रामायण-महाभारत की तुलना|रामायण और महाभारत में किसकी रचना पहले हुई |Comparison of Ramayana-Mahabharata in HIndi

Admin
0

रामायण-महाभारत की तुलना

(Comparison of Ramayana-Mahabharata in HIndi)

रामायण-महाभारत की तुलना|रामायण और महाभारत में किसकी रचना पहले हुई |Comparison of Ramayana-Mahabharata in HIndi


 

रामायण-महाभारत की तुलना 

Comparison of Ramayana-Mahabharata in HIndi


रामायण और महाभारत की तुलना करने से अनेक आवश्यक तथ्यों का पता चलता है। तुलना मुख्य दो विषयों में की जा सकती है प्रथम तो उनके वर्णनीय विषय को लेकर और दूसरी उनके रचना-काल को लेकर। 

  • रामायण आदिकाव्य माना जाता है और महाभारत इतिहास गिना जाता है। इस पारस्परिक भेद का यह अभिप्राय है कि रामायण के काव्यगत चमत्कार महत्व की वस्तु है। महाभारत में प्राचीनकाल के अनेक प्रसिद्ध राजाओं के इतिवृत्त का वर्णन करना ही ग्रन्थकार का उद्देश्य है। इसीलिए रामायण में राम-रावण की घटना ही सर्वभावेन मुख्य है। अन्य छोटे-मोटे कथानक भी हैंपरन्तु वे प्रधान वृत्त को पुष्ट करने के लिए ही रचित हैं। उधर महाभारत में प्रधान घटना कौरवों तथा पाण्डवों का युद्ध हैपर इसके साथ-साथ प्राचीन काल की अनेक कथाएँ अवान्तर रूप से दी हुईजो मुख्य घटना से कम महत्व नहीं रखती। दोनों का भौगोलिक विस्तार भिन्न-भिन्न है। रामायण में जिस भारतवर्ष की चर्चा है उसकी दक्षिणी सीमा विन्ध्य और दण्डक हैपूर्वी सीमा विदेह है तथा पश्चिमी सीमा सुराष्ट्र हैपरन्तु महाभारत के समय आर्यावर्त का विशेष विस्तार दीख पड़ता है।

 

  • पूर्वी सीमा गंगासागर का संगम हैदक्षिण में चोल तथा मालाबार प्रान्तों की सत्ता है। इतना ही नहींलंका के भी अधिपति उपहार लेकर लेकर स्वयं उस यज्ञ में उपस्थित होते हैं। फलतः भारतवर्ष का भौगोलिक विस्तार उस युग में रामायण की अपेक्षा अत्यधिक है।

 

  • दोनों के स्वरूप में भी पर्याप्त अन्तर है। रामायण में एक ही कवि की कोमल लेखनी ने अपना चमत्कार दिखलाया है। कविता में समरसताशब्द और अर्थ का मंजुल सामन्जस्य हैजिससे यह स्पष्ट कि इसके रचना का श्रेय किसी एक ही व्यक्ति को हैमहाभारत के विषय में ऐसा नहीं कहा जा सकता वह तो अनेक शताब्दियों के साहित्यिक प्रयासों का फल है। धीरे-धीरे अपने अल्पकलेवर से बढ़ता हुआ वह लक्षश्लोकात्मक विशालकाय ग्रन्थ के रूप में आ गया है। 

  • रामायण के लेखक की चर्चा कहीं नहीं हैप्रत्युत लव तथा कुश के द्वारा उसके गाये जाने के तथ्य से हम परिचित हैपरन्तु महाभारत लिपिबद्ध किया गया ग्रन्थरत्न हैजिसके लिपिबद्ध करने का श्रेय स्वयं गणेशजी को प्राप्त है। 
  • व्यास जी बोलते जाते थे और गणेशजी उसे लिखते जाते थे।

 

रामायण और महाभारत में किसकी रचना पहले हुई 


  • यह भी एक विचारणीय प्रश्न है। गत शताब्दी के प्रसिद्ध जर्मन विद्वान डाक्टर वेबर ने सर्वप्रथम यह कहना प्रारम्भ किया कि रामायण की अपेक्षा महाभारत की रचना पहले हुई। रामायण में सुन्दर पदविन्यास तथा सुबोध रचना को वे अर्वाचीनता मानते थे। भारत के भी कतिपयविद्वानों ने इसी मत की घोषणा की परन्तु भारतीय परम्परा उक्त मत के अत्यन्त विरूद्ध है। 
  • वाल्मीकि आदिकवि और महाभारत के रचयिता व्यास उनके पश्चातर्ती द्वितीय कवि हैं। युग के हिसाब से भी अन्तर पड़ता है। वाल्मीकि त्रेतायुग में होने वाले रामचन्द्र के समकालिक हैं और व्यास द्वापरयुग में उत्पन्न होनेवाले पाण्डवों के समसामयिक हैं। इतना ही नहींदोनों ग्रन्थों के अनुशीलन से स्पष्ट पता चलता है कि कालक्रम में वाल्मीकि रामायण महाभारत से पहले की रचना है। 


वाल्मीकि रामायण महाभारत से पहले की रचना इसके पोषक प्रमाण 

 

  • (1) महाभारत के पात्रों के चरित्र में तथा घटनाओं में व्यवहारिकता का पुट है। जुआ खेलनाखेल में हार जानाराज्य का न मिलना और उसके लिए युद्ध करना आदि घटनायें व्यवहार तथा विश्वास के क्षेत्र से बाहर नहीं हैपर रामायण में ऐसी घटनाएँ हैं जिन पर साधारण मनुष्य अपना विश्वास नहीं जमा पाता । सन्तान के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करना रीछ और वानरों की सहायता से लड़नासमुन्द्र के ऊपर पत्थर का विराट पुल बाँधनारावण का दश सिर होना आदि घटनाएँ मानव-संस्कृति की उस प्राथमिक दशा की ओर करती हैं जब आश्चर्यजनक घटनाओं में विश्वास करना कोई अस्वाभाविक बात न थी।

 

  • (2) रामायण में आर्य-सभ्यता अपने विशुद्ध रूप में चित्रित की गई है। उसमें म्लेच्छों काजो सम्भवतः भिन्न वर्ग तथा संस्कृति के अनुयायी थेतनिक भी सम्पर्क नही दीख पड़तापरन्तु महाभारत में म्लेच्छों का सम्पर्क पर्याप्त रूप से विद्यमान है। दुर्योधन की आज्ञा से जिस पुरोचन नामक मन्त्री ने लाख (लाक्षा) का घर बनाया थावह म्लेच्छ ही था। महाभारत के युद्ध में दोनों ओर से लड़ने वाले अनेक म्लेछ राजाओं के भी नाम मिलते हैं। इतना ही नहींविद्वान लोग म्लेच्छो की भाषा से भी परिचत थे । विदुर ने इसी म्लेच्छ-भाषा में युधिष्ठिर को लाख के घर की घटना की सूचना पहले ही सभा में दी थी । उक्त भाषा का प्रयोग इसलिए किया गया कि अन्य सभासद् इसको समझ न सकें।

 

  • (3) भौगोलिक दृष्टि से विचार करने पर भी महाभारत पीछे लिखा गया मालूम होता है। रामायण की रचना के समय में दक्षिण भारत में अनार्य जंगली जातियों का ही निवास था। आर्यों की सभ्यता विन्ध्य पर्वत तक ही सीमित थीपरन्तु महाभारत के समय में दक्षिण भारत राजनीतिक दृष्टि से व्यवस्थित सुशासित तथा सभ्य दीख पड़ता है। भीष्मपर्व में दक्षिण भारत का यह राजनीतिक परिवर्तन सूचित करता है कि महाभारत की रचना रामायण से पीछे हुई।

 

 

  • (4) महाभारत युद्ध में युद्धकला की विशेष उन्नति दिखाई पड़ती है। द्रौपदी के स्वयंबर में सीता स्वयंवर के समान केवल एक धनुष को तोड़ देना ही वीरत्व का मापदण्ड नहीं हैप्रत्युत एक विशिष्ट प्रकार से लक्ष्य भेद करना वीरता की कसौटी है। लंकायुद्ध में योद्धागण परस्पर केवल पत्थरों और वृक्षों से प्रहार करते हैंपरन्तु महाभारत युद्ध में सैनिक लोग विशिष्ट सेनापति की देख-रेख में लड़ते हैं। व्युह की रचना इस युद्धकी महती विशेषता हैजिसमें अल्पसंख्यक सैनिक बहुसंख्यक सेना के आक्रमण को रोकने में समर्थ होता हैं। युद्धकला का यह महाभारत कालीन विकास इस बात को प्रमाणित कर रहा है कि महाभारत बाद की रचना है।

 

  • (5) दोनों की सामाजिक दशा में विशेष अन्तर है रामायण का समाज आदर्शवाद कर प्रतिष्ठित है। पिता कुटुम्ब का नेता तथा पोषक है। राम आदर्श पुत्र हैभरत भ्रातृत्व के गुणों के आगार हैंसुग्रीव मित्रता की कसौटी हैं। ऊपर महाभारत की सामाजिक दशा में आदर्शवाद के लिए स्थान नहीं है। भरत के समान भीम अपने पितृतुल्य जेठे भाई के आदेश का पालन करना अपना कर्तव्य नहीं मानते। यदि धर्मराज संधि करने के इच्छुक हैंतो वे उनका घोर विरोध (अश्वत्थामा द्वारा ) करने पर तुले हैं। विजय की सिद्धि के लिए करना या असत्य भाषण किसी प्रकारका पाप नहीं माना जाता था (अश्वत्थामा हतौ नरो वा कुंजरो वा )

