रामायण में सीता चरित्र का मूल्यांकन
रामायण में सीता चरित्र का मूल्यांकन
भगवती जनक-नन्दिनी के शील-सौन्दर्य की ज्योत्स्ना किस व्यक्ति के हृदय को शीतलता तथा शान्ति नहीं प्रदान करती ? जानकी का चरित्र भारतीय ललना के हेलनासूचक वचन कहा है, वह भारतीय नारी के गौरव को सदा उद्घोषित करता रहेगा।
'इस निशाचर रावण से प्रेम करने की बात तो दूर रहीं, मैं तो इसे अपने पैर से- नहीं- नहीं, बायें पैर से भी नहीं छू सकती (5/26/10) |
चरणेनापि सव्येन न स्पृशेयं विगर्हितम् ।
रावणं कि पुनरहं कामयेयं विगर्हितम् ॥
- रावण की मृत्यु के अनन्तर राम ने सीता के चरित्रकी विशुद्धि सामान्य जनता के सामने प्रकट करने के लिये अनेक कटुवचन कहे। उन वचनों के उत्तर में सीता के वचन इतने मर्मस्पर्शी हैं मेरे सबल कि आलोचक का हृदय आनन्दातिरेक से गदगद् हो जाता है। 'मेरे चरित्र पर लांछन लगाना कथमपि उचित नहीं है।
- मेरे निर्बल अंश को आपने पकड़कर आगे किया है, परन्तु अंश को पीछे ढकेल दिया है। नारी का दुर्बल अंश है उसका स्त्रीत्व और उसका सबल अंश है- उसका पत्नीत्व तथा पातिव्रत। नर-शार्दूल ! आप मनुष्यों में श्रेष्ठ हैं, परन्तु क्रोध के आवेश में आपका यह कहना साधारण मनुष्यों के समान है।
- आपने मेरे स्त्रीत्व को तो दोषरोपण करने के निमित्त आगे किया है, परन्तु आपने इस बात पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया कि बालकपन में ही आपने मेरा पाणिग्रहणकिया, आपकी मैं शास्त्रानुमोदित धर्मपत्नी हूँ। मैं आपकी भक्ति करती हूँ तथा मेरा स्वभाव निश्छल और पवित्र है। आश्चर्य है आप जैसे नर-शार्दूल ने मेरे स्वभाव को, भक्ति को तथा पाणिग्रहण को पीछे ढकेल दिया, केवल स्त्रीत्व को आगे रखा है।
त्वया तु नरशार्दूल क्रोधमेवा लघुनेव मनुष्येण स्त्रीत्वमेव पुरस्कृतम् ॥
न प्रमाणीकृत: पाणिर्बाल्ये बालेन पीडिता ।
मम भक्तिश्च शीलं च सर्वं ते पृष्ठतः कृतम् ॥
- कितनी आजस्विता भरी है इन सीधे-सादे निष्कपट शब्दों में ! अनादृता भारतीय ललना का यह हृदयोद्गार कितना हृदय-वेधक है! सुनते ही सहृदय मनुष्य की आँखों में सहानुभूति के आँसू छलक पड़ते हैं।
राम और सीता का निर्मल चरित्र वाल्मीकि की कोमल काव्य प्रतिभा का मनोरम निदर्शन है। सामायण हमारा जातीय महाकाव्य है। वह भारतीय हृदय का उच्छवास है। यह मानव जीवन राम दर्शन के बिना निरर्थक है- 'राम-दर्शन' उभय अर्थमें राम-कर्तृक दर्शन ( राम के द्वारा देखा जाना) तथा राम-कर्मक दर्शन (राम को देखना। राम जिसको नहीं देखते, वह लोक में निन्दित है और जो व्यक्ति राम को नहीं देखता, उसका भी जीवन निन्दित है। उसका अन्तःकरण स्वयं उसकी निन्दा करने लगता है -
यश्च रामं न पश्येत्तु यं च रामो न पश्चति ।
निन्दितः सर्वलोकेषु स्वात्माप्येनं विगर्हते ॥ (2/17/14 )
आदि कवि परिचय,समय, रामायण का मूल्यांकन |
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