कालिदास कृतित्व, कालिदास की प्रमुख रचनाएँ
कालिदास कृतित्व- कालिदास की प्रमुख रचनाएँ
काव्यग्रन्थ
- कालिदास की सच्ची रचनाओं का निर्णय करना आलोचकों के लिए एक दुष्कर कार्य है, क्योंकि कालिदास की काव्य-जगत् में ख्याति होने पर अवान्तरकालीन बहुत से कवियों ने 'कालिदास' का प्रसिद्ध अभिधान धारण कर अपने व्यक्तित्व को छिपा रखा। कम से कम राजशेखर (10 शतक) ने तीन कालिदासों की सत्ता का पूर्ण संकेत किया है। एक तो परम्परा की अविच्छिन्नता और दूसरे अनेक कालिदासों की सत्ता- दोनों ने मिलकर इस समस्या को जटिल तथा अमीमांस्य बना रखा है।
ऋतुसंहार - कालिदास की प्रथम काव्यकृति
- 'ऋतुसंहार' कालिदास की प्रथम काव्यकृति है। विद्वानों की दृष्टि में बालकवि कालिदास ने काव्यकला का आरम्भ इसी ऋतु-वर्णन-परक लघुकाव्य से किया । छः सर्गों में विभक्त यह काव्य ग्रीष्म से आरम्भ कर वसन्त तक छहों ऋतुओं का बड़ा ही स्वाभावि, अकृत्रिम तथा सरल वर्णन प्रस्तुत करता है, परन्तु इसे कालिदास की कमनीय शैली या वाग्वैदग्धी का परिचय मिलता है, न इसमें बाल रचना की पुष्टि में ही कोई प्रमाण मिलता है। भारतीय दृष्टि से ऋतुओं का वर्णन रूढिगत तथा सर्वथा सामान्जस्यपूर्ण है। अलंकार ग्रन्थों में उद्धरण का अभाव भी उक्त सन्देह की पुष्टि-सा करता प्रतीत होता है।
कुमारसम्भव कालिदास की सच्ची निःसन्दिग्ध रचना
- कुमारसम्भव कालिदास की सच्ची निःसन्दिग्ध रचना है। इसमें कवि ने के जन्म के वर्णन का संकल्प किया था, परन्तु यह महाकाव्य अधूरा ही हैं। इसके वर्तमान कुमार कार्तिकेय 17 सर्गों में से आदि के सात सर्ग तो कालिदास की लेखनी के चमत्कार हैं ही। अष्टम सर्ग भी उनका ही नि:संशय निर्माण है। आलड़कारिकों तथा सुक्तिसंग्रहों ने इन्हीं सर्गों में से पद्यों को उद्धृत किया है। कालिदासीय कविता के प्रवीण पारखी मल्लिनाथ ने इतने ही सर्गो पर अपनी 'संजीवनी' लिखी। इन आदिमअष्ट सर्गो में विषय की दृष्टि से पूर्ण है। कविता का चमत्कार सहृदयों के लिए नितान्त हृदयावर्जक है। 'जगत: पितरौ' शिव-पार्वती जैसे दिव्य दाम्पत्य के रूप तथा स्नेह का वर्णन नितान्त औचित्यपूर्ण तथा ओजस्वी है। केवल अष्टम सर्ग का रतिवर्णन आलड़कारिकों के तीव्र कटाक्ष का पात्र बना है। पंचम सर्ग में पार्वती की कठोर तपश्चर्या का वर्णन जितना ओजपूर्ण, उदात्त तथा संश्लिष्ट है उतना ही तृतीय सर्ग में शिवजी की समाधिका वर्णन भी है। 9से लेकर 17 सर्ग किसी साधारण कवि के द्वारा लिखित प्रक्षेपमात्र है।
मेघदूत- कालिदास की अनुपम प्रतिभा
- मेघदूत- यह कालिदास की अनुपम प्रतिभा का विलास है। वियोगविधुरा कान्ता के पास यक्ष का मेघ के द्वारा प्रणय-सन्देश भेजना मौलिक कल्पना है। सम्भव है यह हनुमान् को दूत बनाकर भेजने की रामायणीय कथा अथवा हंसदूत की महाभारतीय कथा के द्वारा संकेतित किया गया है, परन्तु इसका सांविधानक तथा विषयोपन्यास कवि की मौलिक सूझ के परिणाम हैं। इसकी लोकप्रियता तथा व्यापकता का निदर्शनविपुल टीका-सम्पत्ति (लगभग 50 टीकाओं) से तो लगता ही है, साथ ही साथ तिब्बती तथा सिंघली भाषा में इसके अनुवाद से यह विशेषत: पुष्ट होती है।
- 'मेघदूत' को आदर्श मानकर संस्कृत में निबद्ध एक विपुल काव्यमाला है, जो 'सन्देश-काव्य' के नाम से विख्यात है। पूर्वमेघ में कवि ने रामगिरि से अलका तक मार्ग के वर्णनावसर पर समस्त भारतवर्ष की प्राकृतिक सुषमा का अभिराम उपन्यास किया है। यह बाह्मप्रकृति के सौन्दर्यय तथा कामनीयता का उज्ज्वल प्रदर्शन है तो उत्तरमेघ मानव-हृदय के सौन्दर्य तथा अभिरामता का विमल चित्रण है यक्ष का प्रेम-सन्देश, उस, के कोमल हृदय के स्वाभाविक स्नेह का तथा नैसर्गिक सहानुभूति का एक मनोरम प्रतीक है और इस उदात्त प्रेम का अभिव्यंजक, काव्य तथा भावसौष्ठव से मण्डित यह ग्रन्थ रस का अक्षय स्रोत है जिसकी भावधारा सूखने की अपेक्षा प्रतिदिन आनन्दातिरेक से वृद्धिगतही होती जा रही है।
रघुवंश - कालिदास का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ
- रघुवंश - भारतीय आलोचक रघुवंश को कालिदास का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ मानते है और इसीलिए कालिदास के लिए ही 'रघुकार' (रघुवशं का रचयिता) अभिधान का प्रयोग किया गया है। ग्रन्थ की लोकप्रियता तथा व्यापकता का परिचय विभिन्न काल में निर्मित 40 टीकाओं के अस्तित्व से भी भली-भाँति मिल सकता है।
- रघु के जन्म की पूर्व पीठिका से ही इस काव्य का आरम्भ होता है। दिलीप के गोचारण से रघु का जन्म होता है (द्वितीय तथा तृतीय सर्ग), जो अपने अदम्य पराक्रम से पूरे भारतवर्ष के ऊपर दिग्विजय करते हैं (चतुर्थ सर्ग) और अपनी अद्भुत दानशीलता दिखलाकर लोगों को चकित कर देते है (पंचम सर्ग ) । इसके अनन्तर तीन सर्गो में इन्दुमती का स्वयंवर, अन्य समवेत राजाओं को परास्त कर रघुपत्र अज का इन्दुमती से विवाह तथा कोमल माला के गिरने से इन्दुमती का मरण तथा अज का करूण विलाप क्रमश: वर्णित हैं। दसवें सर्ग से लेकर 15 वें सर्ग तक रामचरित का विस्तृत वर्णन है।
- यहाँ कालिदास ने जमकर रामचन्द्र के चरित का वैशिष्ट्य बड़ी ही सुन्दरता से प्रदर्शित किया है। त्रयोदश सर्ग में पुष्पकारूढ राम के द्वारा भारतवर्ष के स्थलों का रूचिर वर्णन कालिदास की प्रतिभा का विलास है। चतुर्दश सर्ग सीता के चरित की सुषमा से आलोकित है। राम के द्वारा परित्यक्ता गर्भ- भरालसा जनकनन्दिनी के प्रणय-सन्देह में जो आत्मगौरव, जो स्नेह भरा हुआ है वह पतिव्रताके चरित का उत्कर्ष है । अन्तिम कतिपय सर्गों में कालिदास नाना राजाओं के चरित को सरसरी तौर से निरखते चले गये हैं, परन्तु अन्तिम 19 वें सर्ग में कामुक अग्निवर्ण का चित्रण बड़ी ही मार्मिकता के साथ कवि ने किया है। देखने में रघुवंश अधूरा-सा दीखता है, परन्तु कालिदास ने यहाँ प्रभुशक्ति की कल्पना में अपने विचारों को पुर्णरूपेण अभिव्यक्त कर दिया है। प्रकृति-रंजन के कारण राज्य की समृद्धि होती है तथा प्रकृतिहिंसन के कारण राज्य का सर्वनाश होता है- यह उपदेश बड़े ही अच्छे ढंग से रघुवंश के अनुशीलन से प्रकट हो रहा है।