श्रृंगार शतक भर्तृहरि विवेचना (Shirngar Shatak Explanation in Hindi)
श्रृंगार शतक भर्तृहरि विवेचना (Shirngar Shatak Explanation in Hindi)
श्रृंगार शतक का वर्णन करने से पहले ही कवि ने कामदेव की वन्दना की है-
शम्भुस्वयंम्भुहरयो हरिणेक्षणानां
येनाक्रियन्त सततं गृहकुंभदासा
वाचामगोचरचरित्रपवित्रिताय
तस्मै नमो भगवते मकरध्वजाय
जिसके द्वारा शम्भु, ब्रह्मा एवं विष्णु मृगनयनी नारियो के घर में काम करने वाले दास बना दिये जाते है एवं जिसके विचित्र चरित्र वाणी से नही कहे जा सकते उस भगवान कामदेव के लिए नमस्कार है।
स्मितेन भावेन च लज्जया भिया
पराङ्मुखैहा-कटाक्ष- वीक्षणैः।
वचोभिरीर्ष्याकलहेन लीलया
समस्तभावैः खलु बन्धनं स्त्रियः ॥
- कामवासना को दर्शाते हुए कहते हैं कि मन्द मन्द मुस्कान से काम वासना प्रकट करने वाली भावना से लज्जा से भय से मुहँ फेरकर छोडी गई आडी तिरछी चितवन से मधुर मादक वचनो से ईर्ष्या के कारण की गई कलह से एवं लीला से कहाँ तक कहा जाये स्त्रियाँ सभी प्रकार से पुरूषो को बन्धन में डालने वाली है।
- चतुरता के साथ भौहे चलाने के कारण आधी बन्द आँखें की तिरछी चितवने स्नेह भरी बातें लज्जा में परिवर्तित होती हँसी प्रदर्शन के रूप में धीरे-धीरे चलना और ठहरना ये सबस्त्रियों के आभूषण भी है और आयुध भी है ।
- सुन्दरता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि कही सुन्दर टेढ़ी भौहों के कारण कही लज्जा का रूप धारण करने वाले कटाक्षों से कही भय के कारण त्रसित भावों से एवं कही लीला विलासों से पूर्ण नवयुवतियों के जो चंचल नेत्रों वाले ये मुखरूपी कमल है इनके कारण सभी दिशाएँ खिले हुए नीले कमलो से स्पष्ट रूप में भरी भरी दिखाई देती है।
- सुन्दरयुवतियों का वर्णन करते हुए राजा कहते है कि चन्द्रमा के समान उज्जवल मुख, कमलों की हँसी उड़ाने में समर्थ आँखे सोने का अपमान करने वाला रंग, भौरियों को जीतने वाले केश, हाथी के गंडस्थलों की शोभा चुराने वाले स्तन, भारी नितम्ब एवं मन को हरने वाली वचनों की कोमलता-ये सब युवतियों के स्वभाविक आभूषण है।
- यौवन के वर्णन में वह यह जोड़ते है कि यौवन का स्र्पश करने वाली मृगनयनी का ऐसा कौन सा भाव है जो सुन्दर नही है। उसके मुख में कुछ-कुछ मुसकान रहती है। आँखों की शोभा सरल और तरल होती है। बातों का आरम्भ विलासपूर्ण नवीन उक्तियों के कारण सरस होता है। उसकी गति का आरम्भ कोपलों के समान लीलापूर्ण एवं चंचल होता है।
- मृगनयनियों की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि देखने योग्य वस्तुओं के योग्य क्या है? मृगनयनियो का प्रेम के कारण प्रसन्न मुख सूँघने योग्य पदार्थो में भी उत्तम क्या है? उनके मुख का पावन सुनने योग्यों में उत्तम क्या है ? उनका वचन | स्वाद लेने योग्य पदार्थो में उत्तम क्या है? उनके कोपल के समान कोमल होठ का रस । छूने योग्य पदार्थो में उत्तम क्या है ? उनका नवयौवन । इस प्रकार सभी जगह मृगनयनियों का वैभव ही है।
