उर्दू साहित्य आधुनिक नवजागरण काल ,उर्दू साहित्य प्रगतिवादी प्रयोगवादी काव्य धारा ,उर्दू साहित्य : स्वातंत्र्योत्तर युग
उर्दू साहित्य आधुनिक काल
- सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के पश्चात् राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में परिवर्तन आया। अंग्रेजी शासन की सुदढ़ता तथा उनसे मुक्ति पाने के लिए भारतीयों की बेचैनी ने सन् 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। महात्मा गांधी का आंदोलन चल पड़ा। सन् 1947 में भारत स्वतन्त्र हो गया। इन घटनाओं से उर्दू कविता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। एकांत प्रेम अब युगीन समस्याओं का चित्रण करने लगे।
- मौलाना मुहम्मद हुसैन 'आजाद' तथा अलताफ हुसैन हाली' ने हालरायड की प्रेरणा से सन् 1874 ई. में ही लाहौर में एक नए मुशायरी की नींव डाली। हाली' ने स्थानीय रंग, वास्तविकता से लगाव तथा जीवन के सच्चे चित्रण पर बल दिया। आजाद की प्रेरणा से उर्दू कविता में नवीन चेतना का उदय हुआ। उर्दू कविता का कायाकल्प हो गया। विषयवस्तु एवं क्षेत्र में विस्तार हुआ। आधुनिक काल की शायरी ने अपनी संकुचित भावभूमि का परित्याग कर जीवन के अहम् समस्याओं से जोड़ा तथा उसने अति संयम से युगीन चेतना का चित्रण किया।
उर्दू साहित्य नवजागरण
- उर्दू साहित्य के नवजागरण (सन् 1874 1935 ई.) ने राष्ट्र एवं सांस्कृतिक चेतना की अभिव्यक्ति की आधुनिक उर्दू का प्रारंभ 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से हुआ। अंग्रेजों ने ज्ञान-विज्ञान की नवीन उपलब्धियां प्रदान की जिससे देश भक्ति तथा स्वतन्त्रता की विचारधारा का उदय हुआ। राजनीतिक आंदोलन तथा सुधारवादी आंदोलनों से उर्दू कविता प्रभावित हुई। मौलाना हुसैन, आजाद, अलताफ हुसैन, हाली, दुर्गा सहाय सुरूर, पं. ब्रज नारायण चकबस्त तथा इकबाल जैसे शायरों ने उर्दू कविता में राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना की अभिव्यक्ति की तथा देश प्रेम, राष्ट्रभक्ति एवं जातीय भावना का प्रसार किया। आजान ने भारतीयों को साहस के साथ अग्रसर होने का संदेश दिया। आजाद ने गद्य-पद्य दोनों की रचनाएं की नज्मे आजाद तथा अबेहयात इनकी प्रसिद्ध कृतियां हैं। दुर्गा सहाय सुरूर राष्ट्रीय भावना के कवि थे। उनकी राष्ट्रीय भावना में संकीर्णता तथा इस्लामपरस्ती को स्थान नहीं मिला।
- डॉ. इकबाल ने सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा देश को महत्वपूर्ण तराना दिया। उर्दू कवियों ने सामाजिक कुरीतियों एवं धार्मिक आडंबरों की कटु आलोचना की जीवन मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरणा दी। बाल विवाह तथा सती प्रथा के विरोध में शायरी लिखी।
उर्दू साहित्य प्रगतिवादी काव्य धारा
- सन् 1936 ई. में प्रेमचंद की अध्यक्षता में प्रगतिशील लेखक संघ का अधिवेशन हुआ। इस लड़ाई में उर्दू के तरक्की पसंद शायद पीछे नहीं रहे। जमाने के दुख दर्द को पहचाना तथा भारतीयों के मुक्ति संघर्ष शायरी का विषय बनाया। उर्दू शायरी के प्रगतिवादी शायरों में जोश मलीहावादी, अहसान दानिश, रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी, फैज अहमद फैज अली सरदार जाफरी, साहिर लुधियानवी, अहमद नदीम कासिम, मजाज लखनवी, कैफी आजमी आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। जोश महीलावादी को शायरे इन्कलाब तथा अहसान दानिश को 'शायरे मजदूर कहा जाता है। उर्दू शायरी में भौतिकवादी दृष्टिकोण आया। मार्क्स का भी प्रभाव पड़ा। जोश मलीहावादी ने इंसानियत को दीन-ईमान कहा धर्म के ठेकेदारों की उड़कर निंदा की। अली सरदार जाफरी ने धर्म की आड़ में होने वाले अत्याचारों और अनाचारों का पर्दाफाश किया थोथी धार्मिकता की कटु आलोचना की। बंदगी और सिजदे का विरोध किया। शोषण-शोसित वर्ग को नष्ट कर साम्यवादी व्यवस्था का प्रतिपादन किया। फिराक ने श्रमिकों के स्वाभिमान एवं शक्ति को जागत करते हुए बड़ी क्रांतिकारी रचना प्रस्तुत की।