 

  • (6) रामायण में नैतिक भावना अपने ऊँचे आदर्श पर प्रतिष्ठित हैपरन्तु महाभारत में यह भावना हास पाकर नीचे खिसकने लगी है। मैथिली तथा द्रौपदी के चरित्र की तुलना इसे स्पष्ट करती है। सुन्दरकाण्ड में हनुमान सीता को अपनी पीठ पर बैठा कर राम के पास चलने का प्रस्ताव करते हैंपरन्तु सीता पर पुरूष के शरीर का स्पर्श नहीं कर सकती हैं। अतः वह इसे तिरस्कार कर देती हैं। रावणवध के अनन्तर सीता कठिन अग्नि परीक्षा में तप्त होकर अपने पावन चरित्र को सिद्ध करती हैं। महाभारत की द्रौपदी काम्यक वन में जयद्रथ के द्वारा हरण की जाती हैंपरन्तु उसका पुनर्ग्रहण विना किसी रोक-टोक के धीरे से कर लिया जाता है।

 

  • (7) रामायण में महाभारत की घटनाओं तथा पात्रों का उल्लेख तक नहीं हैपरन्तु महाभारत रामायण की कथा तथा पात्रों से पूरी तरह परिचित है। वनपर्व के तीर्थ यात्रा प्रसंग में श्रृड्गवेरपुर' (प्रयाग जिले का सिंगरामऊवन पर्व85/65 ) तथा गोप्रतार' (फैजाबाद में सरयू का गुप्तार घाटवनपर्व 85/70) तीर्थ में गिने गये हैंक्योंकि पहले स्थान पर राम ने गंगा पार किया और दूसरे पर वे अपनी प्रजाओं के साथ भूलोक से स्वर्ग में चले गये । वनपर्व के अठारह अध्यायों में (अ0 274-291) रामोपाख्यान पर्व हैजिसमें रामचन्द्र की कथा संक्षेप से वर्णित है। इस उपाख्यान में वाल्मीकीय रामायण के श्लोक भी ज्यों के त्यों रखे गये हैं। उपमाएँ तथा कल्पनाएँ भी वाल्मीकि से ली गई है।

 

  • रामायण के श्लोकों की समता केवल रामोपाख्यान में ही उपलब्ध नहीं होतीप्रत्युत महाभारत के अन्य पर्वो में भी यह समता तथा निर्देश नितान्त सुस्पष्ट हैं। उदाहरणार्थ माया सीता के मारते समय इन्द्रजीत ने हनुमानजी से जो वचन कहे थेवे ही वचन द्रोणपर्व में भी अक्षरशः प्राप्त होते हैं ।

 

न हन्तव्याः स्त्रियः इति यद् ब्रवीषि प्लवंगम । 

पीडाकरममत्रिणां यत्तु कर्तव्यमेव तत् ॥ (युद्ध 0 81-28


महाभारत के द्रोण पर्व में इसका उल्लेख वाल्मीकि के नाम से है 

अति चायं पुरा गीत: श्लोको वाल्मीकिना भुवि । 

न हन्तव्याः स्त्रिय इति यद् ब्रवीषि प्लवंगम ।। 

सर्वकालं मनुष्येण व्यवसायवता सदा । 

पीडाकरममित्राणां यत् स्यात् कर्तव्यमेव तत् || 


इन प्रमाणों के अनुशीलन से किसी भी निश्पक्ष आलोचक को भारतीय परम्परा की सत्यता पर अविश्वास नहीं हो सकता कि रामायण कालक्रम से महाभारत से पूर्व की रचना है।

विषय सूची 

महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास

महाभारत का विकास एवं इतिहास,  महाभारत का रचना काल

हरिवंशपुराण- हरिवंश का स्वरूप,  हरिवंश में तीन पर्व या खण्ड

महाभारत के टीकाकार

वेद व्यास की समीक्षा महाभारत रचना के संबंधमें

रामायण-महाभारत की तुलना, रामायण और महाभारत में किसकी रचना पहले हुई

संस्कृत साहित्य का इतिहास : महर्षि वाल्मीकि संस्कृत के आदिकवि

रामायण में राजा की महिमा-रामायण मूल्यांकन

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top