किरातार्जुनीयम् महाकाव्य युधिष्ठिर का चरित्र (Kirat Arjuniyam Yudhistar)
किरातार्जुनीयम् महाकाव्य युधिष्ठिर का चरित्र
- प्रथम सर्ग में जो आये हैं, उनमें युधिष्ठिर प्रमुख हैं । वैसे समग्र काव्य की दृष्टि से एवं टीकाकार मल्लिनाथ की दृष्टि में काव्य के नायक युधिष्ठिर नहीं अपितु मध्यम पाण्डव अर्जुन ही है, किन्तु हम प्रथम सर्ग के परिप्रेक्ष्य मे युधिष्ठिर को नायक मानते है। युधिष्ठिर के चरित्र में अनेक विशेषताएँ दृष्टिगत होती हैं। वे स्वभाव से धीर एवं प्रकृति से गम्भीर हैं, वे किसी भी निर्णय विचार-विमर्श के पश्चात् गंभीरतापूर्वक लेते हैं, वे कुशल राजनीतिज्ञ हैं। राजनीति के तत्वों कर पूर्ण ज्ञान रखते हैं। जैसा कि हम प्रथम सर्ग में देखते हैं वे वनवास की अवधि में वेशधारी गुप्तचर को दुर्योधन का भेद लेने हेतु भेजते हैं, शत्रु से युद्ध करने के पूर्व वे उसकी सम्पूर्ण के गतिविधियों को जान लेना चाहते हैं ( श्रियः कुरुणामधिपस्य पालनीं० ) 1/1
- उनके गुप्तचर योग्य कर्मठ एवं विवेकशील हैं तथा स्वामी के हित को सर्वोपरि मानने वाले हैं, लेकिन युधिष्ठिर भी शिष्टाचार में निपुण हैं। वे स्वामिभक्त भृत्यों का सम्मान करते हैं । इसी कारण सम्पूर्ण वृतान्त निवेदन करने के पश्चात् वे वनेचर को (इतीरायित्वा गिरमात्तसात्क्रिये० ) 1/26 पुरस्कृत करते हैं।
- युधिष्ठिर अत्यन्त प्रभावशाली हैं यद्यपि वे वन में निवास कर रहे हैं, सैन्य शक्ति व धन से रहित हैं, तथापि दुर्योधन जो राज्य सिंहासनारूढ़ हैं, धन व सैन्यशक्ति से सम्पन्न होते हुए भी सदैव उनसे आशंकित रहता है । युधिष्ठिर का नाम सुनते ही दुर्योधन व्यथित होकर नतानन हो जाता है। तवाभिधानात् व्यथते नतानन: ” ( 1/24 ) युधिष्ठिर का व्यक्तित्व त्यागी एवं तपस्वी के रूप में व्यक्त हुआ है। वे शान्ति नीति के समर्थक, धर्म मर्यादा के पालक, न्याय एवं उत्तम मार्ग पर चलने वाले एवं सहनशील हैं। वे प्रतिशोध की भावना से रहित हैं। यही कारण है कि वे द्रौपदी के युद्ध उत्साहवर्द्धक एवं उपालम्भपूर्ण वचनों को सहानुभूति एवं स्नेह के साथ सुनते हैं और युक्तियुक्त शब्दों में अपनी नीति समझा देते हैं और समय की प्रतीक्षा करने हेतु परामर्श देते हैं। युधिष्ठिर भाइयों में भी सम्मान्य हैं, इसी कारण उनके अतुल पराक्रमी भाई भी कष्ट सहते हैं और उनकी आज्ञा का पालन करते हैं।
- युधिष्ठिर धर्मराज हैं यही कारण है कि द्रौपदी बराबर उन्हें उद्बुद्ध करना चाहती है, उनकी शान्ति को कायरता का प्रतीक मानती हैं वह उन्हें सन्धि भंग करने हेतु प्रेरित करती है, लेकिन युधिष्ठिर अपनी मर्यादा का पालन करते हैं और न्यायोचित मार्ग का उल्लंघन नहीं करते हैं । इस प्रकार प्रस्तुत रचना में युधिष्ठिर के चरित्र की अन्य विशेषताओं की अपेक्षा राजनीतिक परिपक्वता को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। वह भीम और द्रौपदी की बात पूर्ण तन्मयता से सुनता है, उनके उचित सुझावों की प्रशंसा भी करता है, किन्तु उन्हें धैर्यपूर्वक विचार करके निर्णय लेता है । इस प्रकार युधिष्ठिर के व्यक्तित्व में हमें राजनीतिक प्रौढ़ता, सफलता के प्रति अपेक्षित प्रयत्नशीलता, आवेश रहित, संतुलित दृष्टि और नैतिक मूल्यों के प्रति आस्था आदि गुण दृष्टिगोचर होते हैं।