मुद्राराक्षस का नामकरण, मुद्राराक्षस की प्रमुख विशेषताएँ,Mudrarakshasa ka arth evam viseshtayen
विशाखदत्त का कृतित्व
- मुद्राराक्षस के अतिरिक्त विशाखदत्त के अन्य दो ग्रन्थ हैं-देवीचन्द्रगुप्तम् तथा अभिसारित वच्चितकम्। ‘देवीचन्द्रगुप्तम' में चन्द्रगुप्त द्वितीय के पराक्रम का भव्य वर्णन है। ‘अभिसारितवच्चितकम्' में वत्सराज उदयन के चरित्र का वर्णन है।
मुद्राराक्षस का नामकरण
- मुद्राराक्षस में राक्षस की मुद्रा (अंगुठी) की विशेष भूमिका है। इसी में मुद्रा के द्वारा चाणक्य ने राक्षस को वश में किया। मुद्राराक्षस का ही यही अर्थ है- मुद्रया गृहीतः राक्षसः यस्मिन् तत् मुद्राराक्षसं नाटकम् । चाणक्य ने शकटदास से एक गुप्त पत्र लिखवाकर उस पर राक्षस की अंगूठी से चिन्ह लगाया तथा उसी पात्र के आधार पर मलयकेतु को राक्षस से अलग कर दिया। संस्कृत नाटकों में मुद्राराक्षस का सर्वश्रेष्ठ स्थान है।
- मुद्राराक्षस सात अंकों में विभक्त है। इसका नायक धीरोद्धत ब्राह्मण चाणक्य है तथा प्रतिनायक अमात्य राक्षस है। चन्द्रगुप्त उपनायक तथा मलयकेतु उपप्रतिनायक है इसमें वीररस प्रधान रस है सम्पूर्ण नाटक में चाणक्य की कूटनीतियों का विलास है। अपनी कूटनीतियों के जाल में चाणक्य राक्षस को फंसाकर उसे चन्द्रगुप्त का मन्त्री बनने के लिये विवश कर देता है।
मुद्राराक्षस की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
1. सामान्यतया संस्कृत नाटक प्रेमकथा पर आश्रित रहते हैं। कालिदास के तीनों नाटकों का आधार प्रेमकथा ही है, किन्तु मुद्राराक्षस में प्रेमकथा का सर्वथा अभाव है। इसलिये मुद्राराक्षस में नायिका ही नहीं है । यहाँ तक कि इस नाटक में स्त्रीपात्र भी केवल तीन हैं- मलयकेतु की प्रतिहारी शोणोत्तरा, विजया तथा चन्दनदास की पत्नी । किन्तु ये स्त्रीपात्र भी श्रृंगार का उद्दीपन नहीं करते हैं। इस नाटक में श्रृंगार भावना का पूर्णतः अभाव है। चाणक्य की कूटनीति के दांव पेचों से सारा नाटक व्याप्त है। से
2. नायिका के साथ-साथ इस नाटक में विदूषक का भी अभाव है। राजीनीति के दांव-पेचों में उलझे हुए दर्शकों को विदूषक का अभाव जरा भी नहीं खलता है।
3.मुद्राराक्षस की तीसरी प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें बिना युद्ध के ही चाणक्य ने राक्षस को वश में कर लिया है- विनैव युद्धादार्येण जितं दुर्जयं परबलमिति । नाटक में एक भी अस्त्र-शस्त्र नहीं चला, न ही कोई मारा गया या घायल हुआ फिर भी केवल कूटनीति के आधार पर ही राक्षस की पराजय हो जाती है।
4. मुद्राराक्षस एक नवीन प्रकार की रचना है। यह नाटक के नियमों के पूर्णतः अनुरूप नहीं है, क्योंकि इसकी रचना कोई नाटय शास्त्रीय नियमों को मानकर चलने के लिये नहीं हुई, बल्कि जनमनोरंजन के लिए हुई है । यद्यपि विशाखदत्त नाटयशास्त्र के नियमों के पूर्णतः ज्ञाता थे, तथापि उन्होंने नवीन प्रयोग कर अपनी वैयक्तिक प्रतिभा दिखाने का सफल प्रयास किया है। मुद्राराक्षस में नाटकों में प्राचीन परम्परा के अनुसार कोई प्रख्यातवंशीय राजा नायक नहीं बना है, अपितु एक साधारण ब्राह्मण नायक बना है। इसका इतिवृत्त भी किसी प्रेमकथा पर आधारित न होकर ऐतिहासिक है। इस प्रकार विशाखदत्त ने अपनी इस रचना में नवीन प्रयोग किया है।
5. मुद्राराक्षस में सभी प्रमुख पात्रों का चरित्र अत्यन्त सुन्दर ढंग से चित्रित किया गया है। राक्षस चाणक्य तथा मलयकेतु-चन्द्रगुप्त का प्रतिद्वन्द्व प्रमुख रूप से वर्णित है चन्द्रगुप्त चाणक्य का अंधभक्त है, जबकि मलयकेतु पग-पग पर राक्षस पर संदेह करता है। राक्षस तथा चाणक्य के परस्पर संघर्ष पर ही उन दोनों का चारित्रिक विकास निर्भर है।
6. मुद्राराक्षस की अत्यन्त महत्वपूर्ण विशेषता है उसके इतिवृत्त की योजना । विशाखदत्त ने सम्पूर्ण नाटक में कथा के तीनों-बानों का जाल बड़ी कुशलता से बुना है। कथा के प्रारम्भ में सभी घटनाएँ अलग-थलग बढ़ती हुई दिखाई देती हैं तथा अन्त मे उन सभी घटनाओं का एक स्थान पर सामंजस्य होता है। सम्पूर्ण नाटक में कोई भी ऐसा पात्र नहीं है जो कि निरर्थक हो । चाणक्य के द्वारा नाटक के प्रारम्भ में प्रयुक्त सभी व्यक्ति अन्ततः राक्षस को वश में करने में सफल भूमिका निभाते हैं। कथावृत्त की ऐसी चातुर्यपूर्ण योजना विशाखदत्त की अनुपम विशेषता है।
विशाखदत्त की शैली
मुद्राराक्षस में विशाखदत्त का अभिनव रचना कौशल दिखलाई पड़ता है। मुद्राराक्षस की शैली प्रसादगुणयुक्त तथा प्रांजल है। इसकी भाषा मधुर तथा सरल है।
आस्वादितद्विरदशोणितशोणशोभाम् सन्ध्यारुणामिव कलां शशला छनस्य ।
जृम्भाविदारितमुखस्य मुखात् स्फुरन्तीं को हर्तुमिच्छति हरे: परिभूय द्रंष्ट्राद्रम्।। - 1/8
मुद्राराक्षस में शब्दविन्यास या तो असमस्त है या अल्पसमस्त । इसमें श्लोंकों की भी प्रचुर योजना है। इसका गद्यभाग भी अत्यन्त प्रभावशाली तथा संवाद बड़े रूचिकर हैं।
जैसे
“अयमपरो गण्डस्योपरि स्फोटः ।”
“कीदृशः पुनः तृणानामग्निा सह विरोधः । ”
इसमें सभी पात्रों का चित्रण भी बड़ा स्वाभाविक है । इतिवृत्त की योजना में कवि नितान्त निपुण हैं।