वह कहते हैं कि तरूणियाँ किसकी मन नहीं हरतीं: -
- इन तरूणियों को हिलते हुए कंगनो के साथ करधनी के घुँधरूओं की झंकार राजहंसियों को भी पराजित कर देती है। ये युवतियाँ डरी हुई भोली-भाली हिरनी के समान अपनी चितवनो से किसका मन वर्ष में नही कर लेती ? अर्थात् सभी का मन वश में कर लेती है।
रमणी किसको वश में नहीं करती :-
- जिनका शरीर कुंकुम के घोल से लिपटा है, जिनके गोरे रंग के स्तनों पर हार रहा है और जिनके चरण कमलो में नूपुर रूपी हंस शब्द कर रहे है ऐसी रमणी, धरती पर किसे वश में नहीं कर लेती ? अर्थात् सभी को वश में कर लेती है।
कवियों का बोध उल्टा है :-
- निश्चय ही वे कविवर उल्टे ज्ञान वाले थे, जिन्होने कामिनियों को सदा अबला कहा। जिन्होने अपनी अत्यधिक चंचल पुतली की चितवनो से इन्द्र आदि को भी जीत लिया, वे अबलाएँ किस प्रकार है ?
कामदेव कामनियों का आज्ञाकारी है :-
- निश्चय ही कामदेव उस सुन्दर भौहों वाली की आज्ञा मानने वाला है, क्योकि वह अपने नेत्र को घुमाकर जिसकी ओर संकेत करती है, उसी पर आक्रमण करता है।
नारी देह वैरागियों को भी क्षुब्ध करती हैं:-
- हे सुन्दरी तेरे केश बँधे हुए है अथवा संयमित ( संयम से रहने वाले) है । तेरी दोनों आँखे कानों के भी अत्यधिक समीप तक पहुँचने वाली अथवा वेदज्ञान में पारंगत है। तेरे मुँह का भीतरी भाग भी स्वाभाविक रूप से साफ अथवा पवित्र दाँतों अथवा ब्राहणों के समूह से भरा हुआ है । तेरे स्तन रूपी दोनों घड़े मोतियों अथवा मुक्त पुरूषो के नित्य निवास करने के कारण सुन्दर है। इस प्रकार तेरा शान्त शरीर भी हमारे मन में क्षोभ उत्पन्न करता है।
धनुर्विद्या की अनोखी चतुरता:-
- हे सुन्दरी तेरे भीतर यह कौन सी अद्वितीय धनुर्विद्या की कुशलता दिखाई देती है जो अपने गुणों अथवा धुनष की डोरियों से ही लोगों के मनों का हरण कर लेती हो, बाणों से नही ।
मध्यस्थ संताप क्यों देता है:-
- हे सुन्दरी तेरे उभरे हुए भारी स्तन, तरल नयन, चंचल भौहें एवं कोपल के समान लाल यह होठ कामान्ध लोगों को व्यथा करे तो कोई बात नहीं है । तेरी रोमावली तो स्वंय कामदेव के द्वारा लिखी हुई सौभाग्य के क्षरों की पंक्ति है। यह मध्यस्था अथवा कमर पर स्थित रहकर अधिक ताप देती है, इसका क्या कारण है ? मध्यस्थ को तो किसी का विरोध नही करना चाहिए।
मृगनयनी के बीना संसार अन्धकारमय है :-
- दीपक, अग्नि, तारो, सूर्य, एवं चन्द्रमा के होते हुए भी उस मृगनयनी के बिना यह संसार मेरे लिए अन्धकारपूर्ण लगता है।
रत्नमयी रमणी :-
- चन्द्रमा के समान सुन्दर अथवा चन्द्रकान्त मणि जैसे मुख का कारण, महानील अर्थात् बहुत काले अथवा महानील मणि जैसे केशों के कारण और कमल के समान लाल अथवा पद्मराग मणि जैसे हाथों के कारण वह रत्नों से भरी हुई के समान शोभा पाती हैं।
ग्रहमयी सुन्दरी :-
- अपने गुरू (भारी अथवा देव गुरू बृहस्पति जैसे) स्तन भार के कारण, चन्द्र के समान चमकते हुए मुख के कारण और धीरे-धीरे चलने वाले अथवा शनैश्चर के समान चरणों के कारण वह सुन्दर ग्रह पूर्ण के समान शोभा पाती है।
पुण्य किये बिना इच्छा पूरी नहीं होती :-
- उसके स्तन यदि कठोर जंघाएँ अधिक मनोहर हैं, मुख है चारू, बात मेरे मन ये क्यों तुझे कष्टकर हैं। यदि इनमें तेरी इच्छा है तो तू पुण्य कर्म करले, बिना पुण्य के कभी न कोई जो इच्छा पूरी कर ले ।
किसका सेवन करना चाहिए :-
- श्रेष्ठ ईर्ष्या-द्वेष का भाव त्याग कर, कार्य का विचार करके एवं मर्यादा का पालन करते हुए यह बतावें की पर्वतों के नितम्ब अर्थात् गुफाओं का सेवन करना चाहिए अथवा मदमत्त काम भाव के कारण मतवाली युवतियों के नितम्बों का सेवन करना चाहिए।
तिरक्षी चितवन वाली स्त्रियाँ क्या नहीं करती हैं :-
- ये नारियाँ मनुष्यों के दयालु हृदय में पहुँच कर उन्हें मोहित करती हैं। इसके पश्चात् उन्हें मतवाला बना देती हैं, फिर उन्हें धोखा दे देती हैं। इसके बाद उन्हें डराती हैं, फिर ये मनुष्यों को रमण कराती हैं और अन्त में फटकार लगाकर उन्हें दुःखी बनाती हैं। इस प्रकार ये तिरछी चितवन वाली नारियाँ क्या-क्या नहीं करती अर्थात् सब कुछ करती हैं।पंडितों को दो गतियाँ हैं परिणाम मे चंचल इस सारहीन संसार में पंडितों की दो ही दशाएं होती है।
निशा में तन्वी का वन विचरण :-
- कोई दुबली युवति वन के वृक्षों की छाया में ठहर ठहरकर विचरण कर रही थी वह स्तनों के ऊपर हाथ से उठाये हुए दुपट्टे से चन्द्रमा की किरणों को बचा रही है।
बढ़ती अभिलाषा :-
- उस सुन्दरी का दर्शन न होने पर दर्शन मात्र की कामना होती है। उसे देखकर आलिंगन करने के एकमात्र सुख की इच्छा जागती है। उस बड़ी-बड़ी आँखों वाली रमणी का आलिंगन कर लेने पर हम चाहते हैं कि हमारे शरीर कभी अलग न हों।
वास्तविक स्वर्ग :-
- सिर पर मालती के खिलने वाले फूलों की माला, शरीर पर कुंकुम से मिला हुआ चन्दन एवं सीने पर मनोहर प्रियतम यही वास्तविक स्वर्ग है। शेष को तो लोग व्यर्थ ही स्वर्ग कहते हैं।
उच्च की कामिनी का संभोग :-
- पहले रस न आने के कारण थोड़ी सा नहीं नहीं करती, पश्चात् सम्भोग के प्रति उसकी रूचि होने लगती है, फिर लज्जापूर्वक शरीर को ढीला छोड़ देती हैं । इसके पश्चात् धैर्य त्याग देती हैं। इसके पश्चात प्रेम से पूर्ण चाहने योग्य एवं एकान्त की आत्मनिर्भर काम क्रीड़ा में कुशल हो जाती है। अन्त में निःशंक होकर अंग खींचने आदि का सुख देती है। इस प्रकार उच्च कुल की स्त्री का संभोग अत्यन्त रम्य है ।
सौभाग्यशाली पुरूष :-
- सीने पर पड़ी हुई बिखरे केशों वाली, बन्द आँखों वाली एवं कुछ-कुछ खुली आँखों वाली, संभोग के कारण उत्पन्न पसीने से भीगे हुए गालों वाली नारियों के होठों का रस सौभाग्यशाली पुरूष ही पीते हैं।
काम देव का सच्चा पूजन:-
- जो पुरूष आलस्य के कारण आधी बन्द आँखों वाली नारियों के साथ सम्भोग के आनन्द में साझेदारी करता है। स्त्री-पुरूष के सम्बन्ध में परस्पर निश्चित यही सच्चा काम पूजन है।
ब्रह्मा का अनुचित कार्य:-
- यह बात अनुचित एवं क्रम विरूद्ध है जो पुरूषों को वृद्धावस्था भी काम सम्बन्धी विकार उत्पन्न होते हैं। यह भी अनुचित है कि नारियों के स्तन ढके जाने पर भी वे जीवित रहती है एवं सम्भोग की इच्छा उत्पन्न होती रहती है।
जीवित एवं मृतक का संगम :-
- काम भावना संसार में यही फल है कि संभोग करने वाले स्त्री पुरूषों के मन एक हो जायें। यदि स्त्री एवं पुरूषों में से एक का मन कहीं दूसरी जगह लगा हो तो उनका मिलना अथवा संभोग लाशों के मिलन के समान है।
मृगनयनियों की स्वच्छन्द बातें :-
- हिरनी के समान नयनों वाली सुन्दर स्त्रियों के प्रेम के कारण मधुर, गम्भीर प्रेम से पूर्ण, रस के कारण आलस्यपूर्ण, मधुर बातों से युक्त, मोहित करने वाली, सम्पत्तियों को प्रकाशित करने वाली प्राकृतिक रूप से सुन्दर विश्वास के योग, काम वासना को उत्पन्न करने वाली एवं एकान्त में की गयी स्वच्छन्द बातें मन को हरती है।
एक स्थान पर आवास बनाओं:-
- या तो पापों का विनाश करने वाले जल में निवास स्थान बनाना चाहिए या युवती स्त्री के मनोहर एवं हार से सजे हुए स्तनों के मध्य में ।
युवतियाँ कब तक रूठी रहती हैं:-
- प्रेमी पुरूषों के सामने युवतियों के हृदय में रूठने का भाव तभी तक रह सकता है, जब तक चन्दन के वृक्षों के कारण सुगन्धित स्वच्छ वायु नहीं चलती।
बसन्त की रात में गुणों का उदय :-
- हवायें सुगन्ध से भर जाती हैं, शाखाओं में बहुत से नये अंकुर निकल आते है कोयल आदि पक्षियों के मधुर एंव सुप्त के लिए उत्कंठित शब्द प्रिय प्रतीत के होने लगते हैं एवं युवतियों के मुख रूपी चन्द्रमा पर कभी-कभी होने वाले सम्भोग के किसका गुणोदय नहीं हो जाता अर्थात् सबका गुणोदय होता है।
- विपत्ति की चर्चा करते हुए भर्तृहरि कहते हैं कि यह बसन्त की कोयल के मधुर कूजन एवं मलय पर्वत से आने वाली हवाओं के द्वारा वियोगी पुरुषों का वध करता है। विपत्ति में अमृत भी विष बन जाता है । चैत्र की रात्रियों के सुख का वर्णन करते हुए आपने कहा है कि सुप्त क्रीड़ा के कारण अलसायी हुई प्रियतमा के साथ कुछ समय निवास करना, मन में कोयल की कूक का सुन्दर शब्द पड़ना, खिले फूलों वाली लताओं का मण्डप, कुछ उत्तम कवियों के साथ गोष्ठी एवं चन्द्रमा के किरण का आनन्द लेना इस प्रकार की चैत्र की विचित्र रातें कुछ ही लोगों को नेत्र और हृदय को सुख पहुँचाती है।