उर्दू साहित्य प्रयोगवादी काव्यधारा
- सन् 1943 ई. में अज्ञेय ने 'तारशप्तक का प्रकाशन किया। प्रयोगवादी काव्य रचना का श्री गणेश हुआ। द्विवेदी विश्व युद्ध के पश्चात् कुछ उर्दू शायरों ने परराष्ट्रीय इंग्लैंड, अमेरिका तथा फ्रांस के कतिपय कवियों टी.एस. इलियट, एजरा पाउड, पो बादलियर, हल्डा डुल्टन आदि से प्रेरित होकर नवीन शायदी की शुरुआत की। जो प्रगतिवादी उर्दू कविता के विरुद्ध एक नया काव्यांदोलन था। प्रगतिवादी उर्दू कविता ने नारेबाजी का रूप धारण कर लिया था। उसमें काव्यत्व हीनता आ गई थी। शायर बाह्य चित्रण में ऐसा रम गया था कि आंतरिक सौंदर्य पर उसकी दृष्टि ही नहीं जाती थी। स्वतन्त्र सत्ता तथा वैयक्तिक समस्याएं उपेक्षित हो गई। अभिव्यक्ति को प्रधानता दी गई। मानवीयता पर बल दिया गया। प्रयोगवादी शायर फ्रायड तथा सार्च से प्रभावित रहे हैं। उर्दू के प्रयोगवादी शायरों ने शिल्पगत प्रयोगों के साथ आजाद नज्म पर जोर दिया। इस नवीन काव्य प्रवति को उर्दू में हल्क-ए-अरबाब जौंक की संज्ञा दी गई। इस हलके से इत्तिफांक रखने वाले शायरों ने नून मीम. राशिद, मीरा जी. युसुफ जफर, अख्तरुल ईमान, सलाम, मछली शहरी, करयूम नजर, मुख्तार सिद्दिकी, मुमताज मुफ्ती तथा हसन अस्करी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। प्रयोगवादियों ने प्रतीकों के माध्यम से वैयक्तिक अनुभवों की अभिव्यक्ति को प्रमुखता दी तरक्की पसंद वालों पर मार्क्स तथा हलकाए अरबाबे जौक पर फ्रायड का प्रभाव था। प्रयोगवादी अंतश्चेतनावादी थे।
- राशिद, मीराजी, अख्तरुल ईमान तथा मख्मूर जालंधरी ने वस्तु और शिल्प के स्तर पर नए-नए प्रयोग किए तथा आजाद नज्म को जिसे बेकाफिया शायरी भी कहते हैं उसे काफी लोकप्रिय बनाया राशिद की गुनाह और मुहब्बत, एक दिन लारेंस बाग में, जुरअते परवाज तथा शराबी आदि नज़्मों में उनके व्यक्तिवादी जीवन दर्शन और मनोविश्लेषणवादी यथार्थ को कई रूप-रंगों में देखा जा सकता है। राशिद की शायरी में पलायनवाद है। जिंदगी को बेनकाब पाकर सातवीं मंजिल से छलांग लगार खुदकुशी करना चाहता है।
उर्दू साहित्य : स्वातंत्र्योत्तर युग
- लंबे संघर्ष के बाद देश सन् 1947 ई. में आजाद हुआ। ब्रिटिश हुकूमत से निजात पाने की खुशी थी तो देश के टुकड़े हाने का में दर्दनाक गम था। शायरों ने आजादी का स्वागत किया। पर शोक भी मनाया। जोश मलीहावादी, मजाज, तथा मुल्ला जैसे शायरों ने आजादी का स्वागत किया। जोश ने तराना-ए-आजादी' नज्म लिखी। कुछ दिनों बाद ही मातमे आजादी लिखकर उसका मातम भी मना डाला। फैज ने सुबहे-आबादी नज्म में दाग-दाग उजाला देखा। सरदार जाफरी ने ऐसे ही माहौल- 'आजादी नहीं धोखा है' में आजादी-आजादी कहकर खुशियां मनाने वालों से बड़ी संजीदगी से पूछा-
"कौन आजाद हुआ?
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मादरे हिंद के चेहरे पर उदासी है वही।"
- राही मासूम रजा ने पंजाब दंगे और देश विभाजन की बड़ी ही दर्दनाक नज्म लिखी और कहा कि इस बंटवारे ने देश को ही नहीं, जिंदगी की तमाम चीजों को काट-बाट कर रख दिया है।
- स्वातन्त्र्योत्तर उर्दू शायरी में अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति भी चेतना जागी उर्दू के शायरों ने रूस, एशिया, चीन, कोरिया, मिश्र, ईरान, फिलिस्तीन आदि देशों से संबंधित उन समस्याओं पर नज्में लिखी जिनसे अंतर्राष्ट्रीय संबंधित जगत प्रभावित होता है। फैज ने ईरानी तुलना के नाम', 'इन्कलाव-ए-रूस तथा फिलिस्तीनी बच्चों के लिए जो नज्में लिखी है उनसे व्यापक दष्टिकोण का पता लगता है। फज, जोश, जिगर तथा फिराक जैसे पिछली पीढ़ी के शायर गजल लिखते रहे। यथार्थवादी और रोमानी दोनों प्रकार की गजलें हैं। व्यक्तिगत सुख-दुख, आशा-निराशा तथा प्रेम-विरह के साथ-साथ युगीन समस्याओं को गजल में अभिव्यक्ति देकर परंपरागत स्वरूप में क्रांतिकारी परिवर्तन किया गमें-जाना एवं गमें दौरा एक दूसरे से समन्वित हो गए।