विश्व सामाजिक न्याय दिवस
- प्रतिवर्ष 20 फरवरी, को विश्व सामाजिक न्याय दिवस (World Social Justice Day) मनाया गया। वर्ष 2022 की थीम ““Achieving Social Justice through Formal Employment” (औपचारिक रोजगार के माध्यम से सामाजिक न्याय प्राप्त करना) है। ज्ञात हो की वर्ष 2020 सामाजिक न्याय दिवस की थीम "सामाजिक न्याय प्राप्ति की दिशा में असमानता अन्तराल को समाप्त करना" (Closing the Inequalities Gap to Achieve Social Justice) थी ।
सामाजिक न्याय की अवधारणा:
- सामाजिक न्याय का तात्पर्य देशों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और विकास के लिये आवश्यक सिद्धांत से है, जो न केवल अंत:देशीय समानता अपितु अंतर्देशीय समानता की परिस्थितियों से भी संबंधित है।
- सामाजिक न्याय की संकल्पना को आगे बढ़ाने हेतु समाज में लिंग, उम्र, नस्ल, जातीयता, धर्म, संस्कृति या विकलांगता जैसे मानकों की असमानता को समाप्त करना होगा।
- संयुक्त राष्ट्र संघ ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन’ (International Labour Organization- ILO) की ‘निष्पक्ष वैश्वीकरण के लिये सामाजिक न्याय पर घोषणा’ जैसे उपायों के माध्यम से सामाजिक न्याय के लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में कार्य कर रहा है।
विश्व सामाजिक न्याय दिवस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा सर्वसम्मति से 10 जून, 2008 को निष्पक्ष न्याय के लिये सामाजिक न्याय पर घोषणा को अपनाया गया, यह वर्ष 1919 के ILO के संविधान निर्माण के बाद से इसके द्वारा अपनाए गए सिद्धांतों और नीतियों में तीसरा प्रमुख प्रयास है।
- यह घोषणा वर्ष 1944 के ‘फिलाडेल्फिया घोषणा’ और वर्ष 1998 के ‘कार्य में मौलिक सिद्धांतों और अधिकारों की घोषणा’ को आधार बनाता है।
- वर्ष 2008 की घोषणा वैश्वीकरण के युग में ILO के जनादेश की सामाजिक न्याय की समकालिक अवधारणा को अभिव्यक्त करती है।
2008 की घोषणा का
महत्त्व:
- यह वैश्वीकरण के सामाजिक आयाम पर ILO की रिपोर्ट के मद्देनज़र शुरू हुई त्रिपक्षीय परामर्श का परिणाम है।
- यह घोषणा वर्ष 1999 के बाद से ILO द्वारा विकसित ‘आदर्श कार्य अवधारणा’ (Decent Work Agenda) को संस्थागत रूप प्रदान करती है।
- यह घोषणा वैश्विक वित्तीय संकट, असुरक्षा, गरीबी, बहिष्कार, सामाजिक असमानता और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण एवं पूर्ण भागीदारी जैसे लक्ष्यों कि प्राप्ति की दिशा में कार्य करती है।
सामाजिक न्याय का
महत्त्व:
- भारतीय संविधान कि प्रस्तावना में संविधान के अधिकारों का स्रोत, सत्ता की प्रकृति तथा संविधान लक्ष्यों एवं उद्देश्यों का वर्णन किया गया है, जहाँ सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक न्याय को संविधान के लक्ष्यों के रूप में निर्धारित किया गया है।
- सामाजिक न्याय की सुरक्षा मौलिक अधिकारों एवं नीति निदेशक तत्वों के विभिन्न उपबंधो के माध्यम से भी की गई है।
- भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय कि अवधारणा को न केवल विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति अपितु किसी वर्ग विशेष के लिये यथा अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति आदि के लिये विशेष व्यवस्था के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है।
भारत में
संवैधानिक और अन्य संस्थागत प्रयास:
- सर्वोच्च न्यायालय ने मेनका गांधी मामले में अनुच्छेद 21 की पुनः व्याख्या करते हुए इसमें मानवीय प्रतिष्ठा के साथ गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार, निजता का अधिकार, बंधुआ मजदूरी करने के विरुद्ध अधिकार, सामाजिक सुरक्षा व परिवार के संरक्षण का अधिकार आदि को शामिल किया।
- अनुच्छेद 14 में ‘विधि के समक्ष समता’ और ‘विधियों का समान संरक्षण’ दोनों को स्थान दिया है तथा सकारात्मक विभेदन अर्थात तर्क संगत वर्गीकरण को स्वीकृत किया है।
- मिनर्वा मिल्स मामले (1980) में सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्याख्या की कि संसद निदेशक तत्वों को लागू करने के लिये मूल अधिकारों को संशोधित कर सकती है, यदि ये संशोधन मूल ढ़ाँचे को क्षति नहीं पहुँचाते हो।