रेखाचित्र का अर्थ एवं परिभाषा (Rekha Chitra Kise Kahte hain)
रेखाचित्र किसे कहते हैं
- हिंदी गद्य साहित्य की नवीनतम विधा रेखा चित्र है। इसके लिए शब्दस्केच, शब्दचित्र, व्यक्तिचित्र, तूलिकाचित्र या चरित लेख आदि शब्द युग्मों का प्रयोग किया जाता है। जिनमें अंतिम चरित लेख भिन्न है। लेख निबंध का लघु रूप है। अर्थात् संक्षेप में किसी का चरित्र-चित्रण करना चाहिए लेख कहलाता है। रेखा चित्र शब्द युग्म का द्वितीय समस्त पद चित्र है। अन्य समासों में भी द्वितीय समस्त पद चित्र ही है चित्र को अलग कर देने से शब्द, शब्द, व्यक्ति, तूलिका ही बचते हैं। स्केच का अर्थ भी चित्र होता है। तूलिका चित्र बनाने का साधन है। शब्द अभिव्यक्ति का साधन है किंतु पेंसिल या पेन मात्र रेखाएं खींच कर चित्र उकेरते हैं। शब्दों के माध्यम से उकेरे गए चित्र को रेखाचित्र कहा जाता है। इसमें चित्र की पूर्णता न होकर अभिव्यक्ति की पूर्णता होती है। इन सबमें हिंदी में रेखाचित्र ही सर्वग्राह्य है।
- नवीनतम विधा होने पर भी इसके तत्व प्राचीन काव्यों में भी उपलब्ध हैं। वाल्मीकि रामायण से लेकर आधुनिक साहित्य में रेखाचित्र के तत्व निरंतर दष्टिगोचर होते हैं। पद्य एवं गद्य की सभी विधाओं में इसके तत्व विद्यमान हैं। मानव, मानवेतर, जड़ चेतन आदि के अंग प्रत्यंगों में दष्टिगोचर होने वाले बिंब ही इसके तत्व हैं। चाहे वे स्थूल हों या सूक्ष्म इन बिंबों का चित्रण ही रेखाचित्र कहलाता है। पाश्चात्य साहित्य के स्केच से अनुप्राणित है। बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में हिंदी साहित्य में रेखाचित्र का प्रादुर्भाव हुआ।
- रेखाचित्र, व्यक्ति, वस्तु, स्थान, भाव, घटना या परिवेश से संबंधित होने के फलस्वरूप यथार्थ की भूमि पर प्रतिष्ठित होता है। रेखाचित्र का आधार फलक यथार्थ है। रेखाचित्र किसी व्यक्ति का शब्द चित्र, किसी विशिष्ट व्यक्ति का संक्षिप्त विवरण, किसी विशिष्ट प्रवत्ति या घटना का व्यंग्यात्मक चित्रण हो सकता है।
रेखाचित्र से क्या आशय है | रेखाचित्र की परिभाषा
रेखाचित्र गद्य की वह विधा है जिसमें चरित्र, दश्य या घटना विशेष का मुख्य रूप से वर्णन किया गया हो। डॉ. शिवदान सिंह चौहान का रेखाचित्र विषयक कथन द्रष्टव्य है-
"किसी व्यक्ति के रेखाचित्र में यह विशेषता होगी कि उसके व्यक्तित्व ने जो विशेष मुद्राएं शारीरिक या अवयवों की बनावट में जो विकृतियां ऊपर को उभार दी हैं उनके आभास को चित्र में ज्यों का त्यों पकड़ा जाए ताकि लेखक की अनुभूति के साथ उसके व्यक्तित्व की रेखाएं और भी सघन होकर दिखाई पड़ने लगें।"
- डॉ. नगेन्द्र ऐसी किसी भी रचना को रेखाचित्र की संज्ञा देने के लिए उद्यत हैं जिसमें तथ्यों का उद्घाटन मात्र हो। उनके अनुसार तथ्यों का मात्र उद्घाटन रेखाचित्र है।
- डॉ. विनय मोहन शर्मा के अनुसार "व्यक्ति, घटना या दश्य के अंकन को रेखाचित्र की संज्ञा दी जा सकती है।"
- डॉ. भगीरथ मिश्र रेखाचित्र के लिए व्यक्ति का आलंबन ही स्वीकारते हैं, घटना या वातावरण का चित्रण उसकी सीमा के अंतर्गत नहीं आता।
- उपर्युक्त परिभाषाओं के परिप्रेक्ष्य में कह सकते हैं कि रेखाचित्र वह शब्द चित्र है जिसमें व्यक्ति के आलंबन स्वरूप तथ्यों का अंकन किया जाता है।
डॉ. गोविंद त्रिगुणायत ने रेखाचित्र की विवेचना करते हुए लंबी परिभाषा दी है-
- "रेखाचित्र, चित्रकला और साहित्य के सुंदर सुहाग से उद्भूत एक अभिनव कला रूप है। रेखा चित्रकार साहित्यकार के साथ-साथ चित्रकार भी होता है। जिस प्रकार चित्रकार अपनी तूलिका कलारूप स्पर्श से चित्रपटल पर अंकित विश्रंखल रेखाओं में से कुछ अधिक उभरी हुई रेखाओं को संवार कर एक सजीव रूप प्रदान कर देता है, उसी प्रकार रेखाचित्रकार मनः पटल पर विश्शृंखल रूप से बिखरी हुई शत-शत स्मति रेखाओं में से उभरी हुई रमणीय रेखाओं को अपनी कला की तूलिका से स्वानुभूति के रंग से रंजित करके जीते-जागते शब्द चित्र में परिणत कर देता है। यही शब्द चित्र रेखा चित्र कहलाता है।"