मृच्छकटिक की नाटकीय विशेषता | मृच्छकटिक में 10 अंक
मृच्छकटिक की नाटकीय विशेषता
मृच्छकटिक में 10 अंक है।
- मृच्छकटिक के पहले अंक का नाम 'अलंकारन्यास' है। इसमें उज्जयिनी की प्रसिद्ध वारवनिता वसन्तसेना को राजा का श्यालक शकार वंश में करना चाहता है। रास्ते में अँधेरी रात में विट तथा चेट के साथ शकार उसका पीछा कर रहा है मूर्ख शकार के कथन से वसन्तसेना को पता चलता है कि वह आर्य चारूदत्त के मकान के पास ही है। अतः उसके घर में घुसती है। विदूषक मैत्रेय शकार को डॉट-डपट कर घर में घुसने से रोकता है । चारूदत्त से वार्तालाप करने के बाद शकार से बचने के लिये वसन्तसेना अपना गहना उसके घर पर रख आती है।
- मृच्छकटिक के दूसरे अंक का नाम 'द्युतक-संवाहक' है। दूसरे दिन सवेरे दो घटनाएं घटती हैं। संवाहक पहले चारूदत की सेवा में था, पीछे पक्का जुआरी बन जाता है। वह जुएं में बहुत सा धन हार जाता है जिससे वह चारूदत के घर भाग आता है। चारूदत उसे ऋण मुक्त कर देते है। संवाहक बौद्ध भिक्षु बन जाता है उसी दिन प्रातः काल वसन्तसेना का हाथी रास्ते में किसी भिक्षुक को कुचलना ही चाहता है कि उसका सेवक कर्णपूरक उसे बचाता है। चारूदत अपना बहु मूल्य दुशाला को उपहार में दे देते हैं।
- मृच्छकटिक के तीसरे अंक का नाम संधिच्छेद है। वसन्तसेना की दासी मदनिका शर्विलक सेवा से मुक्त करना चाहता है। वह ब्राह्मण है, परन्तु प्रेमपाश में बंधकर आर्य चारूदत्त के घर में सेंध मारता है और वसन्तसेना का गहना चुरा लेता है।
- मृच्छकटिक के चतुर्थ अंक का नाम 'मदनिका-शर्विलक ' है जिसके शर्विलक अलंकार लेकर वसन्तसेना के घर जाता है और मदनिका को सेवा - मुक्त कर देता है। चारूदत की पतिव्रता पत्नी धूता अपनी बहुमूल्य रत्नावली उसके बदले में देती है । मैत्रेय रत्नावली लेकर वसन्तसेना के महल में जाता है और जुए में हार जाने का बहाना कर रत्नावली देता है वसन्तसेना सायंकाल चारूदत्त के घर आने के लिए वादा करती है।
- मृच्छकटिक के पाँचवें अंक का नाम ‘दुर्दिन‘ है । इसमें वर्षा का विस्तृत वर्णन है सुहावने वर्षाकाल में आर्य चारूदत उत्सुकता से वसन्तसेना की राह जोहते बैठे हैं। चेट वसन्तसेना के आगमन की सूचना देता है
1. जीवो जीवबुधौ सितेन्दुतनयो व्यर्का विभौमाः कमात्
वीन्द्वर्का विकुजेन्दश्च सुहदः केषाच्चिदेवं मतम् ॥ (2191)
चारूदत्त से प्रेम सम्मिलन होता है। उस रात वह वहीं बिताती है ।
- मृच्छकटिक के षष्ठ अंक का नाम 'प्रवहणविपर्यय' है तथा सप्तम का अर्थकापहरण। प्रातः काल चारूदत पुष्पकरण्डक नामक बगीचे में गये है। उनसे भेंट करने के लिए वसन्तसेना जाना चाहती है, परन्तु भ्रम से शकार की गाड़ी में, जो समीप में खड़ी थी, जा बैठती है। इधर राजा पालक किसी सिद्ध की भविष्यवाणी पर विश्वास कर गोपाल के पुत्र आर्यक को कैदखाने में बन्द कर देता है आर्यक कारागृह भागकर चारूदत्त की गाड़ी में चढ़ जाता है। श्रृंखला की आवाज को भूषण से की झनझनाहट समझ गाड़ी हाँक देता है। रास्ते में दो सिपाही गाड़ी देखने जाते हैं जिनमें से एक आर्यक को देख उसकी रक्षा करने का वचन देता है और अपने साथी से किसी बहाने झगड़ा कर बैठता है आर्यक बगीचे में चारूदत से भेंट करता है,
- मृच्छकटिक के 'अष्टम अंक' का नाम 'वसन्तसेना'- मोचन' है । जब वसन्तसेना पुष्पकरण्डक उद्यान में पहुँचती है, तब प्राणप्रिय चारूदत्त के स्थान पर दुष्ट शकार - संस्थानक मिलता है, जो उसकी प्रार्थना न स्वीकार करने से वसन्तसेना का गला घोंट डालता है संवाहक भिक्षु बन गया है । वसन्तसेना को समीप के विहार में ले जाते है और योग्य उपचार से उस पुनरूज्जीवित करता है।
- मृच्छकटिक के नवम अंक में जिनका नाम 'व्यहार ' है, शकार चारूदत्त पर वसन्तसेना के मारने का अभियोग लगाता है कचहरी में जज के सामने मुकदमा पेश होता है। उसी समय चारूदत का बालक पुत्र रोहसेन-मृच्छकटिक (मिट्टी की गाड़ी) लेकर आता है, जिसमें वसन्तसेना के दिये सोने के गहने है। इसी आधार पर चारूदत को फाँसी का हुक्म होता है।
- मृच्छकटिक के 'संहार 'नामक दशम अंक में उसी समय राज्य परिवर्तन होता है। पालक को मार चारूदत का परम मित्र आर्यक राजा बन जाता है। वह चारूदत को क्षमा ही नहीं कर देता, प्रत्युत मिथ्याभियोग के कारण शकार को फाँसी का हुक्म देता है, परन्तु चारूदत के कहने से क्षमा कर देता है । वसन्तसेना के साथ चारूदत का व्याह सम्पन्न होता है। इसी अन्तिम प्रेम-मिलन के साथ यह रूपक समाप्त होता है।