दण्डी द्वारा रचित ग्रन्थ दशकुमार चरित
दण्डी द्वारा रचित ग्रन्थ दशकुमार चरित
- पुष्पपुरी (पटना) का राजा राजहंस मालवेश्वर मानसार को परास्त करता है, परन्तु तपस्या के बल से प्रभावसम्पन्न होकर मानसार पाटलिपुत्र पर चढ़ाई करता है और राजा को युद्ध में हराता है। राजहंस जंगल में चला जाता है और वहीं राजवाहन नामक पुत्र उसे उत्पन्न होता है। उनके मन्त्रियों के भी पुत्र उत्पन्न होते हैं। ये बड़े होने पर यात्रा के निमित्त परदेश जाते है और भाग्य की विषमता के कारण अलग-अलग देशों में पहुँच जाते है तथा विचित्र संकटपूर्ण जीवन बिताते हैं । राजवाहन से पुनः भेंट होने पर वे आपबीती सुनाते हैं और इन्हीं साहसी कुमारों के साहसपूर्ण घटनाओं का आकर्षक वर्णन प्रस्तुत करने वाला आख्यान ग्रन्थ 'दशकुमार-चरित' कहलाता है ।
- 'दशकुमार चरित्र एक घटना प्रधान कथानक है जिसमें नाना प्रकार की उल्लेखनीय रोमांचक घटनाएँ पाठकों के हृदय में कभी विस्मय की और कभी विषाद की रेखायें खींचने में नितान्त समर्थ होती हैं। कहीं पाठक भयानक अरण्यानी के बीच हिंसक पशुओं के चीत्कारों तथा दहाड़ों को सुनकर व्यग्र हो उठता है, तो कहीं वह समुद्र के बीच जहाज टूट जाने से अपने को पानी में काठ के सहारे तैरता हुआ पाता है। इन कहानियों का संबंध दोनों क्षेत्रों से है-स्थल-जगत् से तथा जल-जगत् से। मित्रगुप्त के जीवन में हमें तात्कालिक जलयात्रा का एक बड़ा ही रोचक चित्र मिलता है। मित्रगुप्त दामलिप्ति (ताम्रलिप्ति) नामक प्रख्यात बंगीय बन्दरगाह से किसी नवीन द्वीप में जहाज से जाता है। चट्टान की चोट पाकर जहाज टूट जाता है। बहुत देर तक तैरने के बाद संयोगवश उसे काल का एक तैरता हुआ टुकड़ा मिलता है। रात-दिन उसी के सहारे बिताने पर यवन नाविकों का एक जहाज दिखलाई पड़ता है जिसके कप्तान (नाविक नायक) का राम ‘रामेषु’ है। यवनों के ऊपर अन्य युद्धपोत (मद्दु) का आक्रमण होता है। यवन नाविक इस नवीन विपत्ति से विचलित हो उठते हैं।
- मित्रगुप्त जिसे जंजीरों से बांधा गया था मुक्त कर दिया जाता है। वह इस पोत के डाकूओं को अपनी वीरता से हराकर यवनों को बचाता है और पुरस्कृत होकर पुनः स्वदेश लौट आता है। इसी प्रकार की रोमांच तथा साहस से भरी हुई विस्मयावह घटनाओं से पूर्ण होने के कारण दशकुमार-चरित का वातावरण नितान्त भौतिक है । छल-कपट, मार-काट तथा सांच-झूट से ओत-प्रोत होने के कारण यह एक अत्यंत सजीव रचना है। दण्डी की प्रतिभा घटनाओं की यथार्थता में चरितार्थ होती है । यथार्थवाद यहां पूर्णतः प्रतिबिम्बित हो रहा है।
- ‘रामेषु' सीरिया की शमी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है सुंदर ईसा (रामत्रसुंदर, ईशुपुत्रईसा । ईसाई धर्म के प्रचार के कारण यह नाम उस समय यवन नाविका में चल चुका था। गुप्त काल में भरत की नौसेना के बेड़े देशान्तारों से व्यापार करने में तथा रत्नार्वणों की मेखला से युक्त भारतभूमि की रक्षा करने में नितान्त पटु थे। दण्डी के इस वर्णन से घटना की पुष्टि होती है । दण्डी के द्वारा निर्दिष्ट ‘मद्गु’ नामक जंगी जहाज झपट्टा मारनेवाले समुद्री पक्षी की समता रखने के कारण इस नाम से पुकारा गया है। दशकुमार के तृतीय उच्छवास में 'खनति' नाम एक यवन व्यापारी से एक बहुमूल्य हीरा ठगने का उल्लेख है। ‘खनति' की व्युत्पति का पता नहीं कि यह किस भाषा का शब्द है, परन्तु इतना तो निश्चित है कि दण्डी के युग में ईरानी व्यापारी भारत में हीरा जवाहरात का व्यापार करते थे।