्रों के द्वारा अपनी वाल्मीकि मनोरम झॉंकी दिखलाती है । इसीलिए कविता – कल्पद्रुम के कमनीय कोकिल रूप वाल्मीकि का कूंजन किसे आनन्द विभोर नहीं करता ?
आदिकवि बाल्मीकी की रामायण का सारांश
- रामायण को आदिकाव्य कहा जाता है। इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि है । यही भारतीय काव्य जगत का उद्गम स्रोत भी माना जाता है। रामायण अपने परवर्ती विशाल काव्य एवं नाट्य साहित्य का उद्गम ग्रन्थ है। राम और सीता के आदर्श चरित्र के वर्णन से संबलित तो है ही किन्तु इसमें वर्णित समस्त घटनायें राम और सीता द्वारा आचरित हैं। रामायण की प्रशंसा समस्त साहित्य जगत् करता है । वाल्मीकि को कविकोकिल की संज्ञा से विभूषित किया गया है। रामायण का अंगी रस करूण है। जिसकी नायिका सीता है। उत्तम नायक और नायिका के समस्त लक्षण इन दोनों में घटित होते हैं । करूण रस की विविधता इस ग्रन्थ में प्रतिपद दृष्टिगोचर है ।
- चरित्र चित्रण के लिये रामायण में वर्णित पात्रों की चारित्रिक विशेषतायें मानदण्ड के रूप में परिलक्षित है। सीता का चरित्र एक स्त्री सुलभ मर्यादा की शिक्षा सम्पूर्ण परवर्ती समाज को प्रदान करता है। एक आदर्श पत्नी का प्रतिबिम्बन इनके चरित्र में प्रतिपद अनुकरणीय है। इसी प्रकार नायक राम एक पत्नीव्रत नायक है। वह विषम परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होता। यद्यपि प्रजा पालन कर्तव्यनिष्ठा आदि सभी तत्वों का चित्रण एक महाकाव्य के नायकत्व के रूप में तो हैं ही किन्तु इतना होने पर भी अन्य सभी महाकाव्यों में वर्णित नायक के गुणों से कुछ अतिरिक्त राम का नायकत्व है। इसीलिये भारतीय मनीषा कहती है कि - राम तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है । जो कोई कवि बन जाय सहज सम्भाव्य है। अतः इस इकाई का अवलोकन कर आप रामायण महाकाव्य के साहित्यिक, सामाजिक तथा अन्य वैशिष्ट्य को बता सकेंगे।
आदि कवि परिचय,समय, रामायण का मूल्यांकन |
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