मुद्राराक्षस का कथासार | Mudrarakshasa Story Summary in Hindi

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मुद्राराक्षस का कथासार (Mudrarakshasa Story Summary in Hindi)

मुद्राराक्षस का कथासार | Mudrarakshasa Story Summary in Hindi


मुद्राराक्षस का कथासार Mudrarakshasa Story Summary in Hindi

 

मुद्राराक्षस का प्रथम अंक 

  • प्रथम अंक में सर्वप्रथम नान्दी तथा प्रस्तावना होती है। सूत्रधार के द्वारा चन्द्रग्रहण के वर्णन के ब्याज से चाणक्य का प्रवेश किया जाता है। चाणक्य अपने शिष्य के साथ बैठकर चन्द्रगुप्त पर आक्रमण करने के लिये उद्यत राक्षस तथा मलयकेतु को वश में करने का विचार करता है। बिना राक्षस को नियंत्रित किये चन्द्रगुप्त का राज्य स्थिर नहीं हो सकता है। वह राक्षस को वश में करने के सम्बन्ध में अपनी योजनाओं की जानकारी देता है। उस समय चाणक्य के द्वारा प्रयुक्त गुप्तचर निपुणक वहाँ आकर सूचना देता है कि राक्षस के परिवारजन चन्द्रनदास नामक वैश्य के यहाँ सुरक्षित हैं। वहाँ से गुप्तचर को राक्षस की नामांकित मुद्रा मिली हैजिसे वह चाणक्य को दे देता है ।  चाणक्य मुद्रा प्राप्त करके प्रसन्न हो जाता है और शकटदास के द्वारा एक कपटपूर्ण लेख लिखवाकर उसे राक्षस की मुद्रा से मुद्रांकित कर देता है। 


  • शकटदास यह नहीं जान पाता कि लेख को चाणक्य ने लिखवाया है। फिर चाणक्य वह लेख सिद्धार्थक को देकर उसके कानों में गुप्त योजना बताता है और उसे कहता है कि वह शकटदासजिसे चाणक्य ने मृत्युदण्ड की सजा दी हैउसे मृत्युस्थान से छुड़वाकर राक्षस के यहाँ पहुँचा दे। उसके पश्चात् चाणक्य चन्दना को बुलवाता है तथा उसे कहता है वह राक्षस के परिवारजनों को सौंप दे। चन्दनदास किसी भी कीमत पर राक्षस के परिवारजनों को सौंपने के लिये तैयार नहीं होता। चाणक्य उसे बन्धन में डालने की आज्ञा देता है तथा अपने ही गुप्तचर जीवसिद्धि क्षपणक को देश निकाला देता है ताकि वह राक्षस के पास जा सके । सिद्धार्थक ने शकटदास को भगा दिया यह समाचार जानकर चाणक्य खुश हो जाता है और राक्षस को पकड़ने के लिये निश्चित होकर निकल जाता है । 


मुद्राराक्षस का द्वितीय अंक 

  • द्वितीय अंक के प्रारम्भ में सपेरे के वेश में विराधगुप्त प्रवेश करता है। कज्जुकी राक्षस को मलयकेतु के द्वारा दिये गये आभूषण देता है। विराधगुप्त राक्षस को कुसुमपुर के समाचार बतलाता है- राक्षस ने पर्वतेश्वर को विषकन्या के द्वारा मारा है- यह समाचार कुसुमपुर फैलाया गया है। चन्द्रगुप्त ने अर्धरात्रि में नन्दभवन में प्रवेश किया है। राक्षस के द्वारा किये गये चन्द्रगुप्त वध के सारे षड्यन्त्रों को चाणक्य ने नष्ट कर दिया है। चन्दनदास कैदखाने में डाल दिया गया है।” यह सारा समाचार विराधगुप्त राक्षस को सुनाता है। उसी समय वहाँ शकटदास को लेकर सिद्धार्थकि उपस्थिति होता है। शकटदास अपनी बन्धन से मुक्ति का वृत्तान्त राक्षस को बतलाता है। राक्षस प्रसन्न होकर सिद्धार्थक को मलयकेतु के द्वारा दिये गये आभूषण है । सिद्धार्थक उन आभूषणों को चुपके से राक्षस की मुद्रा से अंकित कर रख लेता है। शकटास तथा सिद्धार्थक के चले जाने पर विराधगुप्त पुनः राक्षस के कुसुमपुर का वृत्तान्त सुनाता है। राक्षस विराधगुप्त को चाणक्य तथा चन्द्रगुप्त में विवाद करवाने के लिये कुसुमपुर भेजा देता है। उधर राक्षस चाणक्य के गुप्तचर से ही अनजाने में कुछ आभूषण खरीद लेता हैं ये वही आभूषण हैं जो पर्वतेश्वर धारण किया करते थे।

