मुद्राराक्षस का उपप्रतिनायक मलयकेतु की चारित्रिक विशेषताएँ
मुद्राराक्षस का उपप्रतिनायक मलयकेतु की चारित्रिक विशेषताएँ
मलयकेतु मुद्राराक्षस का उपप्रतिनायक है। यह पर्वतेश्वर का पुत्र है। मुद्राराक्ष मलयकेतु का चरित्र विशेष प्रभावशाली नहीं दिखाया गया है ।
मलयकेतु के चरित्र की विशेषताएँ इस प्रकार हैं प्रमुख
1. स्वाभिमानी-
- मलयकेतु अत्यन्त स्वाभिमानी था। अपने पिता के वध का बदला लेने के लिये वह हर सम्भव प्रयास करता है। इसी कारण वह राक्षस की सहायता लेकर चन्द्रगुप्त पर आक्रमण करने का निश्चय करता है।
2. वीर तथा पराक्रमी-
- मलयकेतु वीर तथा पराक्रमी है। उसने यह प्रतिज्ञा की थी कि मैं पिता पर्वतेश्वर के श्राद्वादि तभी करूंगा, जब शत्रुओं का वध हो जायेगा शत्रुओं का नाश न होने पर उसे अपना पौरुष व्यर्थ प्रतीत होता है। वह आत्मग्लानि से भर जाता है। वह शीघ्रातिशीघ्र कुसुमपुर पर आक्रमण करना चाहता है। इससे यह सिद्ध होता है कि मलयकेतु वीर योद्धा था ।
3. शंकालु प्रवृत्ति वाला-
- मलयकेतु अत्यन्त शंकालु स्वभाव वाला था । वह भावावेश में आकर कुछ भी कर डालता था । अपन परम हितैषी अमात्य राक्षस पर वह संदेह करता था, जबकि उसके शत्रु भागुरायण, , जो कि मलयकेतु का मित्र बना हुआ था, उसकी बातें मलयकेतु को सत्य प्रतीत होती हैं। वह राक्षस की निष्कपट बातों तथा आचरणों को भी कपटपूर्ण समझने लगता है।
4. विवेकहीन-
- मलयकेतु विवेकशून्य है । भागुरायण उसके मन में राक्षस में प्रति दुर्भावना भर देता है, जिससे वह राक्षस को ही अपना शत्रु मानने लगता है। वह प्रसादी तथा अहंकारी है। वह बिना विचार किये काम करता है । वह यह मानकर अत्यन्त खुश होता है कि वह राक्षस के अधीन नहीं है। वह अत्याश्चर्यजनक रूप से विवेकहीन है। उसे यह भी समझ में नहीं आता कि राक्षस अपने शत्रु चन्द्रगुप्त से कैसे सन्धि कर लेगा? अपने ही हितैषी कौलूत चित्रवर्मा आदि राजालोगों को वह मरवा डालता हैं अपनी विवेकहीनता के कारण ही वह अन्ततः चन्द्रगुप्त का बन्दी बन जाता है । इस प्रकार मुद्राराक्षस के उपप्रतिनायक मलयकेतु के चरित्र में उपुर्यक्त विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं।