उर्दू साहित्य प्रमुख काव्य रूप, उर्दू साहित्य : नया युग
उर्दू साहित्य : नया युग
- सन् 1950 ई. के बाद उर्दू शायरी में नई कविता जैसा नया दौर शुरू हो गया जिसमें शायरों की चेतना नए आलोक में नई जिंदगी के निर्माण के लिए विकल हो उठी। नया जीवन, नया उत्साह, नई आशाएं जन्मीं जिसके परिणामस्वरूप शायरी ने भी नया मोड़ लिया। सन् 1950-1960 ई. के बीच नई काव्य चेतना से परिपूर्ण शायरों में खलीलुर्रहमान, बाकर मेहदी, वहीद अख्तर, अमीक हनफी, मजहर, राही मासूम रजा, बलराज कोमल आदि उल्लेखनीय हैं। खलीलुर्रहमान आजमी आइनाखाने में कागजी पैरहन, तथा नया अहद नामा, बलराज कोमल मेरी नज्मे तथा दिल का रिश्ता, राही मासूम रजा- रक्से मय, अजनबी शहर तथा अजनबी रास्ते एवं अमीक हनफी संग पैराइन तथा सिंवाद जैसी रचनाओं में नयेपन को गति प्रदान की। नव्य धारा पर आधुनिकतावाद का गहरा प्रभाव है। इन शायरों ने जीवन की विसंगतियों, विडंबनाओं एवं जटिल जीवनानुभूतियों की अभिव्यक्ति हेतु नई भाषा और नए शिल्प का आविष्कार किया। नव्य धारा के चलते हुए गजल की उपेक्षा नहीं हुई। इस समय इब्ने इंशा, खलीलुर्रहमान आजमी, मुनीर नियाजी तथा जफर इकबाल ने गजल विधा को समद्ध किया। नए शहरों ने उर्दू गजल को नई भाषा, नई जमीन और नई चेतना दी।
उर्दू साहित्य : साठोत्तरी युग
- सन् 1960 ई. के बाद उर्दू शायरी ने करवट बदली। अतिवादी प्रवत्तियां उभरीं। ऐसे शायरों में शहर यार, विमल किरन अश्क, इफ्तेखार जालिब, शन्शुर्रहमान फारूखी जाहिदा जैदी, अहमद हुमैश तथा हसन कमाल आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। साठोत्तरी उर्दू शायरी में आधुनिक जीवन दृष्टि के विकास के साथ-साथ समकालीन सामाजिक एवं राजनीतिक प्रश्नों से उलझने और उनके यथार्थ रूप में चित्रांकन की चेतना जागत हुई। आठवें दशक में जब जनवादी चेतना का उदय हुआ तो उर्दू शायरी में जनता की समस्याओं को चित्रित करने और जनसंघर्ष में उर्दू साहित्य की भूमिका को रेखांकित करने के प्रयास हुए। किन्तु सन् 1960 ई. के बाद भी आदिल मंसूरी, विमल कृष्ण अश्क शहरयार, शम्शुर्रहमान फारूखी, बशीर बद्र, निदा फाजली तथा शीन-फाफ-निजाम आदि शायर गजल विधा को समद्ध करने में लगे रहे।
उर्दू साहित्य प्रमुख काव्य रूप
- उर्दू शायरों ने फारसी साहित्य से विषय वस्तु शब्द संपदा, अप्रस्तुत योजना तथा द्वंद्वों का ही ग्रहण नहीं किया है अपितु काव्य रूप भी लिए हैं। उर्दू में जिन काव्य रूपों का प्रयोग हुआ है उनमें मसनवी, गजल, नज्म, मरसिया, कसीदा, हज्व, रूबाई, वासोख्त और मुखम्मस विशेष उल्लेखनीय हैं। इनके अलावा शहर आशोब्हम्द, नात, सलाम, नौहा कतअ, फर्द, रेख्ती, मुस्तजाद, तरकीब, बंद तथा तर्जोऊबद आदि काव्य रूप भी प्रचलित रहे हैं। किंतु उर्दू शायरी में इनका विशेष विकास नहीं हुआ है।
मसनवी
- सूफी प्रबंधात्मक शायरी को मसनवी कहते हैं यह एक शैली विशेष है जिसे मसनवी शैली कहते हैं। मसनवी एक ऐसा काव्य रूप है जिसके हर शेर के दोनों मिस्र एक ही रटीफ और काफिए में होते हैं, लेकिन विभिन्न शेरों के रदीफ और काफिए एक दूसरे से अलग होते हैं। पूरी मसनवी का एक ही छंद में होना अथा प्रवाह के लिए अनिवार्य होता है।
दक्खिनी
- अशरफ नौसरहार सन् 1503 ई. निजामी कदमराव पदमराव; शाहमीरांजी खुशनुमा तथा खुशनग्ज, निशाती- फूलवन, सनअती किस्सा वे नजीर तंबई- बहराम व गुलराम मुहम्मद अमीन युसूफ जुलेखा इशरती दीपक पतंग, नुखती - गुलशने इश्क तथा अलीनामा जैसी मसनवियां लिखकर उर्दू की मसनवी काव्य परंपरा को समद्ध किया। इसे प्रेम गाथा काव्य धारा या मसनवी काव्य परंपरा कहा जा सकता है।
उत्तर भारत
- उत्तर भारत में गजल विधा का विकास हुआ किंतु मसनवी शैली को भी जीवित रखा। मीर तकी मीर अजगर नामा, जोशे इश्क, शोला-ए-इश्क, दरया-ए-इश्क एजाज-ए-इश्क, कमालात-ए-इश्क आदि विशेष महत्व की है। दाग फरियादे दाग; मोमिन - कौले गर्मी, विशेष उल्लेखनीय हैं। मीर हसन सेहरुल बयान, दयाशंकर नसीम गुलजारे नसीम वहत्काय हैं।
- नवाब मिर्जा शौक लखनवी फरेबे इश्क, जहरे इश्क तथा बहारे इश्क लिखकर इश्क के सुख-दुख का अनुभूतिपूर्ण वर्णन किया है।
उर्दू साहित्य आधुनिक काल काव्य रूप
आधुनिक काल में नज्म को व्यापक स्वीकृति मिली हालीतअस्सुब, इंसाफ, 'रहमो इंसाफ', 'हुब्बे वतन' तथा 'वर्षा ऋतु' जैसी मसनवियां लिखी। मसनवी जीवन के यथार्थ से जुड़ गई। इकबाल साकीनामा तथा सरदार जाफरी नई दुनिया को सलाम, जैसी मसनवियों में समसामयिक राजनीतिक सामाजिक चेतना की अभिव्यक्ति की।
गजल
- गजल उर्दू की सबसे अधिक लोकप्रिय विधा है गजल से महफिलें रंगीन होती है। मुशायरे जवां होते हैं। गजल का शाब्दिक अर्थ प्रेमिका से वार्तालाप है। गजल का प्रधान विषय प्रेम है। गजल में सब कुछ फारसी से लिया गया। अन्दाजें बयां ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रेमी वार्ता से उठकर गजल आध्यात्मिक विचारों की गूढ़ता का भावात्मकता के साथ प्रस्तुत करने का माध्यम बन गई। इसमें बसीर एवं मिर्जा गालिब का विशेष योगदान है। लोकप्रिय एवं गजल की अबाध परंपरा को शुरू करने का श्रेय दक्षिण के प्रसिद्ध शायरा औरंगावादी को है। शाह मुबारिक आबरू, पकरंग खान आरजू फुगां तांबा, मजहर आदि शायरों ने दिल्ली में उर्दू गजल की नींव डाली। उसी नींव पर मीर सौदा, सोज, दर्द आदि ने उर्दू गजल की भव्य इमारत खड़ी कर दी। मीर गजल के बादशाह थे। मोमिन, जौक, गालिब तथा जफर ने उर्दू गजल को शिखर तक पहुंचाया।
- आधुनिक काल में गजल का चरित्र बदल गया। गजल युग की दास्तान बन गई शाद, हसरत, फानी, असगर, गोडवी तथा जिगर आदि ने गजल को समद्ध किया। अकबर इलाहाबादी, चकबस्त, इकबाल, जोश, फैज तथा फिराक ने गजल को नए भावों और विचारों से समद्ध करके उसे नई चेतना दी। आजादी के बाद गजल का भाववादी चरित्र यथार्थवादी हो गया। गजल परंपरा में हिंदी गजल कार दुष्यंत कुमार तथा कुंवर बेचैन ने अच्छा नाम कमाया धन्यात्मकता, कोमल कांत पदावली, सरसता, अर्थ सघनता सांकेतिकता, विशेषताएं हैं।
रेख्ती
- उर्दू भाषा और गजल के लिए पहले रेख्ता शब्द प्रचलित हुआ था बाद में इसी के आधार पर स्त्रियों की भाषा को रेख्ती और उन्हीं की दशा को चित्रित करने वाली शायरी को रेख्तीकहा गया। रेख्ती उर्दू भाषा की जनाना शायरी है जिसमें निम्न वर्गीय औरतों की गाली-गलौज और कामुक भाषा शैली में उन औरतों की काम वासनाओं, कुठाओं एवं दूषित मानसिक भावनाओं का वर्णन हुआ है। रेख्ती शायरों ने स्तर से बहुत नीचे उतर कामुकता और अश्लीलता की ओर से अपनी गजलों को अलग से रेखांकित किया है। दक्षिण के शायर हाशमी में इसके प्रारंभिक बीज दष्टिगोचर होते हैं।
कसीदा
- कसीदा को प्रशस्ति शायरी कहा गया है। राजा-महाराजा शासनाधिकारी अथवा किसी महापुरुष की प्रशंसा में की गई रचना कसीदा कहलाती है। फारसी अनुकरण पर उर्दू में कसीदा शायदी आई। सौदा, जौक, अमीर, ईशा तथा मुसहफी उर्दू के प्रसिद्ध कसीदाकार हैं। 'सौदा को कसीदा का सम्राट कहा जाता है। दरबारों के नष्ट होने से यह परंपरा समाप्त हो गई। फिराक ने कसीदा के चार अंग 1. भूमिका मुख्य विषय 3 प्रशंसा तथा 4 आशीर्वचन माने हैं।
हज्व
- कसीदा अर्थात् प्रशंसा के विपरीत हज्वः अर्थात् निंदा को हज्व की संज्ञा दी गई है। इसमें कुकृत्यों, अत्याचारों धार्मिक रूढ़ियों, सामाजिक कुरीतियों तथा गलत व्यवस्थाओं की आलोचना की जाती है। सौदा इसके सम्राट हैं उन्होंने समसामयिक शायरों की निंदापरक शायरी की रचना की। मीर जाहिक, फिदवी, 'मौलवी', नुदरत', 'मीर, हकीम गौस' तथा 'मिया फीकी' आदि सभी उसकी निंदा से नहीं बच पाए हैं।
मरसिया
- मरसिया शोक गीत है जो किसी अपने प्रिय की मौल पर लिखा जाता है। गजल की तरह मरसिया भी उर्दू लोकप्रिय विधा रही है। इसमें मत व्यक्ति के गुणों एवं कार्यों का वर्णन इस प्रकार किया जाता है कि सुनने वाले उससे प्रभावित होकर प्रेरणा ग्रहण करें तथा गम में डूब जाएं। मरसिया रोने- रुलाने का उपादान है। इससे दया, प्रेम, सौहार्द, सहानुभूति तथा करुणा आदि की भावना का उदय होता है। मरसिया लिखने वाले शायरों में मोमिन, हाली, इकबाल, माजिक, चकवस्त तथा फैज आदि प्रमुख हैं। इमाम हुसैन की सहादत पर लिखे गए मरसिया में नाटकीयता एवं प्रबंधात्मकता है।
रुबाई
- चार मिसरों अर्थात् पंक्तियों की रचना को रुबाई कहते हैं। इसमें पहले, दूसरे और चौथे मिसरे का रदीफ और काफिया एक होता है। पहले मिसरे में विषय का श्रीगणेश होता है। दूसरे तीसरे में विवेचन-विस्तार होता है चौथे में नाटकीय ढंग से मार्मिकता के साथ सार का प्रस्तुतीकरण किया जाता है। अर्थ के घनत्व के कारण रुबाई लोकप्रिय विधा रही है। इस क्षेत्र के शायरों में अनीस लखनवी, शाद, अजीमावादी, जोश मलीहावादी तथा फिराक गोरखपुरी आदि प्रमुख रहे हैं। फिराक की रुबाइयों का संग्रह रूप है। उमर खैय्याम की मधुशाला के आधार पर हरिवंश राय बच्चन ने मधुशाला लिखकर हालावाद चलाया।
नज्म
- आधुनिक काल की प्रमुख विधा नज़्म है। सन् 1867 ई. में मुहम्मद हुसैन आजाद ने नज्म को नई भावना एवं चेतना प्रदान की। सन् 1874 ई. में नज्म का विकसित रूप आया। इस वर्ष अंजुमने उर्दू की ओर से लाहौर में मुशायरा हुआ था। आजाद ने नज्म की वकालत की तथा देश एवं समाज से संबंधित नज्में पढ़कर श्रोताओं का दिल जीत लिया। नज्म के छोटी और लंबी दो रूप हैं। नज्म कारों में हाली, दुर्गा सहाय सरूर, ज्वाला प्रसाद बर्क, इकबाल, चकबस्त, जोश मलीहावादी, फैज, फिराक तथा अली सरदार जाफरी आदि प्रमुख हैं। इनकी नज्मों में राष्ट्रीयता का स्वर गूंजा तथा प्रगतिशील चेतना की अभिव्यक्ति भी हुई। नज्म की लोकप्रियता ने गजल को दबा दिया। इसे अतुकांत कविता भी कहा गया। गजल का प्रचलन अब भी है किंतु समसामयिक जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति का सशक्त एवं लोकप्रिय माध्यम आधुनिक काल में नज्म ही है। नज्म में भी आजाद नज्म (अतुकांत कविता) का विशेष महत्व है।