 

मुद्राराक्षस का तृतीय अंक 

  • तृतीय अंक चन्द्रगुप्त कंचुकी से कौमुदी महोत्सव रोके जाने का कारण पूछता है । कंचुकी बताता है कि यह चाणक्य का आदेश है। चन्द्रगुप्त चाणक्य से मिलता है और उनके द्वारा कौमुदीमहोत्सव रोकने का कारण पूछता है। चाणक्य कहता है कि सचिवायत्तसिद्धि का राजा से कोई प्रयोजन नहीं है। तभी राक्षस का गुप्तचर वैतालिक के रूप से चन्द्रगुप्त के क्रोध के उत्तेजक श्लोक कहता है । चन्द्रगुप्त वैतालिक को सौ हजार सुवर्णमुद्रा देता है। चाणक्य चन्द्रगुप्त को मना करता है । चन्द्रगुप्त पुनः चाणक्य से कौमुदीमहोत्सव रोकने का कारण पूछता है। चाणक्य कहता है कि पहला कारण तो तुम्हारी आज्ञा का उल्लंघन करना है और दूसरा कारण यह है कि सेना को तैयार कराने का समय उत्सव का नहीं। चाणक्य तथा चन्द्रगुप्त में कृतककलह (नकली विवाद) होता है । चन्द्रगुप्त कहता है आपकी अपेक्षा राक्षस अधिक प्रशंसनीय है। चा अपना मन्त्रीपद् त्यागने की घोषणा करता है। चन्द्रगुप्त भी कहता है मैं चाणक्य के बिना राज्य का संचालन कर लूँगा।

 

मुद्राराक्षस का चतुर्थ  अंक 

  • चतुर्थ अंक- राक्षस का गुप्तचर करभक राक्षस के पास आता है तथा उसे चन्द्रगुप्त एवं चाणक्य के कलह की बात बतलाता है। उधर भागुरायण मलयकेतु भड़काता है कि चाणक्य के चन्द्रगुप्त से अलग हो जाने पर राक्षस स्वामिपुत्र चन्द्रगुप्त से सन्धि कर सकता है। भागुरायण के साथ मलयकेतु मज्ज पर आता है और राक्षस के साथ मलयकेतु की बातचीत होती है। सभी लोग चन्द्रगुप्त पर आक्रमण करने का निश्चय करते हैं । मलयकेतु स्वयं को अमात्याधीन न होने से धन्य मानता है। मलयकेतु तथा भागुरायण के चले जाने पर राक्षस शत्रु पर आक्रमण करने के लिये शुभ मुहूर्त निकालने का निश्चय करता है। जीवसिद्धि क्षपणक वहाँ आता है और राक्षस को मुहूर्त बतलाता है। राक्षस उसके बताये मुहूर्त से सन्तुष्ट नहीं होता। क्षपणक क्षुब् होकर वहाँ से चला जाता । राक्षस भी वहाँ से निकल जाता है। 

 

मुद्राराक्षस का पंचम अंक 

  • पंचम अंक सिद्धार्थक तथा क्षपणक की बातचीत से मालूम पड़ता है कि राक्षस के शिविर से निकलने या प्रवेश करने के लिये मुद्रित पत्र का पास में होना आवश्यक है। क्षपणक मुद्रितपत्र की प्राप्ति के लिये भागुरायण के पास जाता है। भागुरायण समझता है कि क्षपणक राक्षस का मित्र हैलेकिन क्षपणक राक्षस के प्रति घृणा प्रकट करता है। वह कहता है राक्षस ने पर्वतेश्वर को विषकन्या के द्वारा मारा है । मलयकेतु ये सारी बातें छुपकर सुन लेता है। क्षपणक के जाने पर मलयकेतु वहाँ आता है। सिद्धार्थ बिना मुद्रित पत्र के शिविर के बाहर जाने लगता है। राक्षस के सेवक उसे पकड़कर मलयकेतु तथा भागुरायण के पास ले आते हैं। सिद्धार्थ के पास से राक्षस की मुद्रा से मुद्रित पत्र (इसे चाणक्य ने शकटदास से लिखवाकर मुद्रित करवाया था) तथा अलंकारपेटिका मिलती है। पत्र में चन्द्रगुप्त से राक्षस की सन्धि की बात लिखी है । सिद्धार्थ कहता है कि यह पत्र तथा आभूषण उसे राक्षस ने चन्द्रगुप्त को देने के लिये दिया है। मलयकेतु यह सुनकर अत्यन्त क्रोधित हो जाता है और राक्षस को मारने के लिये तैयार हो जाता है। भागुरायण उसे से शान्त करता है। राक्षस वही आभूषण पहनकर वहाँ आता हैजो उसने चाणक्य के गुप्तचर से खरीदे थे । वस्तुत: ये आभूषण पर्वतेश्वर के थे मलयकेतु राक्षस को उन आभूषण से ये में देखकर उन्हें पर्वतेश्वर का घातक समझ लेता है। वह राक्षस को शिविर से बाहर निकाल देता है और मलयकेतु चित्रवर्मा आदि राजाओं को मार डालने का आदेश देता हैं मलयकेतु चन्द्रगुप्त आक्रमण करने के लिये चला जाता है और राक्षस चन्दनदास को छुड़ाने चला जाता है ।

 

मुद्राराक्षस का षष्ठ  अंक 

  • षष्ठ अंक प्रारम्भ में सुसिद्धार्थक तथा सिद्धार्थक का वार्तालाप होता है। उनके वार्तालाप से मालूम होता है कि मलयकेतु को चन्द्रगुप्त के सैनिकों ने पकड़ लिया है तथा राक्षस कुसुमपुर की ओर गया हैं सुसिद्धार्थक तथा सिद्धार्थक वहां से निकल जाते हैं। एक पुरुष हाथ में रस्सी लेकर पर आता है । उसकी राक्षस से भेंट होती है। राक्षस उस पुरुष से उसका परिचय पूछता हैतब । वह पुरुष बताता है कि आज चन्दनदास को अमात्यराक्षस के परिवारजों को रखने के आरोप में सूली पर चढ़ाया जा रहा है। उसकी मृत्यु को सहन न करने से उसका एक घनिष्ठिमित्र जिष्णुदास अग्नि में प्रवेश करने वाला है और वह जिष्णुदास मेरा परम मित्र है। मैं उसका प्राणविरह सहन नहीं कर पाऊँगा। तो जब तक जिष्णुदास अग्नि में प्रवेश नहीं करताउसके पहले ही मैं रस्सी से लटककर आत्महत्या करने के लिये यहाँ आया हूँ। यह सुनकर राक्षस उसे बताता है कि मैं ही राक्षस हूँ । राक्षस उस पुरुष को जिश्णुदास को मरने से रोकने के लिये भेजता है और स्वयं चन्दनदास की रक्षा के लिये निकल जाता है।

 

मुद्राराक्षस का सप्तम् अंक 

  • सप्तम् अंक- दो चाण्डाल (जल्लाद) चन्दनदास को वध्यस्थान की ओर ले जाते है । चन्दनदास की पत्नी तथा पुत्र विलाप करते हैं। उन दोनों को सान्त्वना देता है। तभी राक्षस वहाँ उपस्थित होकर आत्मसपर्मण कर देता है। चाणक्य भी पर्दे के पीछे से वहाँ उपस्थित होता है और राक्षस का अभिवादन करता है। चाणक्य राक्षस से कहता है कि आपको चन्द्रगुप्त का मन्त्री बनाने के लिये यह सारा मेरी नीति का प्रयोग है। चन्द्रगुप्त मंच पर आकर राक्षस का अभिवादन करता है राक्षस भी अन्ततः मित्ररक्षा के लिये चन्द्रगुप्त का मन्त्रित्व स्वीकार करता है। राक्षस की प्रार्थना पर मलयकेतु को उसके पिता का राज्य दे दिया जाता है। चन्दनदास मुख्यश्रेष्ठ बना दिया जाता है । चाणक्य अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण हो जाने से शिखा बांध लेता है। अन्त में राक्षस के द्वारा भरतवाक्य कहने पर नाटक की समाप्ति हो जाती है